Thursday 31 August 2017

दहेज़ लेने से समस्त पुण्य हो जाते है नष्ट

आज हम हिन्दू धर्म के 15वें संस्कार विवाह से जुड़ी कुछ बातों के बारे बताते है । वैसे हिन्दू धर्म में 8 प्रकार के विवाह होते है । जिनका शास्त्रों में वर्णन है, ब्रह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गान्धर्व, राक्षस, पिशाच ,, ये आठ प्रकार के विवाह होते है ।
1- पढ़े लिखे को वस्त्र आभूषण पहना कर पूजन करके कन्या दान करने को ब्रह्म विवाह 2- वेद पाठी, यज्ञ करने वाले को वस्त्र आभूषण  देकर पूजन करके कन्या दान को दैव विवाह
3- गाय बैल, घोड़े के जोड़े देकर विधि पूर्वक कन्या दान करना आर्ष विवाह है ।
4- दोनों पक्ष के लोग यह कहें कि दोनों खूब धर्म करो और पूजन के साथ कन्या दान करें यह प्राजापत्य विवाह है।
5- कन्या पक्ष की शक्ति के आधार पर उनकी प्रशन्नता से  वरपक्ष दान लेकर विवाह करे आसुर विवाह है।
वैसे इस प्रकार से भी इस विवाह को निन्दित ही कहा गया है, जब ये निन्दित है तो आज के समाज में विवाह नही व्यापार हो गया है, लड़की का जन्म होना श्राप हो गया है । कोई भी व्यक्ति ये नही चाहता कि उसे लड़की हो उसका कारण है ! दहेज समाज का ऐसा विष है जो कि धर्म को भी धूमिल करता है । देखा जाय तो विवाह दोनों पक्ष करते है। पर वर पक्ष की दृष्टि यही रहती है कि पूरे विवाह का खर्च ले और साथ साथ उनके ऊपर जिन्दगी भर का भार थोप दें । ये आज के विवाह की मंसा हो गई है । अनपढ़ ही नहीं पढ़े लिखे भी इस श्रेणी में आगे रहते है । परंतु जहां पर कन्या पक्ष से अत्यधिक मांग से विवाह होता है इसे एक दम निन्दनीय कहा गया है । ऐसे विवाह से दोनों पक्ष पाप की दृष्टि में आते है । जितना मांगने वाला दोषी है उतना ही देने वाला क्यों कि ऐसे विवाह में कोई देवता साक्षी नहीं बनता । क्यों कि किसी पे मन मानी बल का प्रयोग होता है तो वह अधर्म की श्रेणी में आ जाता है । और जहां अधर्म हो रहा वहां कोई देव नहीं आता । दहेज देना लेना दोनों ही पाप है , कितना भी धर्म करो इससे मुक्ति नहीं मिलती । दोनों पक्ष के लोग जो संकल्प लेते देते है , वो और वर वधू चारो ही पाप की श्रेणी में आते है । इस लिए कन्या पक्ष जितना अपनी इच्छा से दे उतना ही लेना चाहिए । कुछ लोग इसको कहते है कि जो कन्या के विवाह में नही देता वह अपनी लड़की को समझो बेच दिया, तो ये सर्वथा गलत है । बल कि कन्या पक्ष को तो कन्या दान का फल मिलता ही है साथ वर पक्ष भी पुण्य की दृष्टि में आ जाते है। प्रमाण -
यासां नाददते शुल्कं ज्ञातव्यो न स विक्रयः ।
अर्हणं तत्कुमारीणानृशंस्यं च केवलम् ।।
जातिवाले जिन कन्याओं पर शुल्क नहीं लेते वह बेचना नही है । वह तो कन्याओं का पूजन और हिंसारहित कर्म है , अर्थात दया का काम है ।।
6- कन्या और वर अपनी इच्छा से संबंध बनाते है उसे गंधर्व विवाह कहते है ।
7- लड़की के घर वालों को मार कर या उनके शरीर को चोट पहुंचा कर जो लड़की को उठा ले जाता है यह राक्षसी विवाह है ।
8- सोती हुई को लड़की बेहोश किया जाय या बल का प्रयोग करके सम्बन्ध बनाया जाय यह पिशाच विवाह में आता है । अन्तिम दोनों को शास्त्रों में निन्दनीय कहा है ऐसा करने वाला महा पापी होता है वह कितना भी धर्म दान कर ले उसे 1000 वर्ष की पिशाच योनि में भोगना पड़ता है । ऐसे लोगों के हाँथ जल भी नही ग्रहण करना चाहिए ।।
ब्रह्म, दैव, प्राजापत्य, और गान्धर्व ये चार विवाह उत्तम और अच्छे बताये गए है । इनके अतिरिक्त चारो विवाह त्याज्य है ।
कन्या की इच्छा से वर के हाँथ में कन्या का हाँथ देने से पाणिग्रहण संस्कार है होता इसी से विवाह पूर्ण होता है या कहिये मान्य होता है ।
यदि आज के समय की बात करें , जो हो रहा है तो विवाह में अधिकधिक धन का व्यय किया जाता है कि विवाह हो रहा है । आये हुए लोगों पर अनावश्यक धन का व्यय होता है । जब कि आवाहित देवता के ऊपर अक्षत मात्र से ध्यान कर लिया जाता है कि कितनी जल्दी पूजन समाप्त हो, बिचार करिये जिसको अपने साक्षी माना विवाह किया उनको तो आपने समय ही नही दिया । क्या होगा ऐसे विवाह का भविष्य?, इस लिए जो करिये अच्छे से नही तो नही । वैसे भी इसी लिए गान्धर्व विवाह को उत्तम बताया गया क्यो की उसमें दान दहेज नहीं चलता । जिन विवाहों में वर पक्ष की इच्छा से दान लिया जाता है । उस विवाह को आसुर विवाह ही कहा जायेगा आसुर विवाह और पिशाच विवाह के मिलने वाले पाप एक जैसे ही है । इस लिए दहेज नही लेना चाहिए ।


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