माँ पार्वती समस्त देवियों की मूल शक्ति है । जगत जननी माँ पार्वती चराचर ब्रह्माण्ड में जो कुछ है वह जगत जननी त्रिपुर सुन्दरी माँ पार्वती से ही है । बिना शक्ति के शिव भी शव हो जाते है। भगवती त्रिपुर सुन्दरी के अधीन पूरा ब्रह्माण्ड है । त्रिदेव भी भगवती की ओर ही देखते रहते है ,, और अपने समस्त भाव भगवती माँ पराम्बा से ही प्रारम्भ करते है । स्वयं भगवान शिव के अवतार संत शिरोमणि आदि शंकराचार्य जी ने माँ पराम्बा त्रिपुर सुन्दरी की आराधना की और क्या कहा देखिये -
तनीयांसं पांसुं तव चरणपंकेरुहभवं,
विरिञ्चि: संचिन्वन्विरचयति लोकानविकलम् ।
वहत्येनं शौरि: कथमपि सहस्रेण शिरसां,
हरः संक्षुद्यैनं भजति भसितोद्धूलनविधिम् ।।
अर्थात् - माँ आपके कमल समान श्रीचरणों में लग्न सूक्ष्मातिसूक्ष्म रज की कृपा से ब्रह्मा निरन्तर विश्व की सृष्टि में तत्पर रहते है । विष्णु भगवान् स्वयं शेषावतार धारण कर अपने सहस्रों सिरों से आपकी चरण धूलि से उत्पन्न समस्त लोकों को सप्रयत्न धारण करते है । भगवान् भूतभावन शिव स्वयं तुम्हारी पदधूलि को सम्यक् रूप से भस्मीकृत कर अपने अङ्गों में लगा लेते है । इस तरह ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों मूर्ति पराशक्ति पराम्बा त्रिपुरसुन्दरी माँ की आराधना कर कृतकृत्य हो जाते है ।
इस प्रकार माँ पार्वती ने जब जब अवतार लिया तब तीनों लोकों के प्राणनाथ भगवान भलेनाथ ने भी अवतार लेकर भगवती से विवाह किया । भगवती ने महाविद्या रूप रखा तो बाबा ने भैरव रूप रखा आज हम बतायेंगे की किस महा विद्या के साथ किस भैरव की उपासना करनी चाहिए । बिना एक दूसरे के कोई भी साधना सिद्ध नहीं होती यह अटल सत्य है ।
1 - काली , 1- काल भैरव
2- तारा, 2- अक्षोभ्य भैरव
3- छिन्मस्ता 3- विकराल भैरव
4- त्रिपुरसुन्दरी , 4- ललितेश्वर भैरव
5- भुवनेश्वरी 5- महादेव भैरव
6- त्रिपुराभैरवी 6- भैरव
7- धूमावती 7- शून्य पुरुष भैरव
8- बगलामुखी 8- मृत्युञ्जय भैरव
9- मातङ्गी 9- सदाशिव भैरव
10- कमला 10- नारायण भैरव
इनके अतिरिक्त बटुक भैरव की पूजा सभी देवियों की साथ की जा सकती है । यदि साधक देवी उपासक है तो साथ में बटुक भैरव पूजन कर सकता है पर नियम देवी का ही चलेगा । यदि बटुक भैरव साधक है तो किसी भी महाविद्या की साधना करे पर नियम बटुकनाथ का चलेगा । क्यों कि बटुक भैरव की पूजा सबसे भिन्न है ।
Saturday, 23 September 2017
10 महाविद्या के साथ 10 भैरव
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