Sunday, 26 October 2025

श्री बटुक भैरवनाथ साधना प्रवेशिका


 

यह श्री बटुक भैरवनाथ की उपासना का एक अद्भुत क्रम है, जिसमें मन को एकीभूत करके उनके श्री चरण कमल में लगाने से ही सम्भव है । सात्विक राजसिक, तामसिक जिस स्वरुप की उपासना हम करते है उस रूप का ध्यान करें । अपने मन्त्र का मनन करें उसका चिन्तन करें गुरु द्वारा संख्या प्राप्त करें उतना जप करें फिर साधक को बोध होने लगता है।

श्रीबटुक भैरव उपासना में देवी उपासना अवश्य करनी चाहिए देवी उपासना से हमारा तात्पर्य है जैसे दसमहाविद्या में से होनी चाहिए, गुरु के बताये  क्रम से करें। यदि बटुक उपासना में देवी उपासना नहीं करते और समझ नहीं आ रहा की कौन सी देवी की उपासना करें तो ये भी एक क्रम है की गुरु की इष्ट देवी को ही इष्ट मानना चाहिए ।

साधनात्मक चीजों में कभी मिश्रण नहीं करना चाहिए, वैष्णव परम्परा का प्रचार विस्तार दिखावा कुछ ज्यादा ही दिखता है पर वो जो कर रहें करें, उनकी बातों से हमारी कोई समरस्ता नहीं है । इसी लिए सारे सम्प्रदायों की अपनी परम्परा है । वैष्णव, शैव, शाक्त,गाणपत्य, निम्बक सबकी अपनी परम्परा है उसी प्रकार शाक्त शैव में और भी नियम शाखाएँ हैं ।  कौल, श्री, नाथ आदि कई शाखाएँ हैं और ये एकदम भिन्न हैं ।

ये तन्त्र और परम्पराओं की भांति प्रवचन करना, बहुत अधिक शिष्य बनाना कुल मिलाकर कहें तो विस्तारवादी विचार धारा पर काम नहीं करती यहाँ मुख्य रूप से साधना को बल दिया जाता है शैव कहें या नाथ ये एक प्रमुख प्रबल गुप्त साधना का सागर है । श्रीबटुक भैरव नाथ की साधना का क्रम बहुत बृहद है और समस्त साधनाओं से एकदम भिन्न है, नियम विधि सब बटुकनाथ के अदृश्य रूप से हजारों की संख्या में गुप्त सेवक चलाते हैं और प्रत्येक साधक के लिए वो नियम परिधि अलग तैयार करते हैं ।  इस लिए किसी का देख के नक़ल कर के आप इस साधना में सुई की नोक बराबर भी नहीं प्राप्त कर सकते जैसे कोई श्री बटुकनाथ, भैरव, शक्ति या शिव का उपासक है या साधक है तो उसे देख उपासना करते है तो हम भी कर लें यह भी गलत है, वह आपके लिए हानि कारक हो सकती है। पहले ये जानिए की आपकी आस्था किस देवशक्ति में है,कोई भी देव शक्ति छोटी या बड़ी नहीं होती इस लिए कोई लेख पढ़ के या किसी का देख के कोई उपासना नहीं करनी चाहिए ।

चलिए ! मान लेते है आपने किसी का देख के साधना पूजा क्रम का नक़ल कर लिया की वह क्या कर रहा कैसे कर रहा अमुक वस्तु चढ़ा रहा अमुक वस्तु से हवन कर रहा ये तो आपको दिख रहा की हवन कर रहा - तर्पण दे रहा पर वो किसका मन्त्र पढ़ रहा क्यों पढ़ रहा कौन सी शक्ति के लिए है  ये कैसे जानेंगे इस लिए बिना जानें किसी क्रिया का अनुसरण न करें। प्रत्येक व्यक्ति के लिए भैरव या दसमहाविद्या साधना नहीं होती, स्वतः से ये साधना करना अपने लिए खुद व्याधि का कारण होता है । यदि आपको ये पूजा साधना आकर्षित कर रही तो उसे अच्छे से समझिए जानिए की क्या आपके लिए ये उचित है क्योंकि साधनाएं यदि अपने प्रारम्भ कर दिया तो पूरा जीवन निभाना पड़ेगा यदि आप साधना के किसी चरण तक नहीं पहुंचे तो जन्म जन्म तक चलती रहती है इसी लिए एक सत्य यह भी है की साधना उपासना के क्षेत्र में यदि कोई साधक है तो सत्य यह है की वह अगले जन्म से करता आ रहा । इस लिए योग्य गुरु का होना अवश्यक है।

इस लिए योग्य गुरु का चयन करो अपनी साधना के बारे में जानकारी लेते रहो क्या साधना सही चल रही अब हमें क्या करना चाहिए, किसी की क्रिया को देखो तो भी गुरु से जानो की क्या हमारे लिए सही है, किसी पुस्तक या ग्रन्थ से पढ़ा है तो उसपे भी चर्चा करो क्या ये हमारे लिए सही है, इनको करने के क्या-क्या क्रम हैं ।

साधक को अपनी जीवन शैली भी देखनी चाहिए जो अगर पूर्व जन्म से साधक रहा होगा या इस जन्म में उससे सेवा लेनी होगी, तो व्यक्ति की जीवन शैली बता देगी जैसा हमने और पूर्व के साधकों ने अनुभव किया वैसे ये बहुत वृहद् बिन्दु हैं उसमें से कुछ यहाँ मैं लिख रहा, जो पूर्व जन्म से साधक था उसका मन कहीं नहीं लगेगा हर समय दुनिया समाज से अलग करता दिखेगा वो सोच के कोई काम नहीं कर सकता एकाएक उसके साथ होगा कठोर स्वाभाव होगा सात्विक पूजा में मन नहीं लगेगा घर में सब कोई और पूजा कर रहे तो उसका उनमें मन नहीं लगेगा कहीं न कहीं वो जरुरत से उस परिवार का होगा, परिवार के लोगों में मन नहीं लगेगा, वो जिस उपासना के लिए है वो स्वतः उधर आकर्षित होगा, ऐसा भी होता है कि मित्रता या विवाह जीस घर में हो उसके कारण ऐसी स्थिति बनें की बाबा की पूजा के बारे में पता चले  ऐसा भी देखा है की प्रेत बाधा या बिमारी के कारण कई बटुकनाथ की उपासना में आ जाते हैं कैसे भी साधक इस उपासना में आए उसके जीवन में एक दम अलग ही होने लगता है पहले अच्छा होगा कुछ समय बात बुरा भी होगा क्यों की ये मार्ग साधक की सर्वदा परीक्षा लेता है।  उसका कारण है आप साधना जाप बढाओ जब तक उचित शैली से मन्त्र का पुरश्चरण नहीं हो जाता साधना की दशा दिशा नहीं मिल जाती अदृश्य रूप से दण्ड पड़ता रहेगा एक बार सही दिशा मिल गई तो बाबा अपनी उपासना स्वतः करा लेंगे । ये जो भी बात बता रहा साधना करने वालों के लिए है, पूजा पाठ करने वालों के लिए नहीं है। ऊपर जो पूर्व जन्म के कुछ बिन्दु मैंने बताए यदि वो आपके साथ हो रहे तो ये सही है की आप साधक थे । शिव शक्ति या भैरव में उसका अनुराग नहीं है तो यह जो लक्षण है वो मान्य नहीं है इस लिए किसी जानकार ज्योतिषी से गुरु, शनि, राहु, मंगल इनका विचार करा लो जिसको साधना क्रम देखना आता हो तो और स्पष्ट हो जायेगा । वैसे यदि वो साधक रहा होगा तो उसके पूर्व जन्म की शक्तियाँ जहाँ उसने छोड़ा रहा होगा शरीर छोड़ने से पहले वो उचित समय आने पर किसी न किसी कारण को निमित्त बना कर स्वतः मिलेंगी । जिन साधकों से  इस जन्म में श्री बटुकनाथ जी को साधना लेनी है किसी पुण्य के कारण तो पहला तो कोई साधक उसे प्रेरित करेगा या किसी साधक को देख के वो स्वतः खिंचा चला जायेगा पर वो कितनी ऊंचाई प्राप्त करेगा उसकी परिश्रम पर है ।  ऐसा भी होता है जीवन के एक मोड़ पर ऐसी कोई घटना घट जाती है की किसी माध्यम से बाबा की साधना में व्यक्ति आ जाता है ।

अब हम उनके बारे में बात करते हैं जो किसी कारण वश साधना में आ तो जाते हैं पर उनको बटुक उपासना में कुछ प्राप्त नहीं होता या उसे क्रम बदलने की जरुरत है।

श्री बटुकनाथ की उपासना करते है पर मन भटकता है बहुत समय तक साधना करने के बाद भी अनुभव नहीं होता तो उनको चाहिए अपने पूजन साधना के क्रम को सुधारें गुरु से बात करें पता करें ऐसा क्यों हो रहा पूजा मन्त्र में कहाँ गलती हो रही ।

श्री बटुकनाथ की पूजा कर रहे पर मन किसी अन्य देवी देवता में लगता है तो उनको उस शक्ति के किसी योग्य साधक से बात करके दीक्षा लेनी चाहिए ।

क्योंकी श्रीबटुकनाथ या दसमहाविद्या की उपासना में जो है उसे उनके अतिरिक्त कोई अन्य सत्ता समझ नहीं आती एक पागल पन जैसा रहता है, कहीं कोई पूजा हो रही तो सोचते हैं अपने बटुकनाथ जी के लिए कैसे करें प्रत्येक अच्छी चीज अपने स्वामी के लिए ही सोचता है । यदि इतना पागल पन नहीं है तो जिधर मन जा रहा उधर चले जाओ ।

श्री बटुकनाथ की उपासना में हैं पर बटुक साधना के क्रम उचित नहीं लगते हैं और परम्पराओं से तुलना करते है उस पद्धति से जोड़ के देखते है ऐसे साधक बीच में फंस के रह जाते हैं कोई भी देव शक्ति उनकी पूजा नहीं प्राप्त करती है और उनकी पूजा प्रेत को प्राप्त होती है । ऐसी बुद्धि वाले को बाबा की उपासना नहीं करनी चाहिए ।

ऐसे साधक जिनसे  मन्त्र प्रदाता गुरु रुष्ट है या गुरु से वो रुष्ट है तो उनको कभी मन्त्र सिद्धि नहीं होगी उनकी पूजा प्रेत ग्रहण कर लेते है । ऐसे साधकों को चाहिए की वो तत्काल गुरु बदल दें। या अपने गुरु को मनाएँ मन्त्र प्रदाता गुरु का प्रसन्न रहना बहुत जरुरी है ।  

पूजा साधना में लगें है पर मन नहीं लग रहा भाव नहीं है बस किए जा रहे तो ऐसे साधक भी कुछ प्राप्त नहीं करते उनसे भगवान पूजा सेवा में गलती करवा देते है जिससे उनकी पूजा प्रेत प्राप्त करते है ।

कुछ नवीन साधक साधना या पूजा प्रारम्भ किए हैं उनके लिए भी और जो काफी समय से कर रहे दोनों के लिए है। जो पूजा कर रहे साधना सिद्धि का कोई विचार नहीं है उनके लिए ज्यादा खास नहीं बस जप करें रुद्राक्ष की माला से और एक आसन लें दक्षिण मुख होकर जप करें ।

यदि साधना सिद्धि की इच्छा है तो कई बिन्दुओं पर ध्यान देना होगा, इस विषय के लिए बहुत लोग पूंछ रहे की बाबा की सिद्धि कैसे करें तो साफ शब्दों में जान लीजिए,बाबा की कृपा थोड़ी सी पूजा से तत्क्षण मिलने लगती है पर सिद्धि तक जाने के लिए बहुत समय लग जाता है क्यों की मन्त्र सिद्धि सरल नहीं है उदाहरण के रूप में ये समझिए,  कोई  प्रेत साधना करता है तो उसमें बहुत समय लग जाता  है। तो बाबा ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं या कहें आदि अंत यही है तो इनकी साधना सिद्धि में कितना समय लगेगा   इस लिए एक समय सीमा बना के साधना सिद्धि की इच्छा न रखें ।  अपने आपको पूर्ण समर्पित कर सकते हैं तभी ये इच्छा रखें, मन्त्रजप  पे पूर्ण रूप से मेहनत करें । मन्त्र इष्ट का स्वरुप है जितना अधिक मन्त्र का जप होगा उतना ही मार्ग प्रसस्त होगा ।

एक प्रश्न और आ रहा की गुरु दीक्षा कैसे ले किससे लें क्या हम दीक्षा लेने के लायक हैं या नहीं ! यदि साधना सिद्धि के लायक आप हो तो ही गुरु आपको दीक्षा देगा, आपकी योग्यता देखेगा की क्या आप इस योग्य हो या नहीं क्यों की ये गलती मैं कर चुका हूँ बहुतों को मैंने बाबा का मन्त्र दे दिया उसमें से ९९% लोगों का मन्त्र सिद्धि के प्रथम चरण तक भी नहीं पहुँचा और प्रथम चरण तक पहुँचाना असम्भव दिख रहा है।  इसको देख बहुत कष्ट हुआ, वैसे उन लोगों का मन्त्र लेना न लेना कोई मतलब नहीं जैसे लोग पूजा करते हैं वैसे वो भी करेंगे साधना उनके लिए स्वप्न है । इस लिए अब एक नियम बना लिया है की यदि ये कुछ योग्यताएँ नहीं हैं तो वो श्री बटुक भैरवनाथ जी की दीक्षा के बारे न सोचें की मैं दीक्षित करूँगा या कहें साधना मार्ग में आगे ले जाऊंगा । संसार में बहुत गुरु हैं उनका चयन कर लीजिए और यदि हमसे दीक्षा लेनी है या हमारे संरक्षण में साधना करनी है तो नीचे दिए गए निम्न क्रम को तैयार करें ।  

प्रथम आप कितनी देर बैठ सकते हैं ? कम से कम ६ घंटा, द्वितीय पद्मासन कम से कम १ घंटा लगता हो और अधिक हो जाये तो अच्छा है, तृतीय भूंख प्यास नींद पे आपका अभ्यास हो की कितनी देर तक रोक सकते है, चतुर्थ भूमि शयन का अभ्यास हो, पञ्चम ७ दिवस मूल मन्त्र का १०० माला जाप करें  गुरु आदेश लेके । इतना कर लेंगे तो आपके लिए साधना मार्ग में कोई कठिनाई नहीं आएगी ।  

यदि किसी अन्य गुरु से दीक्षा ले रहें तो उसका विचार करें वो कौन है आदि आदि पिछले लेख में बता चुका हूँ । एक बात और यदि जिसको गुरु बना रहे वो धन की मांग कर रहा मन्त्र देने के वरण स्वरुप में तो उससे दीक्षा न लें । खुले शब्द में बोल रहा वो चोर है साधक नहीं है, पूरा जन्म बिता दोगे तब भी सिद्धि नहीं होगी ऐसे गुरु से दीक्षा लेने के बाद, अब कुछ लोग कहेंगे पञ्च  मकार में मुद्रा भी आती है इस लिए ले रहे तो साफ बता दूं वहां मुद्रा का अर्थ हस्त मुद्रा, शरीर से बनाई जाने वाली मुद्राएँ हैं जो प्रत्येक साधना में देव शक्ति के अनुसार अलग अलग होती हैं ।

यदि आपके और भी प्रश्न हैं तो ईमेल के माध्यम से पूंछ सकते है ।

ईमेल – ashwinitiwariy@gmail.com

 

Sunday, 21 September 2025

गुरु - मन्त्र - यन्त्र - तन्त्र में कोई भेद नहीं (मन्त्र सिद्धि )

 


जय श्री बटुक भैरवनाथ

बहुत समय के बाद एक बहमूल्य विषय पर लेख लिखने का विचार हुआ, काफी समय से कई लोगों के msg भी आये की कोई लेख नहीं आ रहा, सभी बिन्दुओं को ध्यान में रख के मैंने सोचा की नवरात्रि आ रही जो की देवी उपासना के साथ ही साथ बटुक उपासना के लिए भी बहुत खास है, चारो नवरात्रि बटुक उपासना के लिए अत्यन्त फलवती है । जैसा की हम पहले से बता चुके हैं की बटुक भैरव उपासना के समतुल्य कोई उपासना नहीं बटुक भैरवनाथ भगवन शिव के बाल रूप हैं और दुसरे स्वरुप में भगवती के समस्त रूप के पुत्र है । जैसे यह अटल सत्य है की बिना मन्त्र के तन्त्र नहीं वैसे बिना शक्ति के कोई मन्त्र नहीं जहाँ कोई शक्ति हैं वहाँ देवी पुत्र श्री बटुकनाथ जी रहेंगे ही रहेंगे । देवी पुत्र होने से श्री बटुकनाथ जी का पूजन समस्त स्थान पे अनिवार्य है । जहाँ इनका जप पूजन नहीं हो रहा, सम्भव है की आपका पूजन अधूरा है या कोई प्रेत शक्ति उसे ग्रहण कर रही, श्री बटुकनाथ जी के पूजन से समस्त देवियाँ प्रसन्न हो जाती हैं, श्री बटुक भैरवनाथ के साधक को समस्त देवियों को प्रणाम करना चाहिए, किसी भी देवी के आगे पुत्र में चतुर्थी विभक्ति (पुत्राय) लगा देने से बटुकनाथ जी का मन्त्र हो जाता है जिससे साधक अर्चन तर्पण कर सकते है ।

                 यह सब अपने गुरु से सीखें, कि किसी भी साधना मन्त्र में  गुरु होना अवश्यक है बिना गुरु मन्त्र सिद्धि असम्भव है। श्री बटुकनाथ जी की साधना में एक आनन्द वर्धक बात ये है की एक ही मन्त्र से पूरा षट्कर्म हो सकता है अनेंकों प्रकार की सिद्धि तक साधक प्राप्त कर सकता है, ऐसा कुछ नहीं जो साधक न प्राप्त कर सके भुक्ति से मुक्ति तक सब सम्भव है । इसके लिए योग्य गुरु का होना अवश्यक है, गुरु को जानों समझो वो कौन है उसने क्या साधना की है या नहीं कीलन के बारे में पता है या नहीं पुरश्चरण के बारे में जानकारी है या नहीं, माला सोधन कैसे करें, बटुकनाथ जी के ११ न्यास के बारे में, चेटिका देवी के बारे में, वेताल के बारे में, गणों के बारे में, गुटिका पूजन ,पूजन विधि, विशेष हवन इतनें अंग हैं बिना इनके बटुक उपासना साधना सिद्धि असम्भव है, इस लिए जो भी गुरु हों उनको ये सब ज्ञान होना अवश्यक है । तन्त्र में गुरु ऐसे कभी पूरा ज्ञान नहीं देता साधक की योग्यता देखता है उसका परिक्षण करता है उसमें कितना समर्पण है, कितना समय दे सकता है । स्वार्थी है या भक्त है क्यों की साधक में भाव का होना अवश्यक है । मैं अपना बताऊँ तो बहुत अभ्यार्थी आये अभी भी आ रहे पर उस श्रेंणी के भाव वाले साधक नहीं प्राप्त हो रहे, जब तक दूर रहते है तब तक सब सही दिखता है, जब समीप आते है तो उनके अन्दर सिद्धि पाने की लालसा बहुत रहती है, पर भाव श्रद्धा समर्पण में शून्य रहता हैं ।

          दश महाविद्या उपासना और श्री बटुक भैरव उपासना दोनों में गुरु का होना सबसे अवश्यक है । मन्त्र प्रदाता गुरु की निन्दा से दूर रहें और जहाँ हो रही वहाँ से दूर हो जाएँ । मनुष्य जन्म लेने के बाद कोई भी व्यक्ति परिपूर्ण नहीं होता किसी के लिए अच्छा है तो बहुतों के लिए गलत होगा, धरती पर भगवन आए तो उनके भी निंदक हो गए थे, इस लिए कोई पूर्ण नहीं  तो किसी से लड़ना नहीं चाहिए । अपने गुरु को कोई कुछ कह रहा तो दूर हो जाओ सुनों नहीं क्यों की गुरु निन्दा सुनने या करने से बराबर दोष लगता है इस लिए दूर हो जाना चाहिए । यदि आपका गुरु वास्तविक मन्त्र साधक है तो मन्त्र ब्रह्म होता है वो सर्वव्यापी है उसे प्रतिफल जरूर मिलेगा क्यों की किसी भी तन्त्र साधक की निन्दा करने से १००० प्रेत की सेना पीछे पड़ जाती है, उसके जितने भी आत्मीय होंगे सबको भुगतना पड़ता है । कोई कुछ कहे तो गुरु से बता दो यदि गुरु सुनने का इच्छुक है बस आप अपने दोष से मुक्त फिर बटुक मण्डल निर्णय लेगा ।

       आगे साधना सिद्धि का क्रम बता रहा हूँ  जो बहुत वृहद् है उसमें से कुछ मुख्य बिंदु बताऊंगा पर उसे भी अपने गुरु के अनुसार ही करें । जितना भी बता रहा यह सब तन्त्र शास्त्र और अनुभव पर आधारित है ।

·      गुरु प्रसन्न है तभी मन्त्र सिद्धि होगी नहीं तो व्यर्थ चली जायेगी ।

·      मन्त्र प्रदाता गुरु परिवार उतने ही पूज्य हैं जैसे गुरु – गुरु माता, गुरु पत्नि, गुरु पुत्र ।

·      यदि मन्त्र सिद्धि है कोई गुरु नहीं मिल रहा तभी साधक अपनी माता, बड़े भाई और पत्नी को दीक्षित कर सकता है, शास्त्र मत है की मन्त्र देने से भी पद वही रहेगा शिष्य का व्यवहार नहीं होगा ।

·      तन्त्र परम्परा यदि किसी स्त्री ने भी साधना सिद्धि की है तो उसे भी गुरु रूप में स्वीकार करना चाहिए ।

·      कृष्ण मृग चर्म, मृग चर्म, पलास की लकड़ी, ताम्र का  ये न प्राप्त हो तो ऊनी लाल, काला या रंग बिरंगा आसन यही आसन भैरव साधना में ग्राह्य है ।

·      कच्छे सूत की बत्ती जितने अक्षर का मन्त्र हो उसी अनुरूप सूत की बत्ती बनायें,  रुई की बत्ती नहीं ग्राह्य है ।

·      मन्त्र सिद्धि के लिए रात्रि पूजन करे । गुरु आज्ञा हो तो तुरीय काल संध्या पूजन तर्पण अवस्य करें ।

·      गुरु आज्ञा से दशमहाविद्या या गुरु उपास्य शक्ति का बटुकनाथ जी के साथ पूजन करें । अपने मन से न करे नहीं तो साधना पूजा प्रेत ग्रहण कर लेंगे ।

·      एक साधक को एक दिन में कम से कम २५ माला जप करना चाहिए वैसे तो दैनिक पूजा क्रम वाले के लिए कम से कम ३ से ८ होता पर बाबा की शाक्तियों से जुड़ने के लिए कम से कम २५ माला जप अवश्यक है क्यों की शास्त्र प्रमाण है की साधक को २५००० जप करना चाहिए पर कलिकाल में जितना प्रमाण हो उसका दस गुना अधिक जप करना चाहिए तब सिद्धि का मार्ग खुलता है या कोई कार्य सिद्ध होता है, दस गुना अधिक का अर्थ हुआ २५०००० दो लाख पच्चास हजार जप के बाद मार्ग प्रसस्त होता है । इतना करने के बाद भी यदि अवरोध है तो निम्न कारण हो सकते है जैसे या आप मन से साधना नहीं कर रहे, किसी का देख के कर रहे भाव नहीं है, आपकी बाबा के मन्त्र की दीक्षा नहीं है, दीक्षा है तो गुरु में श्रद्धा नहीं है या सबसे बड़ा कारण गुरु किसी कारण वस साधक से प्रसन्न नहीं है रुष्ट है। (पन्चविन्शत्सहस्राढ्य पन्चलक्षंदशांशतः)

·      जप का दशांश त्रिमधु (घी-दही-शहद) हवन उसका दशांश मार्जन उसका दशांश तर्पण करने से मन्त्र सिद्ध होता है ।

तन्त्र में कोई क्रिया पुस्तक पढ़के नहीं करनी चाहिए खतरा हो सकता है, गुरु से आज्ञा ले के करें या मन्त्र साधना सिद्धि करें तो आपको सबकुछ स्वतः ज्ञान हो जायेगा की क्या करना है, कभी कभी तो यहाँ तक होता है की ग्रन्थ में भी जो लिखा है उसे भी शक्तियां गलत बता देती हैं, इसका अर्थ यह नहीं होता की ग्रन्थ गलत है अपितु यह है हर बात या क्रिया सबके लिए नहीं होती, इस लिए गुरु आज्ञा से ही करें । जिस परम्परा से आप जुड़े हो उसी के अनुरूप ही परम्परा के आधार पे अच्छे बुरे का निर्णय करें या उसी साधना से जुड़े गुरु, ग्रन्थ, साधक के अनुसार आगे बढे सब मिश्रित न करें । साधना मार्ग में दो मार्ग हैं दक्षिण और वाम मार्ग आप जिस मार्ग की साधना कर रहे उसी मार्ग के अनुरूप चले क्योंकी youtube का समय है, अधितायत संख्या में लोग youtube विडियो देख के साधना कर रहे जो की मूर्खता पूर्ण है वह कभी सिद्ध नहीं होनी है । उसी के साथ साथ कुछ ऐसे भी साधक है जो वैष्णव, शैव ,शाक्त, निम्बक सब मिश्रित कर के साधना कर रहे किसी एक परम्परा पर नहीं चल रहे उनकी भी साधना व्यर्थ में जाएगी । अपने सम्प्रदाय आचार्य और ग्रन्थ के अनुसार ही साधना करनी चाहिए, जैसे - दक्षिण मार्ग में पञ्चमकार वर्जित है, वाममार्ग में पञ्चमकार का प्रयोग होता है तो सोचने की बात है कहाँ से मिश्रित होगा ।

बलिप्रथा मांस आदि का प्रयोग बटुक भैरव साधना में भी होता है  शास्त्र प्रमाण भी है पर यह भी गुरु आज्ञा या जैसे गुरु का साधना क्रम होगा उसी के अनुरूप होगा ।

बटुक भैरव उपासक को भीड़ से दूर रहना चाहिए, प्रचार प्रसार से दूर रहना चाहिए चाहे कोई परेशान हो या प्रसन्न हो सबके लिए बटुक भैरव उपासना साधना नहीं है । वह अपने जन्म का भोग, भोग रहा चाहे अच्छा या बुरा जिसको बटुक साधना मिलनी होगी वह स्वतः आयेगा उसपे किसी का वस नहीं काम करेगा ।

ये कष्ट हरण देवता जरूर है पर वैद्य की भांति कोई भी आजाये नंबर लगा ले यह भी असम्भव और यह भी असम्भव है की कोई आपको बता दे या किसी का देख के कोई चाहे बटुक उपासना कर ले तो असम्भव है मन ही नहीं लगेगा, यदि मन लग रहा बाबा के प्रति प्रेम निष्ठा बढ़ रही तो बाबा की इच्छा से ही वह कर रहा ।

वस्तुतः अधिक संख्या में लोग बटुकनाथ की उपासना बहुत परेशान होने के बाद करते  हैं किसी भी कारण वस तब वो बटुक उपासना करते हैं यही कारण है की  आज के समय में बटुक उपासना भैरव उपासना बहुत से लोग करते दिख जायेंगे, पर वह मात्र भीड़ है क्यों की उनका मन किसी और भक्ति या कष्ट में अन्यत्र लगा रहता है तो जैसा की आपको पूर्व के लेख या वैसे भी किसी कारण से विदित हो की बाबा भगवन शिव का बाल रूप है, बच्चों को अपनी माँ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं भाता सब कुछ उन्हें प्रथम दृष्टि में चाहिए इस लिए जो भी बाबा की साधना में हों वो एकाकी रूप से मन बुद्धि कर्म से केंद्रित हो कर बाबा की  सेवा पूजन करें ।

Email- ashwinitiwariy@gmail.com