Wednesday 30 August 2017

इंसान कभी भगवान नहीं होता ......,

प्रत्येक वह व्यक्ति जो भक्ति करता है , उसकी यही मंसा होती है कि मृत्योपरांत हमें मुक्ति की प्राप्ति हो । और इस भावना से वह गुरु के शरण में जाता है । हमें भगवत् मार्ग का अवलोकन कराइये और गुरु अपने ज्ञान के अनुसार मार्ग बताता है । परन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात क्या उस गुरु को पता है ? कि मुक्ति का मार्ग क्या है ? व्यक्ति यहीं पर जल्द बाजी कर जाता है । कुछ लोग वंसानुगत गुरु से दिक्षा ले लेते है। वैसे ये गलत नही पर शिष्य का कर्तव्य होता है कि जिससे आप दिक्षा ले रहे क्या उसे उस देवी देवता के बारे में पता है । क्या वो संध्या पूजन या साधना करता है या नहीं ये जानना आवश्यक है । आज के समय में कुछ गुरु बानें घूम रहे जो स्वयं को ही परमात्मा का अवतार बताते है । अपनी ही पूजा कराते अपनी रामायण तक बना डाले है । और सबसे आश्चर्य की बात ये है कि व्यक्ति उनके इस मिथ्या भाषण को सत्य मान लेता है । शास्त्रों का मत है जो मनुष्य अपनी पूजा कराता है वह प्रेत बनता है। और जो उनकी पूजा करता है वह प्रेत ही बनता है , क्यो की उद्धार करने का कार्य परमात्मा का है इंसान का नही । बहुतायत लोग मृत लोगों की उपासना करते है । वैसे मृत की उपासना होती है ऐसा नहीं है कि नहीं होती । पर बात ये आजाती है कि वो आपका कौन है । माता पिता या गुरु इनको प्रणाम कर सकते है इसके अतिरिक्त यदि किसी सन्यासी की समाधि है तो प्रणाम कर सकते है । पर कुछ लोग जहां पाते है वहीं सर झुकने लगते है हाँथ जोड़ने लगते है । एक कहावत है "जो हर जगह झुकता है उसे जीवन पर्यन्त झुक के ही रहना पड़ता है" हम सनातन है तो सनातन धर्म के नियम अनुसार ही पूजन और वन्दना करनी चाहिए । सनातन धर्म कहता है इंशान की वन्दना नही करनी चाहिए । चाहे वह जीवित इंशान हो या मृत, इंसान की उपासना नही करनी चाहिए । इंशान कभी भगवान नही बन सकता । खुद सोचिए आदि शंकराचार्य जी जैसे महा संत जिन्होंने केवल देव पूजन और धर्म का उपदेश ही दिया । इतने बड़े सिद्ध संत ने कभी अपने को भगवान नही कहा । इसी बात को भगवान ने गीता में कहा -
यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोsपि माम् ।। ( गीता नवम अध्याय )
अर्थात् - देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते है, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं।भूत प्रेतों को पूजने वाले भूतों प्रेतों को प्राप्त होते है और मेरा पूजन करने वाले भक्त हमको प्राप्त होते है ।
कुल सार सर्वस्व ये है कि मनुष्य को कभी किसी मनुष्य की उपासना नही करनी चाहिए ।
चाहे वह मृत हो या जीवित मनुष्य गुरु बन सकता है भगवान नही । भगवत मार्ग दिखाये तो गुरु है और खुद को ईश्वर बताये तो राक्षस है ।

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