Tuesday, 27 December 2016

आर्य और अनार्य

आर्य का अर्थ मूल भारतीय इन्ही के नाम से भारत को आर्यवर्त कहा जाता था पहले आर्य तिब्बत की पर्वतीय मूल शृंखलाओं में रहते थे जिसके पास दैवीय ज्ञान यानी वेद का ज्ञान होता है उन्ही को आर्य कहा जाता था भारतीय ग्रंथो को देखें तो आर्य और पाश्चात्य विद्वान मध्य एशिया के पामीर प्रदेश को आर्यों का प्राचीन देश मानते है | परन्तु पण्डित श्री बालगंगाधर तिलक जी ने यह सिद्ध किया कि वेदों का उदय उत्तरी ध्रुव के समीप में हुआ एक मत यह भी है कि आर्य लोग सप्तसिन्धु अर्थात पंजाब में ही रहते थे| यह निर्विवाद है कि भारत वर्ष में आर्य का पहला निवास पंजाब मे ही था | पंजाब के पश्चिम मे स्थित प्रदेशों को आर्य तिरस्कार कि दृष्टि से देखते थे, इसी प्रकार पूर्व के प्रदेश भी तिरस्कार कि दृष्टी से देखे जाते थे जैसे जैसे समय बढ़ता गया फिर आधुनिक इतिहास कारों के अनुसार पूर्व के प्रदेश अनार्यो के अधिकार में होने के कारण प्रारम्भ में तिरस्कृत थे जैसे जैसे वे आर्यों के अधिकार में आते गये वैसे वैसे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती गई | पंजाब के चारों तरफ अनार्यों कि संस्कृति प्रचलित थी | इस दृष्टि में अब हम काशी पे विचार करेंगे और यह देखने का प्रयत्न करेंगे कि वेदों के संहिताकाल से पुराणों के समय तक इस तीर्थ का क्या स्वरूप था और किस प्रकार विकसित होकर यह अपने स्वरूप तक पहुंचा | इन सहस्रों वर्षों में वैदिक धर्म का विकास भी हो रहा था नई नई रूढ़ वादी परम्पराएँ स्थापित हो रही थी देखा जाय तो रूढ वादी सोच आज के लोगों में भी भरी है हमारा मानना है रूढ वादी सोच देश के लिए हो धर्म के लिए हो अपितु लोगों की सोच जाति छुआ छूत के लिए भरी है देखा जाय तो काफी सुधार हुआ है प्राचीन काल में बहुत अधिक था | अपितु यहाँ काफी प्राचीन समय की बात चल रही | अनार्य धर्म की पुरानी मान्यताएँ भी इन नवागंतुक विचारधाराओं से प्रभावित होकर नये स्वरूप धारण कर रही थी और इस प्रकार भारत का स्वरूप निखर रहा था |धार्मिक विकास की यह परम्परा पुराणकाल के बाद भी अक्षुण रूप से चलती रही थी और अब भी चल रही है और जैसा हम आगे देखेंगे की इस विकास मे काशी का बहुत बड़ा हाथ रहा है | काशी को आज वाराणसी के नाम से जानते है |

Tuesday, 13 December 2016

IMPORTANCE OF RELIGIOUS PLACES

प्रत्येक धर्म का यही उद्देश्य होता है कि दैनिक कृत्य या दिनचर्या के साथ साथ ईश्वर की आराधना की जाय और सबकी आराधना का तरीका भी भिन्न है और प्रत्येक धर्म में तीर्थ का मुख्य स्थान है, ईशाई येरुशलम को अपना मुख्य मानते है मुस्लिम मक्का-मदीना को पुनीत या पाक मानते है बौद्ध धर्मावलम्बी लुम्बिनी, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर की यात्रा करते है और जैन धर्म के लोग गिरिनार और पार्श्वनाथ पर्वत के दर्शनों को पुण्यात्मक मानते है । प्रत्येक धर्म का अपने तीर्थ में विश्वास है की तीर्थयात्रा से पुण्य का लाभ होता है और भगवत कृपा की प्राप्ति होती है अब आती है सनातन धर्म यानी हिन्दू धर्म सबसे प्राचीन धर्म और सबसे ज्यादा मत् भी इसी धर्म में है और सब अलग भी है प्रत्येक धर्म की भाँति हिन्दू धर्म में पूजनीय देवी देवताओं का रूप भी एक नहीं है इस लिए तीर्थो की संख्या भी अधिक है, इनमें से प्रधान तीर्थ तीन है  काशी, प्रयाग, गया इसी प्रकार सात पुरी है अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची (काँची पुरम), अवन्तिका ( उज्जैन ), द्वारिकापुरी  चारधाम जिनकी यात्रा आदिशंकराचार्य जी महाराज ने हिन्दू धर्म में प्रमुख बताई और वहीँ चार पीठ की स्थापना की पूर्व में जगन्नाथपूरी (गोवर्धनपीठ), पश्चिम में द्वारिकापीठ, उत्तर में बद्रीनाथ ( ज्योतिषपीठ), दक्षिण में श्रृंगेरीपीठ हिन्दू धर्म में इनका अपना माहात्म्य है धार्मिक जीवन में इनका समावेश हो ही जाता है ।
सात्विक जीवन पुण्यमय होता है , तीर्थयात्रा के समय प्रत्येक व्यक्ति सात्विक भाव और सात्विक दिनचर्या में रहता है और रहना भी चाहिए क्यों की तीर्थ यात्रा में जो पुण्य प्राप्त होता है वह बहुत ही दुर्लभ होता है । तीर्थ में सात्विक वास करने का भी माहात्म्य है, जीवन की अन्तिम दिनों में प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है की तीर्थवास मिले और बहुतों को भगवत कृपा से प्राप्त भी होता है, तीर्थ में स्नान, दान, जप, तप, पूजन, भजन का अधिकाधिक फल होता है । 
 अगले लेख में हम बात करेंगे आर्य का पश्चिमी सभ्यता का विरोध करना .........

The goal of every religion is that along with daily routine one does the worshiping of God and the ways of worshiping varies as per religion but all of them signify the importance of Holy place. Christian consider Jerusalem as their holy place, for  Muslims  it is Mecca Madina, for Buddhist it is Lumbini, Bodh gaya, Sarnath, Kushinagar, for followers of Jainism it is Girinar & Parshwanath and hence they travel to these places.  
The belief of followers of every religion is that they are blessed after visiting their holy places and the bliss of God is bestowed upon them.
Now let us look upon Hindu religion or the religion which is most ancient in origin and is filled with different believes. Unlike other religions the holy diety is not one and thus there are many religious places and each has its own importance. Among them 3 are main Kashi, Prayaag & Gaya and there are 7 Puri's Ayodhya, Mathura,Haridwar, Kanchi Puram, Awantika,Ujjain and  Dwarikapuri. Chardham whose importance is described by Adishankaracharya ji Maharaj they are Jagannathpuri ( Govardhan peeth ) in East, Dwarikapuri in West, Badrinath( Jyoti peeth) in North & Shringari peeth in South. They have immense importance in Hindunism and hence are interwoven in our cultures.
Satvik life is a bliss, while the person is on his way to visit religious places his mind and body follows the path of purity or satvik routine and this is very important as bliss can't be attained easily. Dwelling in the religious place has its own importance and thus everyone wishes to live in such place at the time of end of their lives and few are often blessed to attain it. Bathing,Alms,chants,prayers & Bhajans in such places add to the virtue.
In next prose we'll talk about why do nobles abandon Western culture? ......

Friday, 9 December 2016

Towards Moksh

मोक्ष की ओर

मानव प्राचीन समय
से भिन्न भिन्न धर्म परम्पराओं को अपने जीवन में लक्ष्य के रूप में विचार करते आये है , और देश काल के अनुसार इनमें परिवर्तन भी होते रहे है और जो परिवर्तन हुए, वही विभिन्न सम्प्रदाय बन गए ।
किन्तु समस्त सम्प्रदाय अपने बनाये गए महापुरुषों के सत् मार्ग पे ही ले जाते है  सबसे प्राचीन वैदिक धर्म के अनुसार धर्म , अर्थ, काम, मोक्ष ये जीवन के चार लक्ष्य है इन्हें पुरुषार्थ चतुष्टय भी कहा जाता है । जिसमें मोक्ष सबका लक्ष्य होता है और धर्म, अर्थ, काम ये चार सीढ़ियाँ है जिनके माध्यम से व्यक्ति मोक्ष तक पहुँचता है धर्म के बिना सब व्यर्थ होता है "धर्मो विश्वष्य जगता प्रतिष्ठा " चरा चर ब्रह्माण्ड में जो कुछ होता है वो धर्म ही करता है धर्म के बिना सात्विक कर्म की प्राप्ति सम्भव नहीं और बिना धर्म अर्थ के सात्विक कामनाओं की पूर्ति सम्भव नहीं रही मोक्ष की कामना तो वो सर्वोच्च स्थिति है ।
सरल बनने का सत मार्ग धर्म है शारीरिक, वाचिक, कौटुम्बिक, सामाजिक, वैधानिक, नैतिक नियम पर चलना धर्म है और इनकी अवहेलना अधर्म है ।
धर्म का चिन्ह नन्दी बैल है शिव मतलब कल्याण होता है  नन्दी बैल जिसपर भगवन शिव बैठते है तो इससे यह सिद्ध होता है कि ' धर्म करोगे तो कल्याण सम्भव है । पर मोक्ष बहुत ही दुर्लभ प्राप्ति है क्यों की देश काल के अनुसार नियम बदलते रहते है गृहस्थ आश्रम का पालन करते हुए सात्विक जीवन यापन सफलताओं की आधारशिला है , पर इतने से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी,  इसके साथ साथ देव आश्रम में प्रवेश करना होता है और भगवत कृपा प्राप्त करने का प्रयत्न करना होता है पूजन, वेद पाठ, हवन, भजन, तीर्थ यात्रा, गंगा स्नान ही सुलभ मोक्ष मार्ग है ।


Towards Moksh
From the primeval times humans had the quest for adopting different religious cultures as a part of their life and as the history depicts these reformations  lead to formation of different religious groups.
But all the religions direct us to the path guided by their ordained religious leaders. The most primeal Vedic religion entitles 'Dharma -Righteousness,virtuous', 'Artha- Wealth,material prosperity', 'Kaam- sensuality,emotional fulfilment' and 'Moksha - emancipation as the 4 goals of human life  which are mentioned as " Purusharth Chatushtay" in Veda's. Among them Emancipation or Moksh is the ultimate goal and the Dharma,Artha and Kaam are the stairs to Moksh. Without Dharma every effort goes in vain. The Veda quotes this as ' Dharmo Vishwashya Jagta Pratishtha'. All the eventualities in this world are the outcomes of Dharma ' without which one cannot achieve Karma'. Without being virtuous one can't even achieve emotional fulfilment then aiming for Emancipation or Oneness with God is immpossible.
To direct oneself towards a simple and pure soul one has to follow Dharma. The path which guides towards purity of health, verbal purity, purity of mind in relationships, purity of action or deeds and purity in social aspects is Dharma and contradicting these virtues is Adharma. Dharma is symbol of bull and Bliss is Shiva, lord Shiva himself is potrayed sitting on Bull this depicts that only after following path of Dharma, Moksha can be procured. But attaining Moksh is very difficult because the cultures are transient and they opt mere changes after a period of 5 decads. While residing at home if one opts the path of simplicity with good deeds and thoughts then it is a bliss of success in path of Dharma. But mere following it Moksh can't be acquired along with it  one should enter the room of worshiping God and try obtain his Blessing  by Worshiping him,Veda path, Hawan,Bathe in Ganga,
visiting religious places and listening or singing Spiritual songs.  

Saturday, 3 December 2016

PRET / GHOST SADHANA ( PART 1 )



गुप्त साधना pret sadhna 1
साधनाओं की  दुनियाँ बहुत बड़ी है हम जितना गहराई में प्रवेश करें उतना ही अलग अनुभव प्राप्त होगा साधनायें हर धर्म में है पर उनकी कार्य शैली में परिवर्तन होता है साधारण गृहस्थ व्यक्ति देवी देवताओं को ही जानता है कथाओं के आधार पे जानता है की हनुमान जी ऐसे थे दुर्गा जी ऐसी थी शंकर भगवान ऐसे थे पर इन सबसे हट के मैं आपको एक नई दिशा दिखता हूँ कुछ महानुभाव हो सकता है, परिचित भी हो पर सम्यक जानकारी न हो कुछ लोग कई ऐसे बाबा या व्यक्ति से मिलते है जो उनके जीवन में होने वाली बीती बातों को बता देते है कि आपका नाम क्या है आपके घर के सदस्यों का क्या नाम है आप क्या करते है कहाँ से आ रहे आदि आदि और इन्ही सब चमत्कार को देख कितने लोग इस गुप्त विद्या प्राप्त करने के लिए इस दिशा में निकल पड़ते है और कुछ प्राप्त नहीं होता क्यों की ये एक अलग मार्ग है या कहें तो अलग दुनिया है जहाँ आप प्रवेश कर रहे साधना के साथ साथ आप सब छोड़ के दूसरी दुनियां में प्रवेश कर रहे ये साधनायें आनंद भी देती है यदि प्राप्त हो जायें तो किन्तु त्रुटि या होने के बाद गलती हो जाये तो व्यक्ति का जीना हराम कर देती है गृहस्थ व्यक्ति को तो और बचा के चलना पड़ता है नहीं तो घर में अप्रिय घटना होने लगती है वो समझ नहीं पाता ये क्यों हो रही और उस साधना के मार्ग पे अग्रसर रहता है ये साधनायें मृत्योपरान्त प्रेत योनि को ही देती है क्यों की ये प्रेत साधना होती है इसमें प्रमुख होती है यक्षिणी साधना, परी साधना,कर्णपिशाचिनी साधना, चेटिका साधना, पारिजात साधना, भूतिनी साधना, नागिनी साधना आदि और कुछ लोग किसी मृत व्यक्ति की आत्मा को जागृत करते है वह भी इसी प्रकार कार्य करता है , इन साधनाओं में सुरु में अहसास होता है कि कोई मेरे साथ है फिर अजीब अजीब आवाज सुनाई देगी और सबसे चकित करने वाली बात वह आवाज किसी और को सुनाई नहीं देगी यदि वह साधक किसी निशा काल के देवी देवता का साधक है तो ठीक है नहीं तो पागल हो सकता है या कोई अप्रिय घटना घट सकती है, इन साधनाओं में सबसे प्रसिद्ध कर्णपिशाचिनी साधना है ये एक माता की भक्त होती है जो की मृत्यु के बाद अपने आपको माता तुल्य समझने लगती है और इनमें शक्ति भी होती है ये बीत चुकी (भूतकाल) की , वर्तमान की बातों को साधक के कान में बता देती है और जब इनकी साधना कोई करता है तो इनकी शक्ति बढ़ने लगती है और साधक जहाँ साधना करता है उसके करीब में जो इस प्रकार की शक्ति होती है वह साधक के करीब आने लगती है पर इनके साथ एक हजार सामान्य प्रेत का समूह चलता है "ऐसा भूत डामर तंत्र में भी वर्णित है " ये प्रेत साधना में अवरोध डालते है और वह साधक जो इन्हें पूजन में समर्पित करता है उसे ये खाते है इससे आपकी साधना पूरी नहीं होती इस लिए किसी देवी देवता की शक्ति जरुरी है इस साधना के लिए नहीं तो आप संकट में पड़ सकते है बिना गुरु के इन साधनाओं के चक्रव्यूह में न फंसे अन्यथा घर परिवार सब नष्ट हो जायेगा 
ये साधनायें श्मशान के द्वारा ही सिद्ध होती है कुछ साधकों से मैं श्मशान पे मिला तो वो नेट पे पड़े मन्त्र के आधार पे साधना कर रहे तो ये और बड़ी गलती है नेट पे या पुस्तक पढ़ के साधना की दुनिया में न प्रवेश न करे पुस्तक लिखने वाला साधक नहीं होता वह संग्रह कर्ता होता है इसमें अनुभव पूर्ण व्यक्ति की आवश्यक्ता होती है जो उचित मार्ग दर्शन दे सके , और सबसे मन भावक एक बात मैंने देखा है रास्ते या ट्रेन पे मिले बाबा या साधू से कुछ लोग साधना के बारे में बात करते है या पैसे के चक्कर में बाबा से कहते है की कोई मन्त्र बताइये जिससे उस मन्त्र को करूँ और धनवान बन जाऊं और वो औघड़ बाबा इस प्रकार के मन्त्र दे देता है, लालच वस व्यक्ति उसे कर बैठता है तो ये शक्तियाँ सिद्ध हो जाती है क्यों की देवी देवताओं के द्वारा जो सिद्ध करता है उसके ये वस् में होती है अपितु जो केवल इन्हें ही सिद्ध करता है अंतर ये होता है कि सिद्ध तो होती है पर व्यक्ति को अपना पति मान लेती है तब वह किसी भी स्त्री से नहीं मिल सकता उसकी जिंदगी बर्बाद कर देती है , यदि ऐसा कोई व्यक्ति फंसा है तो श्री बटुक भैरव के अष्टोत्तर सत्नाम का 51 पाठ चालू कर दे सब ठीक हो जायेगा ।


Secret Sadhana:
The world of Sadhana is very vast, the deeper we enter in it, the intense blissful sensation we have. Sadhana is in every religion but the ways of doing it are different. Normal human being only knows about the different types of Gods: Shiva & Hanuman were  like this Goddess Durga was like that but apart from all these I will show you all a  new direction, although some people might be aware of it but they would not have the complete knowledge.
In the journey of one's life few people come across someone who tell them about their past like what is their name, name of their family members, what is their profession, where did they come from and much more. After seeing such a miracle most people start doing a sadhana and avail nothing. This is because it is a completely different path or more correctly a complete different world and when you enter in this world you have to leave everything. These sadhanas offer Bliss if one attains Siddhi  as well as curse if one does a mistake. The curse may even not allow one to live. People living with their families and doing such Sadhana should be more careful, these sadhanas effect the family members too, the family often stucks with misfortunes and one has no idea why it is happening and continues doing it. Since these are the Sadhanas of Ghost after death the person doing them attains hell or mrityu lok. The main forms of Ghost(Pret) sadhana are Yakshini Sadhana, Pari Sadhana, Karnpisachini Sadhana, Chetika Sadhana, Paarijat Sahana, Naagini Sadhana, Bhootni Sadhana etc and some people do Sadhana of  some dead ones to enliven their spirits, this also comes under Ghost Sadhan and is performed in same way. At the begining of these Sadhanas one feels that someone is with you and then you will hear some unpleasant noise which no body else does. If the person is doing the Sadhana of the God or Goddess which are worshiped at night and hear such noise then its fine but if he is doing the one of Spirits then one can become mad or he would end up with a misfortune. Among the ghost Sadhana the famous one is the Karnpisachini Sadhana it comprises the worshiping of the spirits of devotee of Goddess and such spirits consider themselves Goddess after death. They have the powers to tell about anyone's past and present and they do it by telling the sadhak in his ear,  and if one worships them, their power increases. When one does this Sadhana then all such Spirits of the devotee of Goddess  near to the place where he does his sadhana come close to sadhak. Along with them comes 1000 similar ghosts or spirits near to that Sadhak. Such community of Ghosts are also mentioned in Tantra  and they cause hindrance in Sadhana. The food that one offers in such Sadhana are eaten up by these ghost, but merely worshiping ghost can't bring the Siddhi, one also needs  to worship the related Gods along with them. But without a guru one shouldn't try these Sadhanas else one would come in trouble and even the family gets destroyed.
These Sadhanas can only be attained on cremation ground. When I met with some such people on Cremation ground then they were doing these Sadhanas after reading on net but it is another big mistake Sadhana should never be done after reading on net or books because the person who writes book is not a Sadhak hence it requires a person who has done it pratically and guides you to the right path. One of the most interesting thing which i have seen is that some people meet a Baba or Sadhu on their way in train or bus then out of greed they ask them to give a Mantra which could make them rich and that Aghori baba gives a mantra after doing which one attains Siddhi and becomes rich. This is because many such spirits are under these Aghories who have worshiped God. But the difference is that if one worships only Spirits then although they get siddhi but the spirits considering Sadhak as their husband and don't allow him to get in touch with any woman. If any of the readers are trapped in it then you should start God Batuk Bhairava's Ashtottarsatnam 51 path daily and you would be free from such powers.

SHRI BATUK BHAIRAV SADHANA ( PART 1 )

श्री बटुक भैरव के पूजन से अरिष्टों का नाश होता है इनकी साधना बहुत ही अलग साधना है ।
साधनाओं को देखे तो बहुत सी साधनायें होती है साधनाओं के 2 प्रकार होते है  1- दक्षिण मार्गी (सात्विक मार्ग )2 - बाम मार्गी (तामसिक मार्ग जिसमे देव साधना एवं प्रेत साधना दोनो आती है ) सर्व प्रथम गुरु का चयन किया जाता गुरु जिस मार्ग से होता है उसी मार्ग से साधना की जाती है , मात्र गुरु के होने से ही समस्त कार्य नहीं सिद्ध होंगे आप जिस मार्ग की साधना के इच्छुक है क्या आपका गुरु उस मार्ग का है ये बहुत जरुरी है तभी आपकी साधना सिद्ध होगी ये भी जरुरी है कि आपके गुरु के पास कोई देव सिद्धि हो या किसी देवी देवता का पुरश्चरण हो यदि गुरु का मार्ग भी देखिये की आपको दक्षिण मार्गी करनी हो तो सात्विक हो आपको बाम मार्गी साधना करनी है तो गुरु बाममार्गी हो गुरु से साधना पे बहुत प्रभाव पड़ता है । फिर साधना में भटकाव बहुत तेज आता है जब आप साधना कर रहे हो उस समय कोई ऐसा व्यक्ति जरूर मिल जाता है जो कहेगा कहाँ समय ख़राब कर रहे हो इससे कुछ नहीं होता दुनिया कितना आगे निकल गई तुम अभी इन सबके चक्कर में फसे हो कितने लोग इस बात को सोचने लगते है ठहराव आ जाता है यदि आगे बढ़ गए है तो फिर ऊबन होने लगती है व्याकुलता घेरती है इसी में ज्यादातर लोग साधना बदल देते है या छोड़ देते है । साधक को साधना साधने के लिए मन मस्तिष्क पे विजय प्राप्त करना होता है सारे कार्य अवरोधित होने रहे पर उन्हें साधना मार्ग प्रसस्त करते हुए अग्रसर होना पड़ेगा अन्यथा साधना के मध्य अनेकों रुकावटें आती है आपके दैनिक कृत्य भी सही से नहीं चल पाते साधनायें स्वतः परीक्षा लेती है जब सब कुछ भूल कर व्यक्ति लगा होता है तब विजय प्राप्त करता है यदि आप मात्र गृहस्त सुख के लिए साधना कर रहे तो अधिक अन्दर प्रवेश नहीं करना चाहिए एक संकल्प लीजिये और निश्चित सीमा तक साधना करिये फिर दैनिक पूजन करते रहिए । और यदि आप साधना सिद्धि के लिए लालायित है तो आपको कड़ी मेहनत की जरुरत है अपनी सोच को मजबूत करके लगे रहिये क्यों की एक मान्यता है जितनी ज्यादा सोच होगी और अपनी सोच पे विश्वास होगा उतना ही मिलेगा (विश्वासम् फल दायकं) यदि आप इस सोच से है तो हम आपके साथ है फिर आपको श्री बटुक भैरव ( शिव ) या देवी साधना करनी है तो हम साथ है  क्यों की इनकी साधनायें रात्रि काल में ही होती है लगभग एक जैसी है इन साधनाओं में कुछ मिलने के बाद चमत्कार के लिए लोग प्रेत साधना करते है वैसे ये गलत है नहीं करना चाहिए इससे देव शक्तियाँ रुष्ट होने लगती है और आपके लिए एक ऐसा समय चालू हो जाता है जिसकी आपने कभी कल्पना भी न की हो और यदि प्रेत साधना करनी है तो उसकी नियमा वली कुछ अलग है   ..... अगले लेख में चर्चा करते है प्रेत साधना पे ,
The worshiping of Shri Batuk Bhairava makes oneself free from all evils,negative energies or ghosts.
If one looks at a glance on the types of sadhana  then there are 2 main types of sadhanas: 1. Dakshin Margi also known as Satvik path in which we only do worshiping of God. 2. Baam Margi or Tamsik  path which envolves the worship of God or a  Ghost. The primary step to start a sadhana is the selection of a Guru (teacher). The path which the Guru follows one has to follow the same one. Then  even after the choice of guru sadhana can't be achieved if there is a conflict of the path which one wants to follow and the choice of guru. If you want to follow Dakshin marg or path then guru should be satvik and if Baam marg then he should also be Baam margi this step has a keen effect on sadhana.  It is also necessary that your Guru has the Siddhi (super natural powers or energies gained after sadhana)  of some God or Goddess. After one starts his way towards sadhana then there are many obstacles  in this path, atheist would often call it as a waste of time in this developing world. In many cases one gets stuck between such ideas and end up with nothing, even if the person has moved few stairs up the ideas of such people cause anxiety and people often get bored and end up in sadhana or start doing some new sadhana with the greed of getting early siddhi. To achieve Siddhi in the sadhana one has to win the control over his  mind. During the period of sadhana there will be hinderances in all the work which one does, there are the tests wich are taken by the sadhna or the power itself, even the daliy routine will not continue flawless. If one continues to step ahead with full dedication then only siddhi can be achieved. If one is trying to do sadhana only for attaining glory then one should not enter very deep into it, one has to set a limited goal and do only that much alog with daily worship. But to obtain a siddhi then one has to do unlimited efforts with strong dedication and believe because according to a saying 'the  greater believe you have to obtain your desire  the more you get' . If you are of this thought then I am with you to help in sadhana of Batuk Bhairav (Shiva) or  goddess (Shakti). Since their sadhana is done at night thus they are more or less similar. After achieving something in these sadhana people often start doing the sadhana of Ghost to do miracle but it is wrong one should not do it, the God becomes angry and the debacle of one's life starts , hence to worship a Ghost there are different rules and steps.
So in next article I will discuss about the worshiping of Ghost or Pret sadhana.

SHRI BATUK BHAIRAV

श्री बाल शिवाय बटुक भैरवाय नमः -
भगवन शिव के बाल रूप पे हर व्यक्ति सोचता है ये कब हुआ या ये कौन है ? ऐसी अनेकों बातें मष्तिस्क में रहती है क्यों की भगवान् शिव के सन्दर्भ व्यक्ति का अध्ययन या कथाओं के माध्यम से व्यक्ति इतना ही जानता है भगवान् शिव जोगी है ज्ञान के देवता है पार्वती उनकी पत्नी है गणेश कार्तिकेय पुत्र है ।
बटुक भैरव , उन्मत्त भैरव, संहार भैरव, काल भैरव आदि का नाम आने पे भ्रान्ति वस प्रचलित माँ वैष्णों देवी में जो भैरो है उन्हें हर व्यक्ति भैरव या बटुक भैरव समझ लेता है जब की ऐसा नहीं है वो एक अघोरी संत थे जिनका नाम भरो था भगवती पे कुदृष्टि रखने पे भगवती रुष्ट हो गई और उन्हों ने वध किया पर भैरव भगवान् शिव का साक्षात रूप है रुद्रयामल तंत्र के अनुसार भगवती पार्वती ने 64 योगिनी रूप रखे तब भगवान् शिव ने उनसे विवाह के लिए 64 रूप रखा वो 64 रूप 64 भैरव बने इसमें मुख्य कालभैरव है बटुक भैरव रूप इन रूपों से भिन्न है और तंत्र के प्रधान देव के रूप में प्रसिद्ध है बटुक भैरव कथाओं के अनुशार जब ब्रह्मा को अहम् हुआ अपने को सर्व श्रेष्ठ बताने में उन्हों ने शिव और विष्णु को काफी तुच्छ दिखाया बुरा भला कहा तब भगवान शिव के क्रोध रूप में एक बालक का जन्म हुआ जिसने प्रथम रूप ब्रह्मा को समझाया कि आप ऐसा न करे तो ब्रह्मा जी ने उस बालक को कहा मैं तुम्हे अपार शक्ति प्रदान करता हूँ तुम मेरे पुत्र बन जाओ पुनः जब शिव विरोध किया तो वह बालक काल भैरव बन गया और अपने नाखून से ब्रह्मा का पाँचवाँ शर धड़ से अलग कर दिया तब भगवान शंकर ने कहा अपने न्याय किया अपितु आपको ब्रह्म दोष भी लगेगा फिर शिव आदेश हुआ की आप ब्रह्मा शर लो और दिन रात घूमो जहाँ ये स्वतः भूमि में स्पर्श हो जाये वही छोड़ देना जब काल भैरव घूम रहे थे तब वह घूमते घूमते काशी पहुंचे तब वहां गंगा स्नान करने लगे तब वह सर जमीन में छू गया और वहां कपाल मोचन तीर्थ बना और कालभैरव काशी के कोतवाल रूप में विराज मान हो गए विना इनके दर्शन के काशी वास नहीं प्राप्त होता ।
श्री बटुक भैरव के पूजन से अरिष्टों का नाश होता है इनकी साधना बहुत ही अलग साधना है ।
Shri Balshivaya Batuk Bhairavaya Namah: -
The knowledge about child incarnation of lord Shiva is new to most people and they often think who is he and when did Shiva took the child awtar. Thousands of such thoughts strike our minds because after studying about lord shiva we only come to know that he was a sadhu and god of knowledge,wi th goddess Parvati as his wife , Ganesha and Kartikeya as his childern. After listening  the name of Batuk Bhairava ,Unmatt Bhairava,Sanghar Bhairava, Kaal Bhairava or Child Shiva people often confuse him with the bhairava in the story of Vaishnodevi but it is not the truth. The bhairava which is mentioned there was about the aghori saint named bhairav who had wrong feelings for goddess Bhagwati hence it made goddess angry and she killed him. But the Bhairava is the true incarnation of lord shiva. According to rudryamal tantra goddess Bhagwati took 64 yogini roop or incarnations, then to marry her lord Shiva took 64 incarnations these 64 awtars were the 64 Bhairava . Among them Kalbhairava is the main one. But Batuk Bhairava is different from all of them he is symbolized as the main lord of tantra. According to the stories mentioned about him when ego stuck lord Brahma and he felt that he is the greatest of all then he used absurd words for lord Vishnu and Shiva, this enraged lord Shiva and with his fierce awtar Batuk Bhairava was born who insisted Brahma not to say like that . Then Brahma told that child i am giving you immense shakti or power you become my child. These words put fire on child bhairav's anger and he took the awtar of Kaal Bhairava who plucked the 5th head of Brahma with his nails. To this lord Shiva said you did justice but you have to bear Brahma dosh or sin and to remove it you have to take his head and travel day and night, the place where this head touches the earth on its own leave it there. While Kaal Bhairava was on his way and he reached Kashi ( varanasi) and was bathing in Ganga that head touched the earth and then Kaapal Mochan Temple was build there. Since then Kaal Bhairava is known as the Kotwal (police) of Kaashi  and without his darshan one can't live there. Worshiping of shri Batuk Bhairava is completely different and with is worship all kinds of negative energies , ghost, evils are destroyed.