Saturday 27 January 2018

श्री बटुकभैरव मूल मन्त्र जप साधना विधि

आज हम पाठकों को मूल मन्त्र को करने की विधि से परिचय करायेंगे । कि बाबा श्री बटुक भैरवनाथ का जप कैसे करें । मूल मंत्र को सुबह  दोपहर, रात्रि और मध्य रात्रि में करना आवश्यक है जिसमें से रात्रि और मध्य रात्रि में करना ज्यादा लाभ प्रद होता है । श्री बटुक भैरव का पूजन एवं जप, पाठ करने वाले उपासक का मुख दक्षिणाभिमुख होना चाहिए । जप के समय एक दीपक प्रज्वलित करके रखना चाहिए । उसका मुख भी दक्षिणाभिमुख रहे । साधक को काला या लाल वस्त्र ही धारण करना चाहिये पूजन के समय और इस प्रकार का वस्त्र धारण करें कि पैर बंधे न रहे , जैसे - लोवर, पैंट, पैजामा, सलवार ऐसे वस्त्र पहन के साधना पे न बैठें यदि बाहर है बस, ट्रेन या अन्यत्र जहाँ लुंगी, धोती, साड़ी , घाँघरा नहीं धारण किया जा सकता तक के लिए कोई बात नही पर अधिक से अधिक प्रयत्न करें कि उचित वस्त्र में पूजन करें । श्री बटुकनाथ की साधना एकान्त में करनी चाहिए । आसन का रंग लाल या काला हो और सबसे अच्छा की आसन में कई रंग हो , बाबा के मन्त्रों का जप रुद्राक्ष या काले हकीक से ही करें । जो लोग मूर्ति पे या मन्दिर में पूजन करते है वो ठीक है पर जो चित्र पे करते है वो ध्यान रखें चित्र किसी पीठ का होना चाहिए । वैसे साधना कहीं वीराने या श्मशान में कर रहे तो चित्र या मूर्ति की जरूरत नहीं। केवड़ा का प्रयोग जिन सामग्री में हुआ हो ऐसी चीज या उसका पुष्प बाबा से दूर रखना चाहिए इन्हें नहीं पसन्द है । पुष्प में नीला लाल ज्यादा पसन्द है। फल में अनार बहुत भाता है वैसे कोई भी ऋतु फल बाबा को चढ़ा सकते है । बाबा का पूजन बच्चों की सेवा की तरह भाव रख के करना चाहिए। फीका भोजन तन्त्र साधना में भोग नहीं लगता लहसुन, प्याज, गाजर, चुकंदर इन सब प्रयोग कर सकते है ,, मदिरा अपनी छमता ( कमाई के आधार पे ) के अनुसार भोग लगानी चाहिए, कुछ वैष्णों साधक भी बाबा की उपासना करते है तो वो लोग तामसी चीजों का भोग नहीं लगायेंगे तो भी कोई बात नही सात्विक भोजन का भोग लगा सकते है ,, मदिरा के स्थान पे खीर का भोग लगायें (पर यह ध्यान रहे इससे सिद्धि का मार्ग प्रसस्त नही हो पाता, सात्विक मार्ग का पूजन केवल अपनी पूजा की रक्षा या प्रेत बाधा से बचने के लिए आप प्रयोग कर सकते है पर कोई अर्जी नही रख सकते )  जो साधक बटुक साधना में नवीन है । वो सर्व प्रथम सवालक्ष जप कर हवन करें ,सवालाख जप 21 दिन के अंदर पूरा करना है अधिक अच्छा हो कि आप एक लाख चालीस हजार जप करें जिससे यदि हवन कम भी करेंगे तो कोई दिक्कत नहीं होगी , क्यों कि सवा लाख जप का दशांश हवन करना होगा अब दशांश देखें तो दस हजार दो सौ पचास हुआ इस लिए एक लाख चालीस हजार जप करें,, अब आप सोचेंगे की 21दिन में कैसे होगा तो हम बता दें कई लोग हमारे पास है जो 15 दिन में हवन भी कर चुके है ।हवन का विवरण पहले दे चुका हूँ या जिसको चाहिए होगा वो पूंछ लेगा और किस दिन हवन पड़ रही वो दिन भी बतायेगा तो मैं उस दिन के आधार पे हवन सामग्री भेज दूंगा ।  जिनके पास समय नहीं है अनुष्ठान उठाने के लिये वो प्रतिदिन 11 माला, 5 माला या 3 माला जरूर करें । उसके बाद ही बटुक साधना में आप प्रवेश कर पायेंगे। स्त्रियों के लिये यह नियम है कि मासिक धर्म के समय 5 दिन पूजन न करे ।  अपनी माला और आसन को स्पर्श न करें । उस दौरान पूजन का क्रम ये है कि कही भी अकेले बैठ के मानसिक जाप या पाठ करें मुह से उच्चारण न करें ।
----------------------------------------
संक्षिप्त में जप पूजन क्रम :-
1 - सर्व प्रथम आचमनी करें , ध्यान रहे मूल मंत्र से ही तीन बार आचमनी करनी है ।
2 - हाँथ में जल लेकर 11 बार मूल मंत्र पढ़ के चारो तरफ बंधन करें।
3 - फिर ध्यान करें -
करकलितकपालः कुण्डली दण्डपाणि-
स्तरुणतिमिरनीलो व्यालयज्ञोपवीती ।
क्रतुसमय सपर्याविघ्नविच्छित्ति हेतुर्जयति -
बटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ।।

मूल मन्त्र -
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ नमः शिवाय
विशेष - यह मंत्र आपको प्रत्येक स्थान पे बिना ॐ नमः शिवाय के मिलेगा पर हमारा अपना खुद का अनुभव है कि इससे मंत्र में और शक्ति आ विस्तार हो जाता है । यह बाध्य नहीं है जैसा आपको उचित लगे करें ।। किसी भी प्रकार की शंका होने पर टिप्पड़ी या संदेश भेज सकते है । जय बटुकनाथ ।

Sunday 21 January 2018

9 भेद तन्त्र साधना के

आज अगर हम देखें तो जितना अध्यात्म का लोप हो रहा उतना ही अध्यात्म की तरफ रुझान भी बढ़ रहा है। मानव जीवन में दिन प्रतिदिन परिवर्तन आता जा रहा भौतिक जीवन के चलते प्रत्येक व्यक्ति नाजुक होता जा रहा क्यों कि इतने शंसाधन आते जा रहे है  कि दैनिक कार्यप्रणाली उन्ही पे निर्भर हो गई है । जन्म लेने से आवा गमन पठन पाठन सब आधुनिक आविष्कारों के वसीभूत हो गया है । मैं इनका विरोध नहीं कर रहा अच्छा है समय के साथ परिवर्तन जरूरी पर अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कुछ योगाभ्यास या व्यायाम आदि भी जरूरी है । अब हम मूल विषय के तरफ ध्यान देते है" की ! हर व्यक्ति की इक्षाशक्ति बहुत अधिक होती जा रही और तंत्र उपासक भी बढ़ रहे है । क्यों कि आज के समय में प्रतिक्षा किसी से नही होती जल्द से जल्द  प्रत्येक लक्ष्य प्राप्त हो यही सब की अभिलाषा रहती है। इसी लिए प्रत्येक व्यक्ति तंत्र की तरफ भाग रहा है पर हम यह बता दे कि!  यह सोच सर्वथा मिथ्या है। तंत्र में भी नव भेद होते है । यदि आप उनपे नहीं चल सकते तो कदापि इस मार्ग पर न आयें अन्यथा समय की हानि ही होगी । घृणा, शंका, भय, लज्जा, चुगली, कुल, शील, जाती, एकाकी ।
1- घृणा -  व्यक्ति के मन इन्द्रिय तन मन को जो चीज नहीं भाती उसे घृणित भाव से देखता है वह घृणा कहते है । पञ्चतत्व निर्मित समस्त जीव भगवान शिव की देन है इस लिये घृणा अवरोध पैदा करती है ।
2 - शंका - व्यक्ति का व्यवहार झूंठ, छल, चोरी इस प्रकार का भाव भरा होता है । ऐसा एक साधक में नही होना चाहिए और ऐसे व्यक्ति से दूर रहना चाहिए। जिसपे हमें कदाचित शंका करनी पड़े।
3 - भय - व्यक्ति को अपना परिवार, आत्मीयजन, सम्पत्ति और धन के नष्ट होने का डर भय है । ये तो सांसारिक भय है एक तन्त्र साधक को कौन सा भय नही होना चाहिए । साधक को न मनुष्य से डरना चाहिए न प्रेत से और अपना सार सर्वस्व अपने आराध्य को मनना चाहये , न निर्जन स्थान से भय न श्मशान से भय  न वन से भय तन्त्र साधक को श्मशान और घर में एक जैसा अनुभव होना चाहिए यानी भयमुक्त रहना चाहिए ।

4 - लज्जा - जहां मनुष्य के हृदय में अपमान जैसे शब्द अपने लिए उठे उसे लज्जा कहते है । लोग क्या कहेंगे ? आप स्वयं सोचिये लोगों ने कब आपको नही कहा? अच्छा करोगे तो भी लोग कहेंगे बुरे में तो लोग कहेंगे ही पर ध्यान देने वाला विषय है कि बुरा आप नही करते तो भी लोगों को बुरा लगता है तो अंततः परिणाम यह हुआ कि उसे कुछ कहना है उसी कहने के भय से आप लज्जित होते है और अपनी वास्तविक जिंदगी भी नही जीते , मैं ये कहता हूँ कि ये नश्वर मल मूत्र से बना शरीर है जब इसमें रहने से परमात्मा लज्जित नही होता तो हम क्यों लज्जित होते है इसे उस परमात्मा के मार्ग पर ले चले हम साधना करते है पर कोई देख ले तो हम लज्जित हो जाते है या किसी के यहाँ जाए तो सोचते है क्या कहेगा यदि ऐसा है तो ऐसे स्थान पर जाओ ही नही गए हो तो लज्जा नही अन्यथा आपकी साधना अवरोधित हो जाएगी । ये कदाचित नही होनी चाहिए अन्यथा आप अपनी साधना में स्वयं अवरोध डाल रहे , क्यो की मन के जीते जीत होती है जब मन ही हार गया तो आप कुछ नहीं कर सकते, इस लिए लज्जा नही ।
5 - चुगली - हमें जो आप अलग दिखती है उसे हम इधर उधर गाते फिरते है इसे जुगुप्सा या चुगली कहते है । एक साधक को किसी पे ध्यान नही देना चाहिए ये स्वयं के आत्म विश्वास के साथ आत्म घात है आप स्वयं देखें जो यह कार्य करते है वो कदाचित शान्त नही रह पाते स्वयं में व्यथित रहते है । इस लिये चुगली करनी चाहिये ।
6 - कुल - उच्च कुल में उत्पन्न व्यक्ति अपने आपको बड़ा मानता है पर तन्त्र में इस विषय का कोई मूल्य नहीं है । तन्त्र साधक को इसमें भेद भाव नहीं करना चाहिए तन्त्र में सभी बराबर होते है । तन्त्र में कर्म को प्रधानता दी जाती है और सिद्धि साधना से ही सम्मान  के योग्य होता है ।
7 - शील - अपने आचरण व्यवहार सदाचार ये बहुत जरूरी है। वैसे तो तांत्रिक स्वतंत्र होता है पर उसके अन्दर शिष्टता बहुत जरूरी है । जो आपके साधना का सम्मान करें उसे सम्मान की दृष्टि से देखो जो अपशब्द बोले उसकी तरफ ध्यान ही न दो, शील रखो।
8 - जाति - कर्म को आधार मान कर ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शूद्र ये चार जाति और तीन लिंग जाति है । पुरुष, स्त्री, नपुंशक ये तो निश्चित होती है परन्तु ब्राह्मण क्षत्रीय वैश्य शूद्र इन्हें तन्त्र नही मानता साधक की कोई जाति नही होती सभी साधना कर सकते है और सभी हवन कर सकते है । एक साधक को विवाह भी उसी से करना चाहिए जो स्त्री साधना करती हो अन्यथा आपकी साधना बाधित हो जाएगी । साधनात्मक जीवन नही रहा तो ओ ब्राह्मण भी होगी तो भी व्यर्थ है इस लिए तन्त्र साधक को जाति नही देखना चाहिए ।
9 - एकाकी - तन्त्र साधक को एकाकी यानी अकेले या अपनी पत्नी यानी एकाकी भाव में  साधना करनी चाहिये । एकाकी सम्पूर्ण भाव से एक शक्ति में लीन रहना चाहिए।

Monday 8 January 2018

क्रोध भैरव साधना मार्ग

आज के लेख में हम बात करते है क्रोध भैरव की ये भगवान भैरवनाथ के समस्त रूपों में सबसे गुप्त भैरव साधना है । वैसे ग्रंथ प्रमाण तो ये कहता है कि श्री बटुक भैरव उपासना से शिव के समस्त भैरव रूप की उपासना हो जाती है । पर कुछ विशेष स्थान है जहां विना क्रोध भैरव के उस स्थान की पूर्ण प्राप्ति होही नहीं सकती । वैसे क्रोध भैरव नाम ही अपने मे कह दे रहा कि ये कैसा रूप है । इस रूप से समस्त  भूत प्रेत वश में हो जाते है और देवी देवता भयभीत रहते है । इसी लिए इन्हें वज्र पाणि भी कहते है इनकी उपासना में बहुत अवरोध आता है कोई भी पिशाच नहीं चाहता कि इनकी उपासना हो पाए वैसे तो सत्य तो ये है कि किसी भी भैरव उपासना को कोई भी प्रेत नहीं चाहता कि कोई भैरव उपासना कर पाये, पर भगवान क्रोध भैरव की उपासना तो और कठिन है । यदि आप किसी देवी देवता की सिद्धि कर रहे और वो सिध्दि नही हो रही तब होती है वज्रपाणि साधना । साधना गलत होने पे स्वयं का अरिष्ट निश्चित है। क्यो की क्रोध भैरव ऐसे देवता है जिसपर किसी का जोर नही इसी लिए अघोरी और तांत्रिक ही इनकी उपासना करते है क्यो की यक्षिणी, कर्णपिशाचिनी, भूतिनी जैसी हजारो पिशाची साधना क्रोध भैरव के चरण में निवास करती है । क्रोध भैरव उपासना साधना बिना गुरु के एक बार भी नही करनी चाहिए।  गुरु भी वो हो जो 64 भैरव 10 विद्याओं के बारे में अच्छे से जानता हो और किसी एक भैरव की साधना या सिध्दि हो तब वो गुरु किसी भी पूर्णिमा की मध्य रात्रि एकांत में नीला वस्त्र ओढा के रात भर साधना कराता है । इस लिए क्रोध भैरव का मंत्र मैं यहाँ नही बता सकता । क्रोध भैरव साधना में मन्त्र जाप, भैरव मुद्रा ,वज्र न्यास हवन से साधना की जाती है ।
इनके साधक को साधना काल मे नीला या काला वस्त्र धारण करना होता है । काला कुत्ता तो सभी भैरव को प्रिय है पर इस रूप को बाज भी बहुत भाता है ।