प्रत्येक विद्वान की अपनी धारणा है , हम नहीं भी कुछ जानते समझते बहती धारणाओं में बहते चले जाते है ।
क्या हमें पता है कि ग्रहण क्या है ? ग्रहण का पालन करने से हमें क्या प्राप्त होता है ?
जिन देशों में ग्रहण नहीं दिखता वहां पे क्या इसका पालन करना चाहिए या नहीं ? ग्रहण लगने के पश्चात् जो इसका विचार नहीं करते उनके साथ कैसी समस्या आती है ?
इन सभी बिन्दुओं पे हम आप को बतायेंगे।
ग्रहण वह समय है जब राहु केतु भगवान सूर्य और चन्द्रमा को ग्रसित करते है । और उनके पीड़ा दाई दिन के रूप में है। इस समय भगवान की प्रार्थना पूजा हवन करनी चाहिए । वह चाहे सूर्य या चंद्र देव (कुछ लोगों में यह भ्रान्ति भी उत्पन्न हो सकती है कि मैंने सूर्य चंद्र देव लिखा है जब की कई ग्रंथों में चन्द्र को स्त्री ग्रह लिखा है और भृगुऋषि ने अपने ग्रंथो में चन्द्रमा को पुरूष ग्रह लिखा है और रोहिणी पत्नी और बुद्ध को इनका पुत्र लिखा है ) का स्वयं का मन्त्र हो या किसी देवी देवता का कुछ अघोरी इस काल में पिशाची या साबर मन्त्र भी सिद्धि के लिए प्रयोग करते है ।।
ग्रहण का पालन करने से देव कृपा प्राप्त होती है भगवन सूर्य चंद्र प्रत्येक कार्य में साक्षी बनकर अपनी कृपा प्रदान करते हैं, तन्त्र शास्त्रों में ग्रहण को एक सिद्ध काल के रूप में मान्यता प्राप्त है । इस समय जप किया हुआ प्रत्येक मन्त्र सिद्धि को प्रदान करता है । जो गर्भ धारण की हुई स्त्री पालन करती है वह सुन्दर संतान को जन्म देती है ।ल
जिन देशों या स्थान पे सूर्य ग्रहण नहीं दिखता तो हम उस ग्रहण का मान नहीं करते । अपितु यदि देखा जाय तो सूर्य चन्द्र ग्रहण कहीं भी हो उनके ऊपर कष्ट तो है ही इस लिए आराध्य का मन्त्र जप करना चाहिये की उनका कष्ट कम हो ये नहीं है कि इस जप का कोई फल नहीं इसका भी अधिकाधिक् फल होता है । हाँ सूदक नहीं लगता परहेज की जरुरत नहीं अपितु जप पूजन करना चाहिए ।।
ग्रहण का पालन जो नहीं करते उनको संभवता किसी स्थान या कार्य में अपमानित होना पड़ता है । ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्र मूल ग्रह है तो उनकी कृपा बाधित होती है । साधना करने वाला व्यक्ति है तो उसे सिद्धि नहीं मिलती । और गर्भवती स्त्री है तो उसे ग्रहण का पालन अवस्य करना चाहिए नहीं तो प्रमाणित मान्यता है की जो सन्तान उत्पन्न होगी उसके कुछ न कुछ कमी अवस्य हो जाती है । इस लिए ग्रहण काल में कुछ खाना पीना नहीं चाहिये । मात्र परमात्मा का जाप पूजन करना चाहिये, इस समय का किया जप पूजन कोटि गुना फल प्रदान करता है ।
ग्रहण काल में तीर्थ स्नान का भी बहुत फल होता है , चन्द्र ग्रहण में काशी का सबसे ज़्यादा स्नान तर्पण का फल होता है और सूर्य ग्रहण का कुरुक्षेत्र में स्नान तर्पण का अधिक फल है । वैसे कुछ ग्रन्थों का काशी साधना के लिए सर्वोपरि है इस लिए प्रत्येक सिद्ध काल में काशी का सबसे अधिक प्रभाव है ।
सूदक काल ज्ञान चन्द्र ग्रहण में 8 पूर्व से और सूर्य ग्रहण में 12 घण्टा पूर्व से सूदक काल ग्रहण किया जाता है परहेज़ मात्र ग्रहण काल में करना चाहिये।
क्या हमें पता है कि ग्रहण क्या है ? ग्रहण का पालन करने से हमें क्या प्राप्त होता है ?
जिन देशों में ग्रहण नहीं दिखता वहां पे क्या इसका पालन करना चाहिए या नहीं ? ग्रहण लगने के पश्चात् जो इसका विचार नहीं करते उनके साथ कैसी समस्या आती है ?
इन सभी बिन्दुओं पे हम आप को बतायेंगे।
ग्रहण वह समय है जब राहु केतु भगवान सूर्य और चन्द्रमा को ग्रसित करते है । और उनके पीड़ा दाई दिन के रूप में है। इस समय भगवान की प्रार्थना पूजा हवन करनी चाहिए । वह चाहे सूर्य या चंद्र देव (कुछ लोगों में यह भ्रान्ति भी उत्पन्न हो सकती है कि मैंने सूर्य चंद्र देव लिखा है जब की कई ग्रंथों में चन्द्र को स्त्री ग्रह लिखा है और भृगुऋषि ने अपने ग्रंथो में चन्द्रमा को पुरूष ग्रह लिखा है और रोहिणी पत्नी और बुद्ध को इनका पुत्र लिखा है ) का स्वयं का मन्त्र हो या किसी देवी देवता का कुछ अघोरी इस काल में पिशाची या साबर मन्त्र भी सिद्धि के लिए प्रयोग करते है ।।
ग्रहण का पालन करने से देव कृपा प्राप्त होती है भगवन सूर्य चंद्र प्रत्येक कार्य में साक्षी बनकर अपनी कृपा प्रदान करते हैं, तन्त्र शास्त्रों में ग्रहण को एक सिद्ध काल के रूप में मान्यता प्राप्त है । इस समय जप किया हुआ प्रत्येक मन्त्र सिद्धि को प्रदान करता है । जो गर्भ धारण की हुई स्त्री पालन करती है वह सुन्दर संतान को जन्म देती है ।ल
जिन देशों या स्थान पे सूर्य ग्रहण नहीं दिखता तो हम उस ग्रहण का मान नहीं करते । अपितु यदि देखा जाय तो सूर्य चन्द्र ग्रहण कहीं भी हो उनके ऊपर कष्ट तो है ही इस लिए आराध्य का मन्त्र जप करना चाहिये की उनका कष्ट कम हो ये नहीं है कि इस जप का कोई फल नहीं इसका भी अधिकाधिक् फल होता है । हाँ सूदक नहीं लगता परहेज की जरुरत नहीं अपितु जप पूजन करना चाहिए ।।
ग्रहण का पालन जो नहीं करते उनको संभवता किसी स्थान या कार्य में अपमानित होना पड़ता है । ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्र मूल ग्रह है तो उनकी कृपा बाधित होती है । साधना करने वाला व्यक्ति है तो उसे सिद्धि नहीं मिलती । और गर्भवती स्त्री है तो उसे ग्रहण का पालन अवस्य करना चाहिए नहीं तो प्रमाणित मान्यता है की जो सन्तान उत्पन्न होगी उसके कुछ न कुछ कमी अवस्य हो जाती है । इस लिए ग्रहण काल में कुछ खाना पीना नहीं चाहिये । मात्र परमात्मा का जाप पूजन करना चाहिये, इस समय का किया जप पूजन कोटि गुना फल प्रदान करता है ।
ग्रहण काल में तीर्थ स्नान का भी बहुत फल होता है , चन्द्र ग्रहण में काशी का सबसे ज़्यादा स्नान तर्पण का फल होता है और सूर्य ग्रहण का कुरुक्षेत्र में स्नान तर्पण का अधिक फल है । वैसे कुछ ग्रन्थों का काशी साधना के लिए सर्वोपरि है इस लिए प्रत्येक सिद्ध काल में काशी का सबसे अधिक प्रभाव है ।
सूदक काल ज्ञान चन्द्र ग्रहण में 8 पूर्व से और सूर्य ग्रहण में 12 घण्टा पूर्व से सूदक काल ग्रहण किया जाता है परहेज़ मात्र ग्रहण काल में करना चाहिये।
( इसी प्रकार हमारे लेख विभिन्न बिन्दुओं पे आपको प्राप्त होते रहेंगे हमारे लेखों से जुड़ने हेतु गूगल id से blogger पे lick करें , धन्यवाद)
No comments:
Post a Comment