Monday 25 November 2019

श्री काल भैरवनाथ मन्दिर गोवा

आज हम गोवा के काल भैरवनाथ जी के एक अत्यन्त प्राचीन मंदिर की बात करेंगे जहाँ पर सबसे मुख्य बात मन्दिर से प्राचीन वहाँ पे बाबा की मूर्ति है । ऐसा नही है की मन्दिर प्राचीन नहीं है, पर वहां के स्थानीय लोगों और विशेषतयः पुजारी के अनुसार मन्दिर से भी प्राचीन वहाँ पे बाबा की मूर्ति है ।
जिसको देखने पे ही एक अलग ही आभा का अनुभव होता है । यदि आप थोड़ी भी बाबा की सेवा करते हो तो उस मूर्ति में एक खिंचाव का अनुभव कर सकते हो । ऐसे ही हम गोवा की तरफ गये और गूगल के माध्यम से पता चला की यहां कहीं हमारे आराध्य का मन्दिर है । वैसे तो गोवा में और भी भैरव मन्दिर का विवरण है । पर नार्थ गोवा का ये मन्दिर और खास कर इस मन्दिर की मूर्ति तो अद्भुत है, शब्द नहीं है । मैं गया देखा और बाबा को देखते ही हृदय आनन्दित हो गया । एक पुजारी बैठे थे मराठी भाषा में कुछ वार्ता कर रहे थे । फिर हमने उनसे अपने बारे में बताया उसके पश्चात उन्हों ने बैठने को कहा मैं बैठ गया फिर मैं देख रहा था की पुजारी जी बाबा जी के तरफ देखते है और मराठी में कुछ बोलते है और अन्दर की तरफ देखते रहते है । मूर्ति की तरफ ! फिर हमने भी ध्यान से देखा तो मूर्ति के किनारे किनारे पे कुछ फूलों की कलियाँ चिपकाई थी । इतने में मूर्ति के दाहिने तरफ की एक कली गिरी और पुजारी ने बैठे व्यक्ति से कुछ कहा । इसी प्रकार कई लोग वहां बैठे थे । फिर पुजारी जी ने देखा की मैं उन्हें बड़े ध्यान से देख रहा तब उन्हों ने बताया की यहां लोग आते है और प्रश्न करते है मैं बाबा को उनकी बात कहता हूँ जैसा संकेत मिलता है वही बता देता हूँ । कहा सब करने कराने वाले बाबा ही है । मैं उनको साक्षी मानकर जो प्रश्न करते है उनको बता देता हूँ । फिर पुजारी ने देखा की मैं अष्टोत्तरशतनाम का पाठ कर रहा तो वो अंदर से एक पुस्तक लेकर आये और कहा इसमें ये है । पर १०८ नाम अलग अलग नही है । तब हमने उनसे कहा ये पाठ किया करिये अधिक से अधिक करिये सिद्ध स्थान है सिद्धि तक का सरल मार्ग है । तब पुजारी ने कहा, ये पाठ तो यहाँ कोई नही पढ़ पायेगा हम सात्विक ब्राह्मण है बस बाबा की सेवा करते है । सात्विक रूप से तान्त्रिक ज्ञान नहीं है । हम यही सोचने लगे बाबा की भी माया निराली है । ज्ञान का अभाव है, न रूप देखा, न देश, न दिशा न कोई विद्वान सब अलग है । पर बाबा की ही माया है की वो अपनी सेवा करा ही ले रहे । इतना बहुत अच्छा लगा की पुजारी सेवा बहुत ही भाव से करते है । और हमारे बाबा इसी के भूंखे है । उनकी माया अपरम्पार है । फिर बाबा का दर्शन किया बाहर आया तो मंदिर के पीछे की तरफ एक और मन्दिर था । पता चला ये विष्णु भगवान का मंदिर है। वह भी अत्यन्त प्राचीन था । वहां एक पुजारी थे और एक आदमी बैठा था । उसकी आवाज में बड़ी ऐंठ थी । वहां के बारे में बताने लगा फिर कुछ देर बोला फिर कहा आपका परिचय हम मिथ्या बोल नहीं सकते थे मन्दिर में थे तो हमने अपना परिचय दिया तो वो एकाएक ठंढा हो गया कहा मैं भी एक तान्त्रिक हूँ लम्बी लम्बी बताने लगा मेरे पास ये आते है कई फ़ोटो दिखाया । हमने कहा अरे वाह चलिए आपतो बहुत आगे हो फिर कहा क्या आप हमें कुछ बता सकते हो हमें कुछ बड़ी विद्या सिखाओ हमने कहा आप जो कर रहे वही करो आप बहुत आगे हो । वहां से हम हटे फिर देखा बहुत ही आनन्द दायक स्थान था प्रदूषण एकदम नहीं । वहां के बारे में जानकारी लेने लगा तो कथा कथित बातों के अनुसार यह मूर्ति अनुमानतः ३५० वर्ष पुरानी है ये पहले मद्रास में थी वहाँ इनकी सेवा पूजा होती थी । मुगलशासन काल में वह  मन्दिर तोड़ दिया तो यह मूर्ति गोवा में खेनिर (वर्तमान नाम) के पास एक गांव में लाकर रखी गई वहीं पूजा होती थी। उसके बाद शिवा जी महाराज के समय इसे यहाँ स्थापित कराया गया ऐसा वहां के लोगों ने बताया की स्वयं शिवा जी महाराज ने बाबा की इस प्रतिमा को यहां स्थापित किया । इस घटना का हमारे पास कोई प्रमाणित तथ्य नहीं है। वहां के लोगों के अनुसार ही मैंने इस आख्यान को अक्षादित किया। हाँ इतना अवश्य अपने पक्ष से कहूँगा की मूर्ति जागृत है ये हमारा अनुभव है । दर्शन करने पर आनन्द की अनुभूति अवश्य होगी । नार्थ गोवा में बागा बीच से 21 किलो मीटर की दूरी पर गोवा से मुम्बई राष्ट्रीय राज्य मार्ग पर धारगल गांव में यह स्थित है । जय बटुक भैरवनाथ 🙏
किसी भी भैरवनाथ की सेवा या अन्य जानकारी के लिए इस ईमेल से सम्पर्क स्थापित कर सकते है ।
ashwinitiwariy@gmail.com



Tuesday 16 July 2019

अष्टोत्तरशतनाम सिद्धि का आधार ।। ashtottarshatnam siddhi ka adhar

आज का हमारा विषय है अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र यह स्तोत्र नही अपितु भैरव सिद्धि का मूल आधार है । यह भी कह सकते है की इसके बिना बाबा की सिद्धि कठिन होती है । मूल मंत्र को इस पाठ के साथ मिला कर करने से कठिन से कठिन कार्य में सफलता प्राप्त होती है । इस पाठ को करने से धन और यश लाभ प्राप्त होता है। भगवान श्री बटुकनाथ जी गुरु रूप धारण कर लेते है । ११००० पाठ करने से इस पाठ की सिद्धि हो जाती है । इतना अवस्य ध्यान रखें की उच्चारण शुद्ध होना चाहिए । यदि आपके पास कोई मार्ग दर्शक है तो उसके संरक्षण में करें । मार्ग दर्शन पूर्ण रूप से बाबा की सेवा पूजा और सिद्धि का ज्ञाता होना चाहिए । इस पाठ को सिद्ध करने के लिए मुख्य समय है, कृष्ण पक्ष की रात्रि व्यापिनी अष्टमी से इस पाठ को प्रारम्भ करें और २१ दिन में अंदर में इसे ११००० की संख्या में करके पूर्णा हुति करें तदोपरान्त दैनिक रूप से पाठ करते रहने से साधक सिद्धि को प्राप्त करता है । इस पाठ को जप और न्यास मुद्रा के साथ करने से साधक कई प्रकार की सिद्धियों को अपने वश में कर लेता है । वह जो सोचता है समय उसके अनुरूप हो जाता है । यह पढ़ने के बाद एक कल्पना लगता है की ऐसा कैसे हो सकता है पर यह एक अटल सत्य है । जिसमें कोई संदेह नहीं है । एक बार बाबा की भक्ति में आप लीन हो गये तो बाबा हर प्रकार के दुःखों का नाश कर सुख, समृद्धि, धन, वैभव, सौन्दर्य, निरोगी काया, कुटुम्ब की रक्षा और वृद्धि प्रदान करते है ।

तान्त्रिक क्रिया का परिहार
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यदि किसी तान्त्रिक ने किसी के ऊपर तन्त्र क्रिया किया है ।
या किसी स्थान पे अरिष्ट बाधा का दोष है । या राहु, केतु,शनि की ग्रह पीड़ा से परेशान है तो अष्टोत्तरशतनाम का पाठ भैरव सप्ताह में करें कृष्ण पक्ष की रात्रि व्यापिनी अष्टमी से रात्रि व्यापिनी चतुर्दशी तक प्रति दिन १०० पाठ करें । हर १० पाठ के बाद एक माला जप करें और उसके बाद घी और सरसों के दाने को मिला के १०८ आहुति हवन करें । ११ बार तर्पण करें । १ बार मार्जन । इस प्रकार आपका अनुष्ठान पूरा होगा । और नित्य प्रति यथा शक्ति जप पाठ करते रहने से सुख शान्ति और वृद्धि का वास होगा ।

पाठ करने की विधि
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सर्व प्रथम स्नान करके सफेद या पीला रंग छोड़ किसी भी रंगीन वस्त्र में खास कर काला , लाल , नीला वस्त्र धारण कर दक्षिणाभिमुख बैठ कर बाबा के मूल मंत्र को बढ़ के आचमन करें ।
फिर हाँथ में जल लें और  ११ बार मन्त्र पढ़ कर जल को चारो चारो तरफ अभिसिंचित कर लें । इसके बाद विनियोगः करें फिर न्यास करें । न्यास के बाद बाबा का ध्यान करें । ध्यान के बाद पाठ करें । यदि आप १ से अधिक पाठ के लिए बैठे हैं तो विनियोगः और न्यास ध्यान मात्र प्रारम्भ में किया जायेगा , उसके बाद पाठ का १४ श्लोक ही पाठ किया जायेगा उसी की आवृत्ति करते रहना है जब आपका अन्तिम पाठ हो तब फल श्रुति १ बार पढ़नी है । यह क्रम है । परन्तु यदि आपको बीच में मलया मूत्र  के लिए उठना पड़े तो  मल के बाद स्नान और मूत्र के बाद गुप्तांग प्रक्षालन करके पाठ के पहले का जितना क्रम बताया गया है वह पुनः करना पड़ेगा खास कर मल जाने के बाद ।।

अष्टोत्तरशतनाम पाठ
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विनियोगः
बटुकभैरवस्तोत्रमन्त्रस्य बृहदारण्यक ऋषिः अनुष्टुप्छन्द: श्रीमदापदुद्धारक-बटुकभैरवो देवता वं बीजं ह्रीं बटुकाय इति शक्ति: प्रणवः कीलकं ममाभीष्टसिद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

  अथ ऋष्यादिन्यास:
बृहदारण्यकऋषये नमः    - शिरसि
अनिष्टुप्छन्दसे  नमः         - मुखे
बं बीजाय नमः                - गुह्ये
ह्रीं बटुकायेति शक्तये नमः - पादयो:
ॐ कीलकाय नमः           - नाभौ
विनियोगाय नमः             - सर्वाङ्गे

आथ करन्यास:
ॐ ह्रां वां   - अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ॐ ह्रीं वीं   - तर्जनीभ्यां नमः
ॐ ह्रूं  वूं    - मध्यमाभ्यां नमः
ॐ ह्रैं  वैं    - अनामिकाभ्यां
ॐ ह्रौं वौं   - कनिष्काभ्यां नमः
ॐ ह्रः वः   - करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः

आथ ह्रदयादिषडङ्गन्यास:
ॐ ह्रां वां हृदयाय नमः
ॐ ह्रीं वीं शिरसे स्वाहा
ॐ ह्रूं वूं   शिखायै वषट्
ॐ ह्रैं वैं   कवचाय हुम्
ॐ ह्रौं वौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ॐ ह्रः वः अस्त्राय फट्

मूल पाठ -
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ॐ ह्रीं भैरवो भूतनाथश्च भूतात्मा भूतभावन:।
क्षेत्रज्ञ:  क्षेत्रपालश्च   क्षेत्रद   क्षत्रियो विराट् ॥ १॥
श्मशानवासी मांसाशी  खर्पराशी स्मरान्तक:  ।
रक्तप: पानप: सिद्ध:    सिद्धिद: सिद्धसेवितः ॥२॥
कंकालः कालशमन:    कलाकाष्ठातनु: कवि:।
त्रिनेत्रो बहुनेत्रश्च     तथा पिङ्गललोचन:      ॥ ३॥
शूलपाणि: खड्गपाणि:     कंकाली धूम्रलोचनः।
अभीरुः भैरवीनाथो       भूतपो योगिनीपतिः ॥ ४॥
धनदोऽधनहारी च       धनवान् प्रतिभानवान् ।
नागहारो नागपाशो     व्योमकेशः कपालभृत् ॥५॥
कालः कपालमाली च    कमनीयः कलानिधिः।
त्रिलोचनो     ज्वलन्नेत्रस्त्रिशिखिः च त्रिलोकपः ॥६॥
त्रिनेत्रतनयो   डिम्भः शान्त:  शान्तजानः प्रियः।
बटुको       बहुवेषश्च        खट्वाङ्गवरधारकः ॥७॥
भूताध्यक्षः       पशुपतिः भिक्षुकः  परिचारकः।
धूर्तो    दिगम्बरः शौरिर्हरिणः   पाण्डुलोचनः ॥८॥
प्रशान्तः    शान्तिदः   शुद्धः  शंकरः प्रियबान्धवः।
अष्टमूर्तिनिधीशश्च         ज्ञानचक्षुस्तपोमयः ॥९॥
अष्टाधारः   षडाधारः   सर्पयुक्तः  शिखीसखा।
भूधरो   भूधराधीशो       भूपतिर्भूधरात्मजः ॥१०॥
कंकालधारी   मुण्डी च      नागयज्ञोपवीतकः।
जृम्भणो मोहनस्तम्भी  मारणः   क्षोभणस्तथा ॥ ११॥
शुद्धो नीलाञ्जनः प्रख्यो   दैत्यहा    मुण्डभूषितः।
बलिभुग्बलिभुंनाथो       बालोऽबालपराक्रमः ॥१२॥
सर्वापत्तारणो     दुर्गो          दुष्टभुतनिषेवितः।
कामी कलानिधिः कान्तः    कामिनीवशकृद्वशी ॥१३॥
जगद्रक्षाकरोऽनन्तो          मायामन्त्रौषधीमयः।
सर्वसिद्धिप्रदो वैद्यः प्रभर्विष्णुरितीव हि ह्रीं ॐ॥१४॥

फलश्रुतिपाठ -
अष्टोत्तरशतं नाम्ना भैरवस्य महात्मनः।
मया ते कथितं देवि रहस्यं सर्वकामदम्।।
य इदं पठति स्तोत्रं नामाष्टशतमुत्तमम्।
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न रोगेभ्यो भयं भवेत्।।
न च मारीभयं किञ्चिन्न च भूतभयं क्वचित्।
न शत्रुभ्यो भयं किञ्चित् प्राप्नुयान्मानवः क्वचित्।।
पातकेभ्यो भयं नैव यः पठेत् स्तोत्रमुत्तमम्।
मारी भये राजभये तथा चौराग्निजे भये।।
औत्पातिके महाघोरे तथा दुःस्वप्नदर्शने।
बन्धने च तथा घोरे पठेत् स्तोत्रमनुत्तमम्।।
सर्वप्रशममायाति भयं भैरवकीर्तनात्।
एकादशसहस्रन्तु पुरश्चरणमुच्यते।।
यस्त्रिसंध्यं पठेद्देवि संवत्सरमतन्द्रितः।
स सिद्धिं पाप्नुयादिष्टां दुर्लभामपि मानवः।।
षण्मासं भुमिकामस्तु जपित्वा प्राप्नुयान्महीम्।
राजशत्रुविनाशार्थं पठेन्मासाष्टकं पुनः।।
रात्रौ वारत्रयं चैव नाशयत्येव शात्रवान्।
जपेन्मासत्रयं मर्त्यो राजान वशमानयेत्।।
धनार्थी च सुतार्थी च दारार्थी चापि मानवः।
पठेन्मासत्रयं देवि वारमेकं तथा निशि।।
धनंपुत्रं तथा दारान् प्राप्नुयान्नात्र संशयः।
रोगी रोगात् प्रमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात्।
भीतो भयात् प्रमुच्येत तत्तदापन्न आपदः।।
निगडैश्चापि बद्धो यः कारागृहनिपातितः।
श्रृंखलाबन्धनं प्राप्तः पठेच्चैव दिवानिशम्।।
यान् यान् समीहते कामाँस्ताँस्तानाप्नोति मानवः।
अप्रकाश्यं परं गुह्यं न देयं यस्य कस्यचित्।।
सुकुलीनाय शान्ताय ऋजव दम्भवर्जिते।
दद्यात् स्त्रोत्रमिदं पुण्यं सर्वकामफलप्रदम्।।
य इदं पठते नित्यं धनधान्यमवाप्नुयात्।
-------------ॐ ह्रीं बटुकाय ह्रीं ॐ---------------

Wednesday 1 May 2019

सियार सिंघी को सिद्ध करने का तरीका

आज मैं आपको तन्त्र के एक प्रयोग रूपी सामग्री या वस्तु जो भी कहें उसके तरफ लेके चलता हूँ । जिसका नाम सियार सिंघी है । लोग इसको लेकर बहुत ही जिज्ञासु रहते हैं की आखिर ये है क्या और इसका प्रयोग क्या है ? इससे होता क्या है ? हमारे श्री बटुक जी के कुछ साधक भी इसके बारे में जिज्ञासु हुए की आखिर ये है क्या ? गूगल यू ट्यूब पर बहुतायत की मात्रा में लेख और चल चित्र पड़े है। की इसके माध्यम से आप करोड़ पती या कहे धन पती हो जायेंगे । क्या यह सत्य है तो हमें इसके सन्दर्भ में जानकारी चाहिए । फिर हमने भी कुछ लेख और चलचित्र देखा की कुछ लोग कह रहे की 1 लाख दीजिये सिद्ध करके देता हूँ । सिद्धि का माध्यम बताता हूँ । सियार के सर से निकाल के आपको देता हूँ वीडियो काल पे आप रहना आपके सामने सियार के सर से निकाल के सिद्ध करके आपको देता हूँ । सुन के बहुत दुख हुआ की इतना तुच्छता पे मनुष्य आ गया है तन्त्र का त भी नहीं आता और सीधे सिद्धि की बात कर रहे । सियार सिंघी मिल भी जाए तो इस प्रकार का प्रयोग करके आप कभी सिद्धि नहीं पा सकते और कभी किसी साधना सिद्धि का व्यापार नहीं होता वह स्वयं के प्रयोग के लिए होती है । बेंचने या बांटने के लिए नहीं । अब हम अपने विषय पे चलते है । विषय था सियार सिंघी तो सियार सिंघी शब्द से प्रतीत होता है की सींघ की बात हो रही जब की सियार के तो सींघ होती नहीं फिर किस सींघ की बात हो रही तो सियार के मस्तक के बीच में जहाँ और पशुओं के सींघ होती है उसके मध्य का भाग जो होता है वहाँ सियार सिंघी होती है जिसे सियार के मृत्यु के पश्चात निकाली जाती है । और इसमें सींघ होती है चालव के बराबर जिसे कुछ लोग दाँत भी कहते है । इसी कारण इसे सियार सिंघी कहते हैं । यह स्वेत या काले रंग की होती है या दोनों रंग भी हो सकती है । पर यह बहुत दुर्लभ चीज है ।
इसके लाभ, हानि  और नियम -
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● जिस भी कार्य या वस्तु की इच्छा है उसको साधक के तरफ   आकर्षित करती है ।
● जिस देवता को आप आराध्य मानते है उनका जप इसके समीप करें ये स्वतः सिद्ध हो जायेगी ।
● ध्यान दें देवता वैष्णव नहीं हो या आपके गुरु का जो आदेश उसके अनुसार करें । हमारे अनुसार 10 विद्या, श्री बटुक भैरवनाथ, 64 भैरव में कोई भी या शिव के समीप ही ये क्रिया करना श्रेयस्कर होगा ।
● स्पष्ट रूप से जान लें यह एक तान्त्रिक क्रिया है ।
● एक छोटी सी त्रुटि आपको लाभ से हानि के तरफ ले जाएगी ।
● जब यह मिले तो किसी भी भैरव या देवी के मन्दिर एक बार जरूर लेकर जायें क्यों की इसके साथ बाधायें भी आ सकती है ।
● एक बार यह सिद्ध हो गई तो आपके लिए कवच बन जाती है ।
● ऐसा भी नहीं है की सिद्ध होने के बाद स्वतः कार्य करेगी इसके लिए आपको अपने आराध्य की सेवा जप निरन्तर करते रहना है । तभी ये और शक्ति शाली बनेगी ।
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किसी भी दूरी को शीघ्र तय करने के लिए जिस प्रकार एक अच्छे वाहन का होना अनिवार्य है। उतना ही अनिवार्य होता है उसको चलाने वाला । इसी लिए सियार सिंघी वह वाहन का कार्य करेगी और आप को चालक बनना है । इष्ट की अभीष्ट भक्ति और जो भी कार्य करते है उसमे तन मन से जुटिये ।
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सियार सिंघी को किस प्रकार सिद्ध करके रखें
★ सियार सिंघी पे थोड़ा सा पवित्र जल लेकर अभिसिंचित कर दें । ध्यान रहे स्नान नही कराना ।
★ सर्व प्रथम एक पत्र लें अष्टधातु में किसी भी धातु का पत्र हो प्लेट या कटोरी की आकृति का उसमें भारी वाला सिंदूर रख दें ।
उसके बाद एक दीपक जला दें और उसके बाद सिंदूर पे सियार सिंघी विराजमान करें । उसके बाद धूपबत्ती से धूप दिखायें इसके बाद इत्र लगी रुई को सियार सिंघी के ऊपर फैला दें ।
फिर इस पात्र को किसी उच्च स्थान पे रख दें । जहाँ सबकी दृष्टि और हाँथ न पहुंचे । और स्थान वह हो जहाँ मध्य रात्रि में पूजन होता हो, फिर जब कोई भी महीने की भैरवाष्टमी आयेगी उससे अमावस्या तक का समय उस पूजन स्थल पर रहने से ये सिद्ध हो जाती है । इतना ध्यान रहे की यदि यह सिद्ध न हुई तो प्रेत सम्बंधित शक्तियाँ वहाँ स्थान बना लेती है । तो उस घर में धन हानि होगी । परिवार में कहल रहेगा । यदि लड़कियां व्याही गई तो वो अपने ससुराल में जा के भी परेशान रहेंगी । हम कह सकते है की उस सियार सिंघी को जो रखता है वो जिसको अत्यधिक मानता है उसके ऊपर भी इसका प्रभाव पड़ता है । इस प्रकार कई संकट आ सकते है । इस लिए साधना सिध्दि पे तन मन दोनों को लगा के ही करें । यदि साधक इस साधना को सही से कर ले गये तो इस प्रकार के समस्त सुख स्वतः आपकी तरफ माध्यम बन कर आने लगेंगे।
जय श्रीबटुकभैरवनाथ

Friday 11 January 2019

कर्णपिशाचिनी साधना

कर्णपिशाचिनी साधना से निमित्त मेरे पास बहुत लोग आते है की! मैं इनकी साधना करता हूँ या करना चाहता हूँ । कर्णपिशाचिनी के नाम से ही अर्थ स्पष्ट है की साधक के कान में एक पिशाचिनी देवी आकर बोलती है । और अगर वो प्रशन्न हो गई तो साधक द्वारा प्रदब्त प्रश्न को स्पष्ट रूप से बता देती है । बस बात इतनी है की ये भविष्य को छोड़ सब कुछ बताने में सक्षम होती है । अब ये कौन होती है उसके बारे में बताता हूँ । ये भगवती की अवतार 10 महा विद्या की उपासना करते हुए जो स्त्री साधक शरीर छोड़ देती है, या कहें किसी कारण वश वो अकाल मृत्यु के कारण शरीर छोड़ती है तो मृत्यु के बाद भी, उनकी साधना करती है क्यों की अकाल मृत्यु के कारण उसे मुक्ति नहीं मिलती तो माता रानी उसे अपनी प्रचारक या दासी बना लेती है । जो साधक भगवती की उपासना करते हुए इनकी उपासना करते है । उससे ये प्रशन्न हो जाती है और उसके पास चली जाती है । फिर वह इनके द्वारा चमत्कार दिखाता है और सबका बीता कल बताने में सक्षम हो जाता है । तो इनके माध्यम से वह ख्याति और धन का संचय करने लगता है । आप लोगों ने एक चीज पे ध्यान दिया होगा कुछ ज्योतिषी बने रहते है और आपका बीता कल जो भी व्यतीत हुआ उसके बारे में बता देते है की नाम क्या है क्या खाया आदि पर भविष्य नही बता सकते । ऐसे ही पूरे देश में बहुत से लोग इस मार्ग की चाह में साधना में लगे दिखते है। कर्णपिशाचिनी देवी के दश प्रकार होते है । 1 - श्मसान वासिनी, 2 - पर्वत वासिनी ,3- वन वासिनी, 4- वट्वृक्ष वासिनी, 5- बिल्ववृक्ष वासिनी, 6 - भागवत या पुराण कथा  स्थल , 7- मल मूत्र स्थान, 8- देवी मन्दिर , 9- मछली विक्रय स्थल,10- अष्टवीर स्थान । इनका कोई भी प्रकार हो सब ही अपने में शक्ति शाली होती है । जैसा की मैं सदैव कहता हूँ की बिना गुरु मार्ग दर्शन के तंत्र के किसी भी मार्ग का अनुशरण न करें । क्यों की आपके लिए मृत्यु तुल्य या मृत्यु दाई हो सकता है । इस साधना के लिए आपके गुरु जो मन्त्र दें वह मंत्र लेकर, अष्ट मुद्रा होती है उनको दिखाना होता है । श्मसान या एकान्त में 8000 मंत्र जप करना होता है । इससे 21 दिन में देवी सिद्ध होने लगती है । कुछ ग्रंथों में प्राप्त होता है की अगर साधक का कोई देवी देवता रक्षक नहीं है तो उसको अंत समय में अपने साथ लेके जाती है । इस लिए सभी साधको को हम एक सलाह दे रहे की बिना योग्य जानकर के इस साधना के तरफ न जायें, और यदि कोई जानकर मिल भी जाए तो बिना किसी देवी देवता की सिध्दि के बिना इस मार्ग पर न जायें । आपको एक बात और स्पष्ट बता दूं कि ऐसा मैं क्यों कह रहा कर्णपिशाचिनी बहुत ही अच्छी है पर यदि कोई देव रक्षक नहीं हुआ तो इनके साथ 500 प्रेत रहते है जो आपको परेशान भी करेंगे और साधना भी सिद्ध नहीं होने देंगे । और अगर आपने सब सही कर लिया फिर आगे भी सावधानी से करें, क्यों की जब ये आती है तो पूंछती है की आप हमें किस रूप में स्विकार करेंगे । 1- जननी (माता), 2- भगनी ( बहन),3 - भार्या (पत्नी) अब साधक इनको देख के मोहित हो उठता है क्यों की ये इतनी सुन्दर दिखती है की वैसा धरती पे कोई नारी दिख ही नहीं सकती, इसके कारण पिशाचिनी विवाह कर लेती है और प्रतिदिन रात्रि में वह साधक के पास आती है । अब इसमें डर ये है की साधक फिर विवाह नहीं कर सकता अगर विवाह हो चुका है तो अपनी पत्नी को छू भी नहीं सकता, अगर छुआ तो भगवान ही मालिक है । इस लिए हमारी राय है मातृ भाव से ही साधना करनी चाहिए । इसके अतिरिक्त कुछ नहीं, माता के भाव से करने पर वो आपका माता की तरह ध्यान रखेंगी । 

बहुत से साधक कहते है हम कई वर्षों से साधना कर रहे कुछ नहीं हो रहा । तो आपको बता दें आपके मार्ग में गलती है या आप साधना के भाव से नही मात्र स्वार्थ के बारे सोचते हो की जल्दी हो जाए मैं करोड़ पति बन जाऊं ऐसे साधकों की कभी कोई साधना सिद्ध नहीं होती । साधनायें सदैव भाव की भूंखी होती है । 

अब मैं अपने श्रीबटुकनाथ जी के साधकों को बता दूं यदि आप बाबा की पूजा किसी और साधना को करने के लिए कर रहे तो ये साधना आप कर सकते हो ।

और यदि आप अपना आराध्य श्रीबटुकभैरवनाथ जी को मानते हो तो आप इस प्रकार की कोई भी साधना नहीं कर सकते क्यों की बाबा अपनी उपासना साधना के साथ किसी की भी साधना उपासना को स्वीकार नहीं करते वरना नाराज हो जाते है । क्यों की बाबा ब्रह्माण्ड के राजकुमार है उनके सामने आप किसी सिपाही की आराधना करोगे तो वो कैसे खु:श होंगे , वो नाराज हो जायेंगे ।  ऐसी बहुत सी घटनाओं के माध्यम से हमनें सीखा और जाना की भगवान शिव जितने बड़े सत्य हैं, उतना ही उनके बाल रूप भगवान श्री बटुकभैरवनाथ जी तन्त्र साधना के सबसे बड़े देवता है यह भी अटल सत्य हैं । इनसे तन्त्र में कोई मार्ग बंचित नहीं रहता सभी सिद्धियाँ स्वतः ही धीरे धीरे साधक को पकड़ लेती है । लाखों प्रेत बाबा की अगुवाई करते है ऐसे देवता को छोड़ किसी की साधना की जाय मैं इसकी राय किसी को नहीं देता । समूचा ब्रह्माण्ड जिनके चरणों में उनको छोड़ कोई सुख और कहाँ मिल सकता है । पर एक तांत्रिक होने के नाते मैं किसी को रोकने का अधिकारी नहीं हूँ की आप ये साधना न करो हमसे पूंछोगे तो मैं आपको बताऊंगा । मन में आया तो धीरे धीरे सभी साधनाओं के बारेमें लेख डालूंगा । पर मेरा अनुभव जो कहता है उसके दो चार शब्द प्रगट कर दिया । जय बटुकभैरवनाथ