Tuesday, 16 July 2019

अष्टोत्तरशतनाम सिद्धि का आधार ।। ashtottarshatnam siddhi ka adhar

आज का हमारा विषय है अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र यह स्तोत्र नही अपितु भैरव सिद्धि का मूल आधार है । यह भी कह सकते है की इसके बिना बाबा की सिद्धि कठिन होती है । मूल मंत्र को इस पाठ के साथ मिला कर करने से कठिन से कठिन कार्य में सफलता प्राप्त होती है । इस पाठ को करने से धन और यश लाभ प्राप्त होता है। भगवान श्री बटुकनाथ जी गुरु रूप धारण कर लेते है । ११००० पाठ करने से इस पाठ की सिद्धि हो जाती है । इतना अवस्य ध्यान रखें की उच्चारण शुद्ध होना चाहिए । यदि आपके पास कोई मार्ग दर्शक है तो उसके संरक्षण में करें । मार्ग दर्शन पूर्ण रूप से बाबा की सेवा पूजा और सिद्धि का ज्ञाता होना चाहिए । इस पाठ को सिद्ध करने के लिए मुख्य समय है, कृष्ण पक्ष की रात्रि व्यापिनी अष्टमी से इस पाठ को प्रारम्भ करें और २१ दिन में अंदर में इसे ११००० की संख्या में करके पूर्णा हुति करें तदोपरान्त दैनिक रूप से पाठ करते रहने से साधक सिद्धि को प्राप्त करता है । इस पाठ को जप और न्यास मुद्रा के साथ करने से साधक कई प्रकार की सिद्धियों को अपने वश में कर लेता है । वह जो सोचता है समय उसके अनुरूप हो जाता है । यह पढ़ने के बाद एक कल्पना लगता है की ऐसा कैसे हो सकता है पर यह एक अटल सत्य है । जिसमें कोई संदेह नहीं है । एक बार बाबा की भक्ति में आप लीन हो गये तो बाबा हर प्रकार के दुःखों का नाश कर सुख, समृद्धि, धन, वैभव, सौन्दर्य, निरोगी काया, कुटुम्ब की रक्षा और वृद्धि प्रदान करते है ।

तान्त्रिक क्रिया का परिहार
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यदि किसी तान्त्रिक ने किसी के ऊपर तन्त्र क्रिया किया है ।
या किसी स्थान पे अरिष्ट बाधा का दोष है । या राहु, केतु,शनि की ग्रह पीड़ा से परेशान है तो अष्टोत्तरशतनाम का पाठ भैरव सप्ताह में करें कृष्ण पक्ष की रात्रि व्यापिनी अष्टमी से रात्रि व्यापिनी चतुर्दशी तक प्रति दिन १०० पाठ करें । हर १० पाठ के बाद एक माला जप करें और उसके बाद घी और सरसों के दाने को मिला के १०८ आहुति हवन करें । ११ बार तर्पण करें । १ बार मार्जन । इस प्रकार आपका अनुष्ठान पूरा होगा । और नित्य प्रति यथा शक्ति जप पाठ करते रहने से सुख शान्ति और वृद्धि का वास होगा ।

पाठ करने की विधि
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सर्व प्रथम स्नान करके सफेद या पीला रंग छोड़ किसी भी रंगीन वस्त्र में खास कर काला , लाल , नीला वस्त्र धारण कर दक्षिणाभिमुख बैठ कर बाबा के मूल मंत्र को बढ़ के आचमन करें ।
फिर हाँथ में जल लें और  ११ बार मन्त्र पढ़ कर जल को चारो चारो तरफ अभिसिंचित कर लें । इसके बाद विनियोगः करें फिर न्यास करें । न्यास के बाद बाबा का ध्यान करें । ध्यान के बाद पाठ करें । यदि आप १ से अधिक पाठ के लिए बैठे हैं तो विनियोगः और न्यास ध्यान मात्र प्रारम्भ में किया जायेगा , उसके बाद पाठ का १४ श्लोक ही पाठ किया जायेगा उसी की आवृत्ति करते रहना है जब आपका अन्तिम पाठ हो तब फल श्रुति १ बार पढ़नी है । यह क्रम है । परन्तु यदि आपको बीच में मलया मूत्र  के लिए उठना पड़े तो  मल के बाद स्नान और मूत्र के बाद गुप्तांग प्रक्षालन करके पाठ के पहले का जितना क्रम बताया गया है वह पुनः करना पड़ेगा खास कर मल जाने के बाद ।।

अष्टोत्तरशतनाम पाठ
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विनियोगः
बटुकभैरवस्तोत्रमन्त्रस्य बृहदारण्यक ऋषिः अनुष्टुप्छन्द: श्रीमदापदुद्धारक-बटुकभैरवो देवता वं बीजं ह्रीं बटुकाय इति शक्ति: प्रणवः कीलकं ममाभीष्टसिद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

  अथ ऋष्यादिन्यास:
बृहदारण्यकऋषये नमः    - शिरसि
अनिष्टुप्छन्दसे  नमः         - मुखे
बं बीजाय नमः                - गुह्ये
ह्रीं बटुकायेति शक्तये नमः - पादयो:
ॐ कीलकाय नमः           - नाभौ
विनियोगाय नमः             - सर्वाङ्गे

आथ करन्यास:
ॐ ह्रां वां   - अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ॐ ह्रीं वीं   - तर्जनीभ्यां नमः
ॐ ह्रूं  वूं    - मध्यमाभ्यां नमः
ॐ ह्रैं  वैं    - अनामिकाभ्यां
ॐ ह्रौं वौं   - कनिष्काभ्यां नमः
ॐ ह्रः वः   - करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः

आथ ह्रदयादिषडङ्गन्यास:
ॐ ह्रां वां हृदयाय नमः
ॐ ह्रीं वीं शिरसे स्वाहा
ॐ ह्रूं वूं   शिखायै वषट्
ॐ ह्रैं वैं   कवचाय हुम्
ॐ ह्रौं वौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ॐ ह्रः वः अस्त्राय फट्

मूल पाठ -
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ॐ ह्रीं भैरवो भूतनाथश्च भूतात्मा भूतभावन:।
क्षेत्रज्ञ:  क्षेत्रपालश्च   क्षेत्रद   क्षत्रियो विराट् ॥ १॥
श्मशानवासी मांसाशी  खर्पराशी स्मरान्तक:  ।
रक्तप: पानप: सिद्ध:    सिद्धिद: सिद्धसेवितः ॥२॥
कंकालः कालशमन:    कलाकाष्ठातनु: कवि:।
त्रिनेत्रो बहुनेत्रश्च     तथा पिङ्गललोचन:      ॥ ३॥
शूलपाणि: खड्गपाणि:     कंकाली धूम्रलोचनः।
अभीरुः भैरवीनाथो       भूतपो योगिनीपतिः ॥ ४॥
धनदोऽधनहारी च       धनवान् प्रतिभानवान् ।
नागहारो नागपाशो     व्योमकेशः कपालभृत् ॥५॥
कालः कपालमाली च    कमनीयः कलानिधिः।
त्रिलोचनो     ज्वलन्नेत्रस्त्रिशिखिः च त्रिलोकपः ॥६॥
त्रिनेत्रतनयो   डिम्भः शान्त:  शान्तजानः प्रियः।
बटुको       बहुवेषश्च        खट्वाङ्गवरधारकः ॥७॥
भूताध्यक्षः       पशुपतिः भिक्षुकः  परिचारकः।
धूर्तो    दिगम्बरः शौरिर्हरिणः   पाण्डुलोचनः ॥८॥
प्रशान्तः    शान्तिदः   शुद्धः  शंकरः प्रियबान्धवः।
अष्टमूर्तिनिधीशश्च         ज्ञानचक्षुस्तपोमयः ॥९॥
अष्टाधारः   षडाधारः   सर्पयुक्तः  शिखीसखा।
भूधरो   भूधराधीशो       भूपतिर्भूधरात्मजः ॥१०॥
कंकालधारी   मुण्डी च      नागयज्ञोपवीतकः।
जृम्भणो मोहनस्तम्भी  मारणः   क्षोभणस्तथा ॥ ११॥
शुद्धो नीलाञ्जनः प्रख्यो   दैत्यहा    मुण्डभूषितः।
बलिभुग्बलिभुंनाथो       बालोऽबालपराक्रमः ॥१२॥
सर्वापत्तारणो     दुर्गो          दुष्टभुतनिषेवितः।
कामी कलानिधिः कान्तः    कामिनीवशकृद्वशी ॥१३॥
जगद्रक्षाकरोऽनन्तो          मायामन्त्रौषधीमयः।
सर्वसिद्धिप्रदो वैद्यः प्रभर्विष्णुरितीव हि ह्रीं ॐ॥१४॥

फलश्रुतिपाठ -
अष्टोत्तरशतं नाम्ना भैरवस्य महात्मनः।
मया ते कथितं देवि रहस्यं सर्वकामदम्।।
य इदं पठति स्तोत्रं नामाष्टशतमुत्तमम्।
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न रोगेभ्यो भयं भवेत्।।
न च मारीभयं किञ्चिन्न च भूतभयं क्वचित्।
न शत्रुभ्यो भयं किञ्चित् प्राप्नुयान्मानवः क्वचित्।।
पातकेभ्यो भयं नैव यः पठेत् स्तोत्रमुत्तमम्।
मारी भये राजभये तथा चौराग्निजे भये।।
औत्पातिके महाघोरे तथा दुःस्वप्नदर्शने।
बन्धने च तथा घोरे पठेत् स्तोत्रमनुत्तमम्।।
सर्वप्रशममायाति भयं भैरवकीर्तनात्।
एकादशसहस्रन्तु पुरश्चरणमुच्यते।।
यस्त्रिसंध्यं पठेद्देवि संवत्सरमतन्द्रितः।
स सिद्धिं पाप्नुयादिष्टां दुर्लभामपि मानवः।।
षण्मासं भुमिकामस्तु जपित्वा प्राप्नुयान्महीम्।
राजशत्रुविनाशार्थं पठेन्मासाष्टकं पुनः।।
रात्रौ वारत्रयं चैव नाशयत्येव शात्रवान्।
जपेन्मासत्रयं मर्त्यो राजान वशमानयेत्।।
धनार्थी च सुतार्थी च दारार्थी चापि मानवः।
पठेन्मासत्रयं देवि वारमेकं तथा निशि।।
धनंपुत्रं तथा दारान् प्राप्नुयान्नात्र संशयः।
रोगी रोगात् प्रमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात्।
भीतो भयात् प्रमुच्येत तत्तदापन्न आपदः।।
निगडैश्चापि बद्धो यः कारागृहनिपातितः।
श्रृंखलाबन्धनं प्राप्तः पठेच्चैव दिवानिशम्।।
यान् यान् समीहते कामाँस्ताँस्तानाप्नोति मानवः।
अप्रकाश्यं परं गुह्यं न देयं यस्य कस्यचित्।।
सुकुलीनाय शान्ताय ऋजव दम्भवर्जिते।
दद्यात् स्त्रोत्रमिदं पुण्यं सर्वकामफलप्रदम्।।
य इदं पठते नित्यं धनधान्यमवाप्नुयात्।
-------------ॐ ह्रीं बटुकाय ह्रीं ॐ---------------