Thursday 12 May 2022

श्री बटुक साधना से भुक्ति से मुक्ति तक सब सम्भव है |

 

श्री बटुक भैरव एक साधना नहीं अपितु मुक्ति का सुलभ द्वार है, एक साधक जो बटुक भैरवनाथ जी से प्राप्त कर सकता है | वह ब्रह्माण्ड में किसी और से नहीं प्राप्त हो सकता | कल्पतरु भी वो प्रदान नहीं कर सकता जो बटुकनाथ जी प्रदान कर सकते हैं क्योंकि कल्प वृक्ष सब कुछ दे सकता है पर मोक्ष नहीं दे सकता, किन्तु बाबा की साधना उपासना से मोक्ष भी प्राप्त हो जाता है | सातों दिन सात प्रकार के फल प्रदान करतें हैं, रविवार - उच्चपद की प्राप्ति, सम्मान, शत्रु स्तम्भनादि | सोमवार - शीत रोग, कफ़ से मुक्ति एवं वशीकरणादि | मंगलवार – रक्तविकार से मुक्ति, सर्वशत्रु नाश को प्राप्त होते हैं| बुधवार – शारीरिक रोग निवृत्ति, रम्भादि अप्सरायें भी आकर्षित हो जाती हैं | बृहस्पतिवार – लड़कियों के विवाह के लिए, पति सुख के लिए, वृद्धि के लिए, पारिवारिक वशीकरणादि | शुक्रवार – पुरुष वर्ग के विवाह के लिए, पत्नी वशीकरण, पति – पत्नी
में उच्चाटन,  धनप्राप्ति  एवं  अचानक  धन  प्राप्ति के लिए |  शनिवार –  ग्रह पीड़ा निवृत्ति एवं शत्रु मारण के लिए |

इस प्रकार बाबा की साधना से कुछ भी अप्राप्य नहीं है, भूगर्भ का धन भी साधको दृश्य होता है | योग्यगुरु यदि कृपा करे तो साधक चेटिका, वेताल, पिशाचादि को वश में कर सकता है | गृह के अरिष्टकारी बाधाएं बाबा की उपासना से स्थान छोड़ देती हैं, किन्तु इसके लिए बाबा की सिद्धि का होना अनिवार्य है | बाबा की उपासना के साथ में ही अष्टवीरों को जरूर वन्दन एवं नीराजन अनिवार्य है, अन्यथा समस्त पूजन निष्फल हो जाता है | इसी प्रकार अष्ट योगिनियों एवं अष्टभैरवों को भी साथ में प्रणाम करने से साधना और फलवती हो जाती है | साधारण रूप से पूजा पाठ एकसीमा तक फलवती हो सकता है किन्तु साधना में सिद्धि असम्भव है जबतक कि आप किसी योग्य गुरु की  बाबा की मन्त्र दीक्षा न ग्रहण करलें, क्यों की बाबा की साधना में साधक को मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, जो उसे गुरु से प्राप्त होता है , और वही साधक को आगे बढ़ने में सहायक होता है | गत के लेख को पढने के बाद बाबा की साधना उपासना के लिए बहुतायत लोग लालाइत हैं |


 साथ ही हमारे यन्त्र के लेख को पढने के बाद यन्त्र के लिए भी लालाइत हैं, हाँ यह सत्य है की यन्त्र - मन्त्र - तन्त्र ये साधना का सबसे बड़ा  क्रम है | किन्तु यन्त्र का जबतक सही से पूजा न की जाय अर्थात् आवरण पूजन न की जाय तब तक यन्त्र का कोई अर्थ नहीं वह मात्र एक आकृति है | आवरण पूजन गुरु से प्राप्त करना इतना सुलभ नहीं क्यों की यह महा शक्ति को प्राप्त करने का केंद्र है जो की आपके लिए पूर्ण रूप से श्रीबटुक सिद्धि का मार्ग प्रसस्त करता है | यहाँ मैं उन साधकों को यह बताना चाहूँगा की पहले आप योग्य गुरु से दीक्षा लीजिये फिर अधिकाअधिक जप करिए फिर जब कुछ योग्य हो जाइये तब गुरु आज्ञा से श्मसान साधना करिए | श्मसान में जब आप अकेले जप करसकें  तब ही साधना सिद्धि के लिए विचार कीजिए | अष्टवीरों, बटुक भैरव जी एवं लाकुलेशादि षोडश मित्रों का पूजन करना अनिवार्य होता है | जो साधक साधना सिद्धि हेतु पूजन जप आदि कर रहे हैं वे इन बिन्दुओं पे अवश्य ध्यान दें क्यों की आप यन्त्र रख लें यन्त्र पूजन की सामग्री भी एकत्रित कर लें किन्तु कोई लाभ नहीं होगा अपितु आप एक जटिल समस्या में फंस सकते हैं| क्यों की जो पूजन आप कर रहे हैं वह बाबा को प्राप्त होगा या नहीं या निश्चित नहीं किन्तु आप बाधाओं से पीड़ित हो सकते हो | यन्त्र पूजन तन्त्र पूजन का एक शक्ति शाली अंग है अतः बिना गुरु की आज्ञा के अपनी इच्छानुशार यन्त्र पूजन करना या यन्त्रराज को रखना अनिष्ट कारी होता है | यह बात साधारण रूप से पूजन करने वालों के लिए नहीं है अपितु उन लोगों के लिए है जो साधना जप आदि पर ध्यान न देकर केवल साधन एकत्रित करने में लगे रहते हैं | अब इस क्रम में आगे बढे तो साधक को एक चित्र या मूर्ति रखनी चाहिए इससे इतर शिवलिंग पर भी साधना की जाती है | साधना में प्रवेश करने के पश्चात् सब चीजों से विमुक्त होना पड़ता है विमुक्त भाव से साधना करनी चाहिए | बटुक उपासना में जाति, वर्ण  का कोई महत्त्व नहीं है, महत्त्व है तो केवल अपने गुरु एवं इष्ट के प्रति समर्पण भाव का | जो बाबा की सेवा पूजा करता है, जप करता है वह ही आपका अपना है उससे किसी प्रकार का भेद भाव नहीं करना चाहिए | दूसरा साधक में भय नहीं होना चाहिए, एक सबसे महत्वपूर्ण बात की साधक के अन्दर किंचित मात्र शंका नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यदि आपके अन्दर अपने इष्ट, गुरु अथवा मन्त्र के प्रति किंचित मात्र भी शंका उत्पन्न हुई तो आपकी साधना विफल हो जाएगी | गुरु, इष्ट और मन्त्र में जो साधक भेद करता है वह सतवर्ष में भी सिद्धि को नहीं प्राप्त करता | अपनी साधना में हो रही अनुभूति के विषय में गुरु के अतिरिक्त किसी से भी साझा नहीं करना चाहिए |

श्रीबटुकभैरवनाथ ध्यान –

करकलितकपालः  कुण्डली  दण्डपाणिः,

तरुणतिमिरनीलो       व्यालयज्ञोपवीती |

क्रतुसमयसपर्या         विघ्नविच्छेदहेतुः,

जयति बटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ||

हाँथों में कपाल और दण्ड लिए हुए, कानों में कुण्डल धारण किए हुए, तरुण अवस्थावाले घोर अन्धकार के समान नीले बालों बालोंवाले, यज्ञोपवीत को धारण किये हुए, यज्ञ के समय पूजित विघ्नों को नष्ट करने के लिए, साधकों को सिद्धि प्रदान करनेवाले बटुकभैरव का पूजन करता हूं |

सात्विक ध्यान –

सात्विक श्वेत स्फटिक के सदृश्य स्वरुप का सात्विक ध्यान करना चाहिए | समस्त कामनाओं को पूरा करनेवाला, समस्त शुभ योगों को फलवान करनेवाला, समस्त ज्ञान को प्राप्त करानेवाला, सात्विक ध्यान सर्वोत्तम होता है |

वन्दे बालं स्फटिकसदृशं कुण्डलोद्भासिताङ्गं,                                                                                                    

दिव्याकल्पैर्नवमणिमयैः किङ्किणी नूपुराढ्यैः|

दीप्ताकारं    विषदवदनं   सुप्रसन्नं   त्रिनेत्रं,

हस्ताग्राभ्यां    बटुक   शूलदण्डोपधानाम् ||   

स्वच्छ स्फटिक के सदृश्य, कुण्डल से सुशोभित, दिव्यमणियों से बने हुए नूपुर और किंकिणी से सुशोभित, प्रसन्न, शिव की भाँति पुलकित मुखवाले, कमलवत् करों में सदा शूल और तलवार धारण करनेवाले, बालस्वरूप बटुक भैरवजी का ध्यान करता हूँ |

राजस ध्यान –

वशीकरण, विद्वेषण और स्तम्भन में राजस ध्यान करना चाहिए वाल सूर्य के समान अरुण वर्ण स्वरुप का राजस ध्यान करना चाहिए | धन वैभव सम्पत्ति के लिए राजस ध्यान करना चाहिए |

उद्यद्भास्करसन्निभं  त्रिनयनं  रक्ताङ्गरागस्रजं,

स्मेरास्यं वरदं कपालमभयं भूलं दधानं करैः|

नीलग्रीवमुदारभूषणयुतं शीतांशुखण्डो ज्वलं,

बन्धूकारूणवाससं  भयहरं देवं सदा भावये ||

उदयकालीन सूर्य के समान लाल कान्तिवाले, तीन नेत्रोंवाले, रक्त पुष्पमाला से युक्त, पुलकित मुखवाले, वरदाता, कपाली, निर्भय, हाथ में शूल धारण करनेवाले, नील ग्रीवावाले, आभूषणों से युक्त, खण्ड चन्द्रमा के समान उज्ज्वल, मधूक पुष्प के समान लाल वस्त्र धारण किये हुए, भय को दूर भगानेवाले बटुक भैरव का ध्यान करता हूँ|

तामस ध्यान –

साधक पूजन क्रम से पूर्व ध्यान अवश्य करना चाहिए, क्रूर कर्म के लिए तामस ध्यान करना चाहिए साधक पूजन क्रम से पूर्व ध्यान अवश्य करना चाहिए, क्रूर कर्म के लिए तामस ध्यान करना चाहिए | कृष्ण वर्ण स्वरुप का तामस ध्यान करना चाहिए | चोर एवं शत्रुओं का क्षय करने के लिए, विष आदि के प्रकोप की समाप्ति के लिए, ग्रह, भूत पिशाचादि कृत समस्त विघ्नों के विनाश के लिए रक्तवर्ण तीन नेत्रोंवाले, विशेष रूप से कृष्ण वर्ण श्रीमद्बटुकभैरव का तामस ध्यान करना चाहिए |    आतों  की   माला     पहने    हुए, समस्त     आभूषणों से सुसज्जित स्वरुप का जो साधक ध्यान करता है वह अल्पमृत्यु को जीत लेता है |  

वन्दे नीलाद्रिकान्तं शशिशकलधरं मुण्डमालं महेशं,

दिग्वस्त्रं पिङ्गकेशं डमरूमथसृणिं खड्गपाषाभयानि |

नागं घण्टां कपालं करसरसिरुहैर्बिभ्रतं भीमदंष्ट्रं,

दिव्याकल्पं त्रिनेत्रं मणिमयविलसत्किङ्किणीनूपूराढ्यम् ||

त्रिलोक के स्वामी, द्वितीया के चन्द्रकला को धारण करनेवाले, मुण्डमाला पहने हुए, महेश्वर, दिगम्बर, पीत केशवाले, हाथ में डमरू, शूल, खड्ग, पाश और अभय धारण करने वाले, तथा नाग, घण्टा, कपाल हाथ में सुशोभित, विशाल दाँतोंवाले, दिव्य आभूषणों से सुसज्जित, त्रिनेत्र तथा नाना मणियों से जटित किंकिणी और नूपुर धारण किये हुए बटुक भैरव का ध्यान करता हूँ |

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ध्यान को पढना ही पर्याप्त नहीं अपितु ध्यान में वर्णित स्वरुप का मनन चिंतन भी करना जरूरी है, बिना बाबा के स्वरुप को अपने मन मस्तिष्क में बैठाये मात्र पढने से कोई लाभ नहीं | साधना में ध्यान की सबसे बड़ी भूमिका होती है जिस प्रकार के ध्यान की छवि के साथ हम जप करते हैं वही फलवती होता है | अपने गुरु से इस विषय का ज्ञान अवश्य लेना चाहिए | बाबा की पूजा से एक अनुपात में फल मिलता है, पर यदि साधक को ग्रह पीड़ा या किसी बहुत बड़ी बाधा से अपने को सुरक्षित करना है या सिद्धि के लिए साधना करनी है तो साधक को किसी बटुक साधक से दीक्षा लेना अवश्यक है | जिससे आप बटुक दीक्षा लें वह चाहे अघोर से हो या किसी देवी देवता का सेवक हो पर बटुक उपासक न हो तो सब व्यर्थ है, कुछ समय पहले ऐसे ही एक साधक का हमारे पास फेसबुक के द्वारा मैसेज आया और  उसने हमसे दूरभाष पर वार्तालाप करने का अनुरोध किया | उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज बाबा की सेवा पूजा करते थे और उन्हें स्वतः से कुछ अनुभूति होती थी, वह हमारे लेख पढते थे अतः साधना के क्षेत्र में आगे शीर्षशक्ति प्राप्त करने के लिए दीक्षा लेने का विचार बनाया और वाराणसी में किसी को गुरु मानकर उनसे दीक्षा ले ली बिना यह परीक्षण किये कि जिनसे वह दीक्षा ले रहे हैं उन्हें बटुक सिद्धि या ज्ञान है अथवा नहीं जिसके फल स्वरुप उसकी सारी अनुभूतियाँ समाप्त हो गई | इसी लिए बाबा के साधक को हम सदैव से यही कहते हैं की किसी कृपा प्राप्त बटुक साधक से ही दीक्षा लें | यहाँ एक बात और ध्यान देनें योग्य है कि कोई भी तन्त्र साधक बिना आपको परखे ऐसे दीक्षा नहीं देगा और उसके अपने कुछ नियम भी हो सकते हैं | साधना को सदैव गुप्त रूप से करें आप क्या करते हैं इसे अपने गुरु के अतिरिक्त किसी अन्य को बताने की कोई आवश्यकता नहीं है |     


Sunday 17 April 2022

कुण्डली में तन्त्र योग

 

बहुत समय के बाद आज मैं पुनः लेख लिख रहा | सोचता था की लेख लिखूं एक दो बार आधा पेज लिखा भी फिर पूरा नहीं कर पाया मति भ्रम जैसे हो जाता था इसी लिए शायद तन्त्र ग्रन्थ कह्ते हैं “बिना बाबा की इच्छा के कुछ नहीं हो सकता उनकी भक्ति भी नहीं”, ये और देवी देवताओं की तरह नहीं की कोई भी चाहे और इनकी उपासना कर ले | मेरा अपना एक खुद का अनुभव कहें या अध्ययन कहें क्यों कि मैं एक तान्त्रिक के साथ १७ साल से ज्योतिषी भी हूँ पर मेरा मन तन्त्र में ही भागता है | आज हमारा एक अनोखा विषय जिसके लिए मेंरे पार बहुत से कॉल और मेल आते हैं, की मैं अमुक साधना में लगा हूं पर कुछ नहीं हो रहा कोई अनुभव नहीं हो रहा, ऐसा बहुत से साधक साधिकाओं ने पूंछा की साधना कब पूरी होगी | वैसे एक और बात बता दें कि जो मात्र अपने भुक्ति मुक्ति के लिए बाबा की सेवा पूजा कर रहे हैं वह इस लेख को अपने ऊपर नहीं लेंगे यह उनके लिए है जो साधना सिद्धि की लिए प्रयासरत् हैं | आज हम कुण्डली के माध्यम से जानेंगे की कैसे देखें इस योग को, वैसे तो बहुत योग है पर कुछ के विषय में मैं बताता हूँ सर्व प्रथम शनि महाराज को देखिये शनि यदि पञ्चम में हैं तो एक बात निश्चित की ऐसा जातक पुनर्जन्म में तन्त्र साधक था नीच का शनि हो तो वह प्रेत साधक था और उसका मन इस जन्म में भी उसी तरफ भागेगा | आगे चलते चलते एक और बात बता दें की शनि के पञ्चम में होनें से वह साधक तो था, पर ऐसा साधक जिसकी साधना उस जन्म में पूरी नहीं हुई तो वह इस जन्म में पूरी करने आया है | यदि बलवान शनि है तो वह भैरव या महाविद्या का साधक था जो साधना अधूरी रह गई वही पूरी करने आया है | १३° - १८° तक होने से वह स्वतः ही बचपन से उस तरफ कुछ न कुछ प्रभाव दिखने लगता है, पर अंश बल इससे कम या ज्यादा होने से वह जब किसी साधक की संगति में आता है तब वह साधना की दिशा के तरफ निकलने लगता है | अष्टम का शनि जिसका हो वह भी पुनर्जन्म में साधक था पर उसने अपनी विद्या से कीसी का अहित किया होता है इस लिए इस जन्म में वह अनेक कार्यों में विफल होता है और वो अंततो गत्वा तन्त्र में प्रवेश करता है | नवम का शनि भी तन्त्र की तरफ ले जाता है ऐसे साधक पुनर्जन्म में स्वार्थ में तन्त्र साधना में आए थे इस लिए स्वार्थ में वह पुनः आ जाते हैं | कभी कभी लग्न के शनि में भी यह देखने मिलता है पर वह सिद्धि तक १% ही पहुँच पाते हैं | ऐसे शनि के साथ या इनमें से किसी स्थान पर राहु हो या दशम का राहु हो तो जादू तन्त्र मन्त्र में और प्रबलता हो जाती है | इन दोनों के साथ यदि मंगल का भी कुछ योग मिले पर वह राहु के साथ न हो तो तीव्रता भी प्राप्त हो जाती है | इसके साथ – साथ जिनके कुण्डली में ऐसा कुछ हो और वो समझ न पा रहें हो या किसी साधक को अपना तन्त्र या उपासना का बल दिखाना हो तो मेल कर सकते हैं | मात्र साधना के लिए ही निःशुल्क कुण्डली विवेचन है |

Saturday 23 January 2021

तन्त्र साधनाओं में गुरु का महात्म्य

 व्यक्ति की आकांक्षाओं का अंत नहीं है उसी की लोलुपता में मानव कुछ भी कर जाता है । बस उसे उसकी सोची हुई चीज या इच्छा पूरी हो इसी के पीछे पूरी ताकत लगा देता है । जब उसे कुछ नहीं दिखता तो वह तंत्र की तरफ बढ़ता है । और वह किसी मार्ग को न पा कर बाजार से कोई पुस्तक खरीदता है और साधना करने में लग जाता है । इसके फल स्वरूप उसे निराशा ही मिलती है । तब सब छोड़ देता है कहने लगता है सब मिथ्या है । ये एक मनगढ़ंत और छलावा है इससे कुछ प्राप्त नहीं होता है । पर ऐसा नहीं है तन्त्र एक गुप्त मार्ग है इतना ही सरल होता तो हर व्यक्ति आज तान्त्रिक होता और हर विद्यालय में तन्त्र पढाया जा रहा होता और मनोवांछित काम को पूरा करने के लिए सब तन्त्र ही कर रहे होते, सत्यता इससे भी इतर है तन्त्र एक साधना की प्रणाली है । जिसके लिए व्यक्ति को कई आयामों को पार करना होता है । जो कि बिना गुरु के सम्भव ही नहीं है ।

गुरु भी किसी को भी नहीं बना लेना चाहिए, उसके लिए भी योग्य गुरु का चयन करना आवश्यक है । गुरु भी ऐसा होना चाहिए जो साधना किया हो तन्त्र यह कदाचित नहीं है कि आप किसी ब्राह्मण या धर्माचार्य से दीक्षा ग्रहण कर साधना सिद्धि तक पहुंच सकते हो । दिक्षा के कई प्रकार हैं एक अपने उद्धार या मुक्ति के लिए ली जाती है और एक स्वार्थ के लिए ली जाती है । दोनों मंत्र को प्रदान करने वाला आपका गुरु ही होता है। किसी भी देवी या देवता का मंत्र आपका उद्धार करता है । प्रेत साधना से प्रेत लोक प्राप्त होता है । 

आपको इन निम्नांकित बिन्दु से ही चलना चाहिए - 

पहले आपको यह ज्ञात हो कि साधना क्या है । आपको कौन सी साधना करनी है । यदि सात्विक साधना करनी है तो किसी सात्विक साधक से ही जुड़ना चाहिए । पर ऐसा बहुत संख्या में मिलता है एक तन्त्र साधक सात्विक साधना में सर्वप्रथम प्रयास करता है जब उसे कुछ नहीं दिखता तो वह वाम मार्ग में प्रवेश कर जाता है । यदि ऐसा कोई साधक है तो आप को यह निर्धारित करना होगा कि आप किस देवता के रूप में जुड़े हो यदि आपके अनुरूप है तो ठीक नहीं तो आप पुनः दूसरा गुरु ग्रहण करें । ऐसा वशिष्ठ ऋषि के साथ भी हुआ था वह तारा देवी की उपासना करना चाह रहे थे तो उन्हों ने ब्रह्मा जी से दिक्षा लेने के लिए उनका तप किया और ब्रह्मा जी जब प्रकट हुए तो उन्होंने से तारा देवी का मंत्र लिया उस मंत्र से तप के बाद भी जब तारा देवी नहीं प्रसन्न हुईंं तो ब्रह्मा जी से कहा गुरु देव माता जी नहीं प्रसन्न हो रही ब्रह्मा जी ने पुनः दूसरा मंत्र दिया उससे भी नहीं प्रसन्न हुईंं, तब उन्हों ने तारा देवी को श्राप दे दिया उसके बाद तारा देवी प्रकट हुईंं और उन्होंने कहा दक्षिण मार्ग से मेरी साधना नहीं हो सकती इस लिए मैं नहीं आईंं जाओ वाम मार्ग (चीनाचार) दीक्षा ग्रहण करो । उसके पश्चात उन्होंने वाम मार्ग से दीक्षा ग्रहण किया तब जा के भगवती प्रसन्न हुईंं (वैसे यह कथा बहुत विस्त्रित है संक्षिप्त में मैने लिखा है ) । इस प्रकार महाविद्या साधना, भैरव साधना, योगिनी साधना या पिशाच साधना इन में वाम मार्ग के बिना सिद्धि बहुत कठिन होती है । साधनाओं के लिए गुरु का होना आवश्यक है। बहुत से लोग एक गुरु से मंत्र ले कर सारे मन्त्र करते रहते है कि अबतो हमनें दिक्षा ले ली है । पर आपको बता दें पुस्तक से पढ़ के किया गया मंत्र कभी सिद्ध नहीं होता । किसी के द्वारा सिद्ध मंत्र ही सिद्धि तक ले जाता है । वह मंत्र कहीं न कहीं से प्राप्त हो तो ही श्रेयष्कर है । महाविद्याओं का मंत्र कहीं से भी मिले सिद्ध होता है । एक बात ध्यान रहे जिस भी साधक से अपने मंत्र लिया हो उससे कभी बहस न करें । क्यों कि उस मंत्र का गुरु वही है उसके रुष्ट होते ही दीमक की भाँति वह मन्त्र आपको सनहि सनहि खा जाता है और प्रेत योनि प्रदान करता है । यह कदाचित नहीं है कि वह मंत्र उद्धारक है क्यों कि "रुद्रयामल तन्त्र" का प्रमाण है मंत्र बताने वाला गुरु - देवता - मन्त्र इनमें भेद नहीं है तीनों समतुल्य हैं  किसी साधक से दिक्षा मिले तो बहुत अच्छा यदि कोई स्त्री साधक से दिक्षा मिले तो वह भी उत्तम होती है । सर्वोत्तम दीक्षा यदि उस इष्ट का स्वप्न में दर्शन हो और आप उस मन्त्र बोल रहे तो वह सबसे उत्तम है । बिना शोधन के कोई मंत्र कभी सिद्ध नहीं होता। पर महाविद्या, शिव, विष्णु और 20 अक्षर से अधिक के मंत्र का शोधन नहीं करना पड़ता । 

इसी क्रम में आगे देखें तो बिना यन्त्र के तंत्र नहीं बिना तंत्र के मन्त्र नहीं (यन्त्र-तन्त्र-मन्त्र) इस प्रकार सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। जैसे शरीर के तीन स्वरूप है - कारण शरीर / सूक्ष्म शरीर / स्थूल शरीर इसके विषय में आगे लेख लिखूंगा अभी विषय है, मंत्र कारण शरीर है तंत्र सूक्ष्म शरीर है और यन्त्र स्थूल शरीर है । इसी प्रकार बिना इस क्रम के साधना में कुछ नहीं हैं । चाहे वह किसी भी देवी देवता की ही क्यों न कि जाय , यह मात्र बतानें के लिए नहीं है यह वास्तविकता है। इस लिए जिस भी गुरु से जुड़ें इस क्रम के बारे में अवश्य जानकारी लें । जो व्यक्ति मात्र उपासना तक है तब तक तो ठीक है पर यदि साधना सिद्धि तक जाना है तो उसे अपने गुरु से अवश्य सम्पर्क कर यन्त्र उपासना का क्रम सीखना चाहिए । 

देवी यन्त्र में सबसे बड़ा यन्त्र श्रीयन्त्र और भैरव यन्त्र में सबसे बड़ा यन्त्र श्रीबटुकभैरव यन्त्र है । इन यन्त्रों का नवावरण पूजन अवश्य करना चाहिए और जिस भी गुरु से जुड़ें उससे आप गुप्तयोगिनी पूजन के बारे में अवश्य पूंछें क्यों कि बिना इनके आपको सिद्धि नहीं प्राप्त हो सकती चाहे वह तंत्र साधना हो या कुण्डलिनी साधना दोनों में गुप्त योगिनी साधना का सबसे बड़ा स्थान है । अपने हनुमान चालीसा में पढ़ा है अष्टसिद्धि नव निधि के दाता .....,, तो ये अष्टयोगिनी ही अणिमा, गरिमा.....आदि अष्टसिद्धि का संचालन करती हैं । यह सभी बातों को ध्यान में रखते हुए बिना गुरु सब असम्भव है अपने गुरु के अनुरूप ही मार्ग का चयन करें । 

Saturday 26 September 2020

श्री बटुक भैरवनाथ यन्त्र महात्म्य भाग -2

 भगवान श्री बटुक भैरवनाथ जी का यन्त्र सुख संवृद्धि को प्रदान करने वाला पाप ग्रहों का प्रभाव समाप्त करने वाला जीवन को नई दिशा प्रदान करने वाला है । 

प्रथमपद् में हम भगवान के स्वरूप की उपासना करते है । 

करकलितकपालः कुण्डली दण्डपाणिः , 

तरुणतिमिरनीलो व्यालयज्ञोपवीती । 

क्रतुसमयसपर्या विघ्नविच्छेदहेतुः , 

जयति बटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ॥ 

हाथों में कपाल और दण्ड लिए हुए , कानों में  कुण्डल धारण किये हुए , तरुण अवस्थावाले , घोर अन्धकार के समान नीले बालोंवाले , यज्ञोपवीत को धारण किये हुए , यज्ञ के समय पूजित विघ्नों को नष्ट करने के लिए , साधकों को सिद्धि प्रदान करनेवाले , बटुकभैरवनाथ का पूजन करता हूँ।

इस प्रकार के ध्यान से हम भगवान श्रीबटुकभैरवनाथ जी के स्वरूप का ध्यान करते हैंं। इनकी उपासना के समतुल्य कोई उपासना नहीं है। चराचर ब्रह्माण्ड का समस्त सुख बाबा के चरणों में रहता है। बाबा का सम्पूर्ण पूजन नीराजन सम्यक प्रकार यन्त्र पूजन में ही सन्निहित है। यन्त्र उपासना से भगवान श्री बटुक भैरवनाथ सपरिवार प्रसन्न हो जाते है । किसी भी देवी या देवता के सहचर देवी देवता प्रमुख परिवार होते है। उसी प्रकार बटुकनाथ जी के सहचर देवी देवता और गण का पूजन होता है। यह पूजन यन्त्र में ही हो सकता है यन्त्र में सबका स्थान होता है। और उनका विधि प्रकार से पूजन किया जाता है। तन्त्र शास्त्र कहते है -

सन्स्थाप्य तत्र तद्यन्त्रं ध्यात्वा तत्र बटुं प्रिये।

एतद्यन्त्रं  प्रवक्ष्यामि   यन्त्रे देवं  प्रपूजयेत् ।।

पूजन स्थान पर श्रीमद्बटुकभैरव के यन्त्र को (सुन्दर सुसज्जित आसान पर ) स्थापित कर ध्यान करना चाहिए, श्रीमद्बटुकभैरव के यन्त्र को बतलाता हूँ, यन्त्र पर ही श्री बटुकदेव का पूजन करना चाहिए ।।

श्रीमद्बटुकभैरवयन्त्र की व्याख्या करने से पहले इस बात पे प्रकाश डालना आवस्यक है कि यह एक पूर्ण रूप से तन्त्र उपासना है। जिनके आराध्य या इष्ट बाबा हों वही इस यन्त्र को रखे या स्थापित करे। यन्त्र विधान नहीं पता या संस्कृत उच्चारण नहीं सही तो वह साधक अपने गुरु से सम्पर्क कर के ही साधना करे या सबसे अच्छा वह पत्र के यन्त्र पे उपासना करें। 

यन्त्र धातु या रत्न पर बना ले न हो सके तो भोज पत्र  बना के पूजन करें । सोना चांदी तांबा या भोज पत्र पे बने यन्त्र को सामान्य रूपसे भी रख के पूजन किया जा सकता है । ऐसा नहीं है कि पत्र का यन्त्र कम फल देता है रत्न का अधिक दोनों के महत्व बराबर है । साधक के ऊपर है कि वो कितने मन से उपासना करता है ।

परन्तु रत्न पर उभार लिए हुए यदि यन्त्र को स्थापित करते है तो यह सिद्धि तक ले जाता है । 

सभी रत्न उत्तम हैं उनमें से स्फटिक स्वयं में सिद्ध रत्न है और सुख समृद्धि का द्योतक है। क्यों कि स्फटिक शान्ति का प्रतीक है और इसे देवी रत्न माना जाता है, और श्री बटुकनाथ जी को सात्विक रूप में स्फटिक के सदृश्य ही कहा गया है। किन्तु रत्न पर साधना करने वाले साधक को साधना विधि का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है ।

वन्दे बालं स्फटिकसदृशं कुण्डलोद्भासिताङ्गं , 

दिव्याकल्पैर्नवमणिमयैः किङ्किणी नूपुराढ्यैः । 

दीप्ताकारं विशदवदनं सुप्रसन्नं त्रिनेत्रं , 

हस्ताग्राभ्यां बटुकसदृशं शूलदण्डोपधानाम् ॥

स्वच्छ स्फटिक के सदृश , कुण्डल से सुशोभित , दिव्यमणियों से बने हुए नूपूर और किंकिणी से सुशोभित , प्रसन्न , शिव की भाँति पुलकित मुखवाले , कमलवत् करों में सदा शूल और तलवार धारण करनेवाले , बालस्वरूप बटुक भैरवजी का ध्यान करता हूँ ॥

अब यन्त्र का स्वरूप कैसा हो इस तरफ दृष्टि डालते हैं -

यन्त्र में 15 भाग हैं तथा 9 आवरणोंं में सपर्या पूजन होता है ।

बिन्दु -

बिन्दु रूप स्वयं श्री बटुक भैरवनाथ जी है ।

त्रिकोण-

पार्वती + शंकर, लक्ष्मी + विष्णु, सरस्वती + ब्रह्मा विराजमान हैं।

पञ्चकोण -

अघोर, वामदेव, सद्योजात, ईशान, तत्पुरूष विराजमान हैं।

अन्तः पञ्चकोण -

पूर्व, उर्ध्व, उत्तर, दक्षिण, पश्चिम प्रतिष्ठित है ।

षड् दल - गुरु मण्डल :-

सिद्ध शाबरनाथ, सहजानन्दनाथ, निःसीमानन्दनाथ, भूतनाथ, आदिनाथ, आनन्दनाथ विराजमान हैं ।

अन्तः षड्दल- श्री बटुक भैरवनाथ जी का पुत्र रूप में उमादि का पूजन :-

उर्ध्वमुखिपुत्र, अधोमुखिपुत्र, व्यापकोन्मुखिपुत्र, उमापुत्र, रुद्रपुत्र, मातृपुत्र विराजमान हैं ।

इस प्रकार आगे जितने कोण और दल होंगे उतने देवी देवता के साथ श्री बटुकनाथ जी का पूजन होगा । संक्षिप्त में प्रकाश डालता हूँ - 

अष्टकोण - 

काकिनी, शाकिनी, हाकिनी, यकीनी, देवि, डाकिनी, लाकिनी, राकिनी विराजमान हैं ।

अन्तः अष्टकोंण -

चामुण्डा, ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, वाराही, नारसिंही, महालक्ष्मी ( यहीं पर दश महा विद्याओं का भी पूजन होता है )

 अष्टदल -

  रुरु भैरव, चण्ड भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाल, भीषण, संहार, असितांग भैरव विराजमान हैं ।

 षोडश कोण -

 भारभूतेश, अतिथीश, स्थाणवीश, हरेश, झिंटिश, भैतिकेश, अनुग्रहेश, सद्योजातेश, अक्रूरेश, महासेन, कण्ठेश, अनंतेश, सूक्ष्मेश, त्रिमूर्ति, अमरेश, अर्धीश विराजमान हैं ।

 अन्तः षोडश कोण - 

 एकनेत्रेश, चतुराननेश, अजेश, सर्वेश, सोमेश, लाङ्गलीश, दारकेश, अर्धनारीश्वर, उमाकान्तेश, आषाढीश, क्रोधीश, चण्डेश्वर,  शिवोत्तमेश, पञ्चान्तकेश, एकादशरुद्रेश, कूर्मेश विराजमान हैं।

 षोडश दल -

 छालगेश, द्विरण्डश, महाकालेश, वालीश, भुजंगेश, पिनाकीश, खड्गीश, केशवेश, श्वेतेश, भृग्विश, चण्डिश, आन्त्रीश, मीनेश, मेशेष, लोहितेश, शिखीश विराजमान हैं।

 भूपुर के अंदर चारो तरफ दो - दो अष्ट वीर विराजमान हैं।

 भूपुर की प्रथम रेखा -

 भीमरूप , अचल, कराल, वेताल आदि विराजमान हैं।

 भूपुर की दूसरी रेखा - 

 गणेश, क्षेत्रपाल, भैरव, लकुलीशलक्ष्मी, नवदुर्गा आदि विराजमान हैं।

 भूपुर की तृतीय रेखा -

 सोम, इन्द्र, अग्नि, वायु, यम, वरुण आदि विराजमान हैं ।

 जहां भूपुर समाप्त होगा उसके बाद बाबा के अस्त्र रखे हैं - 

 त्रिशूल, पद्म, वज्र, शक्ति, गदा, दण्ड, पाश, चक्र, खड्ग, अङ्कुश, सर्प मेखला ।

 इस प्रकार श्री बटुक भैरव यन्त्र विराजमान होता है । महाशक्ति से सुसज्जित अखण्ड शक्ति से भरा है । प्रतिष्ठित होने के बाद जब साधक की सेवा से यन्त्र सिद्ध हो जाता है तो मणिरूप हो जाता है । यन्त्र प्रतिष्ठित करें तो किसी योग्य जानकार साधक से ही प्रतिष्ठा करायें । जो सेवा नहीं कर सकते मात्र धूप दीप दिखाने के लिए रखना चाहते हैं वह ताम्र, सोना या चाँदी के पत्र पर बनवा कर घर में विराजमान कर सकते हैं । किन्तु जो साधना की दृष्टि से स्थापित करना चाहते हैं, वह गुरु से सीख कर ही करें । 

 

 




Thursday 10 September 2020

श्री बटुक भैरवनाथ यन्त्र उपासना महात्म्य भाग 1

 भगवान श्री बटुक भैरवनाथ जी के बारे में समस्त साधक को पता होता है । चराचर ब्रह्माण्ड में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवान भोले नाथ के बाल रूप स्वरूप श्री बटुक नाथ जी ही हैं । 

बाबा की साधना में एक अद्भुत अमृत सर का अनुभव होता है ऐसा प्रतीत होता है । सब कुछ इन्ही में है और ब्रह्माण्ड में कुछ है ही नहीं । वास्तविकता में देखें तो यह एक कटुक सत्य है इसमें संदेह नहीं करना चाहिए । बाबा की उपासना और साधना से साधक जीवन के सभी आयामों के साथ भुक्ति मुक्ति प्राप्त करता है । उसे मृत्योपरान्त कैलाश वास मिलता है । भगवान बटुक भैरवनाथ जी के जो साधक है वो इनके बारे में हमेशा जिज्ञासू भाव से जानने का प्रयास ही करते रहते है कि बाबा की साधना में और क्या ऐसा कर दें कि प्रभू की पूर्ण क्षाया हम पर हो जाये । पर दुःख तब होता है जब इतना प्रयत्न के बाद भी कोई जानकारी नहीं प्राप्त होती सामान्य रूप से कुछ मंत्र भोग पाठ ही प्राप्त होता है और हमें वह गूढ़ साधना विधि का परिचय नहीं हो पाता है । वैसे सत्य यह भी है कि बाबा थोड़े में प्रसन्न होते है । अपितु हम अभी भी उस अमृत सुख के स्वाद से वंचित रहते है। सभी गुप्त साधनाओं का कुछ न कुछ मार्ग मिल ही जाता है पर हमारे बाबा अत्यंत गुप्त रूप में रहते हैं ।इस लिए इनकी साधना का वो पड़ाव पाने के लिए भक्त जन्मों जन्म आतुर रहता है । शिव से बड़ा हितकारी और दयालु कोई न है न होगा फिर उनके बाल रूप के बारे में तो कहना ही क्या है।

शिवागम् सार में वर्णित है -

अन्ये देवास्तु कालेन प्रसन्नाः सम्भवन्ति हि । 

वटुकः सेवितः सद्यः प्रसीदति ध्रुवं शिवे ॥६ ॥

अन्य देवता तो बहुत काल तक उपासना करने पर प्रसन्न होते हैं, लेकिन बटुक भैरवनाथ जी साधकों द्वारा अल्पकाल की उपासना से ही प्रसन्न हो जाते है ।

  क्षण मात्र में प्रसन्न होने वाले देवता बटुकनाथ जी जरूर है, पर इनकी साधना अत्यन्त गुप्त है । तंत्र ग्रन्थों में मैने जो पाया उसको प्रमाण मानकर बताता हूँ कि साधक जबतक श्री बटुक भैरव यन्त्र की उपासना नहीं करता तब तक वह श्री बटुकनाथ जी तक नहीं पहुंच पाता और इनका यन्त्र अत्यन्त गोपनीय है । यन्त्र भगवान का भवन और उनका निवास स्थान माना जाता है जिसमें उनके सहचर सभी देवी देवता रहते है । इस लिए यन्त्र पूजा तो सबसे बड़ी होती ही है । वो चाहे किसी की भी क्यों न हो । जिस प्रकार श्री यन्त्र की उपासना से भगवती त्रिपुराम्बा महारानी राजराजेश्वरी प्रसन्न हो जाती है । और उस यन्त्र में वास कर साधक का कल्याण करती हैं। पर उनको रखना सबके वस का नहीं एक साधक ही रख सकता है । व्यक्ति सोचता है श्री यन्त्र को रख लिया अब लक्ष्मी का वास हो जायेगा तो यह एक भ्रम है श्री यन्त्र के प्रत्येक कोण में देवी देवताओं का वास होता है । उनका आवाहन पूजन तर्पण करना होता है । उसी प्रकार श्री बटुक भैरव यन्त्र का भी विधान है और प्रत्येक कोण में प्रतिष्ठा होती है और फिर जा कर भगवान श्री बटुक भैरव नाथ जी का पूर्ण रूप प्राप्त होता है । किसी भी देवता की साधना सिद्ध के लिए यन्त्र उपासना अत्यन्त आवश्यक होती है । यन्त्र की उपासना से समस्त सुख प्राप्त  होता हैं । श्री बटुक भैरवनाथ जी के यन्त्र में क्रमशः 15 भाग में आवरण पूजा होती है । यन्त्र को रखना सरल है । पर जब तक पूर्ण रूप से सेवा न कर सकें तब तक आपके लिए यन्त्र उपासना नहीं है । यन्त्राधिष्ट देवी - देवता को प्रतिदिन सपर्या के पहले उठाना और सपर्या के पश्चात चलित विषर्जन (शयन) कराना आवस्यक है । कहने का सार यह है कि श्री बटुकनाथ जी की उपासना में यन्त्र उपासना अत्यन्त आवश्यक है । नियमानुसार साधक को उसी पे साधना करनी चाहिए । इस यन्त्र की विधि पूर्वक जिस भी घर या देवालय में स्थापित कर सेवा होती है वहां पे क्रूर ग्रहों का प्रभाव समाप्त हो जाता है । प्रेत बाधायें या तो उस स्थान को छोड़ देती हैं नहीं तो दास बन घर वालों की रक्षा करती है । वस्तु दोष कितना भी अधिक हो सब बाबा के प्रभाव से उसका प्रभाव नहीं होता है ।  इस लेख में हम महात्म्य बता रहे आगे के लेख में श्री बटुक यन्त्र की रचना के बारे में बतायेंगे । श्री बटुक भैरव यन्त्र अत्यन्त दुर्लभ यन्त्र है । इस यंत्र की उपासना अपने गुरु के अनुसार ही करनी चाहिए ।

Wednesday 3 June 2020

जून 2020 के ग्रहण

आज का हमारा विषय है जून मास में पड़ने वाले ग्रहण। जून मास में कौन से ग्रहण है ? और वो कब  हैं ? उनका आध्यात्मिक महत्व क्या है ? जून मास में दो ग्रहण लग रहे हैं । एक 5 जून 2020 को और दूसरा 21 जून 2020 को लग रहा है । ग्रहण का दो अर्थ है किस वस्तु या जीव को स्विकार करना या किसी को बल स्वरूप पकड़ना,  तो साधक को इस विषय में भी जानना आवश्यक है । क्यों की कथा कथित tv पे फेसबुक पर ज्योतिषियों का वक्तव्य मिल जाता है की इस दिनाँक को ग्रहण है । जिससे साधक भ्रमित हो जाते हैं। अब हम चलते हैं  ग्रहण की तरफ कि क्या है ग्रहण ?पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूम रही है। चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर घूम रहा है। इन गतियों में ऐसा हो जाता है कि चन्द्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी के आ जाने से चन्द्रमा को सूर्य से प्रकाश नहीं मिल पाता और चन्द्रमा पर पृथ्वी की परछाईं पड़ जाती है । और कभी-कभी चन्द्रमा भी सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो सूर्य का प्रकाश धुंधला पड़ जाता है और चन्द्रमा की परछाईं पृथ्वी पर पड़ने लगती है । इन दोनों परिस्थितियों में  सूर्य की रोशनी धुँधली पड़ने से अमावस्या को सूर्य ग्रहण और चन्द्रमा की रोशनी (पूर्णिमा का) धुँधली पड़ने से चन्द्रग्रहण हो जाता है । चन्द्रग्रहण की अपेक्षा सूर्यग्रहण अधिक होते हैं, लेकिन लोगों को इसके विपरीत ज्ञात होते हैं, क्योंकि चन्द्रग्रहण आधे भूतल से देखा जा सकता है । सूर्यग्रहण बहुत थोड़े स्थानों में दिखाई पड़ता है । इस प्रकार जो ग्रहण लगते है उनका अध्यात्मिक महत्व होता है । इसी प्रकार  चन्द्रमा जब पृथ्वी के हल्के भाग से निकलता है, बिम्ब मात्र रहता है तो उसे पेनुम्ब्रा कहते है। चन्द्रमा जब पेनुम्ब्रा  से होकर निकलता है, तो यह उपच्छाया ग्रहण लगता  है । जिसका अध्यात्मिक कोई भी महत्व नहीं है । न ही इसमें कोई भी ग्रहण में किया जाने वाला कर्मकाण्ड किया जाता है । इसी लिए इस ग्रहण के बारे में पञ्चाङ्ग में कोई विवरण नहीं प्राप्त होता है । 
अध्यात्म में मात्र उसी ग्रहण की मान्यता है जिसे हम अपने नेत्र से देख सकें । यहाँ तक की यदि हमारे शहर या देश में जो ग्रहण न दिखे विदेशों में दिखे और उसका पञ्चाङ्ग विवरण भी प्राप्त हो तो वह ग्रहण भी ग्राह्य नहीं है । 
इस लिए 5 जून 2020 को जो ग्रहण लग रहा यह उपच्छाया चन्द्र ग्रहण है । इसका अध्यात्मिक कोई भी महत्व नहीं है । 
उपच्छाया चन्द्रग्रहण - 
स्पर्श - 11:15 pm
मध्य - 12:54 am
मोक्ष - 02:34 am
इस ग्रहण की कुल अवधि 3:18 मिनट है । 
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सूर्य ग्रहण कब होता है? पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए जब चन्द्रमा काफी दूर निकल जाता है और वह सूर्य के सामने आ जाता है, तो पृथ्वी के कुछ स्थानों पर धुंध सा छा जाता है वह सूर्य ग्रहण है । बहुतायत संख्या में एक प्रश्न लोग पूंछते है कि, खण्ड सूर्य ग्रहण क्या है ? जब चन्द्रमा सूर्य के सामने आता है और वे सीधी रेखा में नहीं आ पता कुछ अंश ही ढंकता है तो उसे खण्ड सूर्य ग्रहण करते है । जब पूरा सूर्य के सामने एक सीधी रेखा में आ जाता है तो उसे पूर्ण ग्रहण या चूड़ी के आकृति का दिखने से वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते है । 

21 जून 2020 रविवार को लगने वाला यह सूर्य ग्रहण भारत में दृश्य है । और इस ग्रहण की धार्मिक मान्यता भी है । इसका विवरण पञ्चाङ्ग में भी है । 
 अब हम आध्यात्मिक रूप को भी बताते है । एक ज्योतिषी और तान्त्रिक होने की वजह से दोनों भावों को स्पष्ट करना मेरा कर्तव्य है । यदि कोई भी बात छूट जाए तो आप पूंछ सकते हैं । अब हम विषय की तरफ बढ़ते हैं । राहु के द्वारा सूर्य ग्रहण और केतु के द्वारा चन्द्र ग्रहण लगता है । ऐसी धात्मिक मान्यता है और हमें ग्रंथों में प्राप्त भी होता है, यह सत्य भी है । ग्रहण काल में किया जप पुरश्चरण को प्रदान करता है । जिस फल को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति वर्षों मेहनत करता है, वह कुछ घंटों की मेहनत से प्राप्त हो जाता है । इसी लिए तन्त्र में एक गजेश्वर योग बनता है । गजेश्वर आदि शङ्कराचार्य जी ने गणेश जी के लिए कहा है । क्यों की गणेश जी का गज का मुख है और वह बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते है । और जल्द ही हर कार्य को करते है । हर कार्य का उनको संक्षिप्त रूप पता है । जैसे उन्हों ने अपने माता पिता यानी भगवान शिव माता पार्वती की परिक्रमा करके पूरे ब्रह्माण्ड के तीर्थ भ्रमण का फल प्राप्त कर लिया । तन्त्र में भी इसी नाम से ग्रहण के लिए भी कहा जाता है की ग्रहण काल में जो जप किया जाता है उस जप से पुरश्चरण का फल प्राप्त हो जाता है । 
 21 जून 2020 को लगने वाला सूर्य ग्रहण तन्त्र साधकों के लिए तो ऐसा है जिसके लिए तान्त्रिक प्रतीक्षा करता है की यह हमें प्राप्त हो । श्री बटुक भैरव या दश विद्या के साधकों के लिए,  यह अमृत कलश के तुल्य है । अब आप क्या करते हो ये आपके गुरु द्वारा जो दिया गया हो उसे सिद्ध करें । वैसे भी  सूर्य ग्रहण में गायत्री या इष्ट का मन्त्र सिद्धि को प्रदान करता है । ये ग्रहण रविवार को लग रहा तो साधकों को हम बताना चाहते हैं की रविवार को जब सूर्य ग्रहण लगता है तो ज्योतिष शास्त्र में इसे चूड़ामणि योग कहते है । ये सिद्धि का भण्डार होता है । तान्त्रिक इस योग के लिए प्रतीक्षारत रहता है । 
 सूर्य ग्रहण में 12 घण्टे पूर्व से ही सूतक काल लग जाता है । 20 जून 2020 की  रात्रि 10:30 pm सूतक लगेगा। सूतक काल से ग्रहण काल तक साधक को खान पान छोड़ देना चाहिए । जप करते रहना चाहिए । बच्चे, रोगी और वृद्ध के लिए छूट है । 
 जब ग्रहण लगे तब स्नान करें फिर जप करें, मोक्ष के कुछ समय पहले पुनः स्नान करके घी से हवन करें । फिर सूर्य अर्घ दें और गेंहूँ के अन्न का दान निकालें और उसे डोम या मेहतर को दान दें ब्राह्मण को भूल से भी न दें । क्यों की ग्रहण का दान ब्राह्मण का नहीं होता । 
 एक प्रमुख बात यह ग्रहण दो रूप में लग रहा पहला कंकडाकृत पूर्ण रूप घं0 4 मि0 12 का होगा वहीं दूसरा रूप खण्ड रूप में है,  कंकड़ाकृत सर्य ग्रहण भारत के उत्तरी भाग में ही दृश्य होगा । और स्थानों खण्ड रूप में मध्य मोक्ष ही दिखेगा ।

कंकड़ाकृत सूर्य ग्रहण काल - 
स्पर्श - 10:30 am
मध्य - 12:17 pm
मोक्ष - 14:04 pm
जिसकी अवधि घं0 4 मि0 12 होगी 

विशेष - जो लोग ग्रहण स्नान करके सूर्य अर्घ नहीं देते शास्त्र कहते है वह अगले सूर्य ग्रहण तक अशुद्ध ही रहते है ।

Saturday 15 February 2020

हिन्दी अष्टोत्तरसत नाम पाठ

आज मैं अपने आराध्य देव भगवान श्री बटुक भैरवनाथ जी के उपासकों के अनुरोध पे अष्टोत्तरसतनाम हिन्दी में लिख के दे रहा हूँ । वैसे संस्कृत में जो पाठ है वह ज्यादा सिध्दि प्रद है क्यों की वह रुद्रयामल तन्त्र से प्रमाणित है । पर ऐसा नही है की इसे पढ़ने से कोई लाभ नहीं होगा बाबा भक्त वत्सल देवता है। तो आप हिन्दी में भी पाठ कर सकते हो ।
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नमो-नमो भैरव सिधि दाता, भूतनाथ भव भयतें त्राता ।
भूतात्मा भूतल उजियारे। बटुक भूत-भावन मतवारे ॥१॥
क्षेत्रद क्षेत्रपाल सुरराटा, क्षत्रियवर क्षेत्रज्ञ विराटा ।जय श्मशानवासी शुभनामा, मांसाशी प्रभु मंगलधामा ॥२।।
नमो खर्पराशी भगवन्ता , जय स्मरान्तक रूप अनन्ता ।
हे खरान्तक अतिबलवाना, हे मखान्तक सर्वसुज़ाना ।।३।।
रक्तप तोहि बहुरि सिरनाऔं, पानप-सिद्ध हृदय महँ ध्याऔं ।
रक्तपान तत्पर बलि जाऔं। पुनि-पुनि प्रभु तोहि सीस नवाऔं ।।४।।
 सिद्धिद देव सिद्धि के नाथा, सिद्ध सुसेवित सेवक साथा ।
 जय कंकाल कुटिल पर नाशी, कलशमन जय सब सुख राशी ।।५।।
नमों कलाकाष्ठा-तनुधारी, जय-जय कवि सर्वज्ञ सुखारी।
जय त्रिनेत्र बहुनेत्र नमामि, पिङ्गललोचन शरण व्रजामि।।६।।
शूलपाणि जय दीन दयाला, खड्गपाणि जय परम कृपाला।
 कंकाली तोहि कोटि प्रणामा, जयतु धूम्रलोचन शुभ नामा।।७।।
जय अभीरू जय भैरव नाथा, भूतप योगिनिपति शुचि गाथा ।
नमो धनद धनहारी देवा, जय धनवान विश्वसुख देवा ॥८॥
जय प्रतिभावान सुरस्वामी, जय प्रतिभावित अन्तर्यामि ।
नागहार तब चरण नमामि, देव! दयामय सदा भजामि।।९।
गपाश जय-जय सुरसांई, व्योमकेश जय प्रभो गुसांई ।
नागकेश जय-जय सुरराया, कीजै नाथ भक्त पे दाया।।१०॥
जय कपालभृत् काल कराला, जय कपालमाली जगपाला ।
जय कमनीय कालानिधि त्राता, जयतु त्रिलोचन आनन्ददाता।।११।।
लन्नेत्र त्रिशिखी तोहि ध्याऔं, नमो त्रिलोकप सब सिधि पाऔं।
जय त्रिनेत्रतनय सुखराशी, जय हे डिम्भ। नित्य अविनाशी ।।१२।।
जय हे शान्त। भक्त वरदाई , डिम्मशान्त प्रभु भक्त सहाई ।
शान्त जनप्रिय दीन दयाला, नमो बटुक बहुवेष कृपाला ॥१३॥
जय खट्वाङ्गवरधारक देवा, भूताध्यक्ष करैं सुख सेवा।
जय-जय पशुपति भिक्षुक देवा, जय परिचारक जन-मन-मेवा ।।१४।।
 जय परिवारक जग के स्वामी, तुम कहँ बारम्बार नमामि।
धूर्त दिगम्बर शूर भजामि, हरिण पाण्डुलोचन जय स्वामी।।१५।।
जय प्रशान्त हे शान्तिद शुद्धा, सिद्ध युद्ध-जयकारी बुद्धा।
 हे शंकरप्रियबान्धव नामी, शंकरप्रिय-बान्धव शुभ कामी।।१६।।
अष्टमूर्ति जय देव निधीशा, ज्ञानचक्षु तपोमय ईशा ।
अष्टाधार नामो सुर स्वामी, षडाधार जग अन्तर्यामी।।१७।।
सर्पयुक्त शिखिसख भूधर जय, जय भूधर अधीश मंगलमय।
भूपति भूधर आत्मज दाता, भूधर आत्मक सब जग त्राता।।१८।।
जय कंकालधारि सुरनाथा, मुण्डी तोहि नवावौं माथा।
नाग यज्ञ-उपवीत विराजै, आन्त्रयज्ञ उपवीत सुसाजै ॥१९॥
जृम्भण मोहन स्तम्भन स्वामी, मारण क्षोभण जगसुख कामी।
हे गुरुदेव ज्ञान के दाता, भोग मोक्षप्रद कृपा विधाता।।२०।।
शुद्ध नील अञ्जन प्रख्याता, देव दैत्यहा सेवक त्राता ।
 मुण्ड विभूषित छवि सरसाये, सकल सुमङ्गल मूल सुहाये।।२१।।
बलिभुक् तुम प्रभु बलिभुङ् नाथा, बाल अबाल पराक्रम साथा।
जय सर्वाप्तारण स्वामी, दुर्गरूप प्रभु अन्तर्यामी ।।२२।।
दुष्ट भूत-निषेवित देवा, कामी कामफलप्रद सेवा। जयतु कलानिधि कान्त सुनामी, कामिनीवशकृत तोहि नमामि ॥२३॥
सकल जगत वशीकुत नामा, कामिनिवशकुत वशी ललामा।
देव जगत रक्षा कर जय-जय, अनन्त माया मन्त्रौषधि-मय।।२४।।
 सर्व सिद्धिप्रद वैद्य महाना, हे प्रभु विष्णु विवेक निधाना।
 तुम विभु अखिल-विश्व सरसाओ, भक्तभरणकरि सुयश कमाओ।।२५।।
अष्टोत्तर शतनाम स्वरूपा, कल्पवृक्ष यह परम अनूपा ।
जपत जीव सब मंगल पावै, सकल कामना तुरत पुरावै।।२६।।
दुरित भूत भय मारी भीति, जपत मिटै पल में सब ईती।
राज शत्रु ग्रह भय नहिं लागै, भैरव स्तवन करत दुख भागै ।।२७॥
अष्टोत्तर शत नाम शुभ, जपत धरै नित ध्यान।  तिनकहँ भैरव लाडिले, सदा करैं कल्याण ।।२८।।
 ------------जय बटुक भैरवनाथ ----/