Sunday 9 July 2017

त्रिपुण्ड और रुद्राक्ष बिना धारण किये , शिव उपासना का फल नही

चन्दन लगाना बुद्धि का विस्तार करता है यह वैज्ञानिक मत है कि दोनों भँव के मध्य में चन्दन लगाने से दिमांग को ठंढक प्रदान करता है । ये चन्दन की लगड़ी से बने मलयागिरि के लिए या चंदन कपूर कुमकुम आदि मिश्रित अष्टगंध के लिए है । कुछ लोग सिंदूर या अन्य सामग्री आस्था के अनुसार लगाते है इसका मात्र आध्यात्मिक महत्व है । कुछ लेखकों के लेख को हमनें पढ़ा जो सिंदूर लगाने से रोकते है पर मेरी दृष्टि में ऐसा कुछ नही, यदि हमारी कहीं आस्था है और हम अपने आराध्य के प्रति समर्पित है तो ये जो दिमांग उस तरफ केंद्रित हुआ ये स्वयं में एक बहुत बड़ी शक्ति है । क्यों कि जितनी अधिक आस्था होती है, उतनी शक्ति रूपी कृपा प्राप्त होती है । अब हम इसी क्रम में अपने आराध्य शिव और उनके बालरूप बटुक भैरव जी के बारे में बतायेंगे । भगवान शिव के सदृश कोई नही ब्रह्माण्ड को उन्होंने ही बसाया और समय आने पे नष्ट भी वही करते है । हमारे प्राणनाथ भोले नाथ भस्म धारण करते है और ये दिखाते है कि जो जन्म लिया है उसे शरीर छोड़ कर भस्म में मिल जाना है । भस्म राख या मिट्टी को कहते है । भगवान शिव जो तीन रेखा का चन्दन लगाते है उसे त्रिपुण्ड कहते है ।भगवान शिव के भक्त को भस्म त्रिपुण्ड अवस्य धारण करना चाहिए, लिङ्ग पुराण में तो यहाँ तक लिखा है कि बिना भस्म त्रिपुण्ड और बिना रुद्राक्ष की माला धारण किये जो शिव या शिव के किसी रूप की पूजा करता है उसका फल नही होता वो मूर्ख है । भस्म के कई प्रकार है एक जो बाजार में छूही कपूर सुगन्धित द्रव्य से मिश्रित प्राप्त हो जाती है , दूसरी पञ्चगव्य में गोबर की मात्रा अधिक करके गोला बना कर गाय के कण्डे पर जला कर बनती है , तीसरी चिता भस्म ये तीन प्रकार की भस्म ग्रहण की जाती है । भस्म विषम अंग में त्रिपुण्ड रूप में  लगाना चाहिए दिन में जल मिश्रित भस्म और रात्रि में सूखी भस्म धारण करने का  विधान है । भस्म या कोई भी चन्दन शिव साधक को सीधा नही लगाना चाहिए । 

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