Saturday 28 January 2017

ग्रन्थों में अविमुक्त क्षेत्र काशी

तीर्थ के रूप में वाराणसी का नाम सबसे पहले महाभारत में मिलता है । 
बात तो यह है कि इसके पूर्व के साहित्य में तीर्थों के विषय में कुछ कहा ही नहीं गया है । वर्तमान तीर्थस्थलों में बहुधा जंगल थे जिसमे आदिवासियों की इधर-उधर कुछ बस्तियाँ छिट पुट बसी थी । इसके अतिरिक्त वहाँ मनुष्यों का निवास ही नहीं था। आगे चलकर जब उत्तर भारत में सर्वत्र आर्य लोग फैल गये और उनके नगर बस गये, तब आध्यात्मिक सर्वेक्षण के द्वारा तीर्थों के अस्तित्व तथा महात्म्य का पता चला । इस सम्बन्ध में महाभारत में कहा गया है कि जिस प्रकार शरीर के कुछ अवयव पवित्र माने जाते है, उसी प्रकार पृथ्वी के कतिपय स्थान पुण्यप्रद तथा पवित्र होते है। इसमें से कोई तो स्थान कि विचित्रता के कारण, कोई जल के प्रभाव से और कोई ऋषि मुनियों के सम्पर्क से पवित्र हो गया है ।
आधुनिक विचारधारा इस बात को इस प्रकार कहती है कि जहां-जहां मानव के बहुमुख उत्कर्ष के साधन लभ्य हुए, वहीं-वहीं तीर्थों की परिकल्पना हुई । जो कुछ भी हो, विविध तीर्थों के नाम और उनके महात्म्य सबसे पहले पुराण साहित्य में मिलते है, जिसमें महाभारत का शीर्षस्थ स्थान है। यजुर्वेद के जबाल उपनिषद में भी काशी के बारे में महत्वपूर्ण उल्लेख है । इसी क्रम में १८ पुराण में अधिकाधिक ग्रन्थों में काशी के महात्म्य के बारे में और अविमुक्त क्षेत्र के रूप में काशी का ही नाम है, सनातन धर्म के प्रमुख १२ तीर्थों में काशी का प्रथम स्थान है तन्त्र ग्रन्थ तो काशी को सिद्धियों का प्रमुख स्थान मानते है जिसमें मणिकर्णिका का ज़्यादा महात्म्य है । काशी में अच्छे बुरे जो भी कर्म किये जाते है उनका फल करोड़ गुना अधिक होता है आगामी लेख में  इसके बारे में वृहद रूप में बतायेंगे , 
( इस लिंक के द्वारा जाने विश्वनाथ जी काशी में मोक्ष देते है - http://shribatuknathbyashwini.blogspot.com/2017/01/blog-post_43.html )

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