Thursday, 14 December 2017

धन की परेशानी दूर करते है बटुक दानी

यदि आप है धन से परेशान, नही दिख रहा कोई समाधान , करते है बटुक साधना और नही मिल रहा कोई रास्ता तो आओ हम चलते है श्मशानी बटुकनाथ दानी के पास , जो है मात्र एक सहारा और भक्तों को देगा किनारा । वो है शिव का नटखट अवतार इसी लिए भरता है भण्डार। मैं अश्विनी तिवारी नही कह रहा कोई मन गढ़न्त कहानी ये है ग्रन्थों की वाणी । चरा चर ब्रह्माण्डमें सभी देव है दानी पर नही है हमारे बटुकनाथ का कोई शानी क्यों कि बाबा है मेरे महादानी । बाबा के सभी मन्त्र है कल्याणी जपते ही छूट जाती है जन्मों की परेशानी ।

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जैसा कि हमें ज्ञात है की अर्थ न हो तो व्यक्ति का समस्त कार्य बाधित हो जाता है । बिना धन के कोई भी कार्य नही किया जा सकता फिर चाहे वो शिक्षा, दवा, भोजन या भजन धन के अभाव में कुछ भी सम्भव नही और सबसे बड़ी बात की आप बहुत अच्छे हो पर धन नही है तो कोई सम्मान तक नही करता । इस लिए अब हम को बाबा की अर्थ प्राप्ति की साधना बताते है।

जी हाँ आज हम श्री बटुक भक्तों को एक नवीन मार्ग से अवलोकन करायेंगे, कुछ के लिए ये नवीन है तो कुछ के लिये ये पहले से जाना समझा हो सकता है । पर इस मार्ग से भक्त 1000% सन्तुष्ट ही रहा है । जैसा कि आपको ज्ञात है कि श्री बटुक भैरवनाथ जी भगवान सदा शिव के बाल रूप है, शैव सम्प्रदाय धर्म का एक मार्ग है नाथ सम्प्रदाय इस मार्ग में भगवान भैरवनाथ का पूजन होता है । यदि कोई बटुक उपासक है, धन से परेशान है तो उसे भगवान स्वर्णाकर्षण का जाप करना आवस्यक है इससे आपकी पुकार आपके बटुकनाथ तक पहुंच जाती है । यह रूप श्री बटुक भैरव ने इस लिए रखा कि उनके भक्त कभी कष्ट में न रहे । इस रूप में बाबा ने स्वर्ण की आभा युक्त रूप रखा है और मन्दार के पेड़ के नीचे माणिक्य का सिंहासन लगा कर विराजमान है और अपने भक्तों पे धन और स्वर्ण की बरसा सदैव करते रहते है । इसी लिए इस रूप को स्वर्णा कर्षण कहा जाता है । बटुक उपासक विरला होता है। उसका कोई कुछ नही कर सकता और उसको कभी किसी की परवाह नही करनी चाहिए चाहे कोई बड़ाई करे या बुराई सब बाबा पे छोड़ देना चाहिए । कोशिश ये रहे कि लोगो से अलग ही रहो उतना अच्छा ज्यादा अपने बारे में बात न करो, खास कर साधना से सम्बंधित पर हाँ ये कभी न छुपाओ की आप बाबा बटुकनाथ की सेवा करते हो जो पूंछे बता सकते हो,  बाबा का जय कारा लगता रहे इससे बाबा बहुत प्रसन्न होते है । यदि कोई बाबा के बारे में उल्टा बोले तो वहाँ से हट जाओ बस इतना कह दो * बाबा आपही देखो* उसके बाद चले जाओ । फिर उसे ब्रह्माण्ड में कोई नही बचा सकता । अब आपको बताते है उस अमोघ मंत्र के बारे में जिसे करने से भक्त धनवान होता है पर ये मंत्र उनपे ही काम करता है जो बटुक उपासक होंगे । स्वर्णाकर्षण भैरव मन्त्र - *ॐ ऐं क्लीं क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं सः वं आपदुद्धारणाय अजामल बद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णा कर्षण भैरवाय मम् दारिद्रय विद्वेषणाय ॐ ह्रीं महा भैरवाय नमः ॐ नमः शिवाय* कृष्ण पक्ष की रात्रि व्यापी अष्टमी यानी भैरवाष्टमी  से रात्रि  व्यापी चतुर्दशी मतलब मासशिवरात्रि तक 11 हजार जप से मंत्र सिध्द होने लगता है फिर उसके बाद जितना अधिक करें उतना अच्छा । वैसे स्वर्णाकर्षण साधना का क्रम बहुत ही बृहद है , तो आगे के लेख में आपको जानकारी प्राप्त होती रहेगी ।। जय बटुकनाथ

Friday, 10 November 2017

shri batuk bhairav hawan


श्री बटुक साधना में हम आज आपको बाबा के हवन विधि से अवगत कराते है । श्री बटुक भैरव साधना में हवन का सर्वोत्तम स्थान है । बिना हवन बटुक साधना पूर्ण नहीं होती साधनाओं विधि बहुत ही बृहद है उसमें जितना ही जानकारी हो उतना ही कम होता है साधना के मार्ग में कोई पूर्ण नहीं होता परन्तु अपने अध्ययन और अपने अनुभव के आधार पे ही नवीन मार्ग का अवलोकन होता है। इन्ही कारणों से गुरू का होना आवश्यक है और वह गुरू उस मार्ग का जानकार होना अवस्यक है । जिस मार्ग की आप साधना करने जा रहे , क्यों की मात्र अध्ययन से भी काम नहीं चलता उसके लिये अनुभव और प्रयोग किये हुए ज्ञान की सबसे अधिक अवस्यकता है । क्यों की तंत्र एक प्रकार की खोज है जिसमें वैज्ञानिक की भाँति आपको सदैव प्रयोग करते रहना अपने को पूर्ण नहीं मानना है यदि कुछ शक्ति प्राप्त हो रही तो उससे अहम भाव न आने दे और उसके बारे में कदाचित चर्चा न करें । अब अपने मूल विषय श्री बटुक भैरवनाथ जी सम्बन्धित साधना के हवन के बारे में बतायेंगे । आगे बढ़ने से एक जान लें की यह विधि दक्षिण मार्गियों के लिए । स्पष्ट रूप में कहें तो शैवधर्म के नाथ परम्परा के सात्विक मार्ग के बारे में ही बतायेंगे । क्यों की मैंने स्वयं जितनी भी साधना की या कर रहा सब दक्षिण मार्ग से ही है , और मैं बलि प्रथा या कहे तो जीव हत्या का विरोधी हूँ । ग्रंथों में दोनों प्रकार के साधना का विधान है पर दोनों ही मार्गों में एक समता है की ? बटुक भैरवनाथ का सबसे प्रिय मदिरा है । इस लिए मदिरा बाबा को ज़रूर चढ़ती है । । श्री बटुक भैरव हवन बच्चों की और बाबा की पसन्द की सामग्री से की जाती है । वैदिकरिक हवन में काफ़ी भिन्नता है । वैदिक हवन सूर्यास्त के पश्चात् नहीं की जाती जब की तन्त्र मार्ग की हवन २४ घण्टे में कभी भी की जा सकती है , वैसे श्री बटुक जी का सबसे प्रिय समय है रात्रि ९:०० से मध्य रात्रि ३:५९ तक और हवन में यही समय ग्रहण करना चाहिये । यदि ऐसा कोई कारण हो की रात्रि में हवन नहीं कर सकते तब दिन में भी कर सकते हैं ।
हवन के समय काला या लाल वस्त्र ही धारण करना चाहिये। भैरव जी का हवन कुण्ड गोल बनता है , यदि हवन कुण्ड नहीं बना रहे फिर भी कोई बात नहीं वह भी मान्य होता है । कुण्ड या जहाँ हवन करना है या कहें जहाँ अग्नि को स्थापित करना है उस वेदी को गाय के गोबर या मिट्टी से लेपन कर लें उसके पश्चात रोली से दक्षिण से उत्तर की ओर जिह्वा की आकृति बनायें ध्यान रहे जिह्वा का अग्र भाग दक्षिण की ओर रहे । जिह्वा के ऊपर "बं" बीज मन्त्र लिखें , शुद्ध जल से बेल पत्र के द्वारा जिह्वा पे जल छिछकारें और साथ साथ अष्टोत्तर सतनाम का पाठ करते रहे जिसे नहीं आता मूल मात्र को ११ बार पढ़ें उसके बाद लकड़ी रखें , फिर अग्नि प्रज्वलित करें । उसके बाद मिष्ठान और जल से पूजन करें फिर घी से गणेश और माँ गौरी की उसके बाद नव ग्रह की आहुति तत्पश्चात् बटुक गायत्री से आहुति दें फिर साकल से गणेश जी की आहुति दें, उसके बाद दशमहाविद्या की आहुति दें, (जैसे मैं लिख रहा इसी क्रम से आहुति देनी है )दश दिगपाल, कुल देव , स्थान देव, दश भैरव, ६४ योगिनी, ६४ भैरव, ५० क्षेत्रपाल, नव दुर्गा, भगवान विष्णु , भगवान कृष्ण, भगवान शिव, श्री काशी विश्वनाथ, काल भैरव, अष्टभैरव, इष्ट देव, अष्टोत्तरसत्नाम से , मूल मन्त्र से फिर पूरी हवन करें अन्त में पुनः गणेश जी की आहुति दें ।
एक मुख्य बात जो श्रीबटुकनाथ जी को ही अपना सर्वस्व मानते है और श्मसान साधना करना चाहते उनकी हवन विधि और सामग्री में भिन्नता रहेगी । साथ ही साथ एक बात बता दें बाबा को हवन सबसे अधिक प्रिय है । फल, मिष्ठान, भोजन इस प्रकार खाने पीने के प्रत्येक सामग्री से हवन होती है । तांत्रिक विधि के अनुसार बाबा को फीका भोजन नही भाता है । 
इसके अतिरिक्त यदि कोई जानकारी लेनी है तो ashwinitiwariy@gmail.com निम्नांकित मेल पर अपना प्रश्न या विषय भेज सकते या फिर shri batuk bhairav bhakt ग्रुप पे मैसेज भेज सकते है । 

Saturday, 23 September 2017

10 महाविद्या के साथ 10 भैरव

माँ पार्वती समस्त देवियों की मूल शक्ति है । जगत जननी माँ पार्वती चराचर ब्रह्माण्ड में जो कुछ है वह जगत जननी त्रिपुर सुन्दरी माँ पार्वती से ही है । बिना शक्ति के शिव भी शव हो जाते है। भगवती त्रिपुर सुन्दरी के अधीन पूरा ब्रह्माण्ड है । त्रिदेव भी भगवती की ओर ही देखते रहते है ,, और अपने समस्त भाव भगवती माँ पराम्बा से ही प्रारम्भ करते है । स्वयं भगवान शिव के अवतार संत शिरोमणि आदि शंकराचार्य जी ने माँ पराम्बा त्रिपुर सुन्दरी की आराधना की और क्या कहा देखिये -
तनीयांसं पांसुं तव चरणपंकेरुहभवं,
विरिञ्चि: संचिन्वन्विरचयति लोकानविकलम् ।
वहत्येनं शौरि: कथमपि सहस्रेण शिरसां,
हरः संक्षुद्यैनं भजति भसितोद्धूलनविधिम् ।।
अर्थात् - माँ आपके कमल समान श्रीचरणों में लग्न सूक्ष्मातिसूक्ष्म रज की कृपा से ब्रह्मा निरन्तर विश्व की सृष्टि में तत्पर रहते है । विष्णु भगवान् स्वयं शेषावतार धारण कर अपने सहस्रों सिरों से आपकी चरण धूलि से उत्पन्न समस्त लोकों को सप्रयत्न धारण करते है । भगवान् भूतभावन शिव स्वयं तुम्हारी पदधूलि को सम्यक् रूप से भस्मीकृत कर अपने अङ्गों में लगा लेते है । इस तरह ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों मूर्ति पराशक्ति पराम्बा त्रिपुरसुन्दरी माँ की आराधना कर कृतकृत्य हो जाते है ।
इस प्रकार माँ पार्वती ने जब जब अवतार लिया तब तीनों लोकों के प्राणनाथ भगवान भलेनाथ ने भी अवतार लेकर भगवती से विवाह किया । भगवती ने महाविद्या रूप रखा तो बाबा ने भैरव रूप रखा आज हम बतायेंगे की किस महा विद्या के साथ किस भैरव की उपासना करनी चाहिए । बिना एक दूसरे के कोई भी साधना सिद्ध नहीं होती यह अटल सत्य है ।
1 - काली  ,        1-  काल भैरव
2- तारा,             2-  अक्षोभ्य भैरव
3- छिन्मस्ता       3-  विकराल भैरव
4- त्रिपुरसुन्दरी ,  4-  ललितेश्वर भैरव
5- भुवनेश्वरी       5-  महादेव भैरव
6- त्रिपुराभैरवी    6-  भैरव
7- धूमावती         7-  शून्य पुरुष भैरव
8- बगलामुखी     8-  मृत्युञ्जय भैरव
9- मातङ्गी          9-   सदाशिव भैरव
10- कमला        10- नारायण भैरव
इनके अतिरिक्त बटुक भैरव की पूजा सभी देवियों की साथ की जा सकती है । यदि साधक देवी उपासक है तो साथ में बटुक भैरव पूजन कर सकता है पर नियम देवी का ही चलेगा । यदि बटुक भैरव साधक है तो किसी भी महाविद्या की साधना करे पर नियम बटुकनाथ का चलेगा । क्यों कि बटुक भैरव की पूजा सबसे भिन्न है ।

Wednesday, 20 September 2017

अश्विन नवरात्रि व्रत /श्रीसंवत् 2074

विवरण -
प्रतिपदा - 21 सितम्बर 2017 गुरुवार , कलश स्थापन प्रातः 6 से 9:58 तक
अष्टमी -   28 सितम्बर 2017 गुरुवार, दशमहाविद्या हवन
नवमी  -   29 सितम्बर 2017 शुक्रवार, हवन , कन्याभोज ,
दशमी -   30  सितम्बर 2017 शनिवार , नवरात्रि व्रत पारण , विजयादशमी

आज हम नवरात्रि के ऊपर बतायेंगे ,, हिन्दू धर्म या कहें चराचर ब्रह्माण्ड में 4 संख्या का बहुत ही बड़ा स्थान है , चार वर्ण, चार वेद, चार शंकराचार्य और चार नवरात्रि ,, देवी उपासना में नवरात्रि का सर्वोच्च स्थान है । किसी देवता की उपासना बिना देवी उपासना के पूर्ण नहीं होती । इस लिए प्रत्येक साधक को किसी एक देवी की उपासना करनी चाहिए । यदि तन्त्र साधना करते है तो महा विद्या और यदि मात्र दैनिक उपासना करते है तो स्व रुचि के अनुसार दस विद्या या नव दुर्गा की उपासना करें । अब हम अपने मूल विषय पे बात करते है । नवरात्रि से स्पष्ट हो रहा कि यहां हम नव + रात्रि के संदर्भ में बात कर रहे, नवरात्रि को कैसे हम ग्रहण करते है ? ये जानिए ! नवरात्रि तिथि के आधार पे होती है। न कि ! दिन के आधार पे यदि किसी तिथि का क्षय हो जाये तो वह नवरात्रि 7 या 8 दिन की हो जाती है । यदि तिथि बढ़ जाये तो 10 दिन की भी हो जाती है । अब हम बात करते है प्रतिपदा की !  प्रतिपदा नवरात्रि का प्रथम दिन है । देवीपुराण और डामर तन्त्र के अनुसार जिस दिन अमावस्या हो उस दिन की प्रतिपदा को ग्रहण नहीं करना चाहिए । ये त्याज्य है। अधिकतर ब्राह्मण स्वलाभ या अज्ञानता में अमावस्या को जब प्रतिपदा लगती है तो कलश स्थापना करा देते है । डामर तन्त्र के अनुसार ये नवरात्रि के प्रभाव को क्षीण कर देता है । इस लिए उदयातिथि की नवरात्रि ही ग्रहण करना चाहिए , कभी ऐसा भी होता है कि प्रतिपदा का क्षय हो जाये तो  द्वितीया युक्त प्रतिपदा ही ग्रहण करना चाहिए । अमावस्या युक्त प्रतिपदा में पूजन करने से व्यक्ति संकट से घिर जाता है । निर्धन हो जाता है ऐसा स्कन्द पुराण में लिखा है । क्यो की देवीपुराण के अनुसार अश्विननवरात्रि की प्रतिपदा जिसके पुत्र सुख नही है उन्हें पुत्र सुख प्राप्त होता  है । अमावस्या युक्त प्रतिपदा पुत्र सुख का नाश करती है । इन प्रमाण को देख के रुद्रयामल तन्त्र का निर्णय है कि द्वितीया युक्त प्रतिपदा में ही व्रत और कलश पूजन करें ।
भगवती के जिस रूप की आप उपासना करते है । उनके मन्त्र जप करें , जयन्ती मङ्गला काली" इससे यथा शक्ति हवन करें । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।। इस मंत्र यथा शक्ति जप करे । भगवती के जिस रूप की उपासना करते है उनका पाठ करें । इस प्रकार प्रतिपदा से नवमी तक व्रत करें । भगवती यदि जागरण करना है तो अष्टमी या नवमी को करें । यदि इन दो दिन न हो सके तो षष्ठी को करें । दसमहाविद्या के उपासक अष्टमी में ही हवन करें। दुर्गा आदि शक्ति के उपासक नवमी में हवन करें । हवन के बाद यथा शक्ति कन्याओं को भोजन करायें । कन्या कैसी हों - कन्या 2 वर्ष से 10 वर्ष तक ही खिलानी या पूजन करना चाहिए उसके बाद वो त्याज्य है । 1 कुमारिका, 2 त्रिमूर्ति, 3 कल्याणी, 4 रोहिणी, 5 काली, 6 चण्डिका, 7 शाम्भवी, 8 दुर्गा, 9 श्रीमतीसुभद्रादेवी ,, इन नामों से यथा क्रम पूजन करना चाहिए । उदया तिथि के दशमी में वेद पाठी ब्राह्मण को भोजन करा के पारण करना चाहिए ।नवमी में पारण नहीं करना चाहिए । स्त्रियों को भी इसी प्रकार व्रत करना चाहिए, यदि वह व्रत में मध्य रजस्वला हो जायें तो किसी सुद्ध स्त्री, पति या ब्राह्मण से अपना पूजन करायें । स्वयं वहां से दूर रहे मन में भगवती का ध्यान करें । भूल से भी पूजन स्थली के सन्निकट न जायें । इस प्रकार नवरात्रि पूजन सम्पन्न करें । जय मां त्रिपुर सुन्दरी , जय बटुकनाथ।

Tuesday, 12 September 2017

साधनाओं में बलि प्रथा

आज हम एक ऐसे विषय पे चर्चा करेंगे, जो कि अधिकाधिक साधकों को सोचने पे विवस कर देता है । वो विषय है मांसाहार और शाकाहार बलि प्रथा से जुड़ा है और यह अत्यन्त गलत भी है । जब हम अपने सात्विक धार्मिक ग्रंथों पे दृष्टि गोचर करते है, जैसे रामायण, गीता, भागवत् , शिव पुराण, विष्णु पुराण तो ये ग्रंथ बताते है कि लाहशुन, प्याज, गाजर तक नहीं खाना चाहिए । तो मांसाहार का तो कोई प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होता कि कहीं प्राप्त हो की मांस का सेवन आध्यात्मिक है । यही हमें हर धर्मानुयाई से श्रवण करने को प्राप्त होता है। पर जब हम किसी पहाड़ो के मन्दिर जाते है जैसे काली मन्दिर या मैदानी क्षेत्र में तारा, छिन्नमस्ता, बटुक भैरव , संहार भैरव का मन्दिर या किसी तान्त्रिक ग्रन्थ को देखते  है। तो हमें बलि प्रथा दिखाई पड़ती है।  तो हम संसय में पड़ जाते है कि ये क्या है ये भी तो देवी देवता है फिर इन्हें मांस क्यों चढ़ता है । तो आपको बता दें कि शिव और शक्ति की उपासना में 2 मार्ग होते है । एक बाम मार्ग और एक दक्षिण मार्ग दोनों की मार्ग अपने में शक्ति शाली है । बाम मार्ग पूर्ण रूप से तान्त्रिक क्रियाओं से ओत प्रोत है । परन्तु दक्षिण मार्ग सन्यासी संत महात्माओं से पूर्ण सात्विक क्रिया से सम्बंधित है । इन मार्गों का चयन आपके गुरु से जुड़ा होता है । जिस मार्ग का अनुयाई आपका गुरु हो उसी मार्ग पर शिष्य को चलना चाहिए । हम अपने अनुभव के आधार पे बतायें तो बलि प्रथा नहीं होनी चाहिए । किसी भी जीव की हत्या से कोई साधना पूर्ण नहीं होती, बलि प्रथा से जुड़े लोगों की बहुत ही दर्दनाक मृत्यु होती है ।
प्राचीन काल में इंसान की भी बलि का प्रचलन था , ये और भी भयावह होता था 11 वर्ष तक के बालक की बलि दी जाती थी । कुछ लोग तो प्रौढ़ इंसान की भी बलि देते थे । पर इसका अभिशाप आज तक भोग रहे जिन राजाओं के यहां या जिन परिवार में नर बलि हुई थी 1 या 2 पीढ़ी के बाद उनका वंश समाप्त हो गया । क्यो की ऐसे परिवार में कुल पिशाच हो जाता है। जिनके परिवार में नर बलि होती है। 95% तो जब बलि बंद होती है, तो वंश नहीं चलता और अगर चला भी तो उस वंश के लोग प्रेत ही बनते है। उनका उद्धार नही होता वो पिशाच ही बनते है । क्यों कि जिनकी बलि दी जा चुकी है, उनमें प्रतिशोध की भावना के साथ प्राण का परित्याग किया है, तो "अन्ते मति सा गती" मतलब मृत्यु के समय जहां मति होती है वही रहता है । अर्थात वो आत्मा रूपी पिशाच न तो आपका वंश चलने देगा न ही सुखी रहने देगा । हाँ इससे बचने का मात्र एक साधन है। मांसाहार न करो और उस स्थान को छोड़ धर्म करो यदि आप धर्म करते हो और मांस भी नहीं खाते तो वंश चल सकता है पर उद्धार नही होगा । इस लिए जिसके वंश में ये हुआ है । उनको उस स्थान को छोड़ के धर्म करें और कभी मांसाहार न करें तभी बच सकते है ।
हम अपने बटुक साधकों को बता दें कि बटुक भैरव साधना में तीन मार्ग होते है 1 - बलि प्रथा । जिसका हम खण्डन करते है ये कोई आवश्यक नहीं कि बटुक साधना में बिना बलि के बाबा प्रसन्न नहीं होते ये भगवान शिव का बाल रूप है ऐसी कोई आवश्यकता है ।
2 - इस मार्ग में सेवा भाव देख के चलना होता है । बाबा की बच्चे की भाँति सेवा करनी होती है जो खाओ वही भोग लगाओ । बाबा को मदिरा बहुत प्रिय है । मदिरा का भोग आवश्यक है । साथ ही जो भोजन हमे फीका लगे पसंद न आये उसका भोग न लगायें । रात्रि पूजा में कभी रुकावट नही आनी चाहिए  ।
3 - ये पूर्ण दक्षिण मार्ग वालों के लिए है । आप सात्विक पूजन और भोग भी सात्विक करेंगे । मदिरा के स्थान पर खीर का भोग लगायेंगे । ये पूजन केवल अपनी किसी पूजा के रक्षा के लिए है , इससे सिद्धि नहीं प्राप्त हो पाती ।
विशेष आप जिस गुरु या पीठ से जुड़े है उसी के अनुसार सेवा करें । साथ ही यदि ब्राह्मण है तो मांस को ओंठ से स्पर्श न होने दें अन्यथा आप ब्राह्मण नहीं रह जायेंगे। वैसे भक्त में दया का भाव होना चाहिए इस लिए मांस से सदैव दूर ही रहना चाहिए ।

Thursday, 31 August 2017

दहेज़ लेने से समस्त पुण्य हो जाते है नष्ट

आज हम हिन्दू धर्म के 15वें संस्कार विवाह से जुड़ी कुछ बातों के बारे बताते है । वैसे हिन्दू धर्म में 8 प्रकार के विवाह होते है । जिनका शास्त्रों में वर्णन है, ब्रह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गान्धर्व, राक्षस, पिशाच ,, ये आठ प्रकार के विवाह होते है ।
1- पढ़े लिखे को वस्त्र आभूषण पहना कर पूजन करके कन्या दान करने को ब्रह्म विवाह 2- वेद पाठी, यज्ञ करने वाले को वस्त्र आभूषण  देकर पूजन करके कन्या दान को दैव विवाह
3- गाय बैल, घोड़े के जोड़े देकर विधि पूर्वक कन्या दान करना आर्ष विवाह है ।
4- दोनों पक्ष के लोग यह कहें कि दोनों खूब धर्म करो और पूजन के साथ कन्या दान करें यह प्राजापत्य विवाह है।
5- कन्या पक्ष की शक्ति के आधार पर उनकी प्रशन्नता से  वरपक्ष दान लेकर विवाह करे आसुर विवाह है।
वैसे इस प्रकार से भी इस विवाह को निन्दित ही कहा गया है, जब ये निन्दित है तो आज के समाज में विवाह नही व्यापार हो गया है, लड़की का जन्म होना श्राप हो गया है । कोई भी व्यक्ति ये नही चाहता कि उसे लड़की हो उसका कारण है ! दहेज समाज का ऐसा विष है जो कि धर्म को भी धूमिल करता है । देखा जाय तो विवाह दोनों पक्ष करते है। पर वर पक्ष की दृष्टि यही रहती है कि पूरे विवाह का खर्च ले और साथ साथ उनके ऊपर जिन्दगी भर का भार थोप दें । ये आज के विवाह की मंसा हो गई है । अनपढ़ ही नहीं पढ़े लिखे भी इस श्रेणी में आगे रहते है । परंतु जहां पर कन्या पक्ष से अत्यधिक मांग से विवाह होता है इसे एक दम निन्दनीय कहा गया है । ऐसे विवाह से दोनों पक्ष पाप की दृष्टि में आते है । जितना मांगने वाला दोषी है उतना ही देने वाला क्यों कि ऐसे विवाह में कोई देवता साक्षी नहीं बनता । क्यों कि किसी पे मन मानी बल का प्रयोग होता है तो वह अधर्म की श्रेणी में आ जाता है । और जहां अधर्म हो रहा वहां कोई देव नहीं आता । दहेज देना लेना दोनों ही पाप है , कितना भी धर्म करो इससे मुक्ति नहीं मिलती । दोनों पक्ष के लोग जो संकल्प लेते देते है , वो और वर वधू चारो ही पाप की श्रेणी में आते है । इस लिए कन्या पक्ष जितना अपनी इच्छा से दे उतना ही लेना चाहिए । कुछ लोग इसको कहते है कि जो कन्या के विवाह में नही देता वह अपनी लड़की को समझो बेच दिया, तो ये सर्वथा गलत है । बल कि कन्या पक्ष को तो कन्या दान का फल मिलता ही है साथ वर पक्ष भी पुण्य की दृष्टि में आ जाते है। प्रमाण -
यासां नाददते शुल्कं ज्ञातव्यो न स विक्रयः ।
अर्हणं तत्कुमारीणानृशंस्यं च केवलम् ।।
जातिवाले जिन कन्याओं पर शुल्क नहीं लेते वह बेचना नही है । वह तो कन्याओं का पूजन और हिंसारहित कर्म है , अर्थात दया का काम है ।।
6- कन्या और वर अपनी इच्छा से संबंध बनाते है उसे गंधर्व विवाह कहते है ।
7- लड़की के घर वालों को मार कर या उनके शरीर को चोट पहुंचा कर जो लड़की को उठा ले जाता है यह राक्षसी विवाह है ।
8- सोती हुई को लड़की बेहोश किया जाय या बल का प्रयोग करके सम्बन्ध बनाया जाय यह पिशाच विवाह में आता है । अन्तिम दोनों को शास्त्रों में निन्दनीय कहा है ऐसा करने वाला महा पापी होता है वह कितना भी धर्म दान कर ले उसे 1000 वर्ष की पिशाच योनि में भोगना पड़ता है । ऐसे लोगों के हाँथ जल भी नही ग्रहण करना चाहिए ।।
ब्रह्म, दैव, प्राजापत्य, और गान्धर्व ये चार विवाह उत्तम और अच्छे बताये गए है । इनके अतिरिक्त चारो विवाह त्याज्य है ।
कन्या की इच्छा से वर के हाँथ में कन्या का हाँथ देने से पाणिग्रहण संस्कार है होता इसी से विवाह पूर्ण होता है या कहिये मान्य होता है ।
यदि आज के समय की बात करें , जो हो रहा है तो विवाह में अधिकधिक धन का व्यय किया जाता है कि विवाह हो रहा है । आये हुए लोगों पर अनावश्यक धन का व्यय होता है । जब कि आवाहित देवता के ऊपर अक्षत मात्र से ध्यान कर लिया जाता है कि कितनी जल्दी पूजन समाप्त हो, बिचार करिये जिसको अपने साक्षी माना विवाह किया उनको तो आपने समय ही नही दिया । क्या होगा ऐसे विवाह का भविष्य?, इस लिए जो करिये अच्छे से नही तो नही । वैसे भी इसी लिए गान्धर्व विवाह को उत्तम बताया गया क्यो की उसमें दान दहेज नहीं चलता । जिन विवाहों में वर पक्ष की इच्छा से दान लिया जाता है । उस विवाह को आसुर विवाह ही कहा जायेगा आसुर विवाह और पिशाच विवाह के मिलने वाले पाप एक जैसे ही है । इस लिए दहेज नही लेना चाहिए ।


Wednesday, 30 August 2017

इंसान कभी भगवान नहीं होता ......,

प्रत्येक वह व्यक्ति जो भक्ति करता है , उसकी यही मंसा होती है कि मृत्योपरांत हमें मुक्ति की प्राप्ति हो । और इस भावना से वह गुरु के शरण में जाता है । हमें भगवत् मार्ग का अवलोकन कराइये और गुरु अपने ज्ञान के अनुसार मार्ग बताता है । परन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात क्या उस गुरु को पता है ? कि मुक्ति का मार्ग क्या है ? व्यक्ति यहीं पर जल्द बाजी कर जाता है । कुछ लोग वंसानुगत गुरु से दिक्षा ले लेते है। वैसे ये गलत नही पर शिष्य का कर्तव्य होता है कि जिससे आप दिक्षा ले रहे क्या उसे उस देवी देवता के बारे में पता है । क्या वो संध्या पूजन या साधना करता है या नहीं ये जानना आवश्यक है । आज के समय में कुछ गुरु बानें घूम रहे जो स्वयं को ही परमात्मा का अवतार बताते है । अपनी ही पूजा कराते अपनी रामायण तक बना डाले है । और सबसे आश्चर्य की बात ये है कि व्यक्ति उनके इस मिथ्या भाषण को सत्य मान लेता है । शास्त्रों का मत है जो मनुष्य अपनी पूजा कराता है वह प्रेत बनता है। और जो उनकी पूजा करता है वह प्रेत ही बनता है , क्यो की उद्धार करने का कार्य परमात्मा का है इंसान का नही । बहुतायत लोग मृत लोगों की उपासना करते है । वैसे मृत की उपासना होती है ऐसा नहीं है कि नहीं होती । पर बात ये आजाती है कि वो आपका कौन है । माता पिता या गुरु इनको प्रणाम कर सकते है इसके अतिरिक्त यदि किसी सन्यासी की समाधि है तो प्रणाम कर सकते है । पर कुछ लोग जहां पाते है वहीं सर झुकने लगते है हाँथ जोड़ने लगते है । एक कहावत है "जो हर जगह झुकता है उसे जीवन पर्यन्त झुक के ही रहना पड़ता है" हम सनातन है तो सनातन धर्म के नियम अनुसार ही पूजन और वन्दना करनी चाहिए । सनातन धर्म कहता है इंशान की वन्दना नही करनी चाहिए । चाहे वह जीवित इंशान हो या मृत, इंसान की उपासना नही करनी चाहिए । इंशान कभी भगवान नही बन सकता । खुद सोचिए आदि शंकराचार्य जी जैसे महा संत जिन्होंने केवल देव पूजन और धर्म का उपदेश ही दिया । इतने बड़े सिद्ध संत ने कभी अपने को भगवान नही कहा । इसी बात को भगवान ने गीता में कहा -
यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोsपि माम् ।। ( गीता नवम अध्याय )
अर्थात् - देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते है, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं।भूत प्रेतों को पूजने वाले भूतों प्रेतों को प्राप्त होते है और मेरा पूजन करने वाले भक्त हमको प्राप्त होते है ।
कुल सार सर्वस्व ये है कि मनुष्य को कभी किसी मनुष्य की उपासना नही करनी चाहिए ।
चाहे वह मृत हो या जीवित मनुष्य गुरु बन सकता है भगवान नही । भगवत मार्ग दिखाये तो गुरु है और खुद को ईश्वर बताये तो राक्षस है ।

Tuesday, 29 August 2017

गुरु के प्रकार

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में माता पिता प्रथम गुरु होते है । माता, पिता, गुरु यही तीन ऋण भी होते है , जब तक ये तीन जीवित हो सेवा करे सानिध्य या ज्ञान ले । परन्तु माता पिता को छोड़ गुरू का चयन बहुत ज़रूरी होता । क्यों की गुरू के पुण्य से शिष्य सिद्ध होता है परमात्मा के निकट पहुँचता है तो गुरू यदि कोई पाप करे तो शिष्य को भी मिलता । इस लिए यदि गुरू में कमी दिखे तो उसका परित्याग कर देना चाहिए। शास्त्र का मत यहाँ तक है कि यदि आपका गुरू ब्राह्मण और आप किसी भी जाति के हो तो आपके धर्म का मूल्याँकन उसी ब्राह्मण गोत्र से किया जायेगा और यदि आपने किसी और जाति के गुरू से मन्त्र लिया तो आपके धर्म का भी मूल्याँकन उसी जाति से होगा । संत की जाति नहीं होती पर वह संत भगवान या कहें दैविक मार्ग का अनुयाई होना आवश्यक होता । वेद वेदान्त उपनिषद का ज्ञान आवश्यक है । किसी को भी आध्यात्मिक या कहिये ज्ञान वर्धक गुरु बनाना चाहिये । हिन्दू धर्म वेदों पर आधारित है इस लिये गुरू को वैदिक ज्ञान होना आवश्यक है । तभी वह अपने साथ साथ शिष्य का भी उद्धार करता है । गु = अन्धकार, रु = प्रकाश की तरफ ले जाने वाला। गुरु कई हो सकते है वैसे गुरु के 3 प्रकार है 1 शैक्षिक - जो आपको पढ़ता है । 2 - मार्गिक - जो आपको बक़ताये ये सही है ये गलत है। दूसरे में ही आ जाते है कथा वक्ता प्रवचन करने वाले । जो हमारे बड़े रिस्तेदार होते है । या कोई भी हो सकता है । 3 - दैविक - वो गुरु जो मुक्ति का मार्ग प्रसस्त करे । आपको गुप्त मंत्र देकर आपका मार्ग निर्धारित करे । जिसको वेदों शास्त्रों का ज्ञान हो । या जैसे आप कोई साधना कर रहे हो तो उस साधना को उन्होंने किया हो और उस मार्ग के बारे में सम्यक जानकारी हो ऐसा गुरु ।
शास्त्र कहते है प्रथम दो प्रकार के जो गुरु है उन्हें समय आने पर छोड़ देना चाहिए जब जक वो पढ़ायें या कथा कहे उपदेश दे तभी तक के लिए उनकी सेवा करो सम्मान करो उसके बाद नहीं । मनु स्मृति कहती है -
अब्रह्मणादध्ययनमापत्काले विधीयते ।
अनुव्रज्या च शुश्रूषा यावदध्ययनं गुरो।।
अर्थात - जब दैवज्ञब्राह्मण गुरु का सानिध्य न हो, आपात काल हो क्षत्री आदि ( क्षत्री, वैश्य, शूद्र, और भी किसी से ) से भी पढ़ा या ज्ञान लिया जा सकता है । परंतु उस गुरु का अनुगमन और सेवा तब तक ही करे जब तक वह पढ़ता रहे या सीखता रहे ।
उसके बाद उसका गुरु रूप से नही मनना चाहिए ।

Monday, 28 August 2017

ज्ञान और संस्कार ये कहीं से भी प्राप्त हो उसे ग्रहण करना चाहिए

यदि हमें जीवन मे कुछ प्राप्त करना है, तो शिक्षा देने वाला नीच हो तब भी विद्या अध्ययन अवश्य सीखना चाहिए। चाण्डाल के पास से भी परम धर्म के मार्ग का अवलोकन करना चाहिए , और उसे ग्रहण करना चाहिए । अच्छे आचरण और मर्यादित सुन्दर स्त्रीरत्न को नीच कुल से भी ग्रहण कर लेना चाहिए । "क्यो की स्त्री जाति और कुल से नहीं गुण और सुन्दरता से सम्मानित होती है " ऐसी स्त्री मिले तो रत्न के सदृश मान कर ग्रहण करें । दुर्गुण में भी गुण खोज कर ग्रहण करें , बालक को न देखो यदि सुन्दर प्रिय वचन नही है तो बेकार है , और यदि इसके विपरीत होतो सुन्दर वचन से बालक को ग्रहण करो, शत्रु के भी गुण देखना चाहिए यदि अच्छे हों तो उसे ग्रहण करो, कितना भी अशुद्ध स्थान पे स्वर्ण गिर जाये उसे ग्रहण करना चहिये।। शास्त्र प्रमाण -
श्रद्दधानः शुभं विद्यामाददीतावरादपि।
अन्त्यादपि परं धर्मे स्त्रीरत्नं  दुष्कुलादपि।।
विषादप्यमृतं ग्राह्यं बालादपि सुभाषितम् ।
अमित्रादपि सद्दृत्तममेध्यापि काञ्चनम् ।।
श्रद्धापूर्वक नीच से अच्छी विद्या को, चाण्डाल से भी परम धर्म को, और नीच कुलसे भी  स्त्रीरत्न को ग्रहण करै। विष से भी अमृत को, बालक से सुन्दर वचन को, वैरी से भी सुन्दर आचरण को, अशुद्ध स्थान से भी सुवर्ण को लेना चाहिए ।
"स्त्रियो रत्नान्यथो विद्या धर्म: शौचं सुभाषितम्।
विविधानि च शिल्पानि समादेयानि सर्वतः।।
अर्थात - स्त्री को, रत्न, विद्या, धर्म, पवित्रता, सुन्दर वचन और अनेक प्रकार की कारीगरी इनको सबसे लेना चाहिए ।

Sunday, 27 August 2017

व्यक्ति आयु से नही ज्ञान से बड़ा होता है

किसी भी व्यक्ति का बाल पका हो अवस्था हो गई हो, पढ़ा लिखा न हो या पढ़ा लिखा हो कर भी दूसरे का देख कर ही कार्य करे। विवेक का प्रयोग न करे तो वह बड़ा नहीं होता उसकी सलाह से नहीं चलना चाहिए । आयु में कम हो पढ़ा लिखा हो विवेक का प्रयोग करता हो मात्र दूसरों को न देखे अपने विवेक से निर्णय ले ऐसा व्यक्ति कम आयु का हो, तरुण अवस्था में भी हो तो उसे देवता भी वृद्ध मानते है । "दूसरों को देखने का हमारा भावार्थ ये नहीं कि दूसरों को नही देखना चाहिए या उनसे सीखना नही चाहिए । हमारा कहने का अभिप्राय है कि अनुभव लेना चाहिए ये बुद्धिमान का धर्म है । पर उसमें भविष्य को लेकर समझने की क्षमता हो कि इसका भविष्य में क्या फल होगा, मात्र वर्तमान और भूत में बीती बातों को ही प्रमाण मानें तो वह सम्मानित व्यक्ति नही क्यों कि वह अपने साथ दूसरों का भी भविष्य अन्धकार में ले जाता है" ।
ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य कुल में जन्म लेने से भी कोई बड़ा नही होता बिना ज्ञान के वो मूर्ख ही होता है । जैसे ब्राह्मण को ज्ञान के लिए जाना जाता है , इस लिए ब्राह्मण के अन्दर प्रत्येक प्रकार का ज्ञान आवश्यक है । उसमें मुख्य रूप से श्रुति यानी वेद का ज्ञान, देवी देवताओं के पूजन का और यज्ञ का इसके साथ साथ वर्तमान समय में चल रही स्थिति के अनुसार हर क्षेत्र का ज्ञान जरूरी है । यदि ऐसा नहीं है तो वह नाम के लिए ब्राह्मण है । जैसे काठ का हाँथी और मृत चर्म का हिरण । इस लिए सबसे बड़ा ज्ञान है । इस बात को शास्त्रों ने इस प्रकार कहा-
न तेन बृद्धो भवति येनास्य पलितं शिरः ।
यो वै युवाप्यधीयानस्तं देवा स्थविरं विदुः ।।
यथा काष्ठमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृगः।
यश्च विप्रोsनधीयानस्त्रयस्ते नाम बिभ्रति।।
अर्थात - सिरके बाल सफेद होने से कोई बड़ा नही होता ।  जिसकी अभी कम युवा है, जवान है, तरुण अवस्था में पढ़ा लिखा हो उसे देवता भी वृद्ध समझते हैं।।
काठ का हांथी, चमड़े का हिरण और बिना पढ़ा ब्राह्मण ये तीनो केवल नाम ही धारण करते है इन्हें केवल नाम के लिए बुलाया जा सकता है , कि ये हांथी है ये मृग है ये ब्राह्मण है । पर उनका अस्तित्व नही के बराबर ही होता है ।

Saturday, 26 August 2017

श्री बटुकभैरवनाथ से ज्यादा दयालु कोई नही

भगवान् बटुक भैरव की पूजा स्वयं में एक ऐसी साधना है जो कि आपकी कुण्डली का भाग्य या ब्रह्माण्ड में आपसे कोई कुपित हो या रुष्ट हो आपका कोई बाल बाका नहीं कर सकता है। बाबा की साधना कल्पवृक्ष के समान है ,जो आप कल्पना करते हो वह सब बाबा की सेवा और साधना से प्राप्त हो जाती है । इस बात में कोई संदेह नही है ! बस ध्यान इस बात का रखना पड़ता है कि श्री बटुक साधना के साथ कोई साधना नहीं की जाती जैसे एक पत्नी के लिए उसका पति ही सबकुछ है उसी भाँति हमें अपने दिल दिमांक में बाबा को ही रखना है। किन्तु वह पत्नी किसी का अपमान नही करती पूरे घर का सम्मान करती है । ठीक उसी प्रकार हमें किसी भी देवी देवता का अपमान नहीं करना पर दिल दिमांक में अपने बटुकनाथ को रखना है। श्याम शलोना सुन्दर सा मुखड़ा नटखट चितचोर पांव में घुंघुरू, कानों में कुण्डल , कमर में नाग की करधनी, त्रिनेत्रधारी, गले में रुद्राक्ष माला, एक हाँथ में मदिरा से भरा खप्पर और एक हाँथ में दण्ड लिए  ऐसा सुन्दर सा रूप जिसकी एक नही 10 महाविद्या 64 योगिनियां जिसकी मां है । जिसके साथ रहती है ! कुत्तो के साथ खेलते है ऐसे मनोहारी रूप को कुछ लोग कहते है बहुत क्रोधी देवता है ये उनकी भूल है । मैं आपको बता दूं कि मेरे बाबा जैसा कोई देवता नहीं साक्षात शिव के इस बाल रूप को मैं क्रोधी नहीं मानता हाँ यदि अपने भक्त की रक्षा करना और उसके शत्रुओं का नष्ट करना क्रोध है तो मेरे बाबा  बटुकनाथ से ज्यादा क्रोधी कोई नहीं है। अपने भक्त पर बाबा कभी क्रोधित नही होते है । हाँ बालक रूप है इस लिए कुछ नियम जरूर है । जैसे पूजा में कभी नागा न हो जो भी खायें उससे पहले बाबा स्मरण जरूर करें । आप रेलगाड़ी में हो या किसी भी यात्रा वाहन पे हो जाप और बाबा का स्मरण रात्रि काल में जरूर करें, फिर बाबा की माया आप पर सदैव बनी रहेगी। अब आपके दिमांक में होगा कि यात्रा में स्नान कैसे होगा तो सर्व प्रथम अपनी शुद्धता को देखें यदि आप मल मूत्र का त्याग करने के बाद स्नान नहीं किये तो सम्भव प्रयास करें कि कमर से स्नान कर लें वस्त्र बदल कर जाप करें।
यदि ये सम्भव न हो तो बटुक साधक को 2 माला रखनी चाहिए एक रुद्राक्ष और एक काला हकीक , शुद्ध की अवस्था में रुद्राक्ष से स्वच्छ न होने की स्थिति में हकीक से । स्त्रियों को मासिक धर्म के समय 5 दिन पूजा नही करनी चाहिए परन्तु जो बटुक साधिका हो वो उस समय में बिना माला के बिना मुह से बोले मन मे बाबा के मन्त्र का चिंतन करें । बाबा मेरे बहुत भोले और दयालु है , मैंने ऊपर कहा कि कल्प वृक्ष के समान है पर एक स्थान ऐसा आता है जहाँ कल्प वृक्ष भी छोटा पड़ जाता है । वो है मोक्ष की प्राप्ति कल्पवृक्ष मोक्ष नहीं दे सकता और बटुकनाथ की साधना से आप मृत्यु के बाद मोक्ष को भी प्राप्त कर सकते है । किसी भी प्रकार की श्री बटुक भैरव साधना से सम्बन्धित जानकारी के लिए , ईमेल या टिप्पड़ी (कमेंट) कर सकते है । जय बटुकभैरवनाथ

Friday, 25 August 2017

धर्मपर तर्क करने वाले से बहस नही करना चाहिए उन्हें छोड़ दे ,

प्रकृति के काल चक्र में आज का भी समय चल रहा प्रत्येक व्यक्ति भौतिकता को ही मुख्य आधार मान कर चल रहा अपने वास्तविक परिवेश को विषमृत हो जा रहा भौतिक युग में भौतिकता को अपनाना कोई गलत नही परन्तु अपने मूल को भी पहचानना बहुत ही आवश्यक है । धर्म तर्क नहीं आस्था का विषय इसे किसी पे थोपा नहीं जा सकता । परन्तु आज धर्म का पालन करना मात्र कल्पना हो गया आज के पढ़े लिखे लोगों से धर्म के लिए पूंछा जाय तो अनपढों की भाँति वेद और धर्म शास्त्रों पर तर्क करते है ऐसे लोगों के लिए शास्त्रों में लिखा है कि उनसे तर्क न करें उन्हें छोड़ दे खास कर द्विजों के लिये है कि वो तो पूर्ण रूप से पतन का मार्ग प्रशस्त कर रहे इस लिए विद्वत जन उनसे दूर हो जायें तर्क न करें ।
योsवमन्येत ते मूले हेतुशास्त्राश्रयाद्विजः।
स साधुभिर्बहिष्कार्यो नास्तिको वेदनिन्दकः।।
अर्थात् - जो द्विज ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ) दोनों धर्म के मूलों ( वेद, धर्मशास्त्र ) पर तर्क करे अपमान करे वह नास्तिक और वेद निन्दक है साधु जनों को उसका त्याग कर देना चाहिए ।

Saturday, 5 August 2017

7/08/2017 रक्षा बन्धन/ चन्द्र ग्रहण

रक्षा बन्धन
भाई बहन का मुख्य पर्व रक्षा बन्धन ७ अगस्त २०१७ को है ।
प्रातः १०:३० तक भद्रा है वैसे चन्द्रमा मकर राशि में है तो भद्रा स्वर्ग में है, तो ये भद्रा हानि कारक नहीं है । इस लिए यदि आप १०:३० के पहले भी बांधते है तो भी कोई हानि नहीं परंतु अपराह्न  १४:४५ तक रक्षा बन्धन का कार्य सम्पन्न कर ले । क्यों कि अपराह्न १४:५३ पे चन्द्र ग्रहण का सूदक लग जायेगा ।
चन्द्र ग्रहण -
७ अगस्त २०१७ की रात्रि में लगने वाला ये चन्द्र ग्रहण साधको के लिए खास है । चूणामणि योग है इस ग्रहण में , ग्रहण से पहले अपने मंत्र को अधिक से अधिक जाप करें १ दिन पहले से ही संकल्प लेकर ग्रहण की अवधि तक एक निश्चित संख्या को पूरा करें और ग्रहण लगने पे स्नान करके बैठ जायें देव मूर्ति को ग्रहण काल में स्पर्श न करें ग्रहण काल में कुछ खाना पीना नहीं चाहिए , रोगी, शिशु के लिए छूट है । कुछ लोगों को हमने देखा है सूतक काल से ही मन्दिर बन्द कर देते है मूर्ति नहीं छूते ऐसा कोई विधान नहीं है सूतक काल में ऐसा कोई प्राविधान नही है । मात्र ग्रहण काल में ऐसा करना चाहिए सूतक काल में जप का अर्ध फल होता है इस लिए उस समय से बैठ जाना चाहिए । ग्रहण के अंतिम क्षण में हवन करें स्नान फिर चन्द्र अर्घ दें इससे आपकी मंत्र साधना का ग्रहण चरण पूर्ण होगा।
ग्रहण काल - स्पर्श - २२:५३, मध्य २३:५०, मोक्ष २४:४८,
द्वादश राशि पर ग्रहण का प्रभाव -
१ मेष - सुखम्, २ वृष - माननाश ,३ मिथुन - मृत्यु तुल्य कष्ट , ४ कर्क - स्त्रीपीड़ा, ५ सिंह - सौख्य, ६ कन्या - चिन्ता, ७ तुला - व्यथा, ८ वृश्चिक - श्री:, ९ धनु - क्षति , १० मकर - घात, ११ कुम्भ - हानि, १२ मीन - लाभ ।

Thursday, 3 August 2017

जीवन में कोई भी चीज सरल नहीं

जीवन एक भव सागर है । व्यक्ति भावनाओं में बहता रहता है और जो भी चीज दिखती है उसके प्रति लालायित होने लगता है । पर ये सम्भव नही दुनिया में प्रत्येक वस्तु या सम्बन्ध के आंत्रिक गुणों को प्राप्त करना असम्भव है । मनुष्य का ऐसा स्वभाव भी है कि अपनी चीज से अगले की चीज या सुख ज्यादा ही दिखता है उसको सन्तुष्टि नहीं होती। परन्तु सामने से दिखने वाली हर चीज वैसी नही होती जैसी दिखती है ये भी कटुक सत्य है, उसमे विकार अवस्य होता है । इसी प्रकार साधना के जीवन में भी यदि कोई व्यक्ति अलग साधना करता दिखता है तो उत्सुकता होती है कि इस साधना में क्या है जो मेरी वाली साधना में नहीं है । इसे भी पा लिया जाय पर भौतिक सुख में और साधनात्मक सुख में बहुत अन्तर है यदि आपने कोई भी साधना सुरु की और उसका आपकी साधना से विपरीत मार्ग है तो, आप न इधर के रहोगे न उधर के हाँ स्मरण करना अलग है । पर उस मार्ग पर अग्रसर होना ये खतरनाक है । जैसे आप सात्विक साधक है और आपने तान्त्रिक देव साधना की तो आपका सात्विक मार्ग बाधित हो जायेगा सात्विक देवता आपको छोड़ देगा । यदि तान्त्रिक साधना किया और साथ में किसी प्रेत या यक्षिणी साधना किया तो तान्त्रिक देवता आपको बचा तो लेगा पर कुछ समय में आपको छोड़ देगा । उसी प्रकार यदि आपने पिशाच साधना पहले किया बाद में देव साधना तो आपके प्राण भी जा सकते है । वैसे तो कोई भी साधना या अभीष्ट प्राप्ति का मार्ग सरल कभी नही होता सरल वही होता है, जहाँ कुछ नहीं होता है। यदि आपको कोई बड़ी उपलब्धि या बड़ी सिद्धि प्राप्त करनी है तो खतरों से तो खेलना ही पड़ेगा । शास्त्रों में भी कहा गया है -
न संशयमनारुहय नरो भद्राणि पश्यन्ति।
संशयं पुनरारुह्य यदि जीवति पश्यन्ति ।।
अर्थ - मनुष्य अपने को खतरे में डाले बिना विशिष्ट लाभ नहीं पा सकता यदि खतरे से बच गया तो उस लाभ का सुख वह भोगता ही है ।।
इस लिए दिल से एक ही साधनात्म मार्ग पर चलना चाहिए और डरना नही चाहिए यदि कोई अच्छा गुरु मिले तो सर्वोपरि है। हमारे लेख का मतलब यह नहीं कि आप डर जाओ या अनावश्यक कहीं जा के कूद पड़ो की यहाँ खतरा है तो ये मार्ग सही है । हमारा अभिप्राय है कि जिस लक्ष्य को भी हम अपनायें उसी पर पूरा ध्यान केन्द्रित करें क्यों कि कोई भी मार्ग सरल नहीं होता है ।।

Sunday, 9 July 2017

त्रिपुण्ड और रुद्राक्ष बिना धारण किये , शिव उपासना का फल नही

चन्दन लगाना बुद्धि का विस्तार करता है यह वैज्ञानिक मत है कि दोनों भँव के मध्य में चन्दन लगाने से दिमांग को ठंढक प्रदान करता है । ये चन्दन की लगड़ी से बने मलयागिरि के लिए या चंदन कपूर कुमकुम आदि मिश्रित अष्टगंध के लिए है । कुछ लोग सिंदूर या अन्य सामग्री आस्था के अनुसार लगाते है इसका मात्र आध्यात्मिक महत्व है । कुछ लेखकों के लेख को हमनें पढ़ा जो सिंदूर लगाने से रोकते है पर मेरी दृष्टि में ऐसा कुछ नही, यदि हमारी कहीं आस्था है और हम अपने आराध्य के प्रति समर्पित है तो ये जो दिमांग उस तरफ केंद्रित हुआ ये स्वयं में एक बहुत बड़ी शक्ति है । क्यों कि जितनी अधिक आस्था होती है, उतनी शक्ति रूपी कृपा प्राप्त होती है । अब हम इसी क्रम में अपने आराध्य शिव और उनके बालरूप बटुक भैरव जी के बारे में बतायेंगे । भगवान शिव के सदृश कोई नही ब्रह्माण्ड को उन्होंने ही बसाया और समय आने पे नष्ट भी वही करते है । हमारे प्राणनाथ भोले नाथ भस्म धारण करते है और ये दिखाते है कि जो जन्म लिया है उसे शरीर छोड़ कर भस्म में मिल जाना है । भस्म राख या मिट्टी को कहते है । भगवान शिव जो तीन रेखा का चन्दन लगाते है उसे त्रिपुण्ड कहते है ।भगवान शिव के भक्त को भस्म त्रिपुण्ड अवस्य धारण करना चाहिए, लिङ्ग पुराण में तो यहाँ तक लिखा है कि बिना भस्म त्रिपुण्ड और बिना रुद्राक्ष की माला धारण किये जो शिव या शिव के किसी रूप की पूजा करता है उसका फल नही होता वो मूर्ख है । भस्म के कई प्रकार है एक जो बाजार में छूही कपूर सुगन्धित द्रव्य से मिश्रित प्राप्त हो जाती है , दूसरी पञ्चगव्य में गोबर की मात्रा अधिक करके गोला बना कर गाय के कण्डे पर जला कर बनती है , तीसरी चिता भस्म ये तीन प्रकार की भस्म ग्रहण की जाती है । भस्म विषम अंग में त्रिपुण्ड रूप में  लगाना चाहिए दिन में जल मिश्रित भस्म और रात्रि में सूखी भस्म धारण करने का  विधान है । भस्म या कोई भी चन्दन शिव साधक को सीधा नही लगाना चाहिए । 

Monday, 12 June 2017

शिव उपासना से सुख और दुःख भी है

भगवान शिव की आराधना बहुत ही दुर्लभ साधना है । ये बहुत ही दयालु देवता है भक्तवत्सल है , अपने भक्तों का कष्ट देख नहीं पाते इनकी उपासना अत्यन्त सरल है और जल्द ही प्रसन्न होने वाले देवता है वैदिक मन्त्र से बहुत ही जल्द प्रसन्न होते है , इसी लिए रुद्राभिषेक कर भगवान को प्रशन्न किया जाता है । पर आज कल जिस प्रकार रुद्राभिषेक हो रहे ये अरिष्ट कारक है वेद मन्त्र से छेड़ छाड़ किया जा रहा तो वह देव वास नहीं प्रेत वास को बुलावा देना है । क्यों की अमृत और विष दो ही रूप है , लोगों में भ्रांतियाँ है कि जो ब्राह्मण करेगा वह ही जाने पर यह आपकी भूल है यदि अच्छा होगा तो आपको मिलेगा बुरा होगा तो ब्राह्मण को ये गलत है । बुरा भी आपको मिलेगा अच्छा भी आपको इस लिए रुद्राभिषेक जितनी बड़ी और शुभ पूजा है उतनी ही घातक भी है । इस लिए न करें वो ठीक है पर वेद पाठी ब्राह्मण से ही पूजन करायें । एक भ्रान्ति और है कि भगवान शिव को बाहर रखो घर में नहीं यह भी गलत है , धूल मिट्टी सब पड़ रही पेड़ के नीचे या खुले में रख दिया है धूप तप रही और जानवर आ के सूंघ रहे कुत्ते पेसाब भी कर दे रहे । तो आपको बता दे जिसने इस प्रकार किया है वह समस्त सुख से वंचित रहता है जो ब्राह्मण ये करवाता है वो दलिद्र ही रहता है । शिवलिङ्ग घर में रख सकते है ऐसा कोई प्रमाण नहीं है ,, और उनका विधि से पूजन करें और भोग लगायें , भगवान शिव इतने दयालु है कि इनकी उपासना में न किसी पण्डित की जरूरत है न किसी नियम की ये भाव के भूखे है सामान के नही यथा शक्ति जो आपके पास है उससे इनकी नियमित आराधना करें , उपासना स्वयं करें । समस्त सुख आपके पास होंगे किसी भी प्रकार की भ्रान्ति हो तो हमें email या टिप्पड़ी कर सकते है ।। आगे के लेख में हम बताएंगे त्रिपुण्ड और रुद्राक्ष की महिमा ।

Friday, 19 May 2017

इष्ट देवता बटुकभैरव है तो सब कुछ सम्भव है

श्री बटुक भैरवनाथ जी की साधना एक दुर्लभ साधना है , जिनके साधक को कभी भयभीत नहीं होना चाहिए। ब्रह्माण्ड में बटुक भैरव साधना जैसी कोई साधना नहीं और यदि आप साधना के करीब आजाते है तो बाबा हर पल आपके साथ ही रहते है। एक परछाईं की तरह अपने भक्त का मार्ग दर्शन करते है। और किसी भी अरिष्ट शक्ति को वो अपने भक्त के समक्ष नहीं आने देते, किसी भी प्रकार का तन्त्र बटुक साधक पे काम नहीं करता। उसके बिपरीत जो इनके पीछे पड़ते है उनका सर्वश्व नष्ट हो जाता है । बटुक भैरव की साधना के लिए सबसे जरुरी और उपयोगी तुरीय यानी मध्य रात्रि का समय 12am से 3:59 am तक का होता है।  इस समय को सिद्ध काल कहते है, यदि इस समय साधना नहीं हो पाती  तो रात्रि 9 pm से 3:59am तक के मध्य का समय ग्रहण करें, इस समय को रात्रि पूजा में ग्रहण कर लिया जाता है । वैसे तो बाबा की पूजा में तुरीय संध्या का सबसे बड़ा स्थान है जिससे प्राणनाथ बाबा बटुकनाथ बहुत प्रशन्न हो जाते है । 
बाबा भाव पूर्ण पूजा या साधना के प्रेमी है । जो इनकी साधना मात्र स्वार्थ निमित्त करते है उनको सावधनी से करनी चाहिए । स्वार्थ निमित्त का अभिप्राय है कि कोई काम नहीं बन रहा मात्र उसके लिए या कोई और साधना कर रहे उसमें कोई दिक्कत या रुकावट आरही, कोई प्रेतबाधा आपके पीछे पड़ी है  इस लिए कर रहे तो सावधानी से करें। जिस बात को लोग ज्यादा बोलते है कि बटुक भैरव या 64 भैरव में कोई भी भैरव बहुत क्रोधी है । वो ऐसे लोगों के लिए ही है । जो स्वार्थ निमित्त साधना करते है । और जो भगवान शिव के साधक है जो शिव के इस बाल रूप को आराध्य या कहें तो इष्ट मानते है उनको किन्चित मात्र नहीं डरना चाहिए उनपे बाबा कभी रुष्ट नहीं होते । यदि श्री बटुकभैरावनाथ इष्ट है तो आपके लिए जीवन में सब कुछ सम्भव है कोई भी चीज दुर्लभ नहीं है ।
विशेष :- रात्रि पूजा कभी खण्डित न हो इसपे विशेष ध्यान रखें । और जब भी कुछ खायें पियें कोशिश पूरी करें की वो सामग्री आपकी नजर में साफ हो, जूँठी न हो तब उसे मन से बाबा को समर्पित करें तभी खायें । ये दो सावधानी बटुक साधना में बहुत जरुरी है ।
जय बटुक भैरवनाथ

Wednesday, 19 April 2017

Shri Batuk Bhairav sadhna me jaruri ( Important points in Shri Batuk Bhairav sadhna )

                                           




आज हम अपने आराध्य भगवान् शिव बाल रूप श्री बटुक भैरवनाथ जी की साधना के बारे में बात करेंगे, हम यह भी देख रहे की वर्तमान समय में बाबा बटुकनाथ के साधक बढ़ रहे है दिन प्रतिदिन संख्या बढ़ रही, जब की पहले की बात करें तो बहुत कम ही लोग इनकी साधना में लिप्त होते थे, पर ये बात जैसे जैसे सबको ज्ञात होती जा रही कोई बहुत कठिन नियम नहीं है और इनसे पूरा ब्रह्माण्ड डरता है इसी लिए इन्हें बज्रपाणि कहते है । और यदि ये प्रसन्न हो जायें तो नव ग्रह का भी प्रभाव नहीं चलता, पर इनकी साधना पहले लोग क्यों करने से डरते थे ? वो भी हम बतायेंगे क्यों की आज का हमारा विषय भी यही है । बाबा श्रीबटुकभैरवनाथ बाल रूप है और इन्हें अत्यन्त क्रोधी देवता के रूम में जाना जाता है यही बात प्रचलन में रही है इसी लिए लोग इनकी साधना उपासना से डरते थे और एक सूक्ति भी है - "छड़े रुष्टा छड़े तुष्टा रुष्टा तुष्टा छड़े छड़े" ये ऐसी लाइन है जो एक मात्र बटुक भैरव के लिए है "छड़ में नाराज होते है और छड़ में प्रशन्न होते है " छड़ में राजा बनाने की क्षमता और छड़ में भिखारी बनाने की क्षमता किसी में नहीं है । वो मात्र बटुकनाथ में है" तो इन शब्दों के साथ हम बाबा की नियमा वाली पे आगे बढ़ते है, हम ये बता दें जितना हमने देखा है बटुकनात जैसा देवता नहीं , इनकी पूजा बहुत ही सरल है ये अपने भक्त पे कभी क्रोधित नहीं होते बल्कि क्रोधित ये उसपे होते है जो बाबा के भक्त को कष्ट देता है । उसको ब्रह्माण्ड में कोई बचा नहीं सकता । बाबा की पूजा में सावधानी :-
1. श्री बटुक भैरव या 64 भैरव की साधना बिना गुरु के न करें, गुरु भी वो हो जिसने बटुक साधना की हो । यदि आपके पास किसी गुरु से शिव या बटुक दीक्षा है तो और भी अच्छा है । बटुक साधना के दो प्रकार है , एक मांसाहार के साथ होती है और एक शाकाहार के साथ। यह निर्भर करता है कि जिस गुरु के माध्यम से आप साधना कर रहे वो किस विधि का है । जो साधनात्मक मार्ग गुरु का हो वही ले के चलना श्रेयष्कर है ।
2. इनकी पूजा यदि आपने प्रारम्भ कर दिए है तो कभी बन्द न करें, अन्यथा जितना आपने बटुक साधना से पाया है वो सब क्षीण हो जायेगा और दुबारा फिर बटुक साधना में स्थान पाना न के बराबर हो जाता है । इस लिये बटुक साधना प्रारम्भ करने के बाद न छोड़ें ।
3. बाबा की उपासना के साथ भगवान् शिव और 10 महाविद्या को छोड़ और किसी देवी देवता की उपासना न करें यदि और किसी देवी देवता की उपासना करते है। और उसमें कोई विघ्न आरहा तो उस पूजा के विघ्न शान्ति के लिए बटुक उपासना कर सकते है, पर वो बटुक साधना में नहीं ली जायेगी ।
4. बटुक साधना में रुद्राक्ष या काले हकीक की माला का ही प्रयोग होता है, आसान ऊन का या मृग चर्म हो ऊन का है तो सफेद और पीला न हो साधक जिस माला और आसन का प्रयोग करता है उसको अलग रखे उसको किसी से साझा न करे ।
5. बटुक साधना में दक्षिण दिशा सबसे ज्यादा प्रभाव शाली होती है । साधना का दीपक और साधक का मुख दक्षिण होने से साधना का प्रभाव ज्यादा होता है । वैसे आप किसी भी दिशा में पूजा कर सकते है, पश्चिम छोड़कर ।
6. साधक को साधना काल में काला, लाल, गेरुआ और नीला वस्त्र ही धारण करना चाहिए । 
7. साधक को न किसी का वस्त्र धारण करना चाहिए और न अपना देना चाहिए ।
8. बिना भोग लगाये किसी भी खाद्य सामग्री का सेवन न करें , इस बात को भगवान् आदि शंकराचार्य जी ने भी कहा है कि मनुष्य को बिना भोग लगाये भोजन नहीं करना चाहिए । उन्हों ने कहा पशु के सामने यदि भोजन रखा जाता है तो खाने लगता है , और हमारे सामने भोजन दिया जाय हम भी खाने लगे तो कैसे सिद्ध होगा की हम मनुष्य है, भगवान् आदि शंकर ने कहा कि हमें उस परमात्मा को धन्यवाद देना चाहिए और और उन्हें मन से समर्पित करना चाहिए और आज्ञा मांगनी चाहिए की इसे ग्रहण करने की आज्ञा दें ।
9. लिङ्ग पुराण में लिखा है कि शिव के किसी भी रूप की सेवा यदि कर रहे हैं तो, बिना भस्म और रुद्राक्ष के नहीं करना चाहिए अन्यथा फल कम हो जाता है ।
10. यदि आप बटुकभैरव सिद्धि के लिए साधना कर रहे तो किसी भैरव पीठ पे करें या त्रिकोण शिला स्थापित करें उसी पे सम्यक प्रकार से सेवा और साधना करें । पर ध्यान रखें भैरव जी का विसर्जन नहीं होता इस बात को ध्यान रख के ही शिला या मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए अन्यथा नहीं करनी चाहिए चित्र पे पूजन करें । आगे अपने गुरु से सम्पर्क करें ।
11. श्री बटुक भैरव जी के लिए कौन सा दिन खास है और क्या प्रसाद चढ़ा सकते है :- वैसे तो सातों दिन बाबा की पूजा में खास और अपनी भूमिका रखते है पर रविवार, मंगलवार खास है । बाबा को सभी प्रकार के अन्न का भोग लगता है फीका भोजन नहीं पसन्द है। इनके भोग में लहशुन प्याज गाजर का कोई परहेज नहीं है । मिष्ठान में - सभी पसन्द है पर कालाजाम और बेसन का लड्डू खास है। फल में भी सभी पसन्द उसमें अनार खास है । फूल में सभी फूल पसंद है केतकी का छोड़ के । बाबा का मदिरा खास भोग माना जाता है। मदिरा सदैव अपनी क्षमता के अनुसार ही चढ़ाना चाहिए । विशेष - शिव जी और भैरव जी को कभी केवड़े का फूल या केवड़ा मिली खाद्य सामग्री न चढ़ायें और केवड़े के जल से छिड़काव न करे ये श्रापित है । इससे आपकी समस्त पूजा का नाश हो जायेगा ।
जय बटुक भैरवनाथ


Today I will discuss about my supreme deity Shiva and Sadhna of his child incarnation Batuk Bhairavnath. These days the number of people involved in his sadhna are constantly increasing while in earlier days it was limited to few people. Everyone is now realizing that the rules of his sadhna are not very tough and He is the one with whom whole Universe fears and thus he is also called the 'Supreme Deity'. If he bestows his blessings then not even 9 planets ( 9 Grah) could affect in any way. Earlier people used to fear from his sadhna I will telll you the reason behind it. It is because  Batuk Bhairav is the chlid incarnation and he is known as the irate deity due to this people used to fear from his sadhna. Thus these are the few lines symbolizing our supreme holy deity Batuk Bhairavnath " He is the one who becomes ecstatic or irate in a moment, He has the power to make a person King or a beggar in a jiff. " Now let us look towards the worshiping of Batuk Bhairavnath.I have seen that there is no deity like Him, his worshiping is very easy and as far as I have seen he never gets outraged with his followers but does so with them who hurts his followers and once he is angry with someone then no one in this universe can save him. Important points to be considered:
1. Sadhna of lord Batuk Bhairav or 64 Bhairav should not be done without a guru(holy teacher) and the guru himself should be the one who has done his sadhna, it is better if you have deeksha of lord Batuk Bhairav or Shiva from a guru. Batuk Bhairav sadhna is done by following 2 paths one is non vegetarian and other is vegetarian, it depends on what is the path followed by your guru. If one follows same path as his guru then it is beneficial.
2. Once you have started worshiping him then never stop it , else whatever you have gained with his blessings will be destroyed and it will become nearly impossible to please him again.
3. While worshiping him don't worship any other deity except lord Shiva and 10 Mahavidyas.
4. In Batuk sadhna the string of prayer beads should be made of 'Rudraksha' or 'black Hakik'. The holy mat(Asan) should be made of wool or deer skin. If it is of wool then it should not be of yellow or white color and neither the prayer beads nor the Asan should be shared with anyone.
5. In Batuk sadhna the South direction for worshiping is considered as most auspicious, the face of dia and the sadhak in South direction is considered to be most effective although you can worship in any direction except West.
6. During the period of sadhna a sadhak is supposed to wear black,red,orange and blue clothes only. 7. Sadhak should neither wear clothes of anyone nor he should lend his to others.
8. One should not eat anything without offering it to Lord. It is also illustrated by Adi Shankaracharya ji that " if food is kept in front of an animal he immediately starts eating it and if we do the same then what is the difference between human and animals" " we should thank the god for providing us the food and we should offer it to him in our mind and then ask permission to eat it.
9. The Ling puran quotes " if one is worshiping lord Shiva in any of his incarnations then Bhasm(ash) and Rudraksha are necessary, without them the blessings are reduced.
10. If you are doing sadhna of Batuk Bhairav then perform it in Bhairav temple or have your own triangle linga and worship it whole heartedly. One must also note that the Lord Bhairav not drown in water i.e one can't do his visarjan. Only after Keeping this fact in mind one should keep his linga or statue else he should worship on a photo. For further steps one should contact his guru.
11. Now let us know which day is auspicious for lord Batuk Bhairav and what type of food (Bhog) should be offered: commonly  every day is auspicious for his worship but Sunday and Tuesday have the utmost importance. All sorts of food can be offered to him but it is known that he doesn't like light tasting stuffs.
Sweets: all sweets can be offered but Kalajam and Besan Ladoo are his favourite.
Fruits: all fruits are admired by our deity but among them Pomegranate has its own importance.
Flowers: all flowers can be offered except Pandanus Odorifer (Kewda ) .
Liquor is the special offering for lord Bhairav. The amount of liquor offered depend on ones own wish.
Note: Lord Shiva and Lord Bhairav should never be offered fruits, flowers of Pandanus Odorifer (Kewda) or something mixed with it not even the water of this flower should be sprinkled on him because this plant is cursed and offering any of its products will destroy all your worship.
Jay Batukbhairavnath.