Sunday 26 February 2017

ग्रहण के क्या होते है प्रभाव

प्रत्येक विद्वान की अपनी धारणा है , हम नहीं भी कुछ जानते समझते बहती धारणाओं में बहते चले जाते है ।
क्या हमें पता है कि ग्रहण क्या है ? ग्रहण का पालन करने से हमें क्या प्राप्त होता है ?
जिन देशों में ग्रहण नहीं दिखता वहां पे क्या इसका पालन करना चाहिए या नहीं ? ग्रहण लगने के पश्चात् जो इसका विचार नहीं करते उनके साथ कैसी समस्या आती है ?
इन सभी बिन्दुओं पे हम आप को बतायेंगे।
ग्रहण वह समय है जब राहु केतु भगवान सूर्य और चन्द्रमा को ग्रसित करते है । और उनके पीड़ा दाई दिन के रूप में है। इस समय भगवान की प्रार्थना पूजा हवन करनी चाहिए । वह चाहे सूर्य या चंद्र देव (कुछ लोगों में यह भ्रान्ति भी उत्पन्न हो सकती है कि मैंने सूर्य चंद्र देव लिखा है जब की कई ग्रंथों में चन्द्र को स्त्री ग्रह लिखा है और भृगुऋषि ने अपने ग्रंथो में चन्द्रमा को पुरूष ग्रह लिखा है और रोहिणी पत्नी और बुद्ध को इनका पुत्र लिखा है ) का स्वयं का मन्त्र हो या किसी देवी देवता का कुछ अघोरी इस काल में पिशाची या साबर मन्त्र भी सिद्धि के लिए प्रयोग करते है ।।
ग्रहण का पालन करने से देव कृपा प्राप्त होती है भगवन सूर्य चंद्र प्रत्येक कार्य में साक्षी बनकर अपनी कृपा प्रदान करते हैं, तन्त्र शास्त्रों में ग्रहण को एक सिद्ध काल के रूप में मान्यता प्राप्त है । इस समय जप किया हुआ प्रत्येक मन्त्र सिद्धि को प्रदान करता है । जो गर्भ धारण की हुई स्त्री पालन करती है वह सुन्दर संतान को जन्म देती है ।ल
जिन देशों या स्थान पे सूर्य ग्रहण नहीं दिखता तो हम उस ग्रहण का मान नहीं करते । अपितु यदि देखा जाय तो सूर्य चन्द्र ग्रहण कहीं भी हो उनके ऊपर कष्ट तो है ही इस लिए आराध्य का मन्त्र जप करना चाहिये की उनका कष्ट कम हो ये नहीं है कि इस जप का कोई फल नहीं इसका भी अधिकाधिक् फल होता है । हाँ सूदक नहीं लगता परहेज की जरुरत नहीं अपितु जप पूजन करना चाहिए ।।
ग्रहण का पालन जो नहीं करते उनको संभवता किसी स्थान या कार्य में अपमानित होना पड़ता है । ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्र मूल ग्रह है तो उनकी कृपा बाधित होती है । साधना करने वाला व्यक्ति है तो उसे सिद्धि नहीं मिलती । और गर्भवती स्त्री है तो उसे ग्रहण का पालन अवस्य करना चाहिए नहीं तो प्रमाणित मान्यता है की जो सन्तान उत्पन्न होगी उसके कुछ न कुछ कमी अवस्य हो जाती है । इस लिए ग्रहण काल में कुछ खाना पीना नहीं चाहिये । मात्र परमात्मा का जाप पूजन करना चाहिये, इस समय का किया जप पूजन कोटि गुना फल प्रदान करता है ।
ग्रहण काल में तीर्थ स्नान का भी बहुत फल होता है , चन्द्र ग्रहण में काशी का सबसे ज़्यादा स्नान तर्पण का फल होता है और सूर्य ग्रहण का कुरुक्षेत्र में स्नान तर्पण का अधिक फल है । वैसे कुछ ग्रन्थों का काशी साधना के लिए सर्वोपरि है इस लिए प्रत्येक सिद्ध काल में काशी का सबसे अधिक प्रभाव है ।
सूदक काल ज्ञान चन्द्र ग्रहण में 8 पूर्व से और सूर्य ग्रहण में 12 घण्टा पूर्व से सूदक काल ग्रहण किया जाता है परहेज़ मात्र ग्रहण काल में करना चाहिये।
( इसी प्रकार हमारे लेख विभिन्न बिन्दुओं पे आपको प्राप्त होते रहेंगे हमारे लेखों से जुड़ने हेतु गूगल id से blogger पे lick करें , धन्यवाद)

Tuesday 21 February 2017

ग्रह और उनके स्वामी उच्च स्थान और नीच स्थान

ज्योतिष सीखने के इच्छुक अब ये याद करे ये बहुत जरुरी है ज्योतिष फलित के लिए । ग्रह के उच्च नीच स्थान तैयार करे और उसमें चन्द्रमा में कुछभेद है जातक पारिजात के अनुसार वृश्चिक में चंद्र नीच का है और पाराशर में मकर है हमारा खुद का मानना की मकर में ही नीच का रहेगा । फिर ग्रह और उनके स्वामी तैयार करिये इतना हो गया तो आप ज्योतिष फलित में बहुत करीब आ गए है।।
ग्रह और स्वामी
मेष = मंगल , वृष = शुक्र , मिथुन = बुद्ध , कर्क = चन्द्रमा , सिंह = सूर्य , कन्या = बुद्ध , तुला = शुक्र,
वृश्चिक = मंगल , धनु = वृहस्पति , मकर = शनि, कुम्भ = शनि , मीन = वृहस्पति

Wednesday 15 February 2017

ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से कैसे शरीर के प्रत्येक अंग का विचार करते है

ज्योतिष शास्त्र के प्रति अधिकाधिक् लोगों की रूचि रहती है कि कैसे सीखा जाय या प्रारम्भिक जानकारी हो गई तो आगे का पता नहीं रहता, तो हम अब आपको अपने लेख के माध्यम से ज्योतिष के शिक्षण का कार्य प्रारम्भ कर रहे । सर्व प्रथम हम जानेंगे की शरीर का और उनके अंगों का कैसे विचार होता है हम उतना ही लेख दिया करेंगे जितना की आप समझ सको .....,
समस्त जन्म कुंडली के द्वादश भाव को  कालपुरूष का स्वरुप मान कर प्रत्येक अंग का विवेचन कर रहा हूँ ,
प्रथम भाव से सिर का , दूसरे भाव से चेहरे का, तृतीय भाव से छाती का , चतुर्थ भाव से हृदय का , पंचम से पेट का , छठे भाव से कमर का , सप्तम से वस्ति का , अष्टम से गुप्त इन्द्रियों का , नवम से जाँघों का , दसम  से दोनों घुटनों का , एकादश से पिण्डलियों का , द्वादश से दोनों पैरों का विचार किया जाता है । जिस भाव में शुभ ग्रह हो या शुभ ग्रह देखते हो उस भाव से सम्बन्धित शरीर के अंग पुष्ट एवं सुन्दर होते है । भावेश निर्बल होने से या उस भाव में  क्रूर दृष्टि , क्रूर ग्रह युति होने से उस भाव से सम्बंधित शरीर का अंग कृष एवं रोगयुक्त होता है ।
कर्क , बृश्चिक तथा मीन राशियों के अंतिम भाग (अंश ) को राशि संधि कहते है । कहीं कहीं पे ग्रन्थ मति रहती है कि राशि का अंतिम भाग जहाँ अग्रिम राशि शुरू होती हो - वह राशि सन्धि कहलाती है ।।
यह तो मैं बता रहा अपितु कुछ के समझ में ये भी नहीं होगा ये क्या है तो इसके बाद के लेख में मैं आपको कुंडली के दूसरे विषय से परिचित कराऊँगा और आपको बता दूँ यदि किसी को कोई बात समझ नहीं आ रही तो हमें तुरन्त comments करें , blogger page को like करके आगामी संदेश से जुड़िये ।

Wednesday 8 February 2017

जन्म दिन पे मोमबत्ती बुझाने से होती है आयु की हानि


आधुनिकता ने सब कुछ बदल दिया है
हमारे स्वभाव और पहनावे तो बदले ही थे हमारी संस्कृति ही बदल गई, वैसे समय के अनुसार बदलना भी चाहिए परिवर्तन ही आगे ले जाता है प्रत्येक 10 साल में बदलाव आता रहता है, इतिहास भी इसका साक्षी है । शिक्षा का अस्तर भी बढ़ता ही जा रहा आंग्लभाषा ( अंग्रेजी ) का प्रचलन बहुत ही तीव्रता से आगे बढ़ रहा अच्छा भी है, क्यों की अधिकाधिक देशों में अंग्रेजी का ही प्रचलन है यदि हमें आगे बढ़ाना है तो
अंग्रेजी पे ध्यान देना होगा, अपितु अपनी संस्कृति से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए संस्कृति ही हमें हमारे आदर्श और विश्व में भारतीय होने का गौरव प्रदान करती है, और संस्कृति का आध्यात्मिक महत्व भी है, क्यों कि हमारे ऋषि महर्षि ने इसी आधार पर बनाया था। हमारे पूर्वज जन्मदिन पे देव पूजन करते थे मन्दिरों में दीप दान करते थे, अखण्ड ज्योति जलाते थे यह मान्यता थी कि दीपक से निर्विघ्मनता और सतत् आयु की प्राप्ति होगी, आज हम जन्म दिन में केक काटते है केक काटने में कोई बुराई नहीं है वह एक प्रकार का मिष्ठान ही है, अपितु हम उसपर मोमबत्ती जला कर बुझा देते है यह बहुत ही अशुभ संकेत है हिन्दू धर्म के अनुसार हमारे धर्म में दो ही दिन होते है शुभ और अशुभ शुभ दिन में हम दीपक प्रज्वलित करते है और मृत्यु होने पे दीपक को  बुझा देते है, अग्नि का कारक सूर्य है और भगवान् सूर्य प्रगति और ऊर्जा के प्रदाता है वही ज्योतिष में सूर्य से भगवान् शिव से जोड़ा जाता है भगवान् शिव आयु के मूल देवता है, हम अपने बच्चे या रिस्ते की आभा से क्यों खिलवाड़ करते है, हमें शुभ दिनों में और दीप दान करना चाहिए माता पिता का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना , गरीबो को असहायों की मदत करनी चाहिए और भगवान् शिव का दर्शन अभिषेक और दीप दान करना चाहिए मैं फिर कहता हूँ मैं केक काटने को नहीं रोक रहा आप काटिये और उत्सव मनाइये पर अपनी संस्कृति के साथ एक दीपक जलाकर बुझाकर नहीं , जय विश्वनाथ । जय भोलेनाथ । जय बटुक भैरवनाथ