Monday, 28 August 2017

ज्ञान और संस्कार ये कहीं से भी प्राप्त हो उसे ग्रहण करना चाहिए

यदि हमें जीवन मे कुछ प्राप्त करना है, तो शिक्षा देने वाला नीच हो तब भी विद्या अध्ययन अवश्य सीखना चाहिए। चाण्डाल के पास से भी परम धर्म के मार्ग का अवलोकन करना चाहिए , और उसे ग्रहण करना चाहिए । अच्छे आचरण और मर्यादित सुन्दर स्त्रीरत्न को नीच कुल से भी ग्रहण कर लेना चाहिए । "क्यो की स्त्री जाति और कुल से नहीं गुण और सुन्दरता से सम्मानित होती है " ऐसी स्त्री मिले तो रत्न के सदृश मान कर ग्रहण करें । दुर्गुण में भी गुण खोज कर ग्रहण करें , बालक को न देखो यदि सुन्दर प्रिय वचन नही है तो बेकार है , और यदि इसके विपरीत होतो सुन्दर वचन से बालक को ग्रहण करो, शत्रु के भी गुण देखना चाहिए यदि अच्छे हों तो उसे ग्रहण करो, कितना भी अशुद्ध स्थान पे स्वर्ण गिर जाये उसे ग्रहण करना चहिये।। शास्त्र प्रमाण -
श्रद्दधानः शुभं विद्यामाददीतावरादपि।
अन्त्यादपि परं धर्मे स्त्रीरत्नं  दुष्कुलादपि।।
विषादप्यमृतं ग्राह्यं बालादपि सुभाषितम् ।
अमित्रादपि सद्दृत्तममेध्यापि काञ्चनम् ।।
श्रद्धापूर्वक नीच से अच्छी विद्या को, चाण्डाल से भी परम धर्म को, और नीच कुलसे भी  स्त्रीरत्न को ग्रहण करै। विष से भी अमृत को, बालक से सुन्दर वचन को, वैरी से भी सुन्दर आचरण को, अशुद्ध स्थान से भी सुवर्ण को लेना चाहिए ।
"स्त्रियो रत्नान्यथो विद्या धर्म: शौचं सुभाषितम्।
विविधानि च शिल्पानि समादेयानि सर्वतः।।
अर्थात - स्त्री को, रत्न, विद्या, धर्म, पवित्रता, सुन्दर वचन और अनेक प्रकार की कारीगरी इनको सबसे लेना चाहिए ।

No comments:

Post a Comment