Saturday 23 January 2021

तन्त्र साधनाओं में गुरु का महात्म्य

 व्यक्ति की आकांक्षाओं का अंत नहीं है उसी की लोलुपता में मानव कुछ भी कर जाता है । बस उसे उसकी सोची हुई चीज या इच्छा पूरी हो इसी के पीछे पूरी ताकत लगा देता है । जब उसे कुछ नहीं दिखता तो वह तंत्र की तरफ बढ़ता है । और वह किसी मार्ग को न पा कर बाजार से कोई पुस्तक खरीदता है और साधना करने में लग जाता है । इसके फल स्वरूप उसे निराशा ही मिलती है । तब सब छोड़ देता है कहने लगता है सब मिथ्या है । ये एक मनगढ़ंत और छलावा है इससे कुछ प्राप्त नहीं होता है । पर ऐसा नहीं है तन्त्र एक गुप्त मार्ग है इतना ही सरल होता तो हर व्यक्ति आज तान्त्रिक होता और हर विद्यालय में तन्त्र पढाया जा रहा होता और मनोवांछित काम को पूरा करने के लिए सब तन्त्र ही कर रहे होते, सत्यता इससे भी इतर है तन्त्र एक साधना की प्रणाली है । जिसके लिए व्यक्ति को कई आयामों को पार करना होता है । जो कि बिना गुरु के सम्भव ही नहीं है ।

गुरु भी किसी को भी नहीं बना लेना चाहिए, उसके लिए भी योग्य गुरु का चयन करना आवश्यक है । गुरु भी ऐसा होना चाहिए जो साधना किया हो तन्त्र यह कदाचित नहीं है कि आप किसी ब्राह्मण या धर्माचार्य से दीक्षा ग्रहण कर साधना सिद्धि तक पहुंच सकते हो । दिक्षा के कई प्रकार हैं एक अपने उद्धार या मुक्ति के लिए ली जाती है और एक स्वार्थ के लिए ली जाती है । दोनों मंत्र को प्रदान करने वाला आपका गुरु ही होता है। किसी भी देवी या देवता का मंत्र आपका उद्धार करता है । प्रेत साधना से प्रेत लोक प्राप्त होता है । 

आपको इन निम्नांकित बिन्दु से ही चलना चाहिए - 

पहले आपको यह ज्ञात हो कि साधना क्या है । आपको कौन सी साधना करनी है । यदि सात्विक साधना करनी है तो किसी सात्विक साधक से ही जुड़ना चाहिए । पर ऐसा बहुत संख्या में मिलता है एक तन्त्र साधक सात्विक साधना में सर्वप्रथम प्रयास करता है जब उसे कुछ नहीं दिखता तो वह वाम मार्ग में प्रवेश कर जाता है । यदि ऐसा कोई साधक है तो आप को यह निर्धारित करना होगा कि आप किस देवता के रूप में जुड़े हो यदि आपके अनुरूप है तो ठीक नहीं तो आप पुनः दूसरा गुरु ग्रहण करें । ऐसा वशिष्ठ ऋषि के साथ भी हुआ था वह तारा देवी की उपासना करना चाह रहे थे तो उन्हों ने ब्रह्मा जी से दिक्षा लेने के लिए उनका तप किया और ब्रह्मा जी जब प्रकट हुए तो उन्होंने से तारा देवी का मंत्र लिया उस मंत्र से तप के बाद भी जब तारा देवी नहीं प्रसन्न हुईंं तो ब्रह्मा जी से कहा गुरु देव माता जी नहीं प्रसन्न हो रही ब्रह्मा जी ने पुनः दूसरा मंत्र दिया उससे भी नहीं प्रसन्न हुईंं, तब उन्हों ने तारा देवी को श्राप दे दिया उसके बाद तारा देवी प्रकट हुईंं और उन्होंने कहा दक्षिण मार्ग से मेरी साधना नहीं हो सकती इस लिए मैं नहीं आईंं जाओ वाम मार्ग (चीनाचार) दीक्षा ग्रहण करो । उसके पश्चात उन्होंने वाम मार्ग से दीक्षा ग्रहण किया तब जा के भगवती प्रसन्न हुईंं (वैसे यह कथा बहुत विस्त्रित है संक्षिप्त में मैने लिखा है ) । इस प्रकार महाविद्या साधना, भैरव साधना, योगिनी साधना या पिशाच साधना इन में वाम मार्ग के बिना सिद्धि बहुत कठिन होती है । साधनाओं के लिए गुरु का होना आवश्यक है। बहुत से लोग एक गुरु से मंत्र ले कर सारे मन्त्र करते रहते है कि अबतो हमनें दिक्षा ले ली है । पर आपको बता दें पुस्तक से पढ़ के किया गया मंत्र कभी सिद्ध नहीं होता । किसी के द्वारा सिद्ध मंत्र ही सिद्धि तक ले जाता है । वह मंत्र कहीं न कहीं से प्राप्त हो तो ही श्रेयष्कर है । महाविद्याओं का मंत्र कहीं से भी मिले सिद्ध होता है । एक बात ध्यान रहे जिस भी साधक से अपने मंत्र लिया हो उससे कभी बहस न करें । क्यों कि उस मंत्र का गुरु वही है उसके रुष्ट होते ही दीमक की भाँति वह मन्त्र आपको सनहि सनहि खा जाता है और प्रेत योनि प्रदान करता है । यह कदाचित नहीं है कि वह मंत्र उद्धारक है क्यों कि "रुद्रयामल तन्त्र" का प्रमाण है मंत्र बताने वाला गुरु - देवता - मन्त्र इनमें भेद नहीं है तीनों समतुल्य हैं  किसी साधक से दिक्षा मिले तो बहुत अच्छा यदि कोई स्त्री साधक से दिक्षा मिले तो वह भी उत्तम होती है । सर्वोत्तम दीक्षा यदि उस इष्ट का स्वप्न में दर्शन हो और आप उस मन्त्र बोल रहे तो वह सबसे उत्तम है । बिना शोधन के कोई मंत्र कभी सिद्ध नहीं होता। पर महाविद्या, शिव, विष्णु और 20 अक्षर से अधिक के मंत्र का शोधन नहीं करना पड़ता । 

इसी क्रम में आगे देखें तो बिना यन्त्र के तंत्र नहीं बिना तंत्र के मन्त्र नहीं (यन्त्र-तन्त्र-मन्त्र) इस प्रकार सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। जैसे शरीर के तीन स्वरूप है - कारण शरीर / सूक्ष्म शरीर / स्थूल शरीर इसके विषय में आगे लेख लिखूंगा अभी विषय है, मंत्र कारण शरीर है तंत्र सूक्ष्म शरीर है और यन्त्र स्थूल शरीर है । इसी प्रकार बिना इस क्रम के साधना में कुछ नहीं हैं । चाहे वह किसी भी देवी देवता की ही क्यों न कि जाय , यह मात्र बतानें के लिए नहीं है यह वास्तविकता है। इस लिए जिस भी गुरु से जुड़ें इस क्रम के बारे में अवश्य जानकारी लें । जो व्यक्ति मात्र उपासना तक है तब तक तो ठीक है पर यदि साधना सिद्धि तक जाना है तो उसे अपने गुरु से अवश्य सम्पर्क कर यन्त्र उपासना का क्रम सीखना चाहिए । 

देवी यन्त्र में सबसे बड़ा यन्त्र श्रीयन्त्र और भैरव यन्त्र में सबसे बड़ा यन्त्र श्रीबटुकभैरव यन्त्र है । इन यन्त्रों का नवावरण पूजन अवश्य करना चाहिए और जिस भी गुरु से जुड़ें उससे आप गुप्तयोगिनी पूजन के बारे में अवश्य पूंछें क्यों कि बिना इनके आपको सिद्धि नहीं प्राप्त हो सकती चाहे वह तंत्र साधना हो या कुण्डलिनी साधना दोनों में गुप्त योगिनी साधना का सबसे बड़ा स्थान है । अपने हनुमान चालीसा में पढ़ा है अष्टसिद्धि नव निधि के दाता .....,, तो ये अष्टयोगिनी ही अणिमा, गरिमा.....आदि अष्टसिद्धि का संचालन करती हैं । यह सभी बातों को ध्यान में रखते हुए बिना गुरु सब असम्भव है अपने गुरु के अनुरूप ही मार्ग का चयन करें ।