Saturday 26 September 2020

श्री बटुक भैरवनाथ यन्त्र महात्म्य भाग -2

 भगवान श्री बटुक भैरवनाथ जी का यन्त्र सुख संवृद्धि को प्रदान करने वाला पाप ग्रहों का प्रभाव समाप्त करने वाला जीवन को नई दिशा प्रदान करने वाला है । 

प्रथमपद् में हम भगवान के स्वरूप की उपासना करते है । 

करकलितकपालः कुण्डली दण्डपाणिः , 

तरुणतिमिरनीलो व्यालयज्ञोपवीती । 

क्रतुसमयसपर्या विघ्नविच्छेदहेतुः , 

जयति बटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ॥ 

हाथों में कपाल और दण्ड लिए हुए , कानों में  कुण्डल धारण किये हुए , तरुण अवस्थावाले , घोर अन्धकार के समान नीले बालोंवाले , यज्ञोपवीत को धारण किये हुए , यज्ञ के समय पूजित विघ्नों को नष्ट करने के लिए , साधकों को सिद्धि प्रदान करनेवाले , बटुकभैरवनाथ का पूजन करता हूँ।

इस प्रकार के ध्यान से हम भगवान श्रीबटुकभैरवनाथ जी के स्वरूप का ध्यान करते हैंं। इनकी उपासना के समतुल्य कोई उपासना नहीं है। चराचर ब्रह्माण्ड का समस्त सुख बाबा के चरणों में रहता है। बाबा का सम्पूर्ण पूजन नीराजन सम्यक प्रकार यन्त्र पूजन में ही सन्निहित है। यन्त्र उपासना से भगवान श्री बटुक भैरवनाथ सपरिवार प्रसन्न हो जाते है । किसी भी देवी या देवता के सहचर देवी देवता प्रमुख परिवार होते है। उसी प्रकार बटुकनाथ जी के सहचर देवी देवता और गण का पूजन होता है। यह पूजन यन्त्र में ही हो सकता है यन्त्र में सबका स्थान होता है। और उनका विधि प्रकार से पूजन किया जाता है। तन्त्र शास्त्र कहते है -

सन्स्थाप्य तत्र तद्यन्त्रं ध्यात्वा तत्र बटुं प्रिये।

एतद्यन्त्रं  प्रवक्ष्यामि   यन्त्रे देवं  प्रपूजयेत् ।।

पूजन स्थान पर श्रीमद्बटुकभैरव के यन्त्र को (सुन्दर सुसज्जित आसान पर ) स्थापित कर ध्यान करना चाहिए, श्रीमद्बटुकभैरव के यन्त्र को बतलाता हूँ, यन्त्र पर ही श्री बटुकदेव का पूजन करना चाहिए ।।

श्रीमद्बटुकभैरवयन्त्र की व्याख्या करने से पहले इस बात पे प्रकाश डालना आवस्यक है कि यह एक पूर्ण रूप से तन्त्र उपासना है। जिनके आराध्य या इष्ट बाबा हों वही इस यन्त्र को रखे या स्थापित करे। यन्त्र विधान नहीं पता या संस्कृत उच्चारण नहीं सही तो वह साधक अपने गुरु से सम्पर्क कर के ही साधना करे या सबसे अच्छा वह पत्र के यन्त्र पे उपासना करें। 

यन्त्र धातु या रत्न पर बना ले न हो सके तो भोज पत्र  बना के पूजन करें । सोना चांदी तांबा या भोज पत्र पे बने यन्त्र को सामान्य रूपसे भी रख के पूजन किया जा सकता है । ऐसा नहीं है कि पत्र का यन्त्र कम फल देता है रत्न का अधिक दोनों के महत्व बराबर है । साधक के ऊपर है कि वो कितने मन से उपासना करता है ।

परन्तु रत्न पर उभार लिए हुए यदि यन्त्र को स्थापित करते है तो यह सिद्धि तक ले जाता है । 

सभी रत्न उत्तम हैं उनमें से स्फटिक स्वयं में सिद्ध रत्न है और सुख समृद्धि का द्योतक है। क्यों कि स्फटिक शान्ति का प्रतीक है और इसे देवी रत्न माना जाता है, और श्री बटुकनाथ जी को सात्विक रूप में स्फटिक के सदृश्य ही कहा गया है। किन्तु रत्न पर साधना करने वाले साधक को साधना विधि का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है ।

वन्दे बालं स्फटिकसदृशं कुण्डलोद्भासिताङ्गं , 

दिव्याकल्पैर्नवमणिमयैः किङ्किणी नूपुराढ्यैः । 

दीप्ताकारं विशदवदनं सुप्रसन्नं त्रिनेत्रं , 

हस्ताग्राभ्यां बटुकसदृशं शूलदण्डोपधानाम् ॥

स्वच्छ स्फटिक के सदृश , कुण्डल से सुशोभित , दिव्यमणियों से बने हुए नूपूर और किंकिणी से सुशोभित , प्रसन्न , शिव की भाँति पुलकित मुखवाले , कमलवत् करों में सदा शूल और तलवार धारण करनेवाले , बालस्वरूप बटुक भैरवजी का ध्यान करता हूँ ॥

अब यन्त्र का स्वरूप कैसा हो इस तरफ दृष्टि डालते हैं -

यन्त्र में 15 भाग हैं तथा 9 आवरणोंं में सपर्या पूजन होता है ।

बिन्दु -

बिन्दु रूप स्वयं श्री बटुक भैरवनाथ जी है ।

त्रिकोण-

पार्वती + शंकर, लक्ष्मी + विष्णु, सरस्वती + ब्रह्मा विराजमान हैं।

पञ्चकोण -

अघोर, वामदेव, सद्योजात, ईशान, तत्पुरूष विराजमान हैं।

अन्तः पञ्चकोण -

पूर्व, उर्ध्व, उत्तर, दक्षिण, पश्चिम प्रतिष्ठित है ।

षड् दल - गुरु मण्डल :-

सिद्ध शाबरनाथ, सहजानन्दनाथ, निःसीमानन्दनाथ, भूतनाथ, आदिनाथ, आनन्दनाथ विराजमान हैं ।

अन्तः षड्दल- श्री बटुक भैरवनाथ जी का पुत्र रूप में उमादि का पूजन :-

उर्ध्वमुखिपुत्र, अधोमुखिपुत्र, व्यापकोन्मुखिपुत्र, उमापुत्र, रुद्रपुत्र, मातृपुत्र विराजमान हैं ।

इस प्रकार आगे जितने कोण और दल होंगे उतने देवी देवता के साथ श्री बटुकनाथ जी का पूजन होगा । संक्षिप्त में प्रकाश डालता हूँ - 

अष्टकोण - 

काकिनी, शाकिनी, हाकिनी, यकीनी, देवि, डाकिनी, लाकिनी, राकिनी विराजमान हैं ।

अन्तः अष्टकोंण -

चामुण्डा, ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, वाराही, नारसिंही, महालक्ष्मी ( यहीं पर दश महा विद्याओं का भी पूजन होता है )

 अष्टदल -

  रुरु भैरव, चण्ड भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाल, भीषण, संहार, असितांग भैरव विराजमान हैं ।

 षोडश कोण -

 भारभूतेश, अतिथीश, स्थाणवीश, हरेश, झिंटिश, भैतिकेश, अनुग्रहेश, सद्योजातेश, अक्रूरेश, महासेन, कण्ठेश, अनंतेश, सूक्ष्मेश, त्रिमूर्ति, अमरेश, अर्धीश विराजमान हैं ।

 अन्तः षोडश कोण - 

 एकनेत्रेश, चतुराननेश, अजेश, सर्वेश, सोमेश, लाङ्गलीश, दारकेश, अर्धनारीश्वर, उमाकान्तेश, आषाढीश, क्रोधीश, चण्डेश्वर,  शिवोत्तमेश, पञ्चान्तकेश, एकादशरुद्रेश, कूर्मेश विराजमान हैं।

 षोडश दल -

 छालगेश, द्विरण्डश, महाकालेश, वालीश, भुजंगेश, पिनाकीश, खड्गीश, केशवेश, श्वेतेश, भृग्विश, चण्डिश, आन्त्रीश, मीनेश, मेशेष, लोहितेश, शिखीश विराजमान हैं।

 भूपुर के अंदर चारो तरफ दो - दो अष्ट वीर विराजमान हैं।

 भूपुर की प्रथम रेखा -

 भीमरूप , अचल, कराल, वेताल आदि विराजमान हैं।

 भूपुर की दूसरी रेखा - 

 गणेश, क्षेत्रपाल, भैरव, लकुलीशलक्ष्मी, नवदुर्गा आदि विराजमान हैं।

 भूपुर की तृतीय रेखा -

 सोम, इन्द्र, अग्नि, वायु, यम, वरुण आदि विराजमान हैं ।

 जहां भूपुर समाप्त होगा उसके बाद बाबा के अस्त्र रखे हैं - 

 त्रिशूल, पद्म, वज्र, शक्ति, गदा, दण्ड, पाश, चक्र, खड्ग, अङ्कुश, सर्प मेखला ।

 इस प्रकार श्री बटुक भैरव यन्त्र विराजमान होता है । महाशक्ति से सुसज्जित अखण्ड शक्ति से भरा है । प्रतिष्ठित होने के बाद जब साधक की सेवा से यन्त्र सिद्ध हो जाता है तो मणिरूप हो जाता है । यन्त्र प्रतिष्ठित करें तो किसी योग्य जानकार साधक से ही प्रतिष्ठा करायें । जो सेवा नहीं कर सकते मात्र धूप दीप दिखाने के लिए रखना चाहते हैं वह ताम्र, सोना या चाँदी के पत्र पर बनवा कर घर में विराजमान कर सकते हैं । किन्तु जो साधना की दृष्टि से स्थापित करना चाहते हैं, वह गुरु से सीख कर ही करें । 

 

 




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