आर्य का अर्थ मूल भारतीय इन्ही के नाम से भारत को आर्यवर्त कहा जाता था पहले आर्य तिब्बत की पर्वतीय मूल शृंखलाओं में रहते थे जिसके पास दैवीय ज्ञान यानी वेद का ज्ञान होता है उन्ही को आर्य कहा जाता था भारतीय ग्रंथो को देखें तो आर्य और पाश्चात्य विद्वान मध्य एशिया के पामीर प्रदेश को आर्यों का प्राचीन देश मानते है | परन्तु पण्डित श्री बालगंगाधर तिलक जी ने यह सिद्ध किया कि वेदों का उदय उत्तरी ध्रुव के समीप में हुआ एक मत यह भी है कि आर्य लोग सप्तसिन्धु अर्थात पंजाब में ही रहते थे| यह निर्विवाद है कि भारत वर्ष में आर्य का पहला निवास पंजाब मे ही था | पंजाब के पश्चिम मे स्थित प्रदेशों को आर्य तिरस्कार कि दृष्टि से देखते थे, इसी प्रकार पूर्व के प्रदेश भी तिरस्कार कि दृष्टी से देखे जाते थे जैसे जैसे समय बढ़ता गया फिर आधुनिक इतिहास कारों के अनुसार पूर्व के प्रदेश अनार्यो के अधिकार में होने के कारण प्रारम्भ में तिरस्कृत थे जैसे जैसे वे आर्यों के अधिकार में आते गये वैसे वैसे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती गई | पंजाब के चारों तरफ अनार्यों कि संस्कृति प्रचलित थी | इस दृष्टि में अब हम काशी पे विचार करेंगे और यह देखने का प्रयत्न करेंगे कि वेदों के संहिताकाल से पुराणों के समय तक इस तीर्थ का क्या स्वरूप था और किस प्रकार विकसित होकर यह अपने स्वरूप तक पहुंचा | इन सहस्रों वर्षों में वैदिक धर्म का विकास भी हो रहा था नई नई रूढ़ वादी परम्पराएँ स्थापित हो रही थी | देखा जाय तो रूढ वादी सोच आज के लोगों में भी भरी है हमारा मानना है रूढ वादी सोच देश के लिए हो धर्म के लिए हो अपितु लोगों की सोच जाति छुआ छूत के लिए भरी है देखा जाय तो काफी सुधार हुआ है प्राचीन काल में बहुत अधिक था | अपितु यहाँ काफी प्राचीन समय की बात चल रही | अनार्य धर्म की पुरानी मान्यताएँ भी इन नवागंतुक विचारधाराओं से प्रभावित होकर नये स्वरूप धारण कर रही थी और इस प्रकार भारत का स्वरूप निखर रहा था |धार्मिक विकास की यह परम्परा पुराणकाल के बाद भी अक्षुण रूप से चलती रही थी और अब भी चल रही है और जैसा हम आगे देखेंगे की इस विकास मे काशी का बहुत बड़ा हाथ रहा है | काशी को आज वाराणसी के नाम से जानते है |
No comments:
Post a Comment