विवरण -
प्रतिपदा - 21 सितम्बर 2017 गुरुवार , कलश स्थापन प्रातः 6 से 9:58 तक
अष्टमी - 28 सितम्बर 2017 गुरुवार, दशमहाविद्या हवन
नवमी - 29 सितम्बर 2017 शुक्रवार, हवन , कन्याभोज ,
दशमी - 30 सितम्बर 2017 शनिवार , नवरात्रि व्रत पारण , विजयादशमी
आज हम नवरात्रि के ऊपर बतायेंगे ,, हिन्दू धर्म या कहें चराचर ब्रह्माण्ड में 4 संख्या का बहुत ही बड़ा स्थान है , चार वर्ण, चार वेद, चार शंकराचार्य और चार नवरात्रि ,, देवी उपासना में नवरात्रि का सर्वोच्च स्थान है । किसी देवता की उपासना बिना देवी उपासना के पूर्ण नहीं होती । इस लिए प्रत्येक साधक को किसी एक देवी की उपासना करनी चाहिए । यदि तन्त्र साधना करते है तो महा विद्या और यदि मात्र दैनिक उपासना करते है तो स्व रुचि के अनुसार दस विद्या या नव दुर्गा की उपासना करें । अब हम अपने मूल विषय पे बात करते है । नवरात्रि से स्पष्ट हो रहा कि यहां हम नव + रात्रि के संदर्भ में बात कर रहे, नवरात्रि को कैसे हम ग्रहण करते है ? ये जानिए ! नवरात्रि तिथि के आधार पे होती है। न कि ! दिन के आधार पे यदि किसी तिथि का क्षय हो जाये तो वह नवरात्रि 7 या 8 दिन की हो जाती है । यदि तिथि बढ़ जाये तो 10 दिन की भी हो जाती है । अब हम बात करते है प्रतिपदा की ! प्रतिपदा नवरात्रि का प्रथम दिन है । देवीपुराण और डामर तन्त्र के अनुसार जिस दिन अमावस्या हो उस दिन की प्रतिपदा को ग्रहण नहीं करना चाहिए । ये त्याज्य है। अधिकतर ब्राह्मण स्वलाभ या अज्ञानता में अमावस्या को जब प्रतिपदा लगती है तो कलश स्थापना करा देते है । डामर तन्त्र के अनुसार ये नवरात्रि के प्रभाव को क्षीण कर देता है । इस लिए उदयातिथि की नवरात्रि ही ग्रहण करना चाहिए , कभी ऐसा भी होता है कि प्रतिपदा का क्षय हो जाये तो द्वितीया युक्त प्रतिपदा ही ग्रहण करना चाहिए । अमावस्या युक्त प्रतिपदा में पूजन करने से व्यक्ति संकट से घिर जाता है । निर्धन हो जाता है ऐसा स्कन्द पुराण में लिखा है । क्यो की देवीपुराण के अनुसार अश्विननवरात्रि की प्रतिपदा जिसके पुत्र सुख नही है उन्हें पुत्र सुख प्राप्त होता है । अमावस्या युक्त प्रतिपदा पुत्र सुख का नाश करती है । इन प्रमाण को देख के रुद्रयामल तन्त्र का निर्णय है कि द्वितीया युक्त प्रतिपदा में ही व्रत और कलश पूजन करें ।
भगवती के जिस रूप की आप उपासना करते है । उनके मन्त्र जप करें , जयन्ती मङ्गला काली" इससे यथा शक्ति हवन करें । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।। इस मंत्र यथा शक्ति जप करे । भगवती के जिस रूप की उपासना करते है उनका पाठ करें । इस प्रकार प्रतिपदा से नवमी तक व्रत करें । भगवती यदि जागरण करना है तो अष्टमी या नवमी को करें । यदि इन दो दिन न हो सके तो षष्ठी को करें । दसमहाविद्या के उपासक अष्टमी में ही हवन करें। दुर्गा आदि शक्ति के उपासक नवमी में हवन करें । हवन के बाद यथा शक्ति कन्याओं को भोजन करायें । कन्या कैसी हों - कन्या 2 वर्ष से 10 वर्ष तक ही खिलानी या पूजन करना चाहिए उसके बाद वो त्याज्य है । 1 कुमारिका, 2 त्रिमूर्ति, 3 कल्याणी, 4 रोहिणी, 5 काली, 6 चण्डिका, 7 शाम्भवी, 8 दुर्गा, 9 श्रीमतीसुभद्रादेवी ,, इन नामों से यथा क्रम पूजन करना चाहिए । उदया तिथि के दशमी में वेद पाठी ब्राह्मण को भोजन करा के पारण करना चाहिए ।नवमी में पारण नहीं करना चाहिए । स्त्रियों को भी इसी प्रकार व्रत करना चाहिए, यदि वह व्रत में मध्य रजस्वला हो जायें तो किसी सुद्ध स्त्री, पति या ब्राह्मण से अपना पूजन करायें । स्वयं वहां से दूर रहे मन में भगवती का ध्यान करें । भूल से भी पूजन स्थली के सन्निकट न जायें । इस प्रकार नवरात्रि पूजन सम्पन्न करें । जय मां त्रिपुर सुन्दरी , जय बटुकनाथ।
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