Saturday, 15 February 2020

हिन्दी अष्टोत्तरसत नाम पाठ

आज मैं अपने आराध्य देव भगवान श्री बटुक भैरवनाथ जी के उपासकों के अनुरोध पे अष्टोत्तरसतनाम हिन्दी में लिख के दे रहा हूँ । वैसे संस्कृत में जो पाठ है वह ज्यादा सिध्दि प्रद है क्यों की वह रुद्रयामल तन्त्र से प्रमाणित है । पर ऐसा नही है की इसे पढ़ने से कोई लाभ नहीं होगा बाबा भक्त वत्सल देवता है। तो आप हिन्दी में भी पाठ कर सकते हो ।
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नमो-नमो भैरव सिधि दाता, भूतनाथ भव भयतें त्राता ।
भूतात्मा भूतल उजियारे। बटुक भूत-भावन मतवारे ॥१॥
क्षेत्रद क्षेत्रपाल सुरराटा, क्षत्रियवर क्षेत्रज्ञ विराटा ।जय श्मशानवासी शुभनामा, मांसाशी प्रभु मंगलधामा ॥२।।
नमो खर्पराशी भगवन्ता , जय स्मरान्तक रूप अनन्ता ।
हे खरान्तक अतिबलवाना, हे मखान्तक सर्वसुज़ाना ।।३।।
रक्तप तोहि बहुरि सिरनाऔं, पानप-सिद्ध हृदय महँ ध्याऔं ।
रक्तपान तत्पर बलि जाऔं। पुनि-पुनि प्रभु तोहि सीस नवाऔं ।।४।।
 सिद्धिद देव सिद्धि के नाथा, सिद्ध सुसेवित सेवक साथा ।
 जय कंकाल कुटिल पर नाशी, कलशमन जय सब सुख राशी ।।५।।
नमों कलाकाष्ठा-तनुधारी, जय-जय कवि सर्वज्ञ सुखारी।
जय त्रिनेत्र बहुनेत्र नमामि, पिङ्गललोचन शरण व्रजामि।।६।।
शूलपाणि जय दीन दयाला, खड्गपाणि जय परम कृपाला।
 कंकाली तोहि कोटि प्रणामा, जयतु धूम्रलोचन शुभ नामा।।७।।
जय अभीरू जय भैरव नाथा, भूतप योगिनिपति शुचि गाथा ।
नमो धनद धनहारी देवा, जय धनवान विश्वसुख देवा ॥८॥
जय प्रतिभावान सुरस्वामी, जय प्रतिभावित अन्तर्यामि ।
नागहार तब चरण नमामि, देव! दयामय सदा भजामि।।९।
गपाश जय-जय सुरसांई, व्योमकेश जय प्रभो गुसांई ।
नागकेश जय-जय सुरराया, कीजै नाथ भक्त पे दाया।।१०॥
जय कपालभृत् काल कराला, जय कपालमाली जगपाला ।
जय कमनीय कालानिधि त्राता, जयतु त्रिलोचन आनन्ददाता।।११।।
लन्नेत्र त्रिशिखी तोहि ध्याऔं, नमो त्रिलोकप सब सिधि पाऔं।
जय त्रिनेत्रतनय सुखराशी, जय हे डिम्भ। नित्य अविनाशी ।।१२।।
जय हे शान्त। भक्त वरदाई , डिम्मशान्त प्रभु भक्त सहाई ।
शान्त जनप्रिय दीन दयाला, नमो बटुक बहुवेष कृपाला ॥१३॥
जय खट्वाङ्गवरधारक देवा, भूताध्यक्ष करैं सुख सेवा।
जय-जय पशुपति भिक्षुक देवा, जय परिचारक जन-मन-मेवा ।।१४।।
 जय परिवारक जग के स्वामी, तुम कहँ बारम्बार नमामि।
धूर्त दिगम्बर शूर भजामि, हरिण पाण्डुलोचन जय स्वामी।।१५।।
जय प्रशान्त हे शान्तिद शुद्धा, सिद्ध युद्ध-जयकारी बुद्धा।
 हे शंकरप्रियबान्धव नामी, शंकरप्रिय-बान्धव शुभ कामी।।१६।।
अष्टमूर्ति जय देव निधीशा, ज्ञानचक्षु तपोमय ईशा ।
अष्टाधार नामो सुर स्वामी, षडाधार जग अन्तर्यामी।।१७।।
सर्पयुक्त शिखिसख भूधर जय, जय भूधर अधीश मंगलमय।
भूपति भूधर आत्मज दाता, भूधर आत्मक सब जग त्राता।।१८।।
जय कंकालधारि सुरनाथा, मुण्डी तोहि नवावौं माथा।
नाग यज्ञ-उपवीत विराजै, आन्त्रयज्ञ उपवीत सुसाजै ॥१९॥
जृम्भण मोहन स्तम्भन स्वामी, मारण क्षोभण जगसुख कामी।
हे गुरुदेव ज्ञान के दाता, भोग मोक्षप्रद कृपा विधाता।।२०।।
शुद्ध नील अञ्जन प्रख्याता, देव दैत्यहा सेवक त्राता ।
 मुण्ड विभूषित छवि सरसाये, सकल सुमङ्गल मूल सुहाये।।२१।।
बलिभुक् तुम प्रभु बलिभुङ् नाथा, बाल अबाल पराक्रम साथा।
जय सर्वाप्तारण स्वामी, दुर्गरूप प्रभु अन्तर्यामी ।।२२।।
दुष्ट भूत-निषेवित देवा, कामी कामफलप्रद सेवा। जयतु कलानिधि कान्त सुनामी, कामिनीवशकृत तोहि नमामि ॥२३॥
सकल जगत वशीकुत नामा, कामिनिवशकुत वशी ललामा।
देव जगत रक्षा कर जय-जय, अनन्त माया मन्त्रौषधि-मय।।२४।।
 सर्व सिद्धिप्रद वैद्य महाना, हे प्रभु विष्णु विवेक निधाना।
 तुम विभु अखिल-विश्व सरसाओ, भक्तभरणकरि सुयश कमाओ।।२५।।
अष्टोत्तर शतनाम स्वरूपा, कल्पवृक्ष यह परम अनूपा ।
जपत जीव सब मंगल पावै, सकल कामना तुरत पुरावै।।२६।।
दुरित भूत भय मारी भीति, जपत मिटै पल में सब ईती।
राज शत्रु ग्रह भय नहिं लागै, भैरव स्तवन करत दुख भागै ।।२७॥
अष्टोत्तर शत नाम शुभ, जपत धरै नित ध्यान।  तिनकहँ भैरव लाडिले, सदा करैं कल्याण ।।२८।।
 ------------जय बटुक भैरवनाथ ----/