Wednesday 15 February 2017

ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से कैसे शरीर के प्रत्येक अंग का विचार करते है

ज्योतिष शास्त्र के प्रति अधिकाधिक् लोगों की रूचि रहती है कि कैसे सीखा जाय या प्रारम्भिक जानकारी हो गई तो आगे का पता नहीं रहता, तो हम अब आपको अपने लेख के माध्यम से ज्योतिष के शिक्षण का कार्य प्रारम्भ कर रहे । सर्व प्रथम हम जानेंगे की शरीर का और उनके अंगों का कैसे विचार होता है हम उतना ही लेख दिया करेंगे जितना की आप समझ सको .....,
समस्त जन्म कुंडली के द्वादश भाव को  कालपुरूष का स्वरुप मान कर प्रत्येक अंग का विवेचन कर रहा हूँ ,
प्रथम भाव से सिर का , दूसरे भाव से चेहरे का, तृतीय भाव से छाती का , चतुर्थ भाव से हृदय का , पंचम से पेट का , छठे भाव से कमर का , सप्तम से वस्ति का , अष्टम से गुप्त इन्द्रियों का , नवम से जाँघों का , दसम  से दोनों घुटनों का , एकादश से पिण्डलियों का , द्वादश से दोनों पैरों का विचार किया जाता है । जिस भाव में शुभ ग्रह हो या शुभ ग्रह देखते हो उस भाव से सम्बन्धित शरीर के अंग पुष्ट एवं सुन्दर होते है । भावेश निर्बल होने से या उस भाव में  क्रूर दृष्टि , क्रूर ग्रह युति होने से उस भाव से सम्बंधित शरीर का अंग कृष एवं रोगयुक्त होता है ।
कर्क , बृश्चिक तथा मीन राशियों के अंतिम भाग (अंश ) को राशि संधि कहते है । कहीं कहीं पे ग्रन्थ मति रहती है कि राशि का अंतिम भाग जहाँ अग्रिम राशि शुरू होती हो - वह राशि सन्धि कहलाती है ।।
यह तो मैं बता रहा अपितु कुछ के समझ में ये भी नहीं होगा ये क्या है तो इसके बाद के लेख में मैं आपको कुंडली के दूसरे विषय से परिचित कराऊँगा और आपको बता दूँ यदि किसी को कोई बात समझ नहीं आ रही तो हमें तुरन्त comments करें , blogger page को like करके आगामी संदेश से जुड़िये ।

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