जय श्री बटुक भैरवनाथ
बहुत समय के बाद एक
बहमूल्य विषय पर लेख लिखने का विचार हुआ, काफी समय से कई लोगों के msg भी आये की कोई लेख नहीं आ रहा, सभी बिन्दुओं
को ध्यान में रख के मैंने सोचा की नवरात्रि आ रही जो की देवी उपासना के साथ ही साथ
बटुक उपासना के लिए भी बहुत खास है, चारो नवरात्रि बटुक
उपासना के लिए अत्यन्त फलवती है । जैसा की हम पहले से बता चुके हैं की बटुक भैरव
उपासना के समतुल्य कोई उपासना नहीं बटुक भैरवनाथ भगवन शिव के बाल रूप हैं और दुसरे
स्वरुप में भगवती के समस्त रूप के पुत्र है । जैसे यह अटल सत्य है की बिना मन्त्र
के तन्त्र नहीं वैसे बिना शक्ति के कोई मन्त्र नहीं जहाँ कोई शक्ति हैं वहाँ देवी
पुत्र श्री बटुकनाथ जी रहेंगे ही रहेंगे । देवी पुत्र होने से श्री बटुकनाथ जी का
पूजन समस्त स्थान पे अनिवार्य है । जहाँ इनका जप पूजन नहीं हो रहा, सम्भव है की
आपका पूजन अधूरा है या कोई प्रेत शक्ति उसे ग्रहण कर रही, श्री बटुकनाथ जी के पूजन
से समस्त देवियाँ प्रसन्न हो जाती हैं, श्री बटुक भैरवनाथ के साधक को समस्त
देवियों को प्रणाम करना चाहिए, किसी भी देवी के आगे पुत्र में चतुर्थी विभक्ति (पुत्राय)
लगा देने से बटुकनाथ जी का मन्त्र हो जाता है जिससे साधक अर्चन तर्पण कर सकते है ।
यह सब अपने गुरु से सीखें, कि किसी
भी साधना मन्त्र में गुरु होना अवश्यक है
बिना गुरु मन्त्र सिद्धि असम्भव है। श्री बटुकनाथ जी की साधना में एक आनन्द वर्धक
बात ये है की एक ही मन्त्र से पूरा षट्कर्म हो सकता है अनेंकों प्रकार की सिद्धि
तक साधक प्राप्त कर सकता है, ऐसा कुछ नहीं जो साधक न प्राप्त कर सके भुक्ति से
मुक्ति तक सब सम्भव है । इसके लिए योग्य गुरु का होना अवश्यक है, गुरु को जानों
समझो वो कौन है उसने क्या साधना की है या नहीं कीलन के बारे में पता है या नहीं
पुरश्चरण के बारे में जानकारी है या नहीं, माला सोधन कैसे करें, बटुकनाथ जी के ११
न्यास के बारे में, चेटिका देवी के बारे में, वेताल के बारे में, गणों के बारे
में, गुटिका पूजन ,पूजन विधि, विशेष हवन इतनें अंग हैं बिना इनके बटुक उपासना
साधना सिद्धि असम्भव है, इस लिए जो भी गुरु हों उनको ये सब ज्ञान होना अवश्यक है ।
तन्त्र में गुरु ऐसे कभी पूरा ज्ञान नहीं देता साधक की योग्यता देखता है उसका
परिक्षण करता है उसमें कितना समर्पण है, कितना समय दे सकता है । स्वार्थी है या
भक्त है क्यों की साधक में भाव का होना अवश्यक है । मैं अपना बताऊँ तो बहुत
अभ्यार्थी आये अभी भी आ रहे पर उस श्रेंणी के भाव वाले साधक नहीं प्राप्त हो रहे,
जब तक दूर रहते है तब तक सब सही दिखता है, जब समीप आते है तो उनके अन्दर सिद्धि
पाने की लालसा बहुत रहती है, पर भाव श्रद्धा समर्पण में शून्य रहता हैं ।
दश महाविद्या उपासना और श्री बटुक भैरव
उपासना दोनों में गुरु का होना सबसे अवश्यक है । मन्त्र प्रदाता गुरु की निन्दा से
दूर रहें और जहाँ हो रही वहाँ से दूर हो जाएँ । मनुष्य जन्म लेने के बाद कोई भी व्यक्ति
परिपूर्ण नहीं होता किसी के लिए अच्छा है तो बहुतों के लिए गलत होगा, धरती पर भगवन
आए तो उनके भी निंदक हो गए थे, इस लिए कोई पूर्ण नहीं तो किसी से लड़ना नहीं चाहिए । अपने गुरु को कोई
कुछ कह रहा तो दूर हो जाओ सुनों नहीं क्यों की गुरु निन्दा सुनने या करने से बराबर
दोष लगता है इस लिए दूर हो जाना चाहिए । यदि आपका गुरु वास्तविक मन्त्र साधक है तो
मन्त्र ब्रह्म होता है वो सर्वव्यापी है उसे प्रतिफल जरूर मिलेगा क्यों की किसी भी
तन्त्र साधक की निन्दा करने से १००० प्रेत की सेना पीछे पड़ जाती है, उसके जितने भी
आत्मीय होंगे सबको भुगतना पड़ता है । कोई कुछ कहे तो गुरु से बता दो यदि गुरु सुनने
का इच्छुक है बस आप अपने दोष से मुक्त फिर बटुक मण्डल निर्णय लेगा ।
आगे साधना सिद्धि का क्रम बता रहा हूँ जो बहुत वृहद् है उसमें से कुछ मुख्य बिंदु बताऊंगा
पर उसे भी अपने गुरु के अनुसार ही करें । जितना भी बता रहा यह सब तन्त्र शास्त्र
और अनुभव पर आधारित है ।
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गुरु प्रसन्न है तभी मन्त्र सिद्धि होगी नहीं तो व्यर्थ चली
जायेगी ।
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मन्त्र प्रदाता गुरु परिवार उतने ही पूज्य हैं जैसे गुरु –
गुरु माता, गुरु पत्नि, गुरु पुत्र ।
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यदि मन्त्र सिद्धि है कोई गुरु नहीं मिल रहा तभी साधक अपनी माता,
बड़े भाई और पत्नी को दीक्षित कर सकता है, शास्त्र मत है की मन्त्र देने से भी पद
वही रहेगा शिष्य का व्यवहार नहीं होगा ।
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तन्त्र परम्परा यदि किसी स्त्री ने भी साधना सिद्धि की है
तो उसे भी गुरु रूप में स्वीकार करना चाहिए ।
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कृष्ण मृग चर्म, मृग चर्म, पलास की लकड़ी, ताम्र का ये न प्राप्त हो तो ऊनी लाल, काला या रंग बिरंगा
आसन यही आसन भैरव साधना में ग्राह्य है ।
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कच्छे सूत की बत्ती जितने अक्षर का मन्त्र हो उसी अनुरूप
सूत की बत्ती बनायें, रुई की बत्ती नहीं
ग्राह्य है ।
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मन्त्र सिद्धि के लिए रात्रि पूजन करे । गुरु आज्ञा हो तो
तुरीय काल संध्या पूजन तर्पण अवस्य करें ।
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गुरु आज्ञा से दशमहाविद्या या गुरु उपास्य शक्ति का बटुकनाथ
जी के साथ पूजन करें । अपने मन से न करे नहीं तो साधना पूजा प्रेत ग्रहण कर लेंगे ।
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एक साधक को एक दिन में कम से कम २५ माला जप करना चाहिए वैसे
तो दैनिक पूजा क्रम वाले के लिए कम से कम ३ से ८ होता पर बाबा की शाक्तियों से
जुड़ने के लिए कम से कम २५ माला जप अवश्यक है क्यों की शास्त्र प्रमाण है की साधक
को २५००० जप करना चाहिए पर कलिकाल में जितना प्रमाण हो उसका दस गुना अधिक जप करना
चाहिए तब सिद्धि का मार्ग खुलता है या कोई कार्य सिद्ध होता है, दस गुना अधिक का
अर्थ हुआ २५०००० दो लाख पच्चास हजार जप के बाद मार्ग प्रसस्त होता है । इतना करने
के बाद भी यदि अवरोध है तो निम्न कारण हो सकते है जैसे या आप मन से साधना नहीं कर
रहे, किसी का देख के कर रहे भाव नहीं है, आपकी बाबा के मन्त्र की दीक्षा नहीं है, दीक्षा
है तो गुरु में श्रद्धा नहीं है या सबसे बड़ा कारण गुरु किसी कारण वस साधक से
प्रसन्न नहीं है रुष्ट है। (पन्चविन्शत्सहस्राढ्य पन्चलक्षंदशांशतः)
·
जप का दशांश त्रिमधु (घी-दही-शहद) हवन उसका दशांश मार्जन उसका
दशांश तर्पण करने से मन्त्र सिद्ध होता है ।
तन्त्र में कोई क्रिया पुस्तक
पढ़के नहीं करनी चाहिए खतरा हो सकता है, गुरु से आज्ञा ले के करें या मन्त्र साधना
सिद्धि करें तो आपको सबकुछ स्वतः ज्ञान हो जायेगा की क्या करना है, कभी कभी तो
यहाँ तक होता है की ग्रन्थ में भी जो लिखा है उसे भी शक्तियां गलत बता देती हैं,
इसका अर्थ यह नहीं होता की ग्रन्थ गलत है अपितु यह है हर बात या क्रिया सबके लिए
नहीं होती, इस लिए गुरु आज्ञा से ही करें । जिस परम्परा से आप जुड़े हो उसी के अनुरूप
ही परम्परा के आधार पे अच्छे बुरे का निर्णय करें या उसी साधना से जुड़े गुरु,
ग्रन्थ, साधक के अनुसार आगे बढे सब मिश्रित न करें । साधना मार्ग में दो मार्ग हैं
दक्षिण और वाम मार्ग आप जिस मार्ग की साधना कर रहे उसी मार्ग के अनुरूप चले क्योंकी
youtube का समय है, अधितायत संख्या में लोग youtube विडियो देख के साधना कर रहे जो की मूर्खता पूर्ण है वह कभी सिद्ध नहीं
होनी है । उसी के साथ साथ कुछ ऐसे भी साधक है जो वैष्णव, शैव ,शाक्त, निम्बक सब
मिश्रित कर के साधना कर रहे किसी एक परम्परा पर नहीं चल रहे उनकी भी साधना व्यर्थ
में जाएगी । अपने सम्प्रदाय आचार्य और ग्रन्थ के अनुसार ही साधना करनी चाहिए, जैसे
- दक्षिण मार्ग में पञ्चमकार वर्जित है, वाममार्ग में पञ्चमकार का प्रयोग होता है
तो सोचने की बात है कहाँ से मिश्रित होगा ।
बलिप्रथा मांस आदि का
प्रयोग बटुक भैरव साधना में भी होता है शास्त्र
प्रमाण भी है पर यह भी गुरु आज्ञा या जैसे गुरु का साधना क्रम होगा उसी के अनुरूप
होगा ।
बटुक भैरव उपासक को भीड़
से दूर रहना चाहिए, प्रचार प्रसार से दूर रहना चाहिए चाहे कोई परेशान हो या
प्रसन्न हो सबके लिए बटुक भैरव उपासना साधना नहीं है । वह अपने जन्म का भोग, भोग
रहा चाहे अच्छा या बुरा जिसको बटुक साधना मिलनी होगी वह स्वतः आयेगा उसपे किसी का
वस नहीं काम करेगा ।
ये कष्ट हरण देवता जरूर
है पर वैद्य की भांति कोई भी आजाये नंबर लगा ले यह भी असम्भव और यह भी असम्भव है
की कोई आपको बता दे या किसी का देख के कोई चाहे बटुक उपासना कर ले तो असम्भव है मन
ही नहीं लगेगा, यदि मन लग रहा बाबा के प्रति प्रेम निष्ठा बढ़ रही तो बाबा की इच्छा
से ही वह कर रहा ।
वस्तुतः अधिक संख्या में
लोग बटुकनाथ की उपासना बहुत परेशान होने के बाद करते हैं किसी भी कारण वस तब वो बटुक उपासना करते हैं
यही कारण है की आज के समय में बटुक उपासना
भैरव उपासना बहुत से लोग करते दिख जायेंगे, पर वह मात्र भीड़ है क्यों की उनका मन
किसी और भक्ति या कष्ट में अन्यत्र लगा रहता है तो जैसा की आपको पूर्व के लेख या
वैसे भी किसी कारण से विदित हो की बाबा भगवन शिव का बाल रूप है, बच्चों को अपनी माँ के अतिरिक्त कुछ भी
नहीं भाता सब कुछ उन्हें प्रथम दृष्टि में चाहिए इस लिए जो भी बाबा की साधना में
हों वो एकाकी रूप से मन बुद्धि कर्म से केंद्रित हो कर बाबा की सेवा पूजन करें ।
Email- ashwinitiwariy@gmail.com
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