Friday 5 October 2018

नवमुखी रुद्राक्ष श्रीबटुकभैरवनाथ का स्वरूप है

श्री बटुकभैरवनाथ का साक्षात प्रतिबिम्ब है नव मुखी रुद्राक्ष ।भक्त श्रीबटुकभैरवनाथ जी का प्रिय हो जाता है । मतलब भगवान श्री बटुक भैरवनाथ की असीम छाया उस साधक पे हो जाती है । भैरव साधक और भैरवनाथ की सिद्धि के इच्छुक के लिए यह रुद्राक्ष वरदान के सदृश्य आलोकित होता है । शास्त्र तो इसे साक्षात भैरवनाथ ही मानते है । तन्त्र ग्रंथ कहते है कि नाथ उपासक को इस रुद्राक्ष को अवश्य ही धारण करना चाहिए । इस रुद्राक्ष में बटुक भैरवनाथ या कहें 64 भैरव का वास होता है । इस लिए भैरवनाथ की सिद्धियाँ खिंची चली आती है । स्कन्द पुराण में तो नवमुखी रुद्राक्ष के लिए कहा गया है कि! यह रुद्राक्ष नही साक्षात भैरव (शिव) स्वरूप है । स्कन्द पुराण के अनुसार इस रुद्राक्ष को बांये हाँथ के बाजू में धारण करना चाहिए । और नव मुखी को धारण करने और नाथ साधना करने से शिव के समान बलवान हो जाता है । यहां शिव के समान बलवान का मतलब है! कि,  शिव सिद्धियों के जनक है, तो वह भगवान शिव के फल स्वरूप अनेकों सिद्धियों का स्वामी हो जाता है ।और मृत्यु के बाद शिव लोक को जाता है । कुछ जगहों पे प्रमाण यह भी मिलता है । भगवान भैरवनाथ बाम मार्ग के देवता है इस लिए नवमुखी बांये हाँथ में धारण किया जाता है । नव मुखी सबको नहीं धारण करना चाहिए । जो साधक भगवान श्री बटुक भैरवनाथ या भैरवनाथ के किसी भी रूप की साधना करते है, ये रुद्राक्ष मात्र उनके लिए है । इस रुद्राक्ष के धारण के बाद बाबा की रात्रि उपासना या साधना करना आवस्यक है । अब कुछ लोग कहेंगे कि हम भैरव उपासक या साधक नही है, तो क्या होगा? तो हम नहीं बता सकते क्या होगा । जो बाबा चाहेंगे वही होगा । महिलायें भी धारण कर सकती है, जो श्री बटुकनाथ की साधना करती है । इस रुद्राक्ष को किसी भैरव पीठ पर चढ़ा कर धारण करना चाहिए और किसी जानकार से इसके बारे में सम्यक ज्ञान ले के ही धारण करना चाहिए । इसकी प्रतिष्ठा बाबा श्री बटुकभैरवनाथ के मंत्रों से ही होती है । इस रुद्राक्ष को श्मशान जाकर वहाँ साधना करने से और सिद्ध हो जाता है । ये रुद्राक्ष नही सीधा वरदान है इसमें कोई संसय नहीं है , परन्तु इसे यदि धारण कर रहे है तो जरूर से जरूर किसी भैरव साधक से अवस्य जानकारी ले लें । और अपने बारे में बतायें और नियम जानें कि क्या - क्या है । अब नव मुखी में श्रेष्ठ कौन सा है ये जान लें ! उत्तरी (शिवमुखी) स्थान पे जो पर्वत है वहां के रुद्राक्ष श्रेष्ठ है । जैसे नेपाल हुआ । आज कल इंडोनेशिया से अधिक मात्रा में रुद्राक्ष आते है वह सही नहीं माने जाते । इसके बाद यह देखें कि जो रुद्राक्ष आपको प्राप्त हुआ है क्या वह असली है या नही! आज के समय में प्रत्येक समान में मिलावट या नकली आने लगा है । रुद्राक्ष भी इससे अछूता नहीं है इसमें तो सबसे अधिक नकली आता है । इससे सावधान रहें , नकली होंने पे कोई फल नहीं होगा । और सबसे हास्यपद यह है कि सर्टिफिकेट देते है उसके साथ में , यह सब छलावा है सावधान रहें । बिना किसी जानकार के मंहगे रुद्राक्ष न लें । यदि नव मुखी प्राप्त हो जाये तो सर्व प्रथम उसे शुद्ध गुनगुने सरसों के तेल में डाल दे 24 घंटे के लिए । इसके बाद धुल के प्रतिष्ठा प्रक्रिया प्रारम्भ करें "किसी भी जानकारी के लिए आप ईमेल कर सकते है । (ashwinitiwariy@gmail.com )  जय हो श्री बटुकभैरवनाथ की आपकी सर्वदा जय जय कार हो । जाय बटुकनाथ

Saturday 1 September 2018

श्री कृष्णजन्माष्टमी व्रत निर्णय

श्रीकृष्णजन्माष्टमी निर्णय - 2 सितम्बर 2018 रविवार को है । भगवान का जन्म रात्रि 12 बजे हुआ था । इसी लिए आज भी उसी समय भक्त उनका प्राकट्य उत्सव मनाते है । तंत्र शास्त्र में भगवान के उस जन्म समय को सिद्धियाँ प्राप्त करने का सबसे उत्तम समय कहा जाता है । तन्त्र शास्त्र में इसे कालरात्रि कहते है 12 से 3: 59 तक महारात्रि का ये समय जप हवन का सबसे अच्छा समय होता है । शैव+नाथ धर्मावलम्बि इसी समय को ग्रहण करते है क्यो भगवान शिव भैरव रूप में उस समय साधक के पास भ्रमण करते है । इसी लिए शैव धर्म जन्म बेला को ही ग्रहण करता है । वैष्णव धर्मावलम्बि इन सबको नही मानते वो कोई रात्रि साधना भी नहीं करते तंत्र से दूर रहते है इसी लिए वो उदया तिथि को ग्रहण करते है । जो की इस बार की जन्माष्टमी का विवरण इस प्रकार है - 2 सितम्बर 2018 रविवार उदया सप्तमी है और सप्तमी साम 5:18 पे समाप्त हो रही अष्टमी लग जा रही और दूसरे दिन सोमवार को दोपहर 3: 28 से समाप्त हो रही तो रात्रि 12 बजे रविवार को ही है ।। भगवान का जन्म नक्षत्र रोहिणी था वैसे जन्माष्टमी में नक्षत्र का कोई विशेष प्रभाव नही होता पर फिर भी बात कर लेते है । 2 सितम्बर 2018 रविवार को कृत्तिका नक्षत्र है जो कि देर साम 6:29 पे समाप्त हो रहा फिर रोहिणी लग रहा रोहिणी सोमवार को साम 5:34 पे समाप्त हो रहा । अब तिथि नक्षत्र का निर्णय देखें - 2 सितम्बर 2018 रविवार को ही रात्रि 12 बजे अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र मिल रहा इस लिए शैव+नाथ धर्मावलम्बि 2 सितम्बर को ही जन्माष्टमी मनायेंगे । वैष्णों 3 सितम्बर को मनायेंगे जब कि रात्रि में न अष्टमी है न रोहिणी नक्षत्र पर वैष्णो धर्म मात्र उदया देखता है इस लिए वो 3 सितम्बर को मना रहे । विशेष - 2 सितम्बर को श्री कृष्ण जन्माष्टमी और भैरवाष्टमी साथ मे है और सबसे बड़ा की रविवार को है रविवार को भैरवाष्टमीव्रत सिद्ध काल हो जाती है उसमें जन्माष्टमी महासिद्ध काल योग बन रहा इस लिए बटुक साधक इसका पूर्ण लाभ उठा सकते है । जय बटुकनाथ

Thursday 2 August 2018

शीतला श्रावण सप्तमी व्रत

श्रावण सप्तमी निर्णय -  ४ अगस्त २०१८ को व्रत रहा जायेगा और ५ अगस्त २०१८ को प्रातः ०६:१२ तक अष्टमी है तब तक अर्घ और भेंट दे देना है ।
श्रावण कृष्ण सप्तमी व्रत कैसे रहें - उदया तिथि में सप्तमी होनी चाहिये और उस दिन व्रत का पालन करते हुए स्नान के बाद नीम के पेड़ को प्रणाम करना चाहिए और गुड़ मिश्रित जल वहाँ रख देना चाहिए । (ऐसी मान्यता है कि भगवती माँ शीतला की दो सहेली है फूला और देवका ये दोनों माता रानी का संचालन करती है और भगवती के चढ़े प्रसाद को आकार ग्रहण करती है । तांत्रिक मान्यता है कि जिसके यहाँ अछूत याकहें शुद्ध भोजन या पूजन नही प्राप्त होता उसके यहाँ ये दोनों कुपित हो जाती है और चेचक , सर्प दंश जैसी कुपित दृष्टि प्रदान करती है । इस लिए भगवती की पूजा थोड़ा करिये पर सही से करिये । इस प्रकार पूजन के बाद जब भगवती को अर्घ और प्रसाद दिया जाय तो अष्टमी होनी चाहिए क्यों कि माता रानी की सबसे प्रिय तिथि अष्टमी है ।  सप्तमी शीतला माता का व्रत है जिसे वंश के लिये रहा जाता है । इसे इसी लिए पुत्रदा व्रत कहा जाता है माँ शीतला को अर्घ और बलि बहुत प्रिय है । बलि का अर्थ - भोजन या आहार होता है और इसी लिए श्रावण कृष्ण सप्तमी में वंश रक्षा के लिए भक्त रूपी स्त्रियाँ भगवती को प्रसन्न करने के लिए मिट्टी के कलश में पल्लव, मीठा जल एवं चतुर्मुखी दीपक प्रदान करती हैं और साथ में पकवान बना कर भगवती को किसी शुद्ध जल वाले स्थान में अर्पित करती है ( पकवान का नियम लोक रीत से अलग - अलग पाया जाता है । इस लिए कोई भी रीत गलत नही है जिसके वंशज जैसी रीत लेके चले आये हों वही वो करें )। यदि कोई स्त्री मासिक धर्म या सूतक काल में है तो किसी स्वगोत्री पुत्रवती स्त्री के हाँथ से भगवती को भेंट प्रदान कर सकती हैं ।
ये व्रत वंश की रक्षा के लिए  सभी पुत्रवती स्त्रियों को रहना चाहिये । इसको रहने से भगवती अत्यन्त प्रसन्न होती है । जय माँ शीतला । जय बटुकभैरवनाथ

Thursday 26 July 2018

चन्द्र ग्रहण श्री बटुक साधना

दिनाँक २७-०७-२०१८ शुक्रवार को खग्रास चन्द्र ग्रहण लग रहा है। हम अपने आराध्य  बालरूप श्री बटुक भैरावनाथ जी के साधकों को बता दूं कि यह ग्रहण अत्यन्त महत्वपूर्ण है  भैरव साधना सिद्धि के लिये। बाबा के जिस भी मन्त्र का आप जप कर रहे हो उसी मन्त्र का सुबह से ग्रहण काल तक अधिकाधिक जप करिये फिर घृत से हवन करिये इससे आप अपने आराध्य के सन्निकट पहुँचने लगते है जिसे हम सिद्धि कहते है । कुछ लोग कभी पूजा नहीं करते केवल ग्रहण में कर लेते है और सोचते है सिद्धि हो जायेगी तो ये मात्र भ्रम है और कुछ नही सिद्धि के लिए जिस मन्त्र का आप अधिकाधिक जप करते है उसी के ही अनुष्ठान से कुछ मिल सकता है नहीं तो नहीं ।
मैंने ये भी सुना है कुछ लोग एक भ्रम फैलाते है चारो तरफ की ग्रहण में पूजा नहीं करना चाहिए । तो मैं आपको बता दूं कि उनको अज्ञानी मान कर उनके तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए है । हाँ ग्रहण काल में मूर्ति पूजा नही होती न ही स्पर्श किया जाता है न ही दर्शन पर्दा लगा देना चाहिए नहीं तो मूर्ति प्राण खण्डित हो सकता है । ग्रहण काल में मात्र पाठ, जप, हवन का ही विधान है । ग्रहण काल में कुछ भी खाना पीना नहीं चाहिए नहीं तो आपके शरीर में विकार उत्पन्न होता है । शरीर रोगी हो जाता है। शिशु वृद्ध और रोगी के लिए यह नियम नही है । गर्भ धारण की हुई स्त्री को तो कदाचित कुछ न खाना पीना चाहिए और न ही कोई भी चीज कटनी चाहिये और न ही सोना चाहिए इसका सीधा प्रभाव गर्भ पर पड़ता है ।
विशेष - यह ग्रहण साधकों के लिए अत्यधिक महत्व पूर्ण है । कारण यह है कि यह मध्य रात्रि को पार नही कर रहा और लगभग पूरी मध्य रात्रि का भोग कर रहा है और तन्त्र मान्यता के आधार को देखें तो सिद्धि मध्य रात्रि में ही प्राप्त होती है । दूसरा सबसे बड़ा महत्व की आषाढ़ पूर्णिमा यानी गुरु पूर्णिमा है । जो कि अपने में स्वयं सिद्ध काल हो गया ।
ग्रहण काल का समय -
स्पर्श          -       रात्रि ११:४५
समील्लन   - मध्यरात्रि १२:५९
मध्य          - मध्यरात्रि ०१:५२
उन्नमीलन   - मध्यरात्रि ०२:४३
मोक्ष          - मध्यरात्रि ०३:४९
ग्रहण काल के आरम्भ में स्नान करके जप करें तदोपरांत हो सके तो घी से हवन फिर स्नान उसके बाद चन्द्रमा को अर्घ दे । श्री बं बटुकभैरवाय नमो नमः

Friday 13 July 2018

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2018

14 जुलाई 2018 से आषाढ़ मास की गुप्तनवरात्रि लग रही जिसका तंत्र में सर्वोपरि स्थान है इस नवरात्रि में दश  महाविद्या और श्री बटुक भैरवनाथ जी के साधकों के लिए बहुत ही उत्तम दिन है । इसमें प्रत्येक प्रकार की तांत्रिक साधनायें सिद्धि तक पहुंचती है । इसे भगवती कामाख्या से भी जोड़ा जाता है। इस नवरात्रि में गुप्ततन्त्र जिसे योनि तन्त्र कहते है उस तन्त्र को सिद्ध करने का सर्वोपरि समय कहा जाता है । ये गुरु के द्वारा ही बताया जाता है इस लिए इसके विषय में लिख नही सकता । अपने इष्ट देव या देवी प्रतिपदा से अष्टमी हवन जप न्यास तर्पण करें ।  गुप्त नवरात्रि की रात्रि काल मे साधना करके 19 जुलाई 2018 को रात्रि व्यापिनी अष्टमी है उसमें हवन करें । जानकारी के लिए बता दें तन्त्र में बाम मार्गी तन्त्र को बहुत ही शक्तिशाली माना जाता है और बटुकनाथ की सम्पूर्ण साधना के लिए बाम मार्ग में प्रवेश करना ही पड़ता है और बिना गुरु के असम्भव है । ये आपके गुरु पे निर्भर करता है कि वह किस पथ पे ले जा रहा । और जैसा कि सात्विक विधान में है कि चारो नवरात्रि में उदया तिथि देखी जाती है पर हम अपने से जुड़े लोगों को बता दें तन्त्र साधक खास कर जो बटुकनाथ की साधना से जुड़े है वो नवरात्रि में भी रात्रि व्यापिनी अष्टमी में हवन करें । यदि आप श्री बटुक भैरवनाथ जी की साधना से जुड़े है तो आप निह संकोच कोई भी जानकारी ले सकते है । जय बटुक भैरवनाथ

Tuesday 5 June 2018

रुद्राक्ष महात्म्य 4 - रुद्राक्ष धारण करके मांस नही खा सकते

रुद्राक्ष धारण करने के बाद हमें क्या खाना चाहिए क्या नहीं इस विषय की ओर दृष्टि गोचर करते है -
            जैसा कि हम पहले ही जान चुके है कि रुद्राक्ष शिव के समस्त रूपों की उपासना में अत्यन्त लाभ प्रद है यहां तक कई स्थान पे प्रमाण मिलता है कि रुद्राक्ष धारण करने से ही शिव की पूर्ण दृष्टि हो जाती है और भक्त का कल्याण हो जाता है । तो बटुक भैरव रूप में भी इसी भाँति नियम चलते है । बस बात यहाँ आके रुक जाती है कि श्री बटुक उपासना साधना सिद्धि अत्यन्त दुर्लभ होती है हम कितना भी कुछ करते है पर कर कुछ नही पाते जब बाबा प्रसन्न हो जायें तो सब प्राप्त हो जाता है । तो बात सबसे बड़ी यह कि श्री बटुक साधना मार्ग में कई मार्ग है । मूल दो भाग दक्षिणा चारी और वामा चारी दक्षिण मार्ग सात्विक विचार पर आधारित है । और वाम मार्ग में सैद्धांतिक और कौल दो रूप है इसी लिए बाम मार्ग सबसे कठिन हो जाता है।  जैसा कि शिव पुराण में कहा है कि रुद्राक्ष धारण करने के बाद लहसन, प्याज, गाजर, मांस, मदिरा का सेवन नही करना चाहिए । और बामचारी तांत्रिक ग्रन्थ में सब कुछ खा सकते है तो हमारे मन में एक प्रश्न उठता है क्या सही है क्या गलत तो हम बता दें यदि आप सात्विक है तो आपको दक्षिण मार्ग का नियम धारण करना होगा और यदि आप बटुक साधक है तो रुद्राक्ष धारण करके मांस नहीं खा सकते और कोई रोक नही और अघोर मार्ग वालों को कोई रोक नही और वो सब करते है और कर सकते है । क्यों उस मार्ग में जो साधक प्रवेश करता है वह कुछ समय बाद अपने वस में नहीं रहता 500 से ज्यादा की प्रेत शक्तियाँ उसके वस में होती है और उस साधक को उन्ही के अनुसार चलना होता है। इस लिए वह शव तक को खा लेते है । इस विषय पे आगे हम बतायेंगे । और बटुक साधक अपने आराध्य को ध्यान में लेकर चलता है । और बाबा को फीका भोजन नही पसन्द मदिरा अत्यंत प्रिय है इस लिए यहां तक कोई अवरोध नही , कुछ स्थानों पे मांस का भी भोग लगता है पर इससे यह नही की आप रुद्राक्ष धारण करके मांस खायें । जो भी रुद्राक्ष पहन कर मांस सेवन करता है वह कितना भी पुण्य करले सब नष्ट हो जाता है उसका कोई भी फल नही होता और मृत्यु के पश्चात प्रेत योनि में जाना पड़ता है । वह कोई भी हो किसी के लिए क्षमा नही है । 
सब बातों का मूल यह निकला - कि जिस परम्परा से आप हो उसी के अनुसार रुद्राक्ष धारण करो । अपने मन से नही । जय विश्वनाथ जय बटुक भैरावनाथ

Sunday 3 June 2018

अधिक श्री बटुकभैरव सप्ताह

अधिकमास अपने अन्तिम चरण की तरफ अग्रसर है और आ रहा है अधिक बटुक भैरव सप्ताह जिसमें भगवान शिव के समस्त रूपों का तान्त्रिक राजसिक सात्विक तीनों विधाओं से जप, पूजन,  नीराजन ,  श्रृंगार, रुद्राभिषेक, खास कर रात्रि का हवन , का विशेष फल मिलता है । यह सप्ताह 6 जून 2018 बुद्धवार श्रीमासिक भैरवाष्टमी से 12 जून 2018 भौमवार श्रीमासशिवरात्रि तक रहेगा । इसमें श्रीबटुक नाथ की पूजा का विशेष फल प्राप्त कर सकते है । सातों दिन श्रीबटुक भैरव प्रतिमा या कृष्णवर्ण शिवलिङ्ग पर अभिषेक करें तो श्रीबटुक भैरवनाथ अत्यंत प्रसन्न होंगे । किस सामग्री से क्या फल प्राप्त होता है । गंगा जल से समर्पण ।। मीठा दूध से कुटुम्ब सुख ।। घी प्रेतबाधा के लिए ।। दही रोग के लिए ।। गन्ने का रस ऐश्वर्य के लिए ।। चन्दन सौंदर्य के लिए ।। फल रस से पुत्र या पुत्री की के भविष्य और रक्षा के लिए ।। सरसों का तेल मारण सिद्धि के लिए।। मदिरा से समस्त कष्टों से छुटकारा पा कर श्री बटुक भैरवजी का वास और क्षाया पाने के लिये ( मदिरा अभिषेक मात्र श्री बटुक भैरव प्रतिमा पर ही होगा शिवलिङ्ग पर नहीं ) । चमेली के तेल समस्त मानसिक उत्कंठाओं से छुटकारा पाने के लिए ।। इतना ध्यान रहे यह प्राप्ति तब ही सम्भव है जब सातों दिन अभिषेक हो और हवन हो एवं मूल मन्त्र और अष्टोत्तर पाठ का अधिकाधिक जप और पाठ हो, इसके बाद बिल्वपत्र से राज्याभिषेक हो । ध्यान रहे एक चीज मैं देखता हूँ लोग सोमवार को ही बेलपत्र तोड़ कर चढ़ा देते है । ये आपके संकट हटायेगा नही बढ़ा देगा बेलपत्र कभी भी सोमवार भैरवाष्टमी और शिवरात्रि को नही तोड़ना चाहिए । पहले ही तोड़ लेना चाहिए । दूसरा सब चारो तरफ बहुत रुद्राभिषेक कराते है बहुत अच्छा है पर एक बात ध्यान रखें यदि जो विद् अपने बुलाया है उसके मन्त्र शुद्ध नही है मात्र भेष से ब्राह्मण है तो ऐसा रुद्राभिषेक विद् और जातक दोनों के दुःख का सबसे बड़ा कारक है । और जो हमने बताया है ये तो तांत्रिक विधा है इसमें खुद करिये तो गलत होने पर भी क्षमा है मूल मंत्र से ही अभिषेक कर डालिये । पर यदि विद् बुला के करना है तो मन्त्र शुद्धि जरूरी है साथ ही साथ वह शिव या बटुक भैरव का सेवक हो इस विषय का जानकार हो तभी उससे करायें अन्यथा नही । इसी लिए मैं सर्वदा एक बात बोलता हूँ बटुक भैरवसाधना स्वयं करें ।। क्यों कि तन्त्र बनाता भी है और बर्बाद भी करता है । फिर अपने बाबा बाल रूप है तो बच्चे जल्दी नाराज होते है । इस लिए बिना मार्गदर्शन के कुछ नही करना चाहिए । इस बटुकसाधक की ओर से सभी को जय विश्वनाथ जय बटुकनाथ। किसी भी प्रकार की शंका है या प्रश्न है तो शिव और बटुकसाधकों के लिए सदैव उपलब्ध हूँ  कोई शुल्क नही ।।

Wednesday 9 May 2018

रुद्राक्ष महात्म्य-३ - असली - नक़ली में भेद और रुद्राक्ष भद्राक्ष में अन्तर

अभी तक हमने जाना कि रुद्राक्ष क्या है, अब आगे बढ़ते क्रम में जानें कि रुद्राक्ष मिल जाये तो कैसे जानें की असली है या नक़ली है और किस रुद्राक्ष को धारण करें किसे नहीं । 
शास्त्रों के आधार पे आँवले के आकर का रुद्राक्ष सर्वोपरि होता है और उससे छोटा मध्य होता है और सूखे चने के आकर से छोटा अधम होता है । इस लिए बहुत छोटा रुद्राक्ष नहीं धारण करना चाहिये । इसके बाद जो रुद्राक्ष धारण करना है उसे देखिये की कही कीड़े तो नहीं खाए है । अब आप सोचेंगे की किस प्रकार पहचाने तो ध्यान दे जो रुद्राक्ष की आकृति बनी रहती है । उसके बीच बीच में क्या बारीक बारीक छेद है या उन्ही लकीरों में नोचा जैसा लग रहा तो उसे त्याग दें ऐसे रुद्राक्ष को धारण करने से शरीर को बहुत हानि होती है । उस रुद्राक्ष पे जप करने से धर्म हानि होती है । एक बात और बता दें कि रुद्राक्ष के मध्य एक छिद्र होता है जिसमें आप धागा या तार पिरो कर धारण करते है वह रुद्राक्ष का प्राकृतिक छिद्र है उसे ज़रूर होना चाहिये जिन रुद्राक्ष में मनुष्य छिद्र करे वह अधम है । देवी भागवत के आधार पे उसे त्याग दें । और जो रुद्राक्ष गोल नहीं होते उन्हें भी रुद्राक्ष की श्रेणी में न रखें जैसे आज कल एक काजू एक मुखी मिलता है वह भी किसी काम का नहीं वह पूर्णतया नक़ली है । शास्त्रों में एक से चौदह मुखी का वर्णन है इसके अतिरिक्त और भी मुख के रुद्राक्ष है जिनका वर्णन तो नहीं है पर उनके मुख के आधार पे उनको लिया जाता है । अभी इस लेख में हम इतना बता दें कि ये बहुत ही अधिक धन राशि में मिलते है इस लिए इनका नक़ली होने की भी अधिकाधिक सम्भावना रहती है इस लिए सवधानी पूर्वक लें  , आगे के लेख में मैं इनके मुख के बारे में बताऊँगा । अब असली की पहचान के लिए २ ताँबे का सिक्का ले और दोनों सिक्कों से दोनों रुद्राक्ष के छिद्रों को दबा लें यदि रुद्राक्ष घूम जाये तो वह असली है और उसमें ताक़त है ।कभी कभी असली होने पे भी नहीं घूमता तो इसका मतलब वह रुद्राक्ष नहीं भद्राक्ष है । आपको लग रहा होगा की भद्राक्ष यानी नक़ली ,  पर ऐसा नहीं है रुद्राक्ष के कच्चे फल को भद्राक्ष कहते है । भद्राक्ष का चूर्ण बनाकर आयुर्वेद में प्रयोग किया जाता है। रुद्राक्ष और भद्राक्ष को अलग करने की एक विधा और है इसे जल में डाल दें जो तैरे वह भद्राक्ष और जो डूब जाए वह रुद्राक्ष । एक सबसे बड़ी समस्या की बात अब बाज़ार में लकड़ी और प्लास्टिक का रुद्राक्ष मिल रहा जिसको ऐसा बनाते है की पानी में डूब जाता है । और सबसे मज़े की बात की बहुत सस्ता रहता है इस लिए किसी जानकार के द्वारा ही रुद्राक्ष प्राप्त करें ।

Wednesday 2 May 2018

रुद्राक्ष महात्म्य २ " शिव है रुद्राक्ष के जन्म दाता

रुद्राक्ष को लेकर प्रत्येक व्यक्ति में एक शंका उत्पन्न होती है , कि इस लकड़ी जैसा बैर के बीज की आकृति के स्वरूप का फल इसमें ऐसा क्या है ? इसका इतना धार्मिक और आयुर्वेदिक महात्म्य क्यों है ? और सबसे अधिक की ये भगवान शिव और भैरव को इतना अधिक क्यों प्रिय है। ऐसा क्या है कि इसे धारण करने से शिव के सभी रूप प्रसन्न हो जाते है ? ऐसा क्यों है की बिना इसे धारण किये जो शिव और श्रीबटुक भैरव सहित किसी भी भैरव रूप की उपासना करता है उसका कोई फल नहीं होता ? तो इस प्रकार के अनगिनत प्रश्न उत्पन्न होंगे उस सबका एक उत्तर है । स्वयं भगवान रूद्र भूत भावन भोलेनाथ सदा शिव ही इस फल जन्म दाता है । उनके हज़ारों वर्ष की तपस्या के फल स्वरूप रुद्राक्ष उत्पन्न हुआ । अब इसका प्रमाण क्या है ? ये प्रश्न उठ रहा होगा । तो प्रमाण तो कई ग्रन्थों के है हम उनमें से एक बताते है । बृहज्जाबालोपनिषद् में रुद्राक्ष की उत्पत्ति के विषय में वर्णन है की भुशुण्डी जी द्वारा कालाग्निरूद्र से रुद्राक्ष की उत्पत्ति व उसके धारण करने से क्या फल होता है के विषय में पूँछा । तब भगवान कालाग्नि रूद्र बोले की दिव्य सहस्र वर्षोंतक तपस्या करने के बाद जब मैंने त्रिपुरासुर को मारने कि लिए अपने नेत्र खोले तब मेरे नेत्र से जल की बूँदें पृथ्वी पर गिरीं । उन्ही नेत्र बूँदों से रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई ।इस प्रकार रुद्राक्ष उत्पन्न हुआ और भगवान शिव और बल शिव बटुक भैरव का प्रिय हुआ ।

Sunday 29 April 2018

रुद्राक्ष महात्म्य १

आज हम रुद्राक्ष के विषय में वार्ता करते है । रुद्राक्ष बहुत ही लाभ कारी फल का नाम है जिसका नाम लेते ही एक अलग से अनुभूति होती है क्यों की रुद्राक्ष साक्षात शिव का मूल तत्व है और भूत भगवान भूतनाथ भोलेनाथ को अत्यन्त प्रिय है । आज के बाद हम कुछ दिन तक रुद्राक्ष पे ही लेख डालेंगे जिससे सभी को इस अमृत रूपी फल के बारे में ज्ञान हो सके । शैव, शाक्त एवं नाथ सम्प्रदाय में इस फल का सबसे बड़ा स्थान है और शैव और नाथ में तो बिना रुद्राक्ष के आपकी पूजा उपासना या साधना का कोई फल ही नहीं होता । रुद्राक्ष से जितना ज़्यादा जप करना अवस्यक है उतना ही रुद्राक्ष को धारण करना अवस्यक है । लिंग पुराण में तो स्पष्ट कहा गया है की जो शिव भक्त रुद्राक्ष नहीं धारण करता वह मूर्ख है उसकी पूजा का फल ही नहीं होता । श्री बटुक भैरव सहित ६४ भैरव की उपासना में भी यह नियम लगेगा की बिना रुद्राक्ष धारण किये पूजा न करें क्यों की भैरव रूप साक्षात् शिव ही है ।इस लिये रुद्राक्ष अवस्य धारण करें। कुछ लोगों से हमने सुना है की कहते है की स्त्रियों को रुद्राक्ष नहीं धारण करना चाहिए तो ये ग़लत है स्त्रियों को भी धारण करना चाहिए बस इतना ध्यान रहे रजोधर्म से पूर्व उतार दें पाँच दिन के लिये । और स्त्रियों के साथ ही साथ सभी को कब रुद्राक्ष उतारना चाहिये । रात्रि में शयन करते समय उतार देना चाहिये , घरमें स्नान के समय उतार देना चाहिये, मल त्याग करते समय उतार देना चाहिये, जन्मा और मरणा सूतक़ में भी उतार देना चाहिये।

Thursday 8 February 2018

श्री महाशिवरात्रि व्रत सभी व्रतों में सर्वोत्तम व्रत है

एक ऐसा पर्व जिसकी तुलना में कोई व्रत रुक भी नही सकता । श्री शिवमहापुराण में वर्णित है कि? माँ पार्वती और विष्णु भगवान ने आग्रह किया कि प्रभु अपने व्रतों को बतायें जिससे हम सब और मनुष्य जाति को भुक्ति मुक्ति सहित पूर्ण कृपा प्राप्त हो सके । तब अनाथों के नाथ प्राणनाथ बाबा विश्वनाथ मुस्कुराते हुए बोले कि हे नारायण और देवी पार्वती मैं उन शैव श्रेष्ठ व्रत को कहता हूँ । जिनसे व्यक्ति को समस्त सुख के साथ मोक्ष की प्राप्ति भी सरल हो जायेगी ।
परन्तु मात्र व्रत ही नही भावना और भक्ति पूजन का भी होना अनिवार्य है । प्रथम व्रत है अष्टमी, शुक्ल पक्ष  की अष्टमी में रात्रि में भोजन करें और कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पूर्ण व्रत रहें भोजन न करें । द्वितीय व्रत एकादशी जिसमें कृष्ण पक्ष में रात्रि में भोजन कर सकते है , शुक्ल पक्ष में निराहार रहें भोजन न करें । तृतीय व्रत प्रत्येक महीने का शुक्ल पक्ष का सोमवार पर इसमें एक समय रात्रि में भोजन कर लें । चतुर्थ व्रत त्रयोदशी दोनो पक्ष की । फिर बाबा ने कहा ये चारो व्रत हमें अत्यंत प्रिय है पर इनसे भी अधिक हमें महाशिवरात्रि पसन्द है जिसे रहने मात्र से मेरी अत्यन्त कृपा स्वतः हो जाती है और उसका उद्धार हो जाता है । बाबा ने बताया कि ये व्रत कैसे ग्रहण करें - फाल्गुनमास कृष्ण पक्ष ( भारत में पञ्चाङ्ग में दो मान्यता है पूर्व और उत्तर का पञ्चाङ्ग एक महीना आगे चलता है जब कि पश्चिम और दक्षिण भारत का पञ्चाङ्ग एक महीना पीक्षे चलता है । इसी लिए जब काशी में फाल्गुन होगा तो सौराष्ट्र में माघ रहेगा हम फाल्गुन कृष्ण में शिवरात्रि कहते है वहां माघ कृष्ण में शिव रात्रि होती है बात एक ही है ) मध्य रात्रि में चतुर्दशी हो तब शिवरात्रि होती है दिन में कोई तिथि हो कोई दिक्कत नही परन्तु मध्यरात्रि में चतुर्दशी होना अत्यन्त आवश्य है । क्यों कि शास्त्र कहते है, प्रमुख रूप से ईशान संहिता में लिखा है कि उसी समय शिवलिङ्ग प्रगट हुए थे और उस समय शिवलिङ्ग से करोड़ सूर्य प्रकाश निकला था, चतुर्दशी महा निशी समय था। इस लिए ऐसी तिथि को शिवरात्रि ग्रहण करना चाहिए । शिवभक्त को फाल्गुन में महाशिवरात्रि और 11मास में शिवरात्रि व्रत इस प्रकार एक वर्ष में  12 शिवरात्रि का व्रत करना चाहिए और रात्रि में जगकर शिवार्चन करना चाहिए । इससे वह पूर्ण शैव हो जाता है और समस्त सुख के साथ अन्त में मुक्ति को प्राप्त करता है ।

Saturday 27 January 2018

श्री बटुकभैरव मूल मन्त्र जप साधना विधि

आज हम पाठकों को मूल मन्त्र को करने की विधि से परिचय करायेंगे । कि बाबा श्री बटुक भैरवनाथ का जप कैसे करें । मूल मंत्र को सुबह  दोपहर, रात्रि और मध्य रात्रि में करना आवश्यक है जिसमें से रात्रि और मध्य रात्रि में करना ज्यादा लाभ प्रद होता है । श्री बटुक भैरव का पूजन एवं जप, पाठ करने वाले उपासक का मुख दक्षिणाभिमुख होना चाहिए । जप के समय एक दीपक प्रज्वलित करके रखना चाहिए । उसका मुख भी दक्षिणाभिमुख रहे । साधक को काला या लाल वस्त्र ही धारण करना चाहिये पूजन के समय और इस प्रकार का वस्त्र धारण करें कि पैर बंधे न रहे , जैसे - लोवर, पैंट, पैजामा, सलवार ऐसे वस्त्र पहन के साधना पे न बैठें यदि बाहर है बस, ट्रेन या अन्यत्र जहाँ लुंगी, धोती, साड़ी , घाँघरा नहीं धारण किया जा सकता तक के लिए कोई बात नही पर अधिक से अधिक प्रयत्न करें कि उचित वस्त्र में पूजन करें । श्री बटुकनाथ की साधना एकान्त में करनी चाहिए । आसन का रंग लाल या काला हो और सबसे अच्छा की आसन में कई रंग हो , बाबा के मन्त्रों का जप रुद्राक्ष या काले हकीक से ही करें । जो लोग मूर्ति पे या मन्दिर में पूजन करते है वो ठीक है पर जो चित्र पे करते है वो ध्यान रखें चित्र किसी पीठ का होना चाहिए । वैसे साधना कहीं वीराने या श्मशान में कर रहे तो चित्र या मूर्ति की जरूरत नहीं। केवड़ा का प्रयोग जिन सामग्री में हुआ हो ऐसी चीज या उसका पुष्प बाबा से दूर रखना चाहिए इन्हें नहीं पसन्द है । पुष्प में नीला लाल ज्यादा पसन्द है। फल में अनार बहुत भाता है वैसे कोई भी ऋतु फल बाबा को चढ़ा सकते है । बाबा का पूजन बच्चों की सेवा की तरह भाव रख के करना चाहिए। फीका भोजन तन्त्र साधना में भोग नहीं लगता लहसुन, प्याज, गाजर, चुकंदर इन सब प्रयोग कर सकते है ,, मदिरा अपनी छमता ( कमाई के आधार पे ) के अनुसार भोग लगानी चाहिए, कुछ वैष्णों साधक भी बाबा की उपासना करते है तो वो लोग तामसी चीजों का भोग नहीं लगायेंगे तो भी कोई बात नही सात्विक भोजन का भोग लगा सकते है ,, मदिरा के स्थान पे खीर का भोग लगायें (पर यह ध्यान रहे इससे सिद्धि का मार्ग प्रसस्त नही हो पाता, सात्विक मार्ग का पूजन केवल अपनी पूजा की रक्षा या प्रेत बाधा से बचने के लिए आप प्रयोग कर सकते है पर कोई अर्जी नही रख सकते )  जो साधक बटुक साधना में नवीन है । वो सर्व प्रथम सवालक्ष जप कर हवन करें ,सवालाख जप 21 दिन के अंदर पूरा करना है अधिक अच्छा हो कि आप एक लाख चालीस हजार जप करें जिससे यदि हवन कम भी करेंगे तो कोई दिक्कत नहीं होगी , क्यों कि सवा लाख जप का दशांश हवन करना होगा अब दशांश देखें तो दस हजार दो सौ पचास हुआ इस लिए एक लाख चालीस हजार जप करें,, अब आप सोचेंगे की 21दिन में कैसे होगा तो हम बता दें कई लोग हमारे पास है जो 15 दिन में हवन भी कर चुके है ।हवन का विवरण पहले दे चुका हूँ या जिसको चाहिए होगा वो पूंछ लेगा और किस दिन हवन पड़ रही वो दिन भी बतायेगा तो मैं उस दिन के आधार पे हवन सामग्री भेज दूंगा ।  जिनके पास समय नहीं है अनुष्ठान उठाने के लिये वो प्रतिदिन 11 माला, 5 माला या 3 माला जरूर करें । उसके बाद ही बटुक साधना में आप प्रवेश कर पायेंगे। स्त्रियों के लिये यह नियम है कि मासिक धर्म के समय 5 दिन पूजन न करे ।  अपनी माला और आसन को स्पर्श न करें । उस दौरान पूजन का क्रम ये है कि कही भी अकेले बैठ के मानसिक जाप या पाठ करें मुह से उच्चारण न करें ।
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संक्षिप्त में जप पूजन क्रम :-
1 - सर्व प्रथम आचमनी करें , ध्यान रहे मूल मंत्र से ही तीन बार आचमनी करनी है ।
2 - हाँथ में जल लेकर 11 बार मूल मंत्र पढ़ के चारो तरफ बंधन करें।
3 - फिर ध्यान करें -
करकलितकपालः कुण्डली दण्डपाणि-
स्तरुणतिमिरनीलो व्यालयज्ञोपवीती ।
क्रतुसमय सपर्याविघ्नविच्छित्ति हेतुर्जयति -
बटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ।।

मूल मन्त्र -
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ नमः शिवाय
विशेष - यह मंत्र आपको प्रत्येक स्थान पे बिना ॐ नमः शिवाय के मिलेगा पर हमारा अपना खुद का अनुभव है कि इससे मंत्र में और शक्ति आ विस्तार हो जाता है । यह बाध्य नहीं है जैसा आपको उचित लगे करें ।। किसी भी प्रकार की शंका होने पर टिप्पड़ी या संदेश भेज सकते है । जय बटुकनाथ ।

Sunday 21 January 2018

9 भेद तन्त्र साधना के

आज अगर हम देखें तो जितना अध्यात्म का लोप हो रहा उतना ही अध्यात्म की तरफ रुझान भी बढ़ रहा है। मानव जीवन में दिन प्रतिदिन परिवर्तन आता जा रहा भौतिक जीवन के चलते प्रत्येक व्यक्ति नाजुक होता जा रहा क्यों कि इतने शंसाधन आते जा रहे है  कि दैनिक कार्यप्रणाली उन्ही पे निर्भर हो गई है । जन्म लेने से आवा गमन पठन पाठन सब आधुनिक आविष्कारों के वसीभूत हो गया है । मैं इनका विरोध नहीं कर रहा अच्छा है समय के साथ परिवर्तन जरूरी पर अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कुछ योगाभ्यास या व्यायाम आदि भी जरूरी है । अब हम मूल विषय के तरफ ध्यान देते है" की ! हर व्यक्ति की इक्षाशक्ति बहुत अधिक होती जा रही और तंत्र उपासक भी बढ़ रहे है । क्यों कि आज के समय में प्रतिक्षा किसी से नही होती जल्द से जल्द  प्रत्येक लक्ष्य प्राप्त हो यही सब की अभिलाषा रहती है। इसी लिए प्रत्येक व्यक्ति तंत्र की तरफ भाग रहा है पर हम यह बता दे कि!  यह सोच सर्वथा मिथ्या है। तंत्र में भी नव भेद होते है । यदि आप उनपे नहीं चल सकते तो कदापि इस मार्ग पर न आयें अन्यथा समय की हानि ही होगी । घृणा, शंका, भय, लज्जा, चुगली, कुल, शील, जाती, एकाकी ।
1- घृणा -  व्यक्ति के मन इन्द्रिय तन मन को जो चीज नहीं भाती उसे घृणित भाव से देखता है वह घृणा कहते है । पञ्चतत्व निर्मित समस्त जीव भगवान शिव की देन है इस लिये घृणा अवरोध पैदा करती है ।
2 - शंका - व्यक्ति का व्यवहार झूंठ, छल, चोरी इस प्रकार का भाव भरा होता है । ऐसा एक साधक में नही होना चाहिए और ऐसे व्यक्ति से दूर रहना चाहिए। जिसपे हमें कदाचित शंका करनी पड़े।
3 - भय - व्यक्ति को अपना परिवार, आत्मीयजन, सम्पत्ति और धन के नष्ट होने का डर भय है । ये तो सांसारिक भय है एक तन्त्र साधक को कौन सा भय नही होना चाहिए । साधक को न मनुष्य से डरना चाहिए न प्रेत से और अपना सार सर्वस्व अपने आराध्य को मनना चाहये , न निर्जन स्थान से भय न श्मशान से भय  न वन से भय तन्त्र साधक को श्मशान और घर में एक जैसा अनुभव होना चाहिए यानी भयमुक्त रहना चाहिए ।

4 - लज्जा - जहां मनुष्य के हृदय में अपमान जैसे शब्द अपने लिए उठे उसे लज्जा कहते है । लोग क्या कहेंगे ? आप स्वयं सोचिये लोगों ने कब आपको नही कहा? अच्छा करोगे तो भी लोग कहेंगे बुरे में तो लोग कहेंगे ही पर ध्यान देने वाला विषय है कि बुरा आप नही करते तो भी लोगों को बुरा लगता है तो अंततः परिणाम यह हुआ कि उसे कुछ कहना है उसी कहने के भय से आप लज्जित होते है और अपनी वास्तविक जिंदगी भी नही जीते , मैं ये कहता हूँ कि ये नश्वर मल मूत्र से बना शरीर है जब इसमें रहने से परमात्मा लज्जित नही होता तो हम क्यों लज्जित होते है इसे उस परमात्मा के मार्ग पर ले चले हम साधना करते है पर कोई देख ले तो हम लज्जित हो जाते है या किसी के यहाँ जाए तो सोचते है क्या कहेगा यदि ऐसा है तो ऐसे स्थान पर जाओ ही नही गए हो तो लज्जा नही अन्यथा आपकी साधना अवरोधित हो जाएगी । ये कदाचित नही होनी चाहिए अन्यथा आप अपनी साधना में स्वयं अवरोध डाल रहे , क्यो की मन के जीते जीत होती है जब मन ही हार गया तो आप कुछ नहीं कर सकते, इस लिए लज्जा नही ।
5 - चुगली - हमें जो आप अलग दिखती है उसे हम इधर उधर गाते फिरते है इसे जुगुप्सा या चुगली कहते है । एक साधक को किसी पे ध्यान नही देना चाहिए ये स्वयं के आत्म विश्वास के साथ आत्म घात है आप स्वयं देखें जो यह कार्य करते है वो कदाचित शान्त नही रह पाते स्वयं में व्यथित रहते है । इस लिये चुगली करनी चाहिये ।
6 - कुल - उच्च कुल में उत्पन्न व्यक्ति अपने आपको बड़ा मानता है पर तन्त्र में इस विषय का कोई मूल्य नहीं है । तन्त्र साधक को इसमें भेद भाव नहीं करना चाहिए तन्त्र में सभी बराबर होते है । तन्त्र में कर्म को प्रधानता दी जाती है और सिद्धि साधना से ही सम्मान  के योग्य होता है ।
7 - शील - अपने आचरण व्यवहार सदाचार ये बहुत जरूरी है। वैसे तो तांत्रिक स्वतंत्र होता है पर उसके अन्दर शिष्टता बहुत जरूरी है । जो आपके साधना का सम्मान करें उसे सम्मान की दृष्टि से देखो जो अपशब्द बोले उसकी तरफ ध्यान ही न दो, शील रखो।
8 - जाति - कर्म को आधार मान कर ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शूद्र ये चार जाति और तीन लिंग जाति है । पुरुष, स्त्री, नपुंशक ये तो निश्चित होती है परन्तु ब्राह्मण क्षत्रीय वैश्य शूद्र इन्हें तन्त्र नही मानता साधक की कोई जाति नही होती सभी साधना कर सकते है और सभी हवन कर सकते है । एक साधक को विवाह भी उसी से करना चाहिए जो स्त्री साधना करती हो अन्यथा आपकी साधना बाधित हो जाएगी । साधनात्मक जीवन नही रहा तो ओ ब्राह्मण भी होगी तो भी व्यर्थ है इस लिए तन्त्र साधक को जाति नही देखना चाहिए ।
9 - एकाकी - तन्त्र साधक को एकाकी यानी अकेले या अपनी पत्नी यानी एकाकी भाव में  साधना करनी चाहिये । एकाकी सम्पूर्ण भाव से एक शक्ति में लीन रहना चाहिए।

Monday 8 January 2018

क्रोध भैरव साधना मार्ग

आज के लेख में हम बात करते है क्रोध भैरव की ये भगवान भैरवनाथ के समस्त रूपों में सबसे गुप्त भैरव साधना है । वैसे ग्रंथ प्रमाण तो ये कहता है कि श्री बटुक भैरव उपासना से शिव के समस्त भैरव रूप की उपासना हो जाती है । पर कुछ विशेष स्थान है जहां विना क्रोध भैरव के उस स्थान की पूर्ण प्राप्ति होही नहीं सकती । वैसे क्रोध भैरव नाम ही अपने मे कह दे रहा कि ये कैसा रूप है । इस रूप से समस्त  भूत प्रेत वश में हो जाते है और देवी देवता भयभीत रहते है । इसी लिए इन्हें वज्र पाणि भी कहते है इनकी उपासना में बहुत अवरोध आता है कोई भी पिशाच नहीं चाहता कि इनकी उपासना हो पाए वैसे तो सत्य तो ये है कि किसी भी भैरव उपासना को कोई भी प्रेत नहीं चाहता कि कोई भैरव उपासना कर पाये, पर भगवान क्रोध भैरव की उपासना तो और कठिन है । यदि आप किसी देवी देवता की सिद्धि कर रहे और वो सिध्दि नही हो रही तब होती है वज्रपाणि साधना । साधना गलत होने पे स्वयं का अरिष्ट निश्चित है। क्यो की क्रोध भैरव ऐसे देवता है जिसपर किसी का जोर नही इसी लिए अघोरी और तांत्रिक ही इनकी उपासना करते है क्यो की यक्षिणी, कर्णपिशाचिनी, भूतिनी जैसी हजारो पिशाची साधना क्रोध भैरव के चरण में निवास करती है । क्रोध भैरव उपासना साधना बिना गुरु के एक बार भी नही करनी चाहिए।  गुरु भी वो हो जो 64 भैरव 10 विद्याओं के बारे में अच्छे से जानता हो और किसी एक भैरव की साधना या सिध्दि हो तब वो गुरु किसी भी पूर्णिमा की मध्य रात्रि एकांत में नीला वस्त्र ओढा के रात भर साधना कराता है । इस लिए क्रोध भैरव का मंत्र मैं यहाँ नही बता सकता । क्रोध भैरव साधना में मन्त्र जाप, भैरव मुद्रा ,वज्र न्यास हवन से साधना की जाती है ।
इनके साधक को साधना काल मे नीला या काला वस्त्र धारण करना होता है । काला कुत्ता तो सभी भैरव को प्रिय है पर इस रूप को बाज भी बहुत भाता है ।