Thursday 3 August 2017

जीवन में कोई भी चीज सरल नहीं

जीवन एक भव सागर है । व्यक्ति भावनाओं में बहता रहता है और जो भी चीज दिखती है उसके प्रति लालायित होने लगता है । पर ये सम्भव नही दुनिया में प्रत्येक वस्तु या सम्बन्ध के आंत्रिक गुणों को प्राप्त करना असम्भव है । मनुष्य का ऐसा स्वभाव भी है कि अपनी चीज से अगले की चीज या सुख ज्यादा ही दिखता है उसको सन्तुष्टि नहीं होती। परन्तु सामने से दिखने वाली हर चीज वैसी नही होती जैसी दिखती है ये भी कटुक सत्य है, उसमे विकार अवस्य होता है । इसी प्रकार साधना के जीवन में भी यदि कोई व्यक्ति अलग साधना करता दिखता है तो उत्सुकता होती है कि इस साधना में क्या है जो मेरी वाली साधना में नहीं है । इसे भी पा लिया जाय पर भौतिक सुख में और साधनात्मक सुख में बहुत अन्तर है यदि आपने कोई भी साधना सुरु की और उसका आपकी साधना से विपरीत मार्ग है तो, आप न इधर के रहोगे न उधर के हाँ स्मरण करना अलग है । पर उस मार्ग पर अग्रसर होना ये खतरनाक है । जैसे आप सात्विक साधक है और आपने तान्त्रिक देव साधना की तो आपका सात्विक मार्ग बाधित हो जायेगा सात्विक देवता आपको छोड़ देगा । यदि तान्त्रिक साधना किया और साथ में किसी प्रेत या यक्षिणी साधना किया तो तान्त्रिक देवता आपको बचा तो लेगा पर कुछ समय में आपको छोड़ देगा । उसी प्रकार यदि आपने पिशाच साधना पहले किया बाद में देव साधना तो आपके प्राण भी जा सकते है । वैसे तो कोई भी साधना या अभीष्ट प्राप्ति का मार्ग सरल कभी नही होता सरल वही होता है, जहाँ कुछ नहीं होता है। यदि आपको कोई बड़ी उपलब्धि या बड़ी सिद्धि प्राप्त करनी है तो खतरों से तो खेलना ही पड़ेगा । शास्त्रों में भी कहा गया है -
न संशयमनारुहय नरो भद्राणि पश्यन्ति।
संशयं पुनरारुह्य यदि जीवति पश्यन्ति ।।
अर्थ - मनुष्य अपने को खतरे में डाले बिना विशिष्ट लाभ नहीं पा सकता यदि खतरे से बच गया तो उस लाभ का सुख वह भोगता ही है ।।
इस लिए दिल से एक ही साधनात्म मार्ग पर चलना चाहिए और डरना नही चाहिए यदि कोई अच्छा गुरु मिले तो सर्वोपरि है। हमारे लेख का मतलब यह नहीं कि आप डर जाओ या अनावश्यक कहीं जा के कूद पड़ो की यहाँ खतरा है तो ये मार्ग सही है । हमारा अभिप्राय है कि जिस लक्ष्य को भी हम अपनायें उसी पर पूरा ध्यान केन्द्रित करें क्यों कि कोई भी मार्ग सरल नहीं होता है ।।

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