Sunday 21 January 2018

9 भेद तन्त्र साधना के

आज अगर हम देखें तो जितना अध्यात्म का लोप हो रहा उतना ही अध्यात्म की तरफ रुझान भी बढ़ रहा है। मानव जीवन में दिन प्रतिदिन परिवर्तन आता जा रहा भौतिक जीवन के चलते प्रत्येक व्यक्ति नाजुक होता जा रहा क्यों कि इतने शंसाधन आते जा रहे है  कि दैनिक कार्यप्रणाली उन्ही पे निर्भर हो गई है । जन्म लेने से आवा गमन पठन पाठन सब आधुनिक आविष्कारों के वसीभूत हो गया है । मैं इनका विरोध नहीं कर रहा अच्छा है समय के साथ परिवर्तन जरूरी पर अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कुछ योगाभ्यास या व्यायाम आदि भी जरूरी है । अब हम मूल विषय के तरफ ध्यान देते है" की ! हर व्यक्ति की इक्षाशक्ति बहुत अधिक होती जा रही और तंत्र उपासक भी बढ़ रहे है । क्यों कि आज के समय में प्रतिक्षा किसी से नही होती जल्द से जल्द  प्रत्येक लक्ष्य प्राप्त हो यही सब की अभिलाषा रहती है। इसी लिए प्रत्येक व्यक्ति तंत्र की तरफ भाग रहा है पर हम यह बता दे कि!  यह सोच सर्वथा मिथ्या है। तंत्र में भी नव भेद होते है । यदि आप उनपे नहीं चल सकते तो कदापि इस मार्ग पर न आयें अन्यथा समय की हानि ही होगी । घृणा, शंका, भय, लज्जा, चुगली, कुल, शील, जाती, एकाकी ।
1- घृणा -  व्यक्ति के मन इन्द्रिय तन मन को जो चीज नहीं भाती उसे घृणित भाव से देखता है वह घृणा कहते है । पञ्चतत्व निर्मित समस्त जीव भगवान शिव की देन है इस लिये घृणा अवरोध पैदा करती है ।
2 - शंका - व्यक्ति का व्यवहार झूंठ, छल, चोरी इस प्रकार का भाव भरा होता है । ऐसा एक साधक में नही होना चाहिए और ऐसे व्यक्ति से दूर रहना चाहिए। जिसपे हमें कदाचित शंका करनी पड़े।
3 - भय - व्यक्ति को अपना परिवार, आत्मीयजन, सम्पत्ति और धन के नष्ट होने का डर भय है । ये तो सांसारिक भय है एक तन्त्र साधक को कौन सा भय नही होना चाहिए । साधक को न मनुष्य से डरना चाहिए न प्रेत से और अपना सार सर्वस्व अपने आराध्य को मनना चाहये , न निर्जन स्थान से भय न श्मशान से भय  न वन से भय तन्त्र साधक को श्मशान और घर में एक जैसा अनुभव होना चाहिए यानी भयमुक्त रहना चाहिए ।

4 - लज्जा - जहां मनुष्य के हृदय में अपमान जैसे शब्द अपने लिए उठे उसे लज्जा कहते है । लोग क्या कहेंगे ? आप स्वयं सोचिये लोगों ने कब आपको नही कहा? अच्छा करोगे तो भी लोग कहेंगे बुरे में तो लोग कहेंगे ही पर ध्यान देने वाला विषय है कि बुरा आप नही करते तो भी लोगों को बुरा लगता है तो अंततः परिणाम यह हुआ कि उसे कुछ कहना है उसी कहने के भय से आप लज्जित होते है और अपनी वास्तविक जिंदगी भी नही जीते , मैं ये कहता हूँ कि ये नश्वर मल मूत्र से बना शरीर है जब इसमें रहने से परमात्मा लज्जित नही होता तो हम क्यों लज्जित होते है इसे उस परमात्मा के मार्ग पर ले चले हम साधना करते है पर कोई देख ले तो हम लज्जित हो जाते है या किसी के यहाँ जाए तो सोचते है क्या कहेगा यदि ऐसा है तो ऐसे स्थान पर जाओ ही नही गए हो तो लज्जा नही अन्यथा आपकी साधना अवरोधित हो जाएगी । ये कदाचित नही होनी चाहिए अन्यथा आप अपनी साधना में स्वयं अवरोध डाल रहे , क्यो की मन के जीते जीत होती है जब मन ही हार गया तो आप कुछ नहीं कर सकते, इस लिए लज्जा नही ।
5 - चुगली - हमें जो आप अलग दिखती है उसे हम इधर उधर गाते फिरते है इसे जुगुप्सा या चुगली कहते है । एक साधक को किसी पे ध्यान नही देना चाहिए ये स्वयं के आत्म विश्वास के साथ आत्म घात है आप स्वयं देखें जो यह कार्य करते है वो कदाचित शान्त नही रह पाते स्वयं में व्यथित रहते है । इस लिये चुगली करनी चाहिये ।
6 - कुल - उच्च कुल में उत्पन्न व्यक्ति अपने आपको बड़ा मानता है पर तन्त्र में इस विषय का कोई मूल्य नहीं है । तन्त्र साधक को इसमें भेद भाव नहीं करना चाहिए तन्त्र में सभी बराबर होते है । तन्त्र में कर्म को प्रधानता दी जाती है और सिद्धि साधना से ही सम्मान  के योग्य होता है ।
7 - शील - अपने आचरण व्यवहार सदाचार ये बहुत जरूरी है। वैसे तो तांत्रिक स्वतंत्र होता है पर उसके अन्दर शिष्टता बहुत जरूरी है । जो आपके साधना का सम्मान करें उसे सम्मान की दृष्टि से देखो जो अपशब्द बोले उसकी तरफ ध्यान ही न दो, शील रखो।
8 - जाति - कर्म को आधार मान कर ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शूद्र ये चार जाति और तीन लिंग जाति है । पुरुष, स्त्री, नपुंशक ये तो निश्चित होती है परन्तु ब्राह्मण क्षत्रीय वैश्य शूद्र इन्हें तन्त्र नही मानता साधक की कोई जाति नही होती सभी साधना कर सकते है और सभी हवन कर सकते है । एक साधक को विवाह भी उसी से करना चाहिए जो स्त्री साधना करती हो अन्यथा आपकी साधना बाधित हो जाएगी । साधनात्मक जीवन नही रहा तो ओ ब्राह्मण भी होगी तो भी व्यर्थ है इस लिए तन्त्र साधक को जाति नही देखना चाहिए ।
9 - एकाकी - तन्त्र साधक को एकाकी यानी अकेले या अपनी पत्नी यानी एकाकी भाव में  साधना करनी चाहिये । एकाकी सम्पूर्ण भाव से एक शक्ति में लीन रहना चाहिए।

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