श्री बटुक भैरव एक
साधना नहीं अपितु मुक्ति का सुलभ द्वार है, एक साधक जो बटुक भैरवनाथ जी से प्राप्त
कर सकता है | वह ब्रह्माण्ड में किसी और से नहीं प्राप्त हो सकता | कल्पतरु भी वो
प्रदान नहीं कर सकता जो बटुकनाथ जी प्रदान कर सकते हैं क्योंकि कल्प वृक्ष सब कुछ
दे सकता है पर मोक्ष नहीं दे सकता, किन्तु बाबा की साधना उपासना से मोक्ष भी
प्राप्त हो जाता है | सातों दिन सात प्रकार के फल प्रदान करतें हैं, रविवार -
उच्चपद की प्राप्ति, सम्मान, शत्रु स्तम्भनादि | सोमवार - शीत रोग, कफ़ से मुक्ति
एवं वशीकरणादि | मंगलवार – रक्तविकार से मुक्ति, सर्वशत्रु नाश को प्राप्त होते हैं|
बुधवार – शारीरिक रोग निवृत्ति, रम्भादि अप्सरायें भी आकर्षित हो जाती हैं |
बृहस्पतिवार – लड़कियों के विवाह के लिए, पति सुख के लिए, वृद्धि के लिए, पारिवारिक
वशीकरणादि | शुक्रवार – पुरुष वर्ग के विवाह के लिए, पत्नी वशीकरण, पति – पत्नी
में उच्चाटन, धनप्राप्ति एवं अचानक धन प्राप्ति के लिए | शनिवार – ग्रह पीड़ा निवृत्ति एवं शत्रु मारण के लिए |
इस प्रकार बाबा की साधना से कुछ भी अप्राप्य नहीं है, भूगर्भ का धन भी साधको दृश्य होता है | योग्यगुरु यदि कृपा करे तो साधक चेटिका, वेताल, पिशाचादि को वश में कर सकता है | गृह के अरिष्टकारी बाधाएं बाबा की उपासना से स्थान छोड़ देती हैं, किन्तु इसके लिए बाबा की सिद्धि का होना अनिवार्य है | बाबा की उपासना के साथ में ही अष्टवीरों को जरूर वन्दन एवं नीराजन अनिवार्य है, अन्यथा समस्त पूजन निष्फल हो जाता है | इसी प्रकार अष्ट योगिनियों एवं अष्टभैरवों को भी साथ में प्रणाम करने से साधना और फलवती हो जाती है | साधारण रूप से पूजा पाठ एकसीमा तक फलवती हो सकता है किन्तु साधना में सिद्धि असम्भव है जबतक कि आप किसी योग्य गुरु की बाबा की मन्त्र दीक्षा न ग्रहण करलें, क्यों की बाबा की साधना में साधक को मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, जो उसे गुरु से प्राप्त होता है , और वही साधक को आगे बढ़ने में सहायक होता है | गत के लेख को पढने के बाद बाबा की साधना उपासना के लिए बहुतायत लोग लालाइत हैं |
साथ ही हमारे यन्त्र के लेख को पढने के बाद
यन्त्र के लिए भी लालाइत हैं, हाँ यह सत्य है की यन्त्र - मन्त्र - तन्त्र ये
साधना का सबसे बड़ा क्रम है | किन्तु
यन्त्र का जबतक सही से पूजा न की जाय अर्थात् आवरण पूजन न की जाय तब तक यन्त्र का
कोई अर्थ नहीं वह मात्र एक आकृति है | आवरण पूजन गुरु से प्राप्त करना इतना सुलभ
नहीं क्यों की यह महा शक्ति को प्राप्त करने का केंद्र है जो की आपके लिए पूर्ण रूप
से श्रीबटुक सिद्धि का मार्ग प्रसस्त करता है | यहाँ मैं उन साधकों को यह बताना
चाहूँगा की पहले आप योग्य गुरु से दीक्षा लीजिये फिर अधिकाअधिक जप करिए फिर जब कुछ
योग्य हो जाइये तब गुरु आज्ञा से श्मसान साधना करिए | श्मसान में जब आप अकेले जप
करसकें तब ही साधना सिद्धि के लिए विचार
कीजिए | अष्टवीरों, बटुक भैरव जी एवं लाकुलेशादि षोडश मित्रों का पूजन करना
अनिवार्य होता है | जो साधक
साधना सिद्धि हेतु पूजन जप
आदि कर रहे हैं वे इन बिन्दुओं पे अवश्य ध्यान दें क्यों की आप यन्त्र रख लें
यन्त्र पूजन की सामग्री भी एकत्रित कर लें किन्तु कोई लाभ नहीं होगा अपितु आप एक
जटिल समस्या में फंस सकते हैं| क्यों की जो पूजन आप कर रहे हैं वह बाबा को प्राप्त
होगा या नहीं या निश्चित नहीं किन्तु आप बाधाओं से पीड़ित हो सकते हो | यन्त्र पूजन
तन्त्र पूजन का एक शक्ति शाली अंग है अतः बिना गुरु की आज्ञा के अपनी इच्छानुशार यन्त्र
पूजन करना या यन्त्रराज को रखना अनिष्ट कारी होता है | यह बात साधारण रूप से पूजन
करने वालों के लिए नहीं है अपितु उन लोगों के लिए है जो साधना जप आदि पर ध्यान न
देकर केवल साधन एकत्रित करने में लगे रहते हैं | अब इस क्रम में आगे बढे तो साधक
को एक चित्र या मूर्ति रखनी चाहिए इससे इतर शिवलिंग पर भी साधना की जाती है | साधना
में प्रवेश करने के पश्चात् सब चीजों से विमुक्त होना पड़ता है विमुक्त भाव से
साधना करनी चाहिए | बटुक उपासना में जाति, वर्ण का कोई महत्त्व नहीं है, महत्त्व है तो केवल
अपने गुरु एवं इष्ट के प्रति समर्पण भाव का | जो बाबा की सेवा पूजा करता है, जप
करता है वह ही आपका अपना है उससे किसी प्रकार का भेद भाव नहीं करना चाहिए | दूसरा
साधक में भय नहीं होना चाहिए, एक सबसे महत्वपूर्ण बात की साधक के अन्दर किंचित
मात्र शंका नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यदि आपके अन्दर अपने इष्ट, गुरु अथवा मन्त्र
के प्रति किंचित मात्र भी शंका उत्पन्न हुई तो आपकी साधना विफल हो जाएगी | गुरु,
इष्ट और मन्त्र में जो साधक भेद करता है वह सतवर्ष में भी सिद्धि को नहीं प्राप्त
करता | अपनी साधना में हो रही अनुभूति के विषय में
गुरु के अतिरिक्त किसी से भी साझा नहीं करना चाहिए |
श्रीबटुकभैरवनाथ
ध्यान –
करकलितकपालः कुण्डली दण्डपाणिः,
तरुणतिमिरनीलो व्यालयज्ञोपवीती |
क्रतुसमयसपर्या विघ्नविच्छेदहेतुः,
जयति बटुकनाथः
सिद्धिदः साधकानाम् ||
हाँथों में कपाल और
दण्ड लिए हुए, कानों में कुण्डल धारण किए हुए, तरुण अवस्थावाले घोर अन्धकार के समान
नीले बालों बालोंवाले, यज्ञोपवीत को धारण किये हुए, यज्ञ के समय पूजित विघ्नों को
नष्ट करने के लिए, साधकों को सिद्धि प्रदान करनेवाले बटुकभैरव का पूजन करता हूं |
सात्विक ध्यान –
सात्विक श्वेत स्फटिक
के सदृश्य स्वरुप का सात्विक ध्यान करना चाहिए | समस्त कामनाओं को पूरा करनेवाला,
समस्त शुभ योगों को फलवान करनेवाला, समस्त ज्ञान को प्राप्त करानेवाला, सात्विक
ध्यान सर्वोत्तम होता है |
वन्दे बालं स्फटिकसदृशं
कुण्डलोद्भासिताङ्गं,
दिव्याकल्पैर्नवमणिमयैः
किङ्किणी नूपुराढ्यैः|
दीप्ताकारं विषदवदनं सुप्रसन्नं त्रिनेत्रं,
हस्ताग्राभ्यां बटुक
शूलदण्डोपधानाम् ||
स्वच्छ स्फटिक के
सदृश्य, कुण्डल से सुशोभित, दिव्यमणियों से बने हुए नूपुर और किंकिणी से सुशोभित,
प्रसन्न, शिव की भाँति पुलकित मुखवाले, कमलवत् करों में सदा शूल और तलवार धारण
करनेवाले, बालस्वरूप बटुक भैरवजी का ध्यान करता हूँ |
राजस ध्यान –
वशीकरण, विद्वेषण और
स्तम्भन में राजस ध्यान करना चाहिए वाल सूर्य के समान अरुण वर्ण स्वरुप का राजस
ध्यान करना चाहिए |
धन वैभव सम्पत्ति के लिए
राजस ध्यान करना चाहिए |
उद्यद्भास्करसन्निभं त्रिनयनं रक्ताङ्गरागस्रजं,
स्मेरास्यं वरदं
कपालमभयं भूलं दधानं करैः|
नीलग्रीवमुदारभूषणयुतं
शीतांशुखण्डो ज्वलं,
बन्धूकारूणवाससं भयहरं देवं सदा भावये ||
उदयकालीन सूर्य के
समान लाल कान्तिवाले, तीन नेत्रोंवाले, रक्त पुष्पमाला से युक्त, पुलकित मुखवाले,
वरदाता, कपाली, निर्भय, हाथ में शूल धारण करनेवाले, नील ग्रीवावाले, आभूषणों से
युक्त, खण्ड चन्द्रमा के समान उज्ज्वल, मधूक पुष्प के समान लाल वस्त्र धारण किये
हुए, भय को दूर भगानेवाले बटुक भैरव का ध्यान करता हूँ|
तामस ध्यान –
साधक पूजन क्रम से
पूर्व ध्यान अवश्य करना चाहिए, क्रूर कर्म के लिए तामस ध्यान करना चाहिए साधक पूजन
क्रम से पूर्व ध्यान अवश्य करना चाहिए, क्रूर कर्म के लिए तामस ध्यान करना चाहिए | कृष्ण वर्ण स्वरुप का तामस ध्यान करना चाहिए | चोर एवं
शत्रुओं का क्षय करने के लिए, विष आदि के प्रकोप की समाप्ति के लिए, ग्रह, भूत
पिशाचादि कृत समस्त विघ्नों के विनाश के लिए रक्तवर्ण तीन नेत्रोंवाले, विशेष रूप
से कृष्ण वर्ण श्रीमद्बटुकभैरव का तामस ध्यान करना चाहिए | आतों की माला पहने हुए, समस्त आभूषणों से
सुसज्जित स्वरुप का जो साधक ध्यान करता है वह अल्पमृत्यु को जीत लेता है |
वन्दे नीलाद्रिकान्तं
शशिशकलधरं मुण्डमालं महेशं,
दिग्वस्त्रं
पिङ्गकेशं डमरूमथसृणिं खड्गपाषाभयानि |
नागं घण्टां कपालं
करसरसिरुहैर्बिभ्रतं भीमदंष्ट्रं,
दिव्याकल्पं
त्रिनेत्रं मणिमयविलसत्किङ्किणीनूपूराढ्यम् ||
त्रिलोक के स्वामी,
द्वितीया के चन्द्रकला को धारण करनेवाले, मुण्डमाला पहने हुए, महेश्वर, दिगम्बर,
पीत केशवाले, हाथ में डमरू, शूल, खड्ग, पाश और अभय धारण करने वाले, तथा नाग,
घण्टा, कपाल हाथ में सुशोभित, विशाल दाँतोंवाले, दिव्य आभूषणों से सुसज्जित,
त्रिनेत्र तथा नाना मणियों से जटित किंकिणी और नूपुर धारण किये हुए बटुक भैरव का
ध्यान करता हूँ |
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ध्यान को पढना ही पर्याप्त
नहीं अपितु ध्यान में वर्णित स्वरुप का मनन चिंतन भी करना जरूरी है, बिना बाबा के
स्वरुप को अपने मन मस्तिष्क में बैठाये मात्र पढने से कोई लाभ नहीं | साधना में
ध्यान की सबसे बड़ी भूमिका होती है जिस प्रकार के ध्यान की छवि के साथ हम जप करते हैं
वही फलवती होता है | अपने गुरु से इस विषय का ज्ञान अवश्य लेना चाहिए | बाबा की
पूजा से एक अनुपात में फल मिलता है, पर यदि साधक को ग्रह पीड़ा या किसी बहुत बड़ी
बाधा से अपने को सुरक्षित करना है या सिद्धि के लिए साधना करनी है तो साधक को किसी
बटुक साधक से दीक्षा लेना अवश्यक है | जिससे आप बटुक दीक्षा लें वह चाहे अघोर से
हो या किसी देवी देवता का सेवक हो पर बटुक उपासक न हो तो सब व्यर्थ है, कुछ समय
पहले ऐसे ही एक साधक का हमारे पास फेसबुक के द्वारा मैसेज आया और उसने हमसे दूरभाष पर वार्तालाप करने का अनुरोध
किया | उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज बाबा की सेवा पूजा करते थे और उन्हें स्वतः
से कुछ अनुभूति होती थी, वह हमारे लेख पढते थे अतः साधना के क्षेत्र में आगे शीर्षशक्ति
प्राप्त करने के लिए दीक्षा लेने का विचार बनाया और वाराणसी में किसी को गुरु
मानकर उनसे दीक्षा ले ली बिना यह परीक्षण किये कि जिनसे वह दीक्षा ले रहे हैं
उन्हें बटुक सिद्धि या ज्ञान है अथवा नहीं जिसके फल स्वरुप उसकी सारी अनुभूतियाँ समाप्त
हो गई | इसी लिए बाबा के साधक को हम सदैव से यही कहते हैं की किसी कृपा प्राप्त
बटुक साधक से ही दीक्षा लें | यहाँ एक बात और ध्यान देनें योग्य है कि कोई भी
तन्त्र साधक बिना आपको परखे ऐसे दीक्षा नहीं देगा और उसके अपने कुछ नियम भी हो
सकते हैं | साधना को सदैव गुप्त रूप से करें आप क्या करते हैं इसे अपने गुरु के
अतिरिक्त किसी अन्य को बताने की कोई आवश्यकता नहीं है |