Thursday, 8 February 2018

श्री महाशिवरात्रि व्रत सभी व्रतों में सर्वोत्तम व्रत है

एक ऐसा पर्व जिसकी तुलना में कोई व्रत रुक भी नही सकता । श्री शिवमहापुराण में वर्णित है कि? माँ पार्वती और विष्णु भगवान ने आग्रह किया कि प्रभु अपने व्रतों को बतायें जिससे हम सब और मनुष्य जाति को भुक्ति मुक्ति सहित पूर्ण कृपा प्राप्त हो सके । तब अनाथों के नाथ प्राणनाथ बाबा विश्वनाथ मुस्कुराते हुए बोले कि हे नारायण और देवी पार्वती मैं उन शैव श्रेष्ठ व्रत को कहता हूँ । जिनसे व्यक्ति को समस्त सुख के साथ मोक्ष की प्राप्ति भी सरल हो जायेगी ।
परन्तु मात्र व्रत ही नही भावना और भक्ति पूजन का भी होना अनिवार्य है । प्रथम व्रत है अष्टमी, शुक्ल पक्ष  की अष्टमी में रात्रि में भोजन करें और कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पूर्ण व्रत रहें भोजन न करें । द्वितीय व्रत एकादशी जिसमें कृष्ण पक्ष में रात्रि में भोजन कर सकते है , शुक्ल पक्ष में निराहार रहें भोजन न करें । तृतीय व्रत प्रत्येक महीने का शुक्ल पक्ष का सोमवार पर इसमें एक समय रात्रि में भोजन कर लें । चतुर्थ व्रत त्रयोदशी दोनो पक्ष की । फिर बाबा ने कहा ये चारो व्रत हमें अत्यंत प्रिय है पर इनसे भी अधिक हमें महाशिवरात्रि पसन्द है जिसे रहने मात्र से मेरी अत्यन्त कृपा स्वतः हो जाती है और उसका उद्धार हो जाता है । बाबा ने बताया कि ये व्रत कैसे ग्रहण करें - फाल्गुनमास कृष्ण पक्ष ( भारत में पञ्चाङ्ग में दो मान्यता है पूर्व और उत्तर का पञ्चाङ्ग एक महीना आगे चलता है जब कि पश्चिम और दक्षिण भारत का पञ्चाङ्ग एक महीना पीक्षे चलता है । इसी लिए जब काशी में फाल्गुन होगा तो सौराष्ट्र में माघ रहेगा हम फाल्गुन कृष्ण में शिवरात्रि कहते है वहां माघ कृष्ण में शिव रात्रि होती है बात एक ही है ) मध्य रात्रि में चतुर्दशी हो तब शिवरात्रि होती है दिन में कोई तिथि हो कोई दिक्कत नही परन्तु मध्यरात्रि में चतुर्दशी होना अत्यन्त आवश्य है । क्यों कि शास्त्र कहते है, प्रमुख रूप से ईशान संहिता में लिखा है कि उसी समय शिवलिङ्ग प्रगट हुए थे और उस समय शिवलिङ्ग से करोड़ सूर्य प्रकाश निकला था, चतुर्दशी महा निशी समय था। इस लिए ऐसी तिथि को शिवरात्रि ग्रहण करना चाहिए । शिवभक्त को फाल्गुन में महाशिवरात्रि और 11मास में शिवरात्रि व्रत इस प्रकार एक वर्ष में  12 शिवरात्रि का व्रत करना चाहिए और रात्रि में जगकर शिवार्चन करना चाहिए । इससे वह पूर्ण शैव हो जाता है और समस्त सुख के साथ अन्त में मुक्ति को प्राप्त करता है ।