बहुत समय के बाद आज
मैं पुनः लेख लिख रहा | सोचता था की लेख लिखूं एक दो बार आधा पेज लिखा भी फिर पूरा
नहीं कर पाया मति भ्रम जैसे हो जाता था इसी लिए शायद तन्त्र ग्रन्थ कह्ते हैं “बिना
बाबा की इच्छा के कुछ नहीं हो सकता उनकी भक्ति भी नहीं”, ये और देवी देवताओं की
तरह नहीं की कोई भी चाहे और इनकी उपासना कर ले | मेरा अपना एक खुद का अनुभव कहें या
अध्ययन कहें क्यों कि मैं एक तान्त्रिक के साथ १७ साल से ज्योतिषी भी हूँ पर मेरा
मन तन्त्र में ही भागता है | आज हमारा एक अनोखा विषय जिसके लिए मेंरे पार बहुत से कॉल
और मेल आते हैं, की मैं अमुक साधना में लगा हूं पर कुछ नहीं हो रहा कोई अनुभव नहीं
हो रहा, ऐसा बहुत से साधक साधिकाओं ने पूंछा की साधना कब पूरी होगी | वैसे एक और बात
बता दें कि जो मात्र अपने भुक्ति मुक्ति के लिए बाबा की सेवा पूजा कर रहे हैं वह
इस लेख को अपने ऊपर नहीं लेंगे यह उनके लिए है जो साधना सिद्धि की लिए प्रयासरत्
हैं | आज हम कुण्डली के माध्यम से जानेंगे की कैसे देखें इस योग को, वैसे तो बहुत
योग है पर कुछ के विषय में मैं बताता हूँ सर्व प्रथम शनि महाराज को देखिये शनि यदि
पञ्चम में हैं तो एक बात निश्चित की ऐसा जातक पुनर्जन्म में तन्त्र साधक था नीच का
शनि हो तो वह प्रेत साधक था और उसका मन इस जन्म में भी उसी तरफ भागेगा | आगे चलते
चलते एक और बात बता दें की शनि के पञ्चम में होनें से वह साधक तो था, पर ऐसा साधक
जिसकी साधना उस जन्म में पूरी नहीं हुई तो वह इस जन्म में पूरी करने आया है | यदि
बलवान शनि है तो वह भैरव या महाविद्या का साधक था जो साधना अधूरी रह गई वही पूरी
करने आया है | १३° - १८° तक होने से वह स्वतः ही बचपन से उस तरफ कुछ न कुछ प्रभाव
दिखने लगता है, पर अंश बल इससे कम या ज्यादा होने से वह जब किसी साधक की संगति में
आता है तब वह साधना की दिशा के तरफ निकलने लगता है | अष्टम का शनि जिसका हो वह भी
पुनर्जन्म में साधक था पर उसने अपनी विद्या से कीसी का अहित किया होता है इस लिए
इस जन्म में वह अनेक कार्यों में विफल होता है और वो अंततो गत्वा तन्त्र में
प्रवेश करता है | नवम का शनि भी तन्त्र की तरफ ले जाता है ऐसे साधक पुनर्जन्म में
स्वार्थ में तन्त्र साधना में आए थे इस लिए स्वार्थ में वह पुनः आ जाते हैं | कभी
कभी लग्न के शनि में भी यह देखने मिलता है पर वह सिद्धि तक १% ही पहुँच पाते हैं |
ऐसे शनि के साथ या इनमें से किसी स्थान पर राहु हो या दशम का राहु हो तो जादू
तन्त्र मन्त्र में और प्रबलता हो जाती है | इन दोनों के साथ यदि मंगल का भी कुछ
योग मिले पर वह राहु के साथ न हो तो तीव्रता भी प्राप्त हो जाती है | इसके साथ –
साथ जिनके कुण्डली में ऐसा कुछ हो और वो समझ न पा रहें हो या किसी साधक को अपना
तन्त्र या उपासना का बल दिखाना हो तो मेल कर सकते हैं | मात्र साधना के लिए ही निःशुल्क
कुण्डली विवेचन है |