आज हम गोवा के काल भैरवनाथ जी के एक अत्यन्त प्राचीन मंदिर की बात करेंगे जहाँ पर सबसे मुख्य बात मन्दिर से प्राचीन वहाँ पे बाबा की मूर्ति है । ऐसा नही है की मन्दिर प्राचीन नहीं है, पर वहां के स्थानीय लोगों और विशेषतयः पुजारी के अनुसार मन्दिर से भी प्राचीन वहाँ पे बाबा की मूर्ति है ।
जिसको देखने पे ही एक अलग ही आभा का अनुभव होता है । यदि आप थोड़ी भी बाबा की सेवा करते हो तो उस मूर्ति में एक खिंचाव का अनुभव कर सकते हो । ऐसे ही हम गोवा की तरफ गये और गूगल के माध्यम से पता चला की यहां कहीं हमारे आराध्य का मन्दिर है । वैसे तो गोवा में और भी भैरव मन्दिर का विवरण है । पर नार्थ गोवा का ये मन्दिर और खास कर इस मन्दिर की मूर्ति तो अद्भुत है, शब्द नहीं है । मैं गया देखा और बाबा को देखते ही हृदय आनन्दित हो गया । एक पुजारी बैठे थे मराठी भाषा में कुछ वार्ता कर रहे थे । फिर हमने उनसे अपने बारे में बताया उसके पश्चात उन्हों ने बैठने को कहा मैं बैठ गया फिर मैं देख रहा था की पुजारी जी बाबा जी के तरफ देखते है और मराठी में कुछ बोलते है और अन्दर की तरफ देखते रहते है । मूर्ति की तरफ ! फिर हमने भी ध्यान से देखा तो मूर्ति के किनारे किनारे पे कुछ फूलों की कलियाँ चिपकाई थी । इतने में मूर्ति के दाहिने तरफ की एक कली गिरी और पुजारी ने बैठे व्यक्ति से कुछ कहा । इसी प्रकार कई लोग वहां बैठे थे । फिर पुजारी जी ने देखा की मैं उन्हें बड़े ध्यान से देख रहा तब उन्हों ने बताया की यहां लोग आते है और प्रश्न करते है मैं बाबा को उनकी बात कहता हूँ जैसा संकेत मिलता है वही बता देता हूँ । कहा सब करने कराने वाले बाबा ही है । मैं उनको साक्षी मानकर जो प्रश्न करते है उनको बता देता हूँ । फिर पुजारी ने देखा की मैं अष्टोत्तरशतनाम का पाठ कर रहा तो वो अंदर से एक पुस्तक लेकर आये और कहा इसमें ये है । पर १०८ नाम अलग अलग नही है । तब हमने उनसे कहा ये पाठ किया करिये अधिक से अधिक करिये सिद्ध स्थान है सिद्धि तक का सरल मार्ग है । तब पुजारी ने कहा, ये पाठ तो यहाँ कोई नही पढ़ पायेगा हम सात्विक ब्राह्मण है बस बाबा की सेवा करते है । सात्विक रूप से तान्त्रिक ज्ञान नहीं है । हम यही सोचने लगे बाबा की भी माया निराली है । ज्ञान का अभाव है, न रूप देखा, न देश, न दिशा न कोई विद्वान सब अलग है । पर बाबा की ही माया है की वो अपनी सेवा करा ही ले रहे । इतना बहुत अच्छा लगा की पुजारी सेवा बहुत ही भाव से करते है । और हमारे बाबा इसी के भूंखे है । उनकी माया अपरम्पार है । फिर बाबा का दर्शन किया बाहर आया तो मंदिर के पीछे की तरफ एक और मन्दिर था । पता चला ये विष्णु भगवान का मंदिर है। वह भी अत्यन्त प्राचीन था । वहां एक पुजारी थे और एक आदमी बैठा था । उसकी आवाज में बड़ी ऐंठ थी । वहां के बारे में बताने लगा फिर कुछ देर बोला फिर कहा आपका परिचय हम मिथ्या बोल नहीं सकते थे मन्दिर में थे तो हमने अपना परिचय दिया तो वो एकाएक ठंढा हो गया कहा मैं भी एक तान्त्रिक हूँ लम्बी लम्बी बताने लगा मेरे पास ये आते है कई फ़ोटो दिखाया । हमने कहा अरे वाह चलिए आपतो बहुत आगे हो फिर कहा क्या आप हमें कुछ बता सकते हो हमें कुछ बड़ी विद्या सिखाओ हमने कहा आप जो कर रहे वही करो आप बहुत आगे हो । वहां से हम हटे फिर देखा बहुत ही आनन्द दायक स्थान था प्रदूषण एकदम नहीं । वहां के बारे में जानकारी लेने लगा तो कथा कथित बातों के अनुसार यह मूर्ति अनुमानतः ३५० वर्ष पुरानी है ये पहले मद्रास में थी वहाँ इनकी सेवा पूजा होती थी । मुगलशासन काल में वह मन्दिर तोड़ दिया तो यह मूर्ति गोवा में खेनिर (वर्तमान नाम) के पास एक गांव में लाकर रखी गई वहीं पूजा होती थी। उसके बाद शिवा जी महाराज के समय इसे यहाँ स्थापित कराया गया ऐसा वहां के लोगों ने बताया की स्वयं शिवा जी महाराज ने बाबा की इस प्रतिमा को यहां स्थापित किया । इस घटना का हमारे पास कोई प्रमाणित तथ्य नहीं है। वहां के लोगों के अनुसार ही मैंने इस आख्यान को अक्षादित किया। हाँ इतना अवश्य अपने पक्ष से कहूँगा की मूर्ति जागृत है ये हमारा अनुभव है । दर्शन करने पर आनन्द की अनुभूति अवश्य होगी । नार्थ गोवा में बागा बीच से 21 किलो मीटर की दूरी पर गोवा से मुम्बई राष्ट्रीय राज्य मार्ग पर धारगल गांव में यह स्थित है । जय बटुक भैरवनाथ 🙏
किसी भी भैरवनाथ की सेवा या अन्य जानकारी के लिए इस ईमेल से सम्पर्क स्थापित कर सकते है ।
ashwinitiwariy@gmail.com
जिसको देखने पे ही एक अलग ही आभा का अनुभव होता है । यदि आप थोड़ी भी बाबा की सेवा करते हो तो उस मूर्ति में एक खिंचाव का अनुभव कर सकते हो । ऐसे ही हम गोवा की तरफ गये और गूगल के माध्यम से पता चला की यहां कहीं हमारे आराध्य का मन्दिर है । वैसे तो गोवा में और भी भैरव मन्दिर का विवरण है । पर नार्थ गोवा का ये मन्दिर और खास कर इस मन्दिर की मूर्ति तो अद्भुत है, शब्द नहीं है । मैं गया देखा और बाबा को देखते ही हृदय आनन्दित हो गया । एक पुजारी बैठे थे मराठी भाषा में कुछ वार्ता कर रहे थे । फिर हमने उनसे अपने बारे में बताया उसके पश्चात उन्हों ने बैठने को कहा मैं बैठ गया फिर मैं देख रहा था की पुजारी जी बाबा जी के तरफ देखते है और मराठी में कुछ बोलते है और अन्दर की तरफ देखते रहते है । मूर्ति की तरफ ! फिर हमने भी ध्यान से देखा तो मूर्ति के किनारे किनारे पे कुछ फूलों की कलियाँ चिपकाई थी । इतने में मूर्ति के दाहिने तरफ की एक कली गिरी और पुजारी ने बैठे व्यक्ति से कुछ कहा । इसी प्रकार कई लोग वहां बैठे थे । फिर पुजारी जी ने देखा की मैं उन्हें बड़े ध्यान से देख रहा तब उन्हों ने बताया की यहां लोग आते है और प्रश्न करते है मैं बाबा को उनकी बात कहता हूँ जैसा संकेत मिलता है वही बता देता हूँ । कहा सब करने कराने वाले बाबा ही है । मैं उनको साक्षी मानकर जो प्रश्न करते है उनको बता देता हूँ । फिर पुजारी ने देखा की मैं अष्टोत्तरशतनाम का पाठ कर रहा तो वो अंदर से एक पुस्तक लेकर आये और कहा इसमें ये है । पर १०८ नाम अलग अलग नही है । तब हमने उनसे कहा ये पाठ किया करिये अधिक से अधिक करिये सिद्ध स्थान है सिद्धि तक का सरल मार्ग है । तब पुजारी ने कहा, ये पाठ तो यहाँ कोई नही पढ़ पायेगा हम सात्विक ब्राह्मण है बस बाबा की सेवा करते है । सात्विक रूप से तान्त्रिक ज्ञान नहीं है । हम यही सोचने लगे बाबा की भी माया निराली है । ज्ञान का अभाव है, न रूप देखा, न देश, न दिशा न कोई विद्वान सब अलग है । पर बाबा की ही माया है की वो अपनी सेवा करा ही ले रहे । इतना बहुत अच्छा लगा की पुजारी सेवा बहुत ही भाव से करते है । और हमारे बाबा इसी के भूंखे है । उनकी माया अपरम्पार है । फिर बाबा का दर्शन किया बाहर आया तो मंदिर के पीछे की तरफ एक और मन्दिर था । पता चला ये विष्णु भगवान का मंदिर है। वह भी अत्यन्त प्राचीन था । वहां एक पुजारी थे और एक आदमी बैठा था । उसकी आवाज में बड़ी ऐंठ थी । वहां के बारे में बताने लगा फिर कुछ देर बोला फिर कहा आपका परिचय हम मिथ्या बोल नहीं सकते थे मन्दिर में थे तो हमने अपना परिचय दिया तो वो एकाएक ठंढा हो गया कहा मैं भी एक तान्त्रिक हूँ लम्बी लम्बी बताने लगा मेरे पास ये आते है कई फ़ोटो दिखाया । हमने कहा अरे वाह चलिए आपतो बहुत आगे हो फिर कहा क्या आप हमें कुछ बता सकते हो हमें कुछ बड़ी विद्या सिखाओ हमने कहा आप जो कर रहे वही करो आप बहुत आगे हो । वहां से हम हटे फिर देखा बहुत ही आनन्द दायक स्थान था प्रदूषण एकदम नहीं । वहां के बारे में जानकारी लेने लगा तो कथा कथित बातों के अनुसार यह मूर्ति अनुमानतः ३५० वर्ष पुरानी है ये पहले मद्रास में थी वहाँ इनकी सेवा पूजा होती थी । मुगलशासन काल में वह मन्दिर तोड़ दिया तो यह मूर्ति गोवा में खेनिर (वर्तमान नाम) के पास एक गांव में लाकर रखी गई वहीं पूजा होती थी। उसके बाद शिवा जी महाराज के समय इसे यहाँ स्थापित कराया गया ऐसा वहां के लोगों ने बताया की स्वयं शिवा जी महाराज ने बाबा की इस प्रतिमा को यहां स्थापित किया । इस घटना का हमारे पास कोई प्रमाणित तथ्य नहीं है। वहां के लोगों के अनुसार ही मैंने इस आख्यान को अक्षादित किया। हाँ इतना अवश्य अपने पक्ष से कहूँगा की मूर्ति जागृत है ये हमारा अनुभव है । दर्शन करने पर आनन्द की अनुभूति अवश्य होगी । नार्थ गोवा में बागा बीच से 21 किलो मीटर की दूरी पर गोवा से मुम्बई राष्ट्रीय राज्य मार्ग पर धारगल गांव में यह स्थित है । जय बटुक भैरवनाथ 🙏
किसी भी भैरवनाथ की सेवा या अन्य जानकारी के लिए इस ईमेल से सम्पर्क स्थापित कर सकते है ।
ashwinitiwariy@gmail.com
Jai ho batuk nath ki 💐💐💐💐
ReplyDeleteजय बटुकनाथ 🙏
DeleteJai ho batuk nath..Pranaam tiwariji. Tiwariji bhairav 108 naam hindi main hai kya aapke pass?. Hamein sanskrit nahin aati. Kripya jo bhi paath hindi main hai thoda publish kijiye. Hum odisha ke ek chhote gram ke hain
ReplyDeleteजय बटुक भैरवनाथ ..... जी अवश्य, पर ध्यान दें कि ग्रंथ में जिस रूप में रहता है वह ज्यादा सिद्धि प्रद रहता है । भैरवभूत नाथश्च..... । यह अष्टोत्तरसतनाम रुद्रयामल तन्त्र से लिया गया है इसे कहीं से पढ़ लें तो ज्यादा श्रेयस्कर होगा । जय विश्वनाथ जय बटुक भैरवनाथ
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