Saturday, 26 September 2020

श्री बटुक भैरवनाथ यन्त्र महात्म्य भाग -2

 भगवान श्री बटुक भैरवनाथ जी का यन्त्र सुख संवृद्धि को प्रदान करने वाला पाप ग्रहों का प्रभाव समाप्त करने वाला जीवन को नई दिशा प्रदान करने वाला है । 

प्रथमपद् में हम भगवान के स्वरूप की उपासना करते है । 

करकलितकपालः कुण्डली दण्डपाणिः , 

तरुणतिमिरनीलो व्यालयज्ञोपवीती । 

क्रतुसमयसपर्या विघ्नविच्छेदहेतुः , 

जयति बटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ॥ 

हाथों में कपाल और दण्ड लिए हुए , कानों में  कुण्डल धारण किये हुए , तरुण अवस्थावाले , घोर अन्धकार के समान नीले बालोंवाले , यज्ञोपवीत को धारण किये हुए , यज्ञ के समय पूजित विघ्नों को नष्ट करने के लिए , साधकों को सिद्धि प्रदान करनेवाले , बटुकभैरवनाथ का पूजन करता हूँ।

इस प्रकार के ध्यान से हम भगवान श्रीबटुकभैरवनाथ जी के स्वरूप का ध्यान करते हैंं। इनकी उपासना के समतुल्य कोई उपासना नहीं है। चराचर ब्रह्माण्ड का समस्त सुख बाबा के चरणों में रहता है। बाबा का सम्पूर्ण पूजन नीराजन सम्यक प्रकार यन्त्र पूजन में ही सन्निहित है। यन्त्र उपासना से भगवान श्री बटुक भैरवनाथ सपरिवार प्रसन्न हो जाते है । किसी भी देवी या देवता के सहचर देवी देवता प्रमुख परिवार होते है। उसी प्रकार बटुकनाथ जी के सहचर देवी देवता और गण का पूजन होता है। यह पूजन यन्त्र में ही हो सकता है यन्त्र में सबका स्थान होता है। और उनका विधि प्रकार से पूजन किया जाता है। तन्त्र शास्त्र कहते है -

सन्स्थाप्य तत्र तद्यन्त्रं ध्यात्वा तत्र बटुं प्रिये।

एतद्यन्त्रं  प्रवक्ष्यामि   यन्त्रे देवं  प्रपूजयेत् ।।

पूजन स्थान पर श्रीमद्बटुकभैरव के यन्त्र को (सुन्दर सुसज्जित आसान पर ) स्थापित कर ध्यान करना चाहिए, श्रीमद्बटुकभैरव के यन्त्र को बतलाता हूँ, यन्त्र पर ही श्री बटुकदेव का पूजन करना चाहिए ।।

श्रीमद्बटुकभैरवयन्त्र की व्याख्या करने से पहले इस बात पे प्रकाश डालना आवस्यक है कि यह एक पूर्ण रूप से तन्त्र उपासना है। जिनके आराध्य या इष्ट बाबा हों वही इस यन्त्र को रखे या स्थापित करे। यन्त्र विधान नहीं पता या संस्कृत उच्चारण नहीं सही तो वह साधक अपने गुरु से सम्पर्क कर के ही साधना करे या सबसे अच्छा वह पत्र के यन्त्र पे उपासना करें। 

यन्त्र धातु या रत्न पर बना ले न हो सके तो भोज पत्र  बना के पूजन करें । सोना चांदी तांबा या भोज पत्र पे बने यन्त्र को सामान्य रूपसे भी रख के पूजन किया जा सकता है । ऐसा नहीं है कि पत्र का यन्त्र कम फल देता है रत्न का अधिक दोनों के महत्व बराबर है । साधक के ऊपर है कि वो कितने मन से उपासना करता है ।

परन्तु रत्न पर उभार लिए हुए यदि यन्त्र को स्थापित करते है तो यह सिद्धि तक ले जाता है । 

सभी रत्न उत्तम हैं उनमें से स्फटिक स्वयं में सिद्ध रत्न है और सुख समृद्धि का द्योतक है। क्यों कि स्फटिक शान्ति का प्रतीक है और इसे देवी रत्न माना जाता है, और श्री बटुकनाथ जी को सात्विक रूप में स्फटिक के सदृश्य ही कहा गया है। किन्तु रत्न पर साधना करने वाले साधक को साधना विधि का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है ।

वन्दे बालं स्फटिकसदृशं कुण्डलोद्भासिताङ्गं , 

दिव्याकल्पैर्नवमणिमयैः किङ्किणी नूपुराढ्यैः । 

दीप्ताकारं विशदवदनं सुप्रसन्नं त्रिनेत्रं , 

हस्ताग्राभ्यां बटुकसदृशं शूलदण्डोपधानाम् ॥

स्वच्छ स्फटिक के सदृश , कुण्डल से सुशोभित , दिव्यमणियों से बने हुए नूपूर और किंकिणी से सुशोभित , प्रसन्न , शिव की भाँति पुलकित मुखवाले , कमलवत् करों में सदा शूल और तलवार धारण करनेवाले , बालस्वरूप बटुक भैरवजी का ध्यान करता हूँ ॥

अब यन्त्र का स्वरूप कैसा हो इस तरफ दृष्टि डालते हैं -

यन्त्र में 15 भाग हैं तथा 9 आवरणोंं में सपर्या पूजन होता है ।

बिन्दु -

बिन्दु रूप स्वयं श्री बटुक भैरवनाथ जी है ।

त्रिकोण-

पार्वती + शंकर, लक्ष्मी + विष्णु, सरस्वती + ब्रह्मा विराजमान हैं।

पञ्चकोण -

अघोर, वामदेव, सद्योजात, ईशान, तत्पुरूष विराजमान हैं।

अन्तः पञ्चकोण -

पूर्व, उर्ध्व, उत्तर, दक्षिण, पश्चिम प्रतिष्ठित है ।

षड् दल - गुरु मण्डल :-

सिद्ध शाबरनाथ, सहजानन्दनाथ, निःसीमानन्दनाथ, भूतनाथ, आदिनाथ, आनन्दनाथ विराजमान हैं ।

अन्तः षड्दल- श्री बटुक भैरवनाथ जी का पुत्र रूप में उमादि का पूजन :-

उर्ध्वमुखिपुत्र, अधोमुखिपुत्र, व्यापकोन्मुखिपुत्र, उमापुत्र, रुद्रपुत्र, मातृपुत्र विराजमान हैं ।

इस प्रकार आगे जितने कोण और दल होंगे उतने देवी देवता के साथ श्री बटुकनाथ जी का पूजन होगा । संक्षिप्त में प्रकाश डालता हूँ - 

अष्टकोण - 

काकिनी, शाकिनी, हाकिनी, यकीनी, देवि, डाकिनी, लाकिनी, राकिनी विराजमान हैं ।

अन्तः अष्टकोंण -

चामुण्डा, ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, वाराही, नारसिंही, महालक्ष्मी ( यहीं पर दश महा विद्याओं का भी पूजन होता है )

 अष्टदल -

  रुरु भैरव, चण्ड भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाल, भीषण, संहार, असितांग भैरव विराजमान हैं ।

 षोडश कोण -

 भारभूतेश, अतिथीश, स्थाणवीश, हरेश, झिंटिश, भैतिकेश, अनुग्रहेश, सद्योजातेश, अक्रूरेश, महासेन, कण्ठेश, अनंतेश, सूक्ष्मेश, त्रिमूर्ति, अमरेश, अर्धीश विराजमान हैं ।

 अन्तः षोडश कोण - 

 एकनेत्रेश, चतुराननेश, अजेश, सर्वेश, सोमेश, लाङ्गलीश, दारकेश, अर्धनारीश्वर, उमाकान्तेश, आषाढीश, क्रोधीश, चण्डेश्वर,  शिवोत्तमेश, पञ्चान्तकेश, एकादशरुद्रेश, कूर्मेश विराजमान हैं।

 षोडश दल -

 छालगेश, द्विरण्डश, महाकालेश, वालीश, भुजंगेश, पिनाकीश, खड्गीश, केशवेश, श्वेतेश, भृग्विश, चण्डिश, आन्त्रीश, मीनेश, मेशेष, लोहितेश, शिखीश विराजमान हैं।

 भूपुर के अंदर चारो तरफ दो - दो अष्ट वीर विराजमान हैं।

 भूपुर की प्रथम रेखा -

 भीमरूप , अचल, कराल, वेताल आदि विराजमान हैं।

 भूपुर की दूसरी रेखा - 

 गणेश, क्षेत्रपाल, भैरव, लकुलीशलक्ष्मी, नवदुर्गा आदि विराजमान हैं।

 भूपुर की तृतीय रेखा -

 सोम, इन्द्र, अग्नि, वायु, यम, वरुण आदि विराजमान हैं ।

 जहां भूपुर समाप्त होगा उसके बाद बाबा के अस्त्र रखे हैं - 

 त्रिशूल, पद्म, वज्र, शक्ति, गदा, दण्ड, पाश, चक्र, खड्ग, अङ्कुश, सर्प मेखला ।

 इस प्रकार श्री बटुक भैरव यन्त्र विराजमान होता है । महाशक्ति से सुसज्जित अखण्ड शक्ति से भरा है । प्रतिष्ठित होने के बाद जब साधक की सेवा से यन्त्र सिद्ध हो जाता है तो मणिरूप हो जाता है । यन्त्र प्रतिष्ठित करें तो किसी योग्य जानकार साधक से ही प्रतिष्ठा करायें । जो सेवा नहीं कर सकते मात्र धूप दीप दिखाने के लिए रखना चाहते हैं वह ताम्र, सोना या चाँदी के पत्र पर बनवा कर घर में विराजमान कर सकते हैं । किन्तु जो साधना की दृष्टि से स्थापित करना चाहते हैं, वह गुरु से सीख कर ही करें । 

 

 




Thursday, 10 September 2020

श्री बटुक भैरवनाथ यन्त्र उपासना महात्म्य भाग 1

 भगवान श्री बटुक भैरवनाथ जी के बारे में समस्त साधक को पता होता है । चराचर ब्रह्माण्ड में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवान भोले नाथ के बाल रूप स्वरूप श्री बटुक नाथ जी ही हैं । 

बाबा की साधना में एक अद्भुत अमृत सर का अनुभव होता है ऐसा प्रतीत होता है । सब कुछ इन्ही में है और ब्रह्माण्ड में कुछ है ही नहीं । वास्तविकता में देखें तो यह एक कटुक सत्य है इसमें संदेह नहीं करना चाहिए । बाबा की उपासना और साधना से साधक जीवन के सभी आयामों के साथ भुक्ति मुक्ति प्राप्त करता है । उसे मृत्योपरान्त कैलाश वास मिलता है । भगवान बटुक भैरवनाथ जी के जो साधक है वो इनके बारे में हमेशा जिज्ञासू भाव से जानने का प्रयास ही करते रहते है कि बाबा की साधना में और क्या ऐसा कर दें कि प्रभू की पूर्ण क्षाया हम पर हो जाये । पर दुःख तब होता है जब इतना प्रयत्न के बाद भी कोई जानकारी नहीं प्राप्त होती सामान्य रूप से कुछ मंत्र भोग पाठ ही प्राप्त होता है और हमें वह गूढ़ साधना विधि का परिचय नहीं हो पाता है । वैसे सत्य यह भी है कि बाबा थोड़े में प्रसन्न होते है । अपितु हम अभी भी उस अमृत सुख के स्वाद से वंचित रहते है। सभी गुप्त साधनाओं का कुछ न कुछ मार्ग मिल ही जाता है पर हमारे बाबा अत्यंत गुप्त रूप में रहते हैं ।इस लिए इनकी साधना का वो पड़ाव पाने के लिए भक्त जन्मों जन्म आतुर रहता है । शिव से बड़ा हितकारी और दयालु कोई न है न होगा फिर उनके बाल रूप के बारे में तो कहना ही क्या है।

शिवागम् सार में वर्णित है -

अन्ये देवास्तु कालेन प्रसन्नाः सम्भवन्ति हि । 

वटुकः सेवितः सद्यः प्रसीदति ध्रुवं शिवे ॥६ ॥

अन्य देवता तो बहुत काल तक उपासना करने पर प्रसन्न होते हैं, लेकिन बटुक भैरवनाथ जी साधकों द्वारा अल्पकाल की उपासना से ही प्रसन्न हो जाते है ।

  क्षण मात्र में प्रसन्न होने वाले देवता बटुकनाथ जी जरूर है, पर इनकी साधना अत्यन्त गुप्त है । तंत्र ग्रन्थों में मैने जो पाया उसको प्रमाण मानकर बताता हूँ कि साधक जबतक श्री बटुक भैरव यन्त्र की उपासना नहीं करता तब तक वह श्री बटुकनाथ जी तक नहीं पहुंच पाता और इनका यन्त्र अत्यन्त गोपनीय है । यन्त्र भगवान का भवन और उनका निवास स्थान माना जाता है जिसमें उनके सहचर सभी देवी देवता रहते है । इस लिए यन्त्र पूजा तो सबसे बड़ी होती ही है । वो चाहे किसी की भी क्यों न हो । जिस प्रकार श्री यन्त्र की उपासना से भगवती त्रिपुराम्बा महारानी राजराजेश्वरी प्रसन्न हो जाती है । और उस यन्त्र में वास कर साधक का कल्याण करती हैं। पर उनको रखना सबके वस का नहीं एक साधक ही रख सकता है । व्यक्ति सोचता है श्री यन्त्र को रख लिया अब लक्ष्मी का वास हो जायेगा तो यह एक भ्रम है श्री यन्त्र के प्रत्येक कोण में देवी देवताओं का वास होता है । उनका आवाहन पूजन तर्पण करना होता है । उसी प्रकार श्री बटुक भैरव यन्त्र का भी विधान है और प्रत्येक कोण में प्रतिष्ठा होती है और फिर जा कर भगवान श्री बटुक भैरव नाथ जी का पूर्ण रूप प्राप्त होता है । किसी भी देवता की साधना सिद्ध के लिए यन्त्र उपासना अत्यन्त आवश्यक होती है । यन्त्र की उपासना से समस्त सुख प्राप्त  होता हैं । श्री बटुक भैरवनाथ जी के यन्त्र में क्रमशः 15 भाग में आवरण पूजा होती है । यन्त्र को रखना सरल है । पर जब तक पूर्ण रूप से सेवा न कर सकें तब तक आपके लिए यन्त्र उपासना नहीं है । यन्त्राधिष्ट देवी - देवता को प्रतिदिन सपर्या के पहले उठाना और सपर्या के पश्चात चलित विषर्जन (शयन) कराना आवस्यक है । कहने का सार यह है कि श्री बटुकनाथ जी की उपासना में यन्त्र उपासना अत्यन्त आवश्यक है । नियमानुसार साधक को उसी पे साधना करनी चाहिए । इस यन्त्र की विधि पूर्वक जिस भी घर या देवालय में स्थापित कर सेवा होती है वहां पे क्रूर ग्रहों का प्रभाव समाप्त हो जाता है । प्रेत बाधायें या तो उस स्थान को छोड़ देती हैं नहीं तो दास बन घर वालों की रक्षा करती है । वस्तु दोष कितना भी अधिक हो सब बाबा के प्रभाव से उसका प्रभाव नहीं होता है ।  इस लेख में हम महात्म्य बता रहे आगे के लेख में श्री बटुक यन्त्र की रचना के बारे में बतायेंगे । श्री बटुक भैरव यन्त्र अत्यन्त दुर्लभ यन्त्र है । इस यंत्र की उपासना अपने गुरु के अनुसार ही करनी चाहिए ।

Wednesday, 3 June 2020

जून 2020 के ग्रहण

आज का हमारा विषय है जून मास में पड़ने वाले ग्रहण। जून मास में कौन से ग्रहण है ? और वो कब  हैं ? उनका आध्यात्मिक महत्व क्या है ? जून मास में दो ग्रहण लग रहे हैं । एक 5 जून 2020 को और दूसरा 21 जून 2020 को लग रहा है । ग्रहण का दो अर्थ है किस वस्तु या जीव को स्विकार करना या किसी को बल स्वरूप पकड़ना,  तो साधक को इस विषय में भी जानना आवश्यक है । क्यों की कथा कथित tv पे फेसबुक पर ज्योतिषियों का वक्तव्य मिल जाता है की इस दिनाँक को ग्रहण है । जिससे साधक भ्रमित हो जाते हैं। अब हम चलते हैं  ग्रहण की तरफ कि क्या है ग्रहण ?पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूम रही है। चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर घूम रहा है। इन गतियों में ऐसा हो जाता है कि चन्द्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी के आ जाने से चन्द्रमा को सूर्य से प्रकाश नहीं मिल पाता और चन्द्रमा पर पृथ्वी की परछाईं पड़ जाती है । और कभी-कभी चन्द्रमा भी सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो सूर्य का प्रकाश धुंधला पड़ जाता है और चन्द्रमा की परछाईं पृथ्वी पर पड़ने लगती है । इन दोनों परिस्थितियों में  सूर्य की रोशनी धुँधली पड़ने से अमावस्या को सूर्य ग्रहण और चन्द्रमा की रोशनी (पूर्णिमा का) धुँधली पड़ने से चन्द्रग्रहण हो जाता है । चन्द्रग्रहण की अपेक्षा सूर्यग्रहण अधिक होते हैं, लेकिन लोगों को इसके विपरीत ज्ञात होते हैं, क्योंकि चन्द्रग्रहण आधे भूतल से देखा जा सकता है । सूर्यग्रहण बहुत थोड़े स्थानों में दिखाई पड़ता है । इस प्रकार जो ग्रहण लगते है उनका अध्यात्मिक महत्व होता है । इसी प्रकार  चन्द्रमा जब पृथ्वी के हल्के भाग से निकलता है, बिम्ब मात्र रहता है तो उसे पेनुम्ब्रा कहते है। चन्द्रमा जब पेनुम्ब्रा  से होकर निकलता है, तो यह उपच्छाया ग्रहण लगता  है । जिसका अध्यात्मिक कोई भी महत्व नहीं है । न ही इसमें कोई भी ग्रहण में किया जाने वाला कर्मकाण्ड किया जाता है । इसी लिए इस ग्रहण के बारे में पञ्चाङ्ग में कोई विवरण नहीं प्राप्त होता है । 
अध्यात्म में मात्र उसी ग्रहण की मान्यता है जिसे हम अपने नेत्र से देख सकें । यहाँ तक की यदि हमारे शहर या देश में जो ग्रहण न दिखे विदेशों में दिखे और उसका पञ्चाङ्ग विवरण भी प्राप्त हो तो वह ग्रहण भी ग्राह्य नहीं है । 
इस लिए 5 जून 2020 को जो ग्रहण लग रहा यह उपच्छाया चन्द्र ग्रहण है । इसका अध्यात्मिक कोई भी महत्व नहीं है । 
उपच्छाया चन्द्रग्रहण - 
स्पर्श - 11:15 pm
मध्य - 12:54 am
मोक्ष - 02:34 am
इस ग्रहण की कुल अवधि 3:18 मिनट है । 
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सूर्य ग्रहण कब होता है? पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए जब चन्द्रमा काफी दूर निकल जाता है और वह सूर्य के सामने आ जाता है, तो पृथ्वी के कुछ स्थानों पर धुंध सा छा जाता है वह सूर्य ग्रहण है । बहुतायत संख्या में एक प्रश्न लोग पूंछते है कि, खण्ड सूर्य ग्रहण क्या है ? जब चन्द्रमा सूर्य के सामने आता है और वे सीधी रेखा में नहीं आ पता कुछ अंश ही ढंकता है तो उसे खण्ड सूर्य ग्रहण करते है । जब पूरा सूर्य के सामने एक सीधी रेखा में आ जाता है तो उसे पूर्ण ग्रहण या चूड़ी के आकृति का दिखने से वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते है । 

21 जून 2020 रविवार को लगने वाला यह सूर्य ग्रहण भारत में दृश्य है । और इस ग्रहण की धार्मिक मान्यता भी है । इसका विवरण पञ्चाङ्ग में भी है । 
 अब हम आध्यात्मिक रूप को भी बताते है । एक ज्योतिषी और तान्त्रिक होने की वजह से दोनों भावों को स्पष्ट करना मेरा कर्तव्य है । यदि कोई भी बात छूट जाए तो आप पूंछ सकते हैं । अब हम विषय की तरफ बढ़ते हैं । राहु के द्वारा सूर्य ग्रहण और केतु के द्वारा चन्द्र ग्रहण लगता है । ऐसी धात्मिक मान्यता है और हमें ग्रंथों में प्राप्त भी होता है, यह सत्य भी है । ग्रहण काल में किया जप पुरश्चरण को प्रदान करता है । जिस फल को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति वर्षों मेहनत करता है, वह कुछ घंटों की मेहनत से प्राप्त हो जाता है । इसी लिए तन्त्र में एक गजेश्वर योग बनता है । गजेश्वर आदि शङ्कराचार्य जी ने गणेश जी के लिए कहा है । क्यों की गणेश जी का गज का मुख है और वह बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते है । और जल्द ही हर कार्य को करते है । हर कार्य का उनको संक्षिप्त रूप पता है । जैसे उन्हों ने अपने माता पिता यानी भगवान शिव माता पार्वती की परिक्रमा करके पूरे ब्रह्माण्ड के तीर्थ भ्रमण का फल प्राप्त कर लिया । तन्त्र में भी इसी नाम से ग्रहण के लिए भी कहा जाता है की ग्रहण काल में जो जप किया जाता है उस जप से पुरश्चरण का फल प्राप्त हो जाता है । 
 21 जून 2020 को लगने वाला सूर्य ग्रहण तन्त्र साधकों के लिए तो ऐसा है जिसके लिए तान्त्रिक प्रतीक्षा करता है की यह हमें प्राप्त हो । श्री बटुक भैरव या दश विद्या के साधकों के लिए,  यह अमृत कलश के तुल्य है । अब आप क्या करते हो ये आपके गुरु द्वारा जो दिया गया हो उसे सिद्ध करें । वैसे भी  सूर्य ग्रहण में गायत्री या इष्ट का मन्त्र सिद्धि को प्रदान करता है । ये ग्रहण रविवार को लग रहा तो साधकों को हम बताना चाहते हैं की रविवार को जब सूर्य ग्रहण लगता है तो ज्योतिष शास्त्र में इसे चूड़ामणि योग कहते है । ये सिद्धि का भण्डार होता है । तान्त्रिक इस योग के लिए प्रतीक्षारत रहता है । 
 सूर्य ग्रहण में 12 घण्टे पूर्व से ही सूतक काल लग जाता है । 20 जून 2020 की  रात्रि 10:30 pm सूतक लगेगा। सूतक काल से ग्रहण काल तक साधक को खान पान छोड़ देना चाहिए । जप करते रहना चाहिए । बच्चे, रोगी और वृद्ध के लिए छूट है । 
 जब ग्रहण लगे तब स्नान करें फिर जप करें, मोक्ष के कुछ समय पहले पुनः स्नान करके घी से हवन करें । फिर सूर्य अर्घ दें और गेंहूँ के अन्न का दान निकालें और उसे डोम या मेहतर को दान दें ब्राह्मण को भूल से भी न दें । क्यों की ग्रहण का दान ब्राह्मण का नहीं होता । 
 एक प्रमुख बात यह ग्रहण दो रूप में लग रहा पहला कंकडाकृत पूर्ण रूप घं0 4 मि0 12 का होगा वहीं दूसरा रूप खण्ड रूप में है,  कंकड़ाकृत सर्य ग्रहण भारत के उत्तरी भाग में ही दृश्य होगा । और स्थानों खण्ड रूप में मध्य मोक्ष ही दिखेगा ।

कंकड़ाकृत सूर्य ग्रहण काल - 
स्पर्श - 10:30 am
मध्य - 12:17 pm
मोक्ष - 14:04 pm
जिसकी अवधि घं0 4 मि0 12 होगी 

विशेष - जो लोग ग्रहण स्नान करके सूर्य अर्घ नहीं देते शास्त्र कहते है वह अगले सूर्य ग्रहण तक अशुद्ध ही रहते है ।

Saturday, 15 February 2020

हिन्दी अष्टोत्तरसत नाम पाठ

आज मैं अपने आराध्य देव भगवान श्री बटुक भैरवनाथ जी के उपासकों के अनुरोध पे अष्टोत्तरसतनाम हिन्दी में लिख के दे रहा हूँ । वैसे संस्कृत में जो पाठ है वह ज्यादा सिध्दि प्रद है क्यों की वह रुद्रयामल तन्त्र से प्रमाणित है । पर ऐसा नही है की इसे पढ़ने से कोई लाभ नहीं होगा बाबा भक्त वत्सल देवता है। तो आप हिन्दी में भी पाठ कर सकते हो ।
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नमो-नमो भैरव सिधि दाता, भूतनाथ भव भयतें त्राता ।
भूतात्मा भूतल उजियारे। बटुक भूत-भावन मतवारे ॥१॥
क्षेत्रद क्षेत्रपाल सुरराटा, क्षत्रियवर क्षेत्रज्ञ विराटा ।जय श्मशानवासी शुभनामा, मांसाशी प्रभु मंगलधामा ॥२।।
नमो खर्पराशी भगवन्ता , जय स्मरान्तक रूप अनन्ता ।
हे खरान्तक अतिबलवाना, हे मखान्तक सर्वसुज़ाना ।।३।।
रक्तप तोहि बहुरि सिरनाऔं, पानप-सिद्ध हृदय महँ ध्याऔं ।
रक्तपान तत्पर बलि जाऔं। पुनि-पुनि प्रभु तोहि सीस नवाऔं ।।४।।
 सिद्धिद देव सिद्धि के नाथा, सिद्ध सुसेवित सेवक साथा ।
 जय कंकाल कुटिल पर नाशी, कलशमन जय सब सुख राशी ।।५।।
नमों कलाकाष्ठा-तनुधारी, जय-जय कवि सर्वज्ञ सुखारी।
जय त्रिनेत्र बहुनेत्र नमामि, पिङ्गललोचन शरण व्रजामि।।६।।
शूलपाणि जय दीन दयाला, खड्गपाणि जय परम कृपाला।
 कंकाली तोहि कोटि प्रणामा, जयतु धूम्रलोचन शुभ नामा।।७।।
जय अभीरू जय भैरव नाथा, भूतप योगिनिपति शुचि गाथा ।
नमो धनद धनहारी देवा, जय धनवान विश्वसुख देवा ॥८॥
जय प्रतिभावान सुरस्वामी, जय प्रतिभावित अन्तर्यामि ।
नागहार तब चरण नमामि, देव! दयामय सदा भजामि।।९।
गपाश जय-जय सुरसांई, व्योमकेश जय प्रभो गुसांई ।
नागकेश जय-जय सुरराया, कीजै नाथ भक्त पे दाया।।१०॥
जय कपालभृत् काल कराला, जय कपालमाली जगपाला ।
जय कमनीय कालानिधि त्राता, जयतु त्रिलोचन आनन्ददाता।।११।।
लन्नेत्र त्रिशिखी तोहि ध्याऔं, नमो त्रिलोकप सब सिधि पाऔं।
जय त्रिनेत्रतनय सुखराशी, जय हे डिम्भ। नित्य अविनाशी ।।१२।।
जय हे शान्त। भक्त वरदाई , डिम्मशान्त प्रभु भक्त सहाई ।
शान्त जनप्रिय दीन दयाला, नमो बटुक बहुवेष कृपाला ॥१३॥
जय खट्वाङ्गवरधारक देवा, भूताध्यक्ष करैं सुख सेवा।
जय-जय पशुपति भिक्षुक देवा, जय परिचारक जन-मन-मेवा ।।१४।।
 जय परिवारक जग के स्वामी, तुम कहँ बारम्बार नमामि।
धूर्त दिगम्बर शूर भजामि, हरिण पाण्डुलोचन जय स्वामी।।१५।।
जय प्रशान्त हे शान्तिद शुद्धा, सिद्ध युद्ध-जयकारी बुद्धा।
 हे शंकरप्रियबान्धव नामी, शंकरप्रिय-बान्धव शुभ कामी।।१६।।
अष्टमूर्ति जय देव निधीशा, ज्ञानचक्षु तपोमय ईशा ।
अष्टाधार नामो सुर स्वामी, षडाधार जग अन्तर्यामी।।१७।।
सर्पयुक्त शिखिसख भूधर जय, जय भूधर अधीश मंगलमय।
भूपति भूधर आत्मज दाता, भूधर आत्मक सब जग त्राता।।१८।।
जय कंकालधारि सुरनाथा, मुण्डी तोहि नवावौं माथा।
नाग यज्ञ-उपवीत विराजै, आन्त्रयज्ञ उपवीत सुसाजै ॥१९॥
जृम्भण मोहन स्तम्भन स्वामी, मारण क्षोभण जगसुख कामी।
हे गुरुदेव ज्ञान के दाता, भोग मोक्षप्रद कृपा विधाता।।२०।।
शुद्ध नील अञ्जन प्रख्याता, देव दैत्यहा सेवक त्राता ।
 मुण्ड विभूषित छवि सरसाये, सकल सुमङ्गल मूल सुहाये।।२१।।
बलिभुक् तुम प्रभु बलिभुङ् नाथा, बाल अबाल पराक्रम साथा।
जय सर्वाप्तारण स्वामी, दुर्गरूप प्रभु अन्तर्यामी ।।२२।।
दुष्ट भूत-निषेवित देवा, कामी कामफलप्रद सेवा। जयतु कलानिधि कान्त सुनामी, कामिनीवशकृत तोहि नमामि ॥२३॥
सकल जगत वशीकुत नामा, कामिनिवशकुत वशी ललामा।
देव जगत रक्षा कर जय-जय, अनन्त माया मन्त्रौषधि-मय।।२४।।
 सर्व सिद्धिप्रद वैद्य महाना, हे प्रभु विष्णु विवेक निधाना।
 तुम विभु अखिल-विश्व सरसाओ, भक्तभरणकरि सुयश कमाओ।।२५।।
अष्टोत्तर शतनाम स्वरूपा, कल्पवृक्ष यह परम अनूपा ।
जपत जीव सब मंगल पावै, सकल कामना तुरत पुरावै।।२६।।
दुरित भूत भय मारी भीति, जपत मिटै पल में सब ईती।
राज शत्रु ग्रह भय नहिं लागै, भैरव स्तवन करत दुख भागै ।।२७॥
अष्टोत्तर शत नाम शुभ, जपत धरै नित ध्यान।  तिनकहँ भैरव लाडिले, सदा करैं कल्याण ।।२८।।
 ------------जय बटुक भैरवनाथ ----/